रूपांतरित जीवन भाग 14—रोने वालों के साथ रोओ

(English version: The Transformed Life – Weep With Those Who Weep – Part 2)
रोमियों 12:15ब में “रोने वालों के साथ रोने” या “शोक करने वालों के साथ शोक करने” के लिए दी गई परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने का प्रयास करते समय, “क्या नहीं करना है” के संबंध में 5 बातों को हमने पिछले लेख में “रोने वालों के साथ कैसे रोयें” शीर्षक के अंतर्गत देखा था | ये पाँच बातें हैं: (1) उन्हें नहीं कहना है कि अब बस करो (2) उसी समय पूर्ण छुटकारे का भरोसा मत दें (3) उनके दुःख की तुलना दूसरों के दुखों से न करें (4) उन पर दोष न लगायें, और (5) उन्हें नजरअंदाज न करें |
अपने जीवन में मुश्किल दौर से गुजरते लोगों को जब हम सांत्वना देने के लिए प्रयासरत हैं, तो आईए, अब हम “क्या करना है” शीर्षक के अंतर्गत 5 बातों पर ध्यान दें |
क्या करना है
1. प्रार्थना के हथियार का उपयोग करें | यह अनिवार्य बात है कि हम सर्वप्रथम और प्राथमिक रूप से उनके छुटकारे के लिए व्यक्तिगत रूप से नियमित प्रार्थना करें | हमें परमेश्वर से यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए कि वे अपने परीक्षा के दौरान उसकी उपस्थिति का अनुभव कर पायें | हमें यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए कि दुःख में पड़े व्यक्ति को सांत्वना देने के लिए परमेश्वर अपने इच्छानुसार हमारा या दूसरे लोगों का इस्तेमाल करे | हमें यह प्रार्थना भी अवश्य करनी चाहिए कि परमेश्वर हमें बुद्धि दे ताकि हम प्रत्यक्ष रूप में या अन्य माध्यम से [ईमेल इत्यादि] बात करते समय सही शब्दों का प्रयोग कर पायें—ऐसे शब्दों का जो चंगाई और प्रोत्साहन लायें | नीतिवचन 16:24 कहता है, “मन भावने वचन मधु भरे छत्ते की नाईं प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं |” नीतिवचन 12:18 का द्वितीय भाग कहता है, “बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं |” हमारे शब्द उनके परेशान मनों के लिए उस चंगाई को ला सकते हैं जिनकी उन्हें अत्याधिक आवश्यकता है |
यह जरूरी है कि हम दुःख में पड़े लोगों के साथ प्रार्थना करें; यदि हम उनसे मिलने गये हैं तो यह काम उसी समय प्रत्यक्ष रूप से कर सकते हैं और यदि दूर हैं तो फ़ोन के माध्यम से हम यह कार्य कर सकते हैं | हम जब परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह हस्तक्षेप करे और अपनी इच्छा पूरी करे, तो हमारी प्रार्थना के वे थोड़े से शब्द ही क्लेश में पड़े व्यक्ति के लिए अत्याधिक प्रोत्साहन का कारण बनते हैं |
2. जहां तक संभव हो, उनकी सुविधानुसार उनसे मुलाक़ात करिए |हमें लोगों से उनके सुविधानुसार मिलना चाहिए—न कि अपनी सुविधा के अनुसार! मुलाक़ात करने का कार्य, “मुझे अपनी सुविधानुसार कार्य करने दो” कहने वाला मुद्दा नहीं है | हमें दुःख में पड़े व्यक्ति की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना ही चाहिए | यदि वे कहते हैं कि वे किसी से मिलने की स्थिति में नहीं हैं, तो हमें उनके निवेदन का सम्मान करना चाहिए |
और जब हम पीड़ित व्यक्ति से मिलें तो उस को नहीं लगना चाहिए कि हम हड़बड़ी में हैं | शोकित व्यक्ति से मुलाक़ात के समय, जब कोई व्यक्ति वहाँ से जाने की हड़बड़ी में प्रत्येक दो मिनट में अपनी घड़ी देखता है, तो यह उस शोकित व्यक्ति को सर्वाधिक चोट पहुँचाने वाली बातों में से एक हो सकता है | आनंद करने वालों के साथ हम घंटों गुजार देते हैं | परन्तु शोक करने वाले लोगों से मिलने के समय हम हड़बड़ी में रहते हैं | इसका यह अर्थ भी नहीं है कि हमें उनके साथ बहुत अधिक समय गुजारना चाहिए [हमें क्लेश में पड़े व्यक्ति के साथ बहुत अधिक समय तक रुककर, उनके लिए बोझ नहीं बनना चाहिए!] | हमारे मुलाक़ात की अवधि क्लेश में पड़े उस व्यक्ति की आवश्यकता और सुविधा पर निर्भर होना चाहिए |
3. एक अच्छा श्रोता बनें | जब हम शोक करने वालों के साथ होते हैं, तो हमें बोलना कम और सुनना अधिक चाहिए—न केवल उनके शब्दों को सुनें बल्कि उनके मन को सुनें | संभव है कि शोक में पड़े व्यक्ति के शब्द उसे जितना टूटा हुआ दिखा रहे हैं, वह व्यक्ति अन्दर से उससे कहीं अधिक टूटा हुआ हो | हमें उनकी भावनाओं को महसूस करने का प्रयास करना चाहिए | हमें तब भी धीरज रखना चाहिए जब वे सही बात नहीं कर रहे हों | हमें अत्याधिक शीघ्रता से उनकी गलतियों को सुधारने की आवश्यकता नहीं है | यह जरूरी है कि हम पहले उन्हें बात करने दें | उनके शांत रहने पर, हमारे शांत रहने में भी कोई बुराई नहीं है | कई बार केवल हमारी भौतिक उपस्थिति ही चंगाई लाती है | जब हमें समझ में नहीं आता कि क्या बोलें या फिर जब हमें लगता है कि शांत रहना ही सबसे अच्छा है, तब बिना कुछ बोले उनके कंधे पर अपना हाथ रखकर बैठे रहना भी अच्छी बात है ! उस चोट खाये व्यक्ति के लिए हमारी उपस्थिति ही चंगाई बन सकती है |
एक बड़े दिल वाले छोटे लड़के की कहानी सुनाई जाती है | उसके घर के ठीक बगल में एक बुजुर्ग व्यक्ति रहता था, जिसकी पत्नी का कुछ दिन पहले ही देहांत हुआ था | जब उस छोटे लड़के ने उस बुजुर्ग को रोते देखा, तो वह उसके गोद में चढ़ गया और वहाँ ऐसे ही बैठ गया | बाद में उस लड़के की माँ ने उससे पूछा कि तुमने उस दुखी पड़ोसी से क्या कहा | उस बच्चे ने उत्तर दिया, “कुछ भी नहीं! मैंने तो बस रोने में उसकी सहायता की |”
कई बार भयानक दुःख का सामना कर रहे लोगों के लिए ऐसा ही करना सर्वोत्तम कार्य होता है | अक्सर बुद्धिमानी की बातें और उन्हें सहायता पहुँचाने वाली बातें कहने का हमारा प्रयास, उन शोकित लोगों के साथ उनका हाथ पकड़कर बैठने और उनके साथ रोने की तुलना में अत्यंत अल्प मूल्य का जान पड़ता है |
4. उन्हें पवित्रशास्त्र से प्रोत्साहित करें | हमें अवश्य ही प्रयत्न करना चाहिए कि हम क्लेश में पड़े लोगों के वर्तमान दर्द को कम न दिखाते हुए उन्हें अनंतता की आशा से प्रोत्साहित कर सकें | इसी कारण से हम रोने वालों के साथ रोते समय पवित्रशास्त्र की भूमिका को कम नहीं आँक सकते हैं | रोमियों 15:4 कहता है, “जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें |” परमेश्वर के लोगों के द्वारा परमेश्वर के वचन का उपयुक्त इस्तेमाल करने से चोट खाये लोगों को आशा मिलती है | परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल करते हुए हम, “आशा के सौदागर” बन सकते हैं |
