रूपांतरित जीवन भाग 6—आशा में आनंदित

(English version: “The Transformed Life – Rejoicing In Hope”)
तीसरी शताब्दी में एक व्यक्ति ने अपनी मृत्यु का पूर्वानुमान लगाते हुए अपने एक मित्र को ये अंतिम शब्द लिख भेजे: “यह एक बुरा, भयंकर बुरा संसार है | परन्तु मैंने कुछ शांत और पवित्र लोगों को पाया है, जिन्होंने इस भयंकर बुरे संसार के मध्य एक महान रहस्य को सीख लिया है | उन्होंने एक ऐसे आनंद को पा लिया है, जो हमारे पापमय जीवन के किसी भी सुखविलास से हजार गुणा उत्तम है | उनका तिरस्कार होता है और वे सताए जाते हैं, परन्तु उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता | उनका अपने मनों पर पूर्ण नियंत्रण है | उन्होंने संसार पर जय पाई है | ये मसीही लोग हैं–और मैं उनमें से एक हूँ |”
इन शब्दों के अनुसार, एक मसीही वह है, जिसके पास एक ऐसा आनंद है, जो इस संसार के सुखविलासों और दुःख- तकलीफ़ों से परे [स्वतंत्र] है | और ठीक इसी विषय पर इस लेख में बात की गई है |
यह विषय, ‘आनंद’ एक लाभकारी और अत्यावश्यक अनुस्मारक [reminder] है क्योंकि हम सब समय–समय पर निराशा की समस्या का सामना करते हैं | यदि ध्यान न दिया जाए तो यह निराशा हमें हताशा की एक ऐसी स्थाई अवस्था में पहुँचा सकती है जहाँ हम एक सुन्नपन, भय और स्मृति–लोप [brain fog] के अनुभव का सामना कर सकते हैं | इन युद्धरत हताशाओं के साथ दिन गुजार लेना मात्र ही अपने आप में एक युद्ध है | जब दिन गुजर जाता है, तो रात आती है, एक और युद्ध | नींद न आना एक स्थाई समस्या बन जाती है | रात गुजर जाती है, और सुबह होती है, और फिर से यही चक्र आरम्भ हो जाता है |
चाहे कोई गहरी हताशा का सामना कर रहा हो या फिर निराशा के कई छोटे–छोटे प्रचंड थपेड़ों का, रोमियों 12:12 के प्रथम भाग में, दोनों ही बातों का इलाज है | एक ऐसा सच्चा इलाज हम सब पा सकते हैं, जिसमें हमें एक पैसा का भी खर्च नहीं आयेगा | यह इलाज है: “आशा में आनंदित रहो |” ध्यान दीजिए कि पौलुस मात्र यह नहीं कहता है कि, ‘आनंदित रहो’ परन्तु वह कहता है, “आशा में आनंदित रहो |” इसमें ‘जो आशा हमारे पास है, उसके कारण आनंदित रहने’ का विचार निहित है | परिभाषा के अनुसार, आशा किसी ऐसी वस्तु की ओर संकेत करती है, जो वर्तमान में हमारे पास नहीं है | यह कोई ऐसी वस्तु है, जिसे हम भविष्य में पाने की बाट जोहते हैं | तो यह आशा क्या है जो उस आनंद का आधार है, जिसके बारे में पौलुस इस पद में बात कर रहा है?
मैं विश्वास करता हूँ कि यह उस समय की ओर संकेत करता है जब विश्वासी अपने रूपांतरण के पूर्ण और अंतिम प्रभाव का अनुभव करेंगे–एक ऐसी घटना जिसे बाईबल ‘महिमीकरण’ का नाम देती है; उस समय हम मसीह के समान बनाये जायेंगे | मैं विश्वास करता हूँ कि पौलुस के दिमाग में यही बात थी | मैं ऐसा क्यों मानता हूँ ? क्योंकि पौलुस ने इसी आशा के बारे में थोड़ा पहले, रोमियों 5:1-2 में बात किया है, “1 सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें | 2 जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें |” “परमेश्वर की महिमा की आशा” का अर्थ है, “परमेश्वर की महिमा में भागीदार बनने की आशा” | मसीह में विश्वास के कारण, हम धर्मी ठहरे हैं [अर्थात, परमेश्वर की दृष्टि में परमेश्वर के साथ सही संबंध में लाये गए हैं] | परमेश्वर और हमारे मध्य जारी युद्ध अब समाप्त हो गया है और इसीलिए परमेश्वर के साथ हमारा मेल है | यह हमारे उद्धार का प्रथम चरण है |
इसके परिणामस्वरूप, अब हम हमारे उद्धार के अंतिम चरण की बाट जोहते हैं, जब हम परमेश्वर की महिमा में भागीदार बनेंगे, अर्थात, संपूर्णतः मसीह के समान बनाए जायेंगे | पौलुस इस विचार को रोमियों 8:30 में स्पष्ट करता है, “फिर जिन्हें उस ने पहिले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है |” हालाँकि हमें अब तक महिमा नहीं मिली है तौभी वाक्यांश, “महिमा भी दी है”, भूतकाल में लिखा गया है | पौलुस ने इस तरह से क्यों लिखा? क्योंकि यह एक सुनिश्चित सत्य है! हम महिमा पायेंगे अर्थात, मसीह के समान बनाये जायेंगे; यह तब होगा, जब हम मसीह के पुनरागमन के समय नई देह को पायेंगे [रोमियों 8:22-25] | पौलुस कहता कि हमें इसी आशा अर्थात “नई देह को पाने की आशा” की बाट जोहनी चाहिए |
रोमियों 12:12 में, वह कहता है कि ऐसी आशा हमारे आनंद का कारण होना चाहिए | भविष्य में हमारी प्रतीक्षा में जो है उसके कारण, हम आशा में आनंदित होते हैं–हम उस नई देह को पाकर, जो प्रभु की महिमित देह की समानता में होगी, मसीह के समान बनाये जायेंगे | मसीह के समान बनाये जाने की यह आशा हमारे लिए आनंद से भर जाने का कारण बनना चाहिए क्योंकि फिर कोई दुःख नहीं रहेगा, कोई आँसू नहीं रहेंगे, कोई दर्द नहीं रहेगा, रह जायेगा तो बस एक चीज–हमारा परमेश्वर जिस ढंग की आराधना का हकदार है, उस प्रकार की आराधना करने का एक अंतहीन आनंद | परन्तु तब तक के लिए, इस पापमय शरीर में रहते समय भी हमें आनंद करने के लिए कहा गया है, दुःख के मध्य में भी आनंद के एक जीवन को जीने की आज्ञा दी गई है | पौलुस ने 2 कुरिन्थियों 6:10 में लिखा कि वह और अन्य प्रेरित, “शोक करने वालों के समान थे, परन्तु सर्वदा आनन्द करते थे |” हम ये दोनों कार्य एक साथ कैसे कर सकते हैं?
यह तब संभव होता है, जब हम समझ जाते हैं कि दुःख इस पाप–श्रापित संसार का एक अहम् भाग है, और इसी पौलुस के द्वारा बाद में रोमियों 12:15 में कही गई बात से यह सत्य प्रमाणित होता है, “आनन्द करने वालों के साथ आनन्द करो; और रोने वालों के साथ रोओ |” एक ओर दुःख की वास्तविकता है, तो वहीं दूसरी ओर भविष्य में मिलने वाली आशीषों की निश्चयता भी है और यह निश्चयता हममें एक प्रकार के कभी न ख़त्म होने वाले आनंद के भाव को उत्पन्न करना चाहिए | जैसे–जैसे दिन गुजरता जाता है, हम इस भविष्य की वास्तविकता के और समीप पहुँचते जाते हैं; जब मसीह वापस आयेगा, तब हमारी आशा पूरी होगी और हम इस वास्तविकता को पा लेंगे | यह बात हमें आनंदित रहने के लिए प्रेरित करनी चाहिए | पौलुस यही कहना चाहता है |
आनंदित रहने की इस आज्ञा को हमें गंभीरता से लेना आवश्यक है | चूँकि हमें अपनी संपत्ति और हमारे पद–स्थान में नहीं परन्तु मसीह के पुनरागमन की आशा में आनंदित रहने के लिए कहा गया है, इसलिए ऐसा करने में असफल रहना, एक पाप ठहरेगा | कई लोग कहेंगे, “मैं बहुत आनंदित हूँ | मैं हताश नहीं हूँ |” हो सकता है, आप भी ऐसा कहते हों | मैं आपसे यह पूछना चाहता हूँ: आपके आनंद का आधार क्या है? क्या यह एक सुरक्षित और अच्छी आय वाली नौकरी पर आधारित है? क्या यह इस बात पर आधारित है कि आपके पास अच्छे रिश्तेदार हैं, अच्छे मित्र हैं, आपका स्वास्थ्य अच्छा है, आपके पास अच्छी जमा–पूँजी है, और आपके जीवन में अधिक परेशानियाँ नहीं हैं? यदि ऐसा है तो कृपा करके इस बात को समझिए कि इनमें से कोई भी बात आनंद का वह आधार नहीं है, जिसके बारे में पौलुस यहाँ बात कर रहा है | ये सारी वस्तुयें होने पर तो एक सांसारिक व्यक्ति भी आनंद का अनुभव करेगा | परन्तु इनमें से किसी एक बात को हटा लीजिए और उनका आनंद गायब हो जाएगा और हताशा तुरंत हावी हो जायेगी |
इस बारे में ज़रा सोचिए | हम कभी भी अपनी नौकरी खो सकते हैं | हम बड़ी आसानी से हमारे धन को गँवा सकते हैं | नीतिवचन 11:28 कहता है, “जो अपने धन पर भरोसा रखता है वह गिर जाता है |” जिन लोगों पर हम भरोसा रखते हैं वे हमें धोखा दे सकते हैं या फिर हो सकता है कि एक दिन मौत उनको हमसे अलग कर दे | नीतिवचन 11:7 इस सत्य का भली–भाँति बयान करता है, “जब दुष्ट मरता, तब उसकी आशा टूट जाती है, और अधर्मी की आशा व्यर्थ होती है |” रात भर में ही हमारा स्वास्थ्य चरमरा सकता है | ऐसे अकस्मात होने वाले कार्यों की एक लंबी सूची बनाई जा सकती है | अभी, वर्तमान में, वह कौन सी बात है जो आपको आनंदित कर रही है? यदि वह बात न रहे, क्या तब भी आप आनंदित रह पायेंगे? ये एक ऐसा प्रश्न है, जो आपको स्वयं से पूछना है और उसका उत्तर भी स्वयं ही देना है |
