धन्य–वचन: भाग 6 धन्य हैं वे जो दया करते हैं

Posted byHindi Editor February 6, 2024 Comments:0

(English version: “Blessed Are The Merciful”)

यह धन्य–वचन लेख–श्रृंखला के अंतर्गत छठवा लेख है | धन्य–वचन खण्ड मत्ती 5:3-12 तक विस्तारित है, जहाँ प्रभु यीशु ऐसे 8 मनोभावों के बारे में बताते हैं, जो उस प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए जो उसका अनुयायी होने का दावा करता है | इस लेख में , हम पाँचवे  मनोभाव को देखेंगे–दया करने का मनोभाव, जैसा कि मत्ती 5:7 में वर्णन किया गया है, धन्य हैं वे जो दयावंत हैं, क्योंकि उम पर दया की जायेगी |”

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जब जॉन वेसली जॉर्जिया में मिशनरी थे, उस समय गवर्नर जेम्स ऑग्लेथॉर्प के पास एक गुलाम था; उस गुलाम ने शराब से भरी एक जग चुरा ली और उसे पी गया | श्रीमान ऑग्लेथॉर्प चाहते थे कि उस गुलाम की पिटाई की जाये, इसलिए जॉन वेसली उनके पास गए और उस गुलाम के लिए उसने विनती की | गवर्नर ने कहा, “मैं बदला चाहता हूँ | मैं कभी क्षमा नहीं करता हूँ ”| तब जॉन वेसली ने कहा, “श्रीमान मैं आशा करता हूँ कि आप कभी पाप नहीं करते हैं |”

न केवल वेसली के समय में | बल्कि यीशु मसीह के समय में भी दया करने के भाव को तुच्छ समझा जाता था | दया करना यूनानियों और रोमियों की दृष्टि में कमज़ोरी का एक संकेत था | एक रोमी दार्शनिक ने कहा है, “दया करना, आत्मा की एक बीमारी है |”

इस प्रकार की संस्कृति में रहने वाले लोगों के मध्य यीशु मसीह ने इन विस्मयकारी बातों की घोषणा की, “धन्य है वे जो दयावन्त हैं क्योंकि उन पर दया की जायेगी” [मत्ती 5:7] | ये बातें हमारी संस्कृति में भी चौंका देने वाली हैं, एक ऐसी संस्कृति में, जहाँ बदला लेंने, पलटा लेने और चोट खाये अन्य लोगों के प्रति उदासीनता दिखाने को बढ़ावा देते हैं | तौभी यीशु मसीह अपने अनुयायियों को दया करने वाली आत्मा का प्रदर्शन करने की बुलाहट देते हैं | संस्कृति–विपरीत जीवन शैली के लिए एक और बुलाहट!

यीशु मसीह कहते हैं कि दया करना आत्मा  की कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह तो उस आत्मा की पहचान है जो उस बीमारी, जिसे पाप कहते हैं, के नियंत्रण से मुक्त है | इसी प्रकार की जीवन शैली धन्य” जीवन शैली है–एक ऐसा जीवन जिसे परमेश्वर से अनुमोदन प्राप्त होता है!

दया [करुणा] की परिभाषा |

“दया” [करुणा] हिंदी भाषा के सर्वाधिक खूबसूरत शब्दों में से एक है और निश्चित रूप से यह मसीही विश्वास के सर्वाधिक बहुमूल्य सत्यों में से एक है | एक यूनानी शब्दकोष , दया [करुणा] को इस प्रकार से परिभाषित करती है, “तरस खाने और विशेषत: आवश्यकता में पड़े किसी व्यक्ति के प्रति दयालुता दिखाने का नैतिक गुण | यह मनुष्य की दयालुता और मनुष्यों के प्रति परमेश्वर की दयालुता दोनों को दर्शाता है |”             

मैं विश्वास करता हूँ कि इस, “दया” [करुणा] शब्द को समझने में निम्नांकित कहानी सहायक सिद्ध होगी |