यह जरूरी है कि हम उनके दर्द को स्वीकारें—उस दर्द को जो कि उनके लिए एकदम सच्ची बात है | हमें उन्हें रोने के लिए प्रोत्साहित करना ही चाहिए | हमें उन्हें यह स्मरण दिलाना ही चाहिए कि बाईबल लगातार इस बात का उल्लेख करती है कि परमेश्वर के लोग कैसे वर्षों से परमेश्वर के सामने रोते रहे हैं | हम उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं कि वे इस आशा में रोयें कि एक दिन ये आँसू नहीं रहेंगे | दर्द में पड़े व्यक्ति को परमेश्वर में सामर्थ पाने के लिए सहायता करना एक सुन्दर बात है, जैसा कि हताश दाऊद के साथ योनातन ने किया, “15 और दाऊद ने जान लिया कि शाऊल मेरे प्राण की खोज में निकला है | और दाऊद जीप नाम जंगल के होरेश नाम स्थान में था; 16 कि शाऊल का पुत्र योनातन उठ कर उसके पास होरेश में गया, और परमेश्वर की चर्चा करके उसको ढाढ़स दिलाया” [1 शमूएल 23:15-16] |
5. प्रायोगिक सहायता उपलब्ध करायें | जहाँ आवश्यकता हो, वहाँ हमें प्रायोगिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए | यह कुछ भी हो सकता है, उनके लिए भोजन लाना या उन्हें पैसे देना, उनके बच्चों की देखभाल करना, उनके घर को साफ़ करना, या उनके कपड़े धोना | हमें उनकी आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और परमेश्वर से हमें प्रार्थना करना चाहिए कि वह हमें दिखाए कि हम कैसे प्रायोगिक रूप से उनकी सहायता कर सकते हैं | लोग अपनी आवश्यकताओं को हमेशा नहीं बतायेंगे परन्तु हमें जितना अधिक हमसे हो सकता है, उतनी सहायता करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए |
अतः, हमें: (1) प्रार्थना के हथियार का उपयोग करना है (2) जहां तक संभव हो, उनकी सुविधानुसार उनसे मुलाक़ात करना है (3) एक अच्छा श्रोता बनना है (4) उन्हें पवित्रशास्त्र से प्रोत्साहित करना है (5) प्रायोगिक सहायता उपलब्ध कराना है |
और जब हम इस विषय पर अध्ययन कर रहे हैं तो मैं इस विषय पर भी बात करना चाहता हूँ कि जब हम शोक में पड़े हों तो हमें क्या करना चाहिए | दूसरे शब्दों में कहें तो, शोक करने वालों के लिए एक सलाह | संभवतः, आप ठीक अभी इस परिस्थिति में हों या फिर हो सकता है कि भविष्य में कभी आप इस परिस्थिति में पड़ें |
शोक करने वालों के लिए एक सलाह |
कई बार ऐसा होगा कि जो आपको सांत्वना देने आयेंगे वे सही बात न बोलें | उनकी गलतियों को नजरअंदाज करने का प्रयास करें | वे भी हमारे ही समान पापी मनुष्य हैं | कभी—कभी आपको लग सकता है कि कोई भी आपको सांत्वना नहीं दे रहा है | वैसी परिस्थिति में भी, अपने अन्दर आक्रोश या द्वेष उत्पन्न न होने दें | स्मरण रखिए कि आप भी कभी न कभी इस विषय में दोषी रहे होंगे, कभी तो ऐसा हुआ होगा कि आप भी रोने वालों के साथ न रोयें हों | आप भी कभी शोक में पड़े लोगों से गलत बात कहने के दोषी रहे होंगे—ऐसा भी हो सकता है कि आपने अपने माता—पिता या भाई—बहन के साथ भी उनके मुसीबत के समय में ऐसा किया हो | जैसे उन्होंने आपकी गलतियों को अनदेखा किया वैसे ही आप भी दूसरों की गलतियों को अनदेखा करें | कुलुस्सियों 3:13 हमें एक दूसरे की कमजोरी को सहने की आज्ञा देता है |
ऐसा भी होता है कि लोगों को पता ही न चलता कि आप मुसीबत में हैं—इस बात को भी ध्यान में रखें! इसलिए यदि आप मुसीबत में लोगों की सहायता चाहते हैं तो निश्चित करिए कि लोगों को इस बात की जानकारी रहे कि आप मुसीबत में हैं | ऐसा कहने से मेरा तात्पर्य यह नहीं है कि किसी व्यक्ति को अपनी समस्याओं का निरंतर विज्ञापन करते रहना चाहिए | यदि आप अपनी समस्याओं को अपने तक सीमित रखते हैं और आपकी समस्याओं के बारे में कोई भी अन्य व्यक्ति नहीं जानता है तो स्मरण रखिए कि अपने मुसीबत के समय में अकेले रह जाने के पीछे का कारण आप स्वयं हैं |
मुझे एक घटना का स्मरण आता है, जब एक व्यक्ति इस बात से नाराज था कि उसका पासबान होने के बावजूद मैं उससे उस समय मिलने नहीं गया था जब वह परीक्षाओं से होकर गुजर रहा था | उस व्यक्ति ने इस बात को कहने के लिए, याकूब 5:14 का उद्धरण दिया, कि जब कलीसिया के सदस्य परीक्षाओं से गुजरते हैं तो कलीसिया के प्राचीनों की जिम्मेदारी होती है कि वे उसके पास जाएँ और प्रार्थना करें | याकूब 5:14 में लिखा है, “यदि तुम में कोई रोगी हो, तो कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे प्रभु के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिये प्रार्थना करें |” समस्या यह थी कि मुझे ज्ञात ही नहीं था कि वह व्यक्ति कठिनाईयों से होकर गुजर रहा था! अतः मैंने कहा, “सच्ची बात है | परन्तु उसी के समान सच्ची बात यह भी है कि ठीक यही पद यह बात भी स्पष्टता से कहता है कि जो लोग परीक्षाओं से होकर गुजर रहे हैं, उन्हें पहले प्राचीनों को बुलाना चाहिए | पासबान किसी के दिमाग को नहीं पढ़ सकता है | वह सर्वज्ञानी नहीं है | इस प्रकार से यहाँ दोनों ही बातों की शिक्षा है |”
अतः, यदि आप क्लेश में हैं तो अपने पासबान और आवश्यकता हुई तो अन्य लोगों को भी इसकी जानकारी दें ताकि वे सहायता करने के लिए आ सकें | मसीही जीवन किसी द्वीप में अकेले जीने वाला जीवन नहीं है | यह जीवन तो एक समुदाय के साथ जीने वाला जीवन है, जहाँ हम अपने आनंद और शोक को बाँटते हैं | आपको अकेले क्लेश उठाने की आवश्यकता नहीं है! आप दूसरों को परेशान नहीं कर रहे हैं! दूसरों से सहायता माँगना, कमजोरी की निशानी नहीं है | यह तो उस परिपक्वता की निशानी है जिसमें हम दूसरों के साथ अपने बोझ को बाँटने के संबंध में दिए गये बाईबल के निर्देश का अनुकरण करते हैं |
बेहतर सांत्वना देने वाले बनना |
सभोपदेशक 7:2 और 7:4 में लिखा है, “2 जेवनार के घर जाने से शोक ही के घर जाना उत्तम है; क्योंकि सब मनुष्यों का अन्त यही है, और जो जीवित है वह मन लगाकर इस पर सोचेगा | 4 बुद्धिमानों का मन शोक करने वालों के घर की ओर लगा रहता है परन्तु मूर्खों का मन आनन्द करने वालों के घर लगा रहता है |” शोक के घर में जाने से हमें जीवन और अनंतता के बारे में सही दृष्टिकोण मिलता है | हमें जीवन पर एक अच्छी पकड़ केवल तभी मिलती है, जब मृत्यु पर हमारी सही पकड़ होती है | और यह केवल तभी हो सकता है जब हम रोने वालों के साथ रोयें!
यदि हम अपने आप से ईमानदार रहते हुए बात करें तो हममें से अधिकांश के लिए यह बात सही होगी कि हमारी समय सारणियाँ हमारे विरुद्ध गवाही देती हैं कि इन बाईबल आयतों की स्पष्टता के बावजूद हम इस आज्ञा का पालन नहीं कर रहे हैं | हम रोने वालों की तुलना में जेवनार करने वालों के साथ अधिक समय बिताते हैं! आम तौर पर, हम जो अकेले हैं और शोक कर रहे हैं, उनके पास जाने और उनके साथ समय गुजारने की तुलना में उन पार्टियों को “हाँ” कहते हैं जहाँ जेवनार है! यह सच है कि हमें जो आनंद करते हैं उनके साथ आनंद करना है परन्तु उतनी ही सच्ची बात यह भी है कि हमें शोक करने वालों के साथ शोक करने की आज्ञा भी दी गई है | एक ऐसे संसार में जहाँ दुःख में पड़े लोगों की चिंता नहीं की जाती है, वहाँ हमें ऐसे लोगों की कहीं और अधिक चिंता करनी चाहिए |
हम एक ऐसे संसार में रहते हैं, जहाँ लोग अविश्वसनीय रूप से टूटे हुए हैं | अत्याधिक दर्द और दुःख से भरा है यह संसार ! परमेश्वर ने प्रतिज्ञा किया है कि वह सब कुछ नया कर देगा | उसने सब आँसू पोंछने की प्रतिज्ञा की है | यह तब होगा जब वह एक बार और हमेशा के लिए पाप की उपस्थिति को ही हटा देगा और साथ ही हट जायेंगे, उसके कारण होने वाले दुःख और मृत्यु | तब तक, उसने हमें रोने वाले लोगों के आँसुओं को पोछने की आज्ञा दी है | किसी ने कहा है कि सांत्वना देने वाला जब सहायता करता है, तो सहायता करने की उसकी योग्यता इस बात पर बहुत अधिक निर्भर नहीं करती है कि वह शब्दों का इस्तेमाल करने में कितना प्रतिभावान है | बल्कि, यह उनके सहानुभूतिपूर्ण होने की क्षमता पर निर्भर करता है |
डॉ. पॉल ब्रैंड ने अपनी पुस्तक Fearfully and Wonderfully Made [फियरफुली एंड वंडरफुली मेड] में इसे खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है | वे लिखते हैं:
“जब मैं मरीजों और उनके परिवार वालों से पूछता हूँ , ‘आपके क्लेश में किसने आपकी सहायता की ?’ तो मुझे अजीब और अस्पष्ट सा उत्तर मिलता है | जिस व्यक्ति के बारे में वे बताते हैं, उसके पास कदाचित ही उनके प्रश्नों के शानदार उत्तर होते हैं और वह कदाचित ही चित्ताकर्षक और उत्तेजनापूर्ण व्यक्तित्व का स्वामी होता है | वह तो एक शांत और उनको समझने वाला व्यक्ति होता है, जो बोलने की तुलना में सुनता अधिक है, जो दोष नहीं लगाता है, और न ही अधिक सलाह देता है | ‘धीरज रखने वाला’, ‘एक ऐसा व्यक्ति जो आवश्यकता के समय उपलब्ध रहता है |’ एक ऐसा हाथ जिसे थामा जा सके | एक सहानुभूतिपूर्ण और व्यग्र आलिंगन | मेरे समान ही आँसुओं के कारण रूंधा हुआ गला |”
कभी–कभी सही बात कहने के हमारे अथक प्रयास में हम यह भूल जाते हैं कि भावनाओं की भाषा हमारे शब्दों की भाषा से अधिक ऊँची आवाज में बात करती है |
आईए, हम उनके पास चलें जिनके बारे में हम जानते हैं कि वे रो रहे हैं | आईए, हम उनके साथ प्रेम के आँसू बहायें | आईए, उनके लिए हम एक आशीष बन जायें | यह एक आज्ञा है, और यह हमारी बुलाहट है | आईए, यह कार्य विश्वासयोग्यता से करें |
हमें अवश्य ही उनके लिए भी रोना सिखना चाहिए, जो स्वयं के लिए नहीं रोते हैं | मेरे कहने का तात्पर्य क्या है? हमारे कई प्रियजन और मित्रगण अपने पापों के कारण रोने और मसीह के पास आने के स्थान पर मसीह के प्रति पूर्ण उदासीन बने हुए हैं | ऐसे लोगों के उद्धार के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करते समय हमें अवश्य ही आँसू बहाना सिखना पड़ेगा |
एक बार फिर से, हमारे सम्मुख यीशु मसीह का उदाहरण है, जो उन्हीं लोगों के लिए रोया जो उसे क्रूस पर चढ़ाने वाले थे [लूका 19:41] | पौलुस ने उन यहूदियों के लिए प्रार्थना किया जो उसे सता रहे थे [रोमियों 9:1-3] | एक अन्य स्थान, फिलिप्पियों 3:18 में जब वह उन लोगों के बारे में लिखता है जो यीशु मसीह का तिरस्कार करते हैं, तो उसने यह लिखा: “क्योंकि बहुतेरे ऐसी चाल चलते हैं, जिन की चर्चा मैं ने तुम से बार बार किया है और अब भी रो रोकर कहता हूं, कि वे अपनी चालचलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं |”
आईए, हम खोए हुए लोगों के लिए भी रोयें !