तो, हम इस आनंद का अनुभव कैसे कर सकते हैं? आईए, मैं आपको इस पूरी प्रक्रिया से लेकर चलूँ |
गलातियों 5:22-23 में हमें बताया गया है कि “आनंद”, “आत्मा का फल” का एक गुण है | अतः, आनंद एक ऐसी वस्तु है जिसे केवल पवित्र आत्मा ही हमारे हृदय में उत्पन्न कर सकता है | वह ऐसा कैसे करता है? उस बाईबल के माध्यम से, जिसे उसने हमें दिया है | इस प्रकार से देखें तो संबंध एकदम सीधा और सरल है | जब हम परमेश्वर के वचन के प्रति समर्पित होते हैं, तो पवित्र आत्मा हमारे हृदय में यह आनंद उत्पन्न करता है | इस आनंद को पाने में एक मानवीय जिम्मेदारी भी सम्मिलित है | हमें अपने आप को वचन के ध्यान–मनन में और विशेष रूप से परमेश्वर के वचन में प्रसन्न रहने के लिए सौंप देना चाहिए और ऐसा करते हुए हम पवित्र आत्मा को हमें परिवर्तित करने की अनुमति देते हैं, इस परिवर्तन के कार्य में हमारे हृदय में आनंद उत्पन्न करने का कार्य भी सम्मिलित है |
हम जितना अधिक समय परमेश्वर के वचन पर मनन करने में लेंगे, जितना अधिक इस पर विश्वास करेंगे और जितना अधिक इसे अपने जीवन में लागू करेंगे, हम उतना ही अधिक आनंद प्राप्त करेंगे | रोमियों 12:12 की पृष्ठभूमि में बात करें तो इसका अर्थ कुछ ऐसा होगा, हम मसीह के पुनरागमन और मसीह के समान हमारे बन जाने के बारे में जितना अधिक पढेंगे, और हम जितना अधिक चाहेंगे कि ऐसा हो जाए, हमारी आशा उतनी ही अधिक दृढ़ होगी और हम उतना ही अधिक आनंद का अनुभव करेंगे | और हम जितना अधिक आनंद का अनुभव करेंगे, हम क्लेश के दौरान उतने ही धीरज से सारे क्लेशों को सह लेंगे | यिर्मयाह 15:16, यिर्मयाह के अनुभवों का एक लेखा–जोखा देता है, “जब तेरे वचन मेरे पास पहुंचे, तब मैं ने उन्हें मानो खा लिया, और तेरे वचन मेरे मन के हर्ष और आनन्द का कारण हुए; क्योंकि, हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मैं तेरा कहलाता हूँ |” मुझे एक ऐसे व्यक्ति को दिखाईए, जिसका जीवन परमेश्वर के वचन पर सच्चे मन से विश्वास करने और उस पर मनन करने के लिए समर्पित है और मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि मुझे ऐसे व्यक्ति को दिखाईए जो भविष्य की बातों के संबंध में परमेश्वर के वचन पर मनन करने और उस पर अमल करने के लिए समर्पित हो, और मैं आपको उस व्यक्ति में दिखाऊँगा, एक ऐसे शख्स को, जो अपने दृढ़ आशा के कारण, हताशा से नहीं वरन आनंद से भरपूर है |
वहीं दूसरी तरफ़, आप मुझे एक ऐसे व्यक्ति को दिखाईए जो भविष्य के संबंध में परमेश्वर द्वारा की गई प्रतिज्ञाओं पर ध्यान–केन्द्रित नहीं करता है और मैं आपको दिखाऊँगा एक ऐसे शख्स को जिसके जीवन में सच्चा बाईबल आधारित आनंद नहीं है और जिसका जीवन केवल इस दुनिया की परिस्थितियों पर निर्भर है | जब सब कुछ अच्छा चलता है, तो वे आनंदित रहते हैं | उनके सांसारिक सुख–चैन में थोड़ी सी कमी होती है और वे हताशा में डूब जाते हैं | ऐसे लोगों के समान न बनें | बल्कि, हम परमेश्वर की दया पाने के परिणामस्वरूप [रोमियों 12:1], हमारे भविष्य के संबंध में परमेश्वर द्वारा की गई प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करने, उनमें प्रसन्न होने और उनके आधार पर कार्य करने के द्वारा, एक सच्चे बाईबल आधारित आनंद का पीछा करें | यह इस बात का प्रमाण है कि परमेश्वर के वचन के द्वारा हमारे मन के नए हो जाने से पवित्र आत्मा हमें सचमुच में रूपांतरित कर रहा है |