वह एक बात जो समस्त रिश्तों को जोख़िम में डालती है

Posted byHindi Editor April 4, 2023 Comments:0

(English Version: The One Thing That Threatens All Relationships)

क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि वह कौन सी बात है जो सारे रिश्तों को जोख़िम में डालती है ? कड़वाहट ! यह विवाह संबंधों को, कलीसियाओं को और लगभग सारी चीजों को प्रभावित करती है | कड़वाहट, स्वस्थ मसीही जीवन के विरुद्ध सर्वाधिक खतरनाक महामारियों में से एक है | यह सर्दी-जुकाम से भी अधिक तेजी से फैलती है, यह एक व्यक्ति के आत्मिक जीवन के सम्पूर्ण जीवनशक्ति को खा जाती है | यह “आत्मा का कैंसर” है और प्रतिवर्ष लाखों लोगों को अपना शिकार बनाती है | तौभी इस महामारी के लिए एक इलाज है | यह इलाज इंग्लिश भाषा के एक बहुत ही खूबसूरत शब्द में पाया जाता है और वह शब्द है, “Forgive” | हालांकि  “Forgive” एक सामान्य शब्द है, परन्तु इसकी सही खूबसूरती इसके अंतिम भाग(give) में छिपी है |  for-Give करने का अर्थ है कि यदि किसी ने तुम्हारे विरुद्ध कुछ गलत किया है तो उस व्यक्ति को बिना दंड दिए छोड़ दिया जाये (क्षमा कर दिया जाए) | इसका अर्थ है, किसी भी प्रकार के पलटा (बदला) लेने के अधिकार को छोड़ देना और अपने ह्रदय में किसी भी प्रकार के कड़वाहट को पनपने न देना |

पवित्र शास्त्र बाईबल मसीहियों से न केवल क्षमा करने वाले लोग बनाने की अपेक्षा करती है बल्कि उन्हें यह आज्ञा भी देती है | यह और किसी  बेहतर विकल्प का सुझाव नहीं देती है | विश्वासियों के लिए क्षमा करने का  उच्चतम मापदण्ड ठहराया गया है | हमें कहा गया है की जैसे परमेश्वर क्षमा करता है, वैसे क्षमा करो,एक दूसरे पर कृपालु और करुणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो  (इफि. 4:32, कुलु. 3:13 भी देखिये )|

यह सही बात है की क्षमा करना कोई आसान काम नहीं है | कई बार हमारे मन में इस प्रकार के विचार आ सकते हैं, “ इसका कोई लाभ नहीं है | वे फिर मुझे चोट पहुँचायेंगे | मुझे उन्हें पहली बार ही क्षमा नहीं करना चाहिए था | वे कभी नहीं बदलेंगे, इत्यादि | “हमें ऐसे पापमय विचारों के विरुद्ध जागृत रहना होगा ! परमेश्वर ने प्रतिज्ञा किया है की वह दूसरों को क्षमा करने के लिए अपने संतानों की सहायता करेंगे, और “परमेश्वर का झूठा ठहरना अनहोना है  (इब्रा. 6:18) | इसीलिए हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिये |

अवश्य ही हमें यह विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वर हमारे ह्रदय में कार्य कर रहा है और इन परीक्षाओं के द्वारा हमें मजबूत बना रहा है | वह हमारा निर्माण करना चाहता है – हमें तोड़ना  नहीं | हालाँकि कई बार निर्माण करने के लिए तोड़ने की आवश्यकता होती है | यदि हम पवित्र आत्मा के सामर्थ का सहारा लेते हुए धीरज से बने रहें तो जीत हमारी होगी | 

आवश्यक है कि हम अपने ह्रदय में पल रहे कड़वाहट के लिए परमेश्वर की क्षमा चाहने हेतु याचना करें | इस पाप पर जय पाने का यह पहला कदम है | फिर हमें उनको क्षमा करने के लिए जिन्होंने हमें चोट पहुँचाया है परमेश्वर से निरंतर सामर्थ माँगते रहना चाहिए | जब भी दूसरों के पापों का स्मरण आने पर कड़वाहट के विचार आने लगे तो हमें हमारे स्वयं के पापों को ध्यानपूर्वक और सिलसिलेवार सोचना चाहिये | 

किसी ने लिखा है, “ क्षमा करने वाले लोगों को अपने स्वयं के पाप लम्बे समय तक याद रहते हैं जबकि दूसरों के पापों के प्रति उनकी स्मरणशक्ति अल्पकालीन होती है | अपने स्वयं के पापों का  दीर्घकालीन स्मरण दुखदायी होता है, परन्तु जब उनका ह्रदय प्रभु यीशु में नव-प्राप्त क्षमा पर विचार-चिन्तन करता है, तो उनके पापों का यह स्मरण आनंद उत्पन्न करता है | इतना ही आनंद उन्हें तब प्राप्त होता है जब वे उन लोगों को इसी प्रकार से क्षमा कर पाते हैं जिन्होंने उनके विरुद्ध पाप किया है | “ 

मुझे एक पत्नी के बारे में पढ़ना याद है जो अपने पति के अश्लील साहित्य देखने के पाप को संबोधित करने के लिए अपने पासबान के पास गई थी| उसने अपने पति को इसके विषय में कठोर चेतावनी दी थी और परिणामस्वरूप उसने अपने पाप से मन फिराया था और उससे क्षमा माँगी थी | तौभी वह अपने पति के पाप को भूल नहीं पा रही थी इसीलिए वह अपने पासबान के पास यह वर्णन करने गयी थी कि उसका पति कितना बुरा था कि उसने यह पाप किया और उसने यह भी बताया कि वह अपने पति को तलाक देने का विचार कर रही थी | 

पासबान ने अपने लेख में आगे लिखा कि उस स्त्री के मन में अपने उस पति के प्रति जिसने अपने पाप से मन फिरा लिया था इतनी कड़वाहट थी कि वह अपने ह्रदय में निरंतर फल-फूल रहे कड़वाहट को देख ही नहीं पाई | यह है, पाप का असली खतरा ! 

दूसरों के पाप (उनके मन फिराने के पश्चात भी) हमें भली भाँति दिखाई देते हैं और हम उन्हें   स्मरण भी करते हैं, और उसी समय अपने पापों के प्रति हम अंधे और भुलक्कड़ बन जाते हैं | इसीलिए हमें सचेत रहकर दूसरों के पापों के स्थान पर अपने पापों पर धयन-चितन करने की  आदत डालनी चाहिये | एक अहंकारी,स्वधर्मी और निर्मम (क्षमा करने में असमर्थ) ह्रदय के लिए और कोई इलाज नहीं है !

वास्तव में, यह आश्चर्यजनक बात है कि जब हमें क्षमा चाहिए तो हमें यह शब्द “क्षमा” ख़ूबसूरत लगता है परन्तु जब हमें किसी को क्षमा करना होता है तो यही शब्द हमें अत्यंत  बदसूरत दिखाई पड़ता है | यह भी उतना ही स्मरण रखने योग्य तथ्य है कि “ हम उड़ाऊ पुत्र कितनी शीघ्रता से स्वधर्मी बड़े भाई बन जाते हैं “ (केथ मैथिसन)

क्षमा न करना अविश्वासियों  का गुण है (रोमियों 1:31; 2 तीमु. 3:3)| पवित्रशास्त्र बार-बार इस बात का स्मरण दिलाती है कि मसीहियों में एक करुणामय और क्षमाशील आत्मा होनी चाहिये (1 यूहन्ना 3:10, 14-15)| यदि हमारी जीवनशैली एक कड़वाहट भरा और क्षमा न करने वाला स्वभाव का प्रदर्शन करता है तो फिर हमें गंभीरतापूर्वक अपने जीवन का परीक्षण करना चाहिए कि क्या हमने सही में परमेश्वर द्वारा पापों की क्षमा का व्यक्तिगत रूप से स्वाद चखा है ? थॉमस वाट्सन ने कहा था, “ हमें यह जानने  के लिए कि हमारे पाप क्षमा हुए हैं कि नहीं स्वर्ग पर चढ़ने की आवश्यकता नहीं है | आईये हम अपने ह्रदय में झाँककर देखें कि क्या हम दूसरों को क्षमा करते हैं |  यदि हम क्षमा करते हैं तो फिर हमें इस बात पर संदेह नहीं होना चाहिए कि परमेश्वर ने हमें क्षमा किया है |”

जब हम कलवरी पहाड़ पर खड़े होकर अपने प्रभु को हमारे पापों के लिए कीलों से ठुके हुए,कुचले हुए, खून से लथपथ, क्रूस पर लटके हुए और यह पुकारते हुए देखते हैं,हे पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं (लूका 23:34)  या फिर स्तिफनुस को देखते हैं जब वह पत्थरवाह करके मार डाला जा रहा था और उसने प्रार्थना की, हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा !” (प्रेरित 7:60), तो फिर कैसे हम कड़वाहट में बने रह सकते हैं ? क्या हम अब भी कहा सकते हैं, “ मैं अमुक व्यक्ति को क्षमा नहीं करूँगा ?” क्या हम इतने मूर्ख हैं कि सोचें कि हम परमेश्वर से क्षमा पाकर मनमाना जीवन जी सकते हैं और कोई फर्क नहीं पड़ेगा ? आईये हम अपने आप को दीन करें, सच्चे ढंग से मन फिरायें और दूसरों को क्षमा करने के लिए परमेश्वर से अनुग्रह माँगें | यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो फिर यह निश्चित है कि परमेश्वर की ओर से एक बड़ी ताड़ना हम पर आ पड़ेगी |

आप यह प्रश्न पूछ सकते हैं, “यदि लोग अपने कार्यों से मन न फिरायें तो मुझे क्या करना चाहिए ? क्या मुझे उन्हें तब भी क्षमा करना चाहिए ? इसका उत्तर यह है : लोगों का मन फिराना हमारे हाथ में नहीं है | हम जो कर सकते हैं वह यह है कि हम स्वयं की रक्षा करें ताकि कड़वाहट  उत्पन्न न हो और एक ऐसे ह्रदय का निर्माण करें जो सदैव दूसरों को क्षमा करने के लिए तैयार रहे | यदि लोग मन न फिराएं तो एक स्वस्थ रिश्ता नहीं बना रह सकता |

जहाँ तक परमेश्वर से रिश्ते की बात है, यदि कोई पापी मन न फिराए तो उसका परमेश्वर से कोई रिश्ता नहीं हो सकता है | मेरा उद्देश्य केवल यह समझाना है कि यदि कोई व्यक्ति मन न भी फिराए तब भी हम स्वयं को कड़वाहट के शिकार होने से बचायें | परमेश्वर उनके पापों से व्यवहार करेगा – वह न्यायाधीश है | इसीलिए हम न्याय को अपने हाथ में न लें और साथ ही साथ रोमियों 12:17-21 और लूका 6:27-28 की शिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए उन लोगों के साथ जितना संभव हो सके भलाई करते रहें जो हमें चोट पहुँचाते हैं |  

क्या आपके जीवन में ऐसा कोई है जिसे क्षमा करने के लिए आप अनिच्छुक हैं? हो सकता है वह आपका पति हो,या पत्नी, या फिर माता-पिता या फिर कलीसिया का कोई सदस्य ? वह चाहे कोई भी क्यों न हो, क्यों न अभी इसी समय उन्हें क्षमा करने के लिए परमेश्वर से सच्चे मन से  सहायता माँगें ? परमेश्वर से कहें कि आप उनके प्रति कड़वाहट रखने के लिए सही में दुखी हैं | वह आपकी सहायता करेगा |

स्मरण रखें, जब आप उस व्यक्ति को क्षमा करते हैं, तो यह आप “ मसीह के कारण” करते हैं –  उसे प्रसन्न करने के एकमात्र उद्देश्य के कारण | क्षमा करने का अर्थ है कभी बदला न लेने और पुराने पापों की बात फिर न करने की प्रतिज्ञा करना- विशेषत: उन पापों का जिन पापों से उस व्यक्ति ने मन फिरा लिया है | क्षमा करने से आपको आतंरिक बेचैनी की पीड़ा से निकलने में सहायता मिलेगी |

यदि आप क्षमा नहीं करेंगे तो आपको चोट,कड़वाहट, क्रोध, द्वेष और स्वविनाश के अंतहीन प्रक्रिया में जीना पड़ेगा | आपका निर्णय क्या है ?

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