सिकंदर महान की सेना से एक सैनिक भाग गया था, जिसे बाद में पकड़ लिया गया | उसे मृत्युदण्ड की सजा मिली | तब उस सैनिक की माँ, सिकंदर के पास गई और यह विनती करते हुए, वह कहती रही, “कृप्या दया करें |” सिकंदर ने उत्तर दिया, “वह दया के योग्य नहीं |”

उस बुद्धिमान माता ने उत्तर दिया, “यदि वह योग्य है, तो फिर उस के प्रति किया गया कार्य दया नहीं कहलायेगा|”

इस प्रकार से, दया वह कार्य नहीं है, जिसे किसी के प्रति इसलिए किया जाता है या कोई व्यक्ति इसे इसलिए प्राप्त करता है, क्योंकि वह योग्य है | दया ऐसा कार्य है जो आवयश्कता के प्रति प्रतिक्रिया दिखाता है, फिर चाहे यह आवश्कता आत्मिक हो, शारीरिक या भावनात्मक | एक लेखक दया [करुणा] का वर्णन इस प्रकार से करता है, “दया समझता है कि चोट लगना क्या होता; दया चोट को महसूस करता है और इस चोट को ठीक करने के लिए आगे बढ़ता है” |  दूसरे शब्दों में कहें तो, दया में बुद्धि होती है, जिससे वह चोट को समझती है; इसमें भावना होती है , जिससे वह चोट को महसूस करती है और इसमें इच्छाशक्ति होती है, जिससे यह चोट को ठीक करने के लिए आगे बढ़ती है |

परमेश्वर की दया का प्रदर्शन |  

क्या परमेश्वर ने हम पर ऐसी ही दया नहीं दिखाई? उसने देखा कि पाप ने हमें कैसे चोट पहुंचाया है और तरस से भरकर हमारे पाप की समस्या का ईलाज करने के लिए उसने अपने पुत्र को भेजने के द्वारा कार्य किया | तो देखा आपने, परमेश्वर हमें वह नहीं देता है जिसका हक़दार हमारा पाप है अर्थात दण्ड–परन्तु दया में होकर वह इसे हमसे दूर रखता है और उन सबको जो उसकी ओर फिरते हैं, वह अपने अनुग्रह में भरकर नया जन्म देता है | इसीलिए पतरस ने लिखा, हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद दो, जिस ने यीशु मसीह के हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया” [1 पतरस 1:3] | पौलुस परमेश्वर को “दया का धनी” बताता है [इफिसियों 2:4] | इब्रानियों के पुस्तक का लेखक हमें परमेश्वर के अनुग्रह के सिंहासन के सम्मुख हियाव बाँधकर जाने का आमंत्रण देता है , जहाँ, हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पायें, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे” [इब्रानियों 4:16] |

पुराना नियम समयकाल का भविष्यवक्ता मीका परमेश्वर की दया [करुणा] का वर्णन मीका 7:8  में जिस प्रकार से करता है, वह मुझे अत्याधिक पसंद है तेरे समान ऐसा परमेश्वर कहाँ है, जो अधर्म को क्षमा करे और अपने निज भाग के बचे हुओं के अपराध को ढाँप  दे? वह अपने क्रोध को सदा बनाए नहीं रहता, क्योंकि वह करूणा से प्रीति रखता है |” पापी लोग, जो कि हम हैं, और किसी बात के नहीं परन्तु केवल परमेश्वर के दण्ड के हकदार हैं | तौभी मीका कहता है कि परमेश्वर न केवल दण्ड को दूर रखता है, बल्कि इसके विपरीत हम पर दया में वह प्रसन्न  होता है | यद्यपि हम उसे अत्याधिक बुरी तरह से चोट पहुंचाते हैं, तौभी वह कठोर नहीं बनता |

हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम दया दिखाए | 

इसी मीका ने पिछले अध्याय में लिखा, हे मनुष्य, वह तुझे बता चुका है कि अच्छा क्या है; और यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले? [मीका 6:8] | क्या आपने ध्यान दिया कि परमेश्वर अपने लोगों से क्या चाहता है? सीधाई के काम करना , दया से प्रीति रखना और दीनता से चलना | मै दूसरी बात पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूँ–“दया” पर | जो परमेश्वर दया दिखाने में प्रसन्न होता है [मिका 7:18] वही परमेश्वर अपने लोगों से चाहता है कि वे न केवल दया दिखाएँ परन्तु यह कि वे दया दिखाने से “प्रेम करें !”

सरल शब्दों में कहें तो, जिन्होंने परमेश्वर की दया पाई है, उन्हें उसी प्रकार की दया, उसी प्रकार के नजरिये से दिखाना चाहिए, जैसा कि परमेश्वर दूसरों पर दया करते समय दीखता है | और ठीक इसी मुद्दे की बात यीशु मसीह मत्ती 5:7 और लूका 6:36 में करते हैं, “जैसे तुम्हारा पिता दयावंत है, वैसे ही तुम भी दयावंत बनो |”

स्मरण रखें कि धन्य–वचन में यीशु मसीह सच्चे मसीहियों की जीवनशैली का वर्णन कर रहे हैं, उन लोगों का वर्णन जिन पर दया हुई है | परन्तु उन्हें कैसे ज्ञात होता है कि उन पर सचमुच दया हुई है? दूसरो पर अपने दया के प्रदर्शन के द्वारा! यीशु मसीह कहते हैं, इस प्रकार के लोग–अर्थात दया दिखाने वाले लोग परमेश्वर से अनुमोदन प्राप्त करते हैं! ये ही वे लोग हैं, जिन पर परमेश्वर की कृपा ठहरती है | वे धन्य लोग हैं | और वे ऐसे लोग हैं, जो भविष्य में परमेश्वर की उद्धारकारी दया [करुणा] के पूर्ण अनुभव को प्राप्त करेंगे | जब वे इस संसार को छोड़ जायेंगे तब, “उन पर दया की जाएगी|”

दया नहीं दिखाने के खतरे | 

दया दिखाने से इंकार करने के भारी दुष्परिणाम हैं | यीशु मसीह यहाँ बताते हैं कि केवल दयावंत ही दया को प्राप्त करेंगे | इस सम्बन्ध में याकूब अपनी पत्री में और भी अधिक कठोर भाषा का इस्तेमाल करता है | याकूब, 2:12-13  में लिखता है, 12 तुम उन लोगों की नाईं वचन बोलो, और काम भी करो, जिन का न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार होगा 13 क्योंकि जिस ने दया नहीं की, उसका न्याय बिना दया के होगा: दया न्याय पर जयवन्त होती है |” दया और न्याय एक दूसरे से विपरीत गुण हैं | हम जो प्राप्त करते हैं, हम उसे ही देंगे और सम्पूर्ण अर्थ में बात करें तो भविष्य में हमें वही मिलेगा |

यदि हमें परमेश्वर की दया मिली है, तो हम इस जीवनकाल में इसे दूसरों को देंगे और भविष्य में हमें भी सम्पूर्ण अर्थ में परमेश्वर की दया मिलेगी | परन्तु यदि हमने परमेश्वर की दया प्राप्त नहीं की है, तो हम इस जीवनकाल में इसे दूसरों को नहीं दे पायेंगे और भविष्य में हमें यह दया नहीं मिलेगी | इसके स्थान पर हमें भविष्य मे केवल उसके न्याय का सामना करना पड़ेगा | याकूब यही कहना चाहता है | 

आपने देखा , इस संसार को पलटा लेना आन्नददायी लगता है | यह संसार रात भर जागते हुए योजना बनाता है कि पलटा कैसे लिया जाये | परन्तु हम मसीहियों को पलटा लेने के विचार से घृणा करनी चाहिए बल्कि जो आवश्यकता में हैं, उन पर दया दिखाने के लिए हमें प्रसन्न होना चाहिए | दया दिखाने के द्वारा [उनके बुरे कार्यों से सहमत हुए बिना], संभवतः हम उनकी बुराई से फिरने में उनकी सहायता कर सकें | निः संदेह, पश्चाताप के बिना सच्चा मेलमिलाप हो ही नहीं सकता | परन्तु दया [करुणा] में किसी व्यक्ति को मन फिराने और पाप क्षमा ढूँढने के लिए प्रेरित करने की सामर्थ है और इस प्रकार उसका मेलमिलाप होता है |

दया [करुणा] की सुन्दरता |

दया एक सुन्दर चीज है | इसके बिना मैं और आप नर्क में सदा के लिए नाश हो जायेंगे | परमेश्वर ने अपनी दया से, मसीह के द्वारा आपके और मेरे लिए एक मार्ग बनाया है ताकि हम अनंत पीड़ा के स्थान पर अनंत ख़ुशी का आनन्द ले सकें | जब हम ऐसी दया का प्रदर्शन एक जीवनशैली के रूप में करते हैं, तो हम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि हमने परमेश्वर की उद्धारकारी दया प्राप्त की है और हमें यह सम्पूर्ण अर्थ में भविष्य में मिलेगा | यह हमारे उद्धार की सच्चाई का दृढ़–चट्टानरूपी आश्वासन है | दोष लगाने की आत्मा समस्त रिश्तों में अंतरंगता का नाश करती है–वैवाहिक रिश्ते की अंतरंगता को भी | यदि कोई एक जीवनसाथी या फिर दोनों ही लगातार दोष लगाते रहें, तो फिर अंतरंगता कैसे बढेगी? दोनों ही एक दूसरे से बहुत दूर जाना पसंद करेंगे |

इसीलिए जैसा कि भविष्यद्वक्ता मीका ने कहा, हमें “दया से प्रेम” करना चाहिए | परमेश्वर का दिल ऐसा है और वह चाहता है कि हम उसके तरीकों का अनुकरण करें | हमारे घर में और विशेष रूप से हमारे जीवनसाथी के साथ हमारे सम्बन्ध में इसे दिखाने से बढ़कर और कोई दूसरा स्थान नहीं है |

एक व्यक्ति की पत्नी एक बिलकुल नई गाड़ी को चलाते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गई | उसका पति क्या कहेगा, इस बात से चिंतित और परेशान होते हुए, उसने बीमा के कागजात निकालने के लिए ग्लोव कम्पार्टमेंट को हड़बड़ी में खोला |          

जब उसने उसे खोला, तो उसे अपने पति की लिखावट में लिखा एक पत्र मिला, उसमें लिखा था, “प्रिय मेरी, जब तुम्हें इन कागजातों की आवयश्कता पड़े, तो याद रखना, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, कार से नहीं!”

हम सब अपूर्ण और गड़बड़ी से भरपूर पापी हैं | इसीलिए दया के बिना रिश्तों को सम्भाला नहीं जा सकता है | और जहाँ दया नहीं है, वहाँ कोई सच्ची अंतरंगता नहीं है | हो सकता कि वैवाहिक रिश्ता बरकरार रहे और दोनों जीवनसाथी दशकों तक एक दूसरे के साथ रहें | परन्तु यह कोई स्वस्थ विवाह नहीं है | यदि अंतरंगता नदारद है, तो यह विवाह ही नहीं है |

एक बार एक आदमी ने अपनी पत्नी से होने वाली लड़ाई के बारे में बताया | जब पास्टर ने पूरी बात पूछी, तो उसने कहा, “हर बार जब हमारी लड़ाई होती है, तो मेरी पत्नी हिस्टोरिकल [ऐतिहासिक] हो जाती है |” पास्टर ने कहा, “आपका मतलब है, वह हिस्टेरिकल [उन्मादी] हो जाती है |” पति ने उत्तर दिया “नहीं, वह हिस्टोरिकल हो जाती है | वह 20-30 वर्ष पहले हुई बातों को सामने ले आती है |”

आपने देखा, जहाँ इस प्रकार का लेखा–जोखा रखा जायेगा, वहाँ सच्ची अंतरंगता की कोई सम्भावना नहीं है | स्वस्थ रिश्तों की कोई सम्भावना नहीं | इसीलिए, दया स्वस्थ रिश्तों की कुंजी है | दया के जरिये ही हम दूसरों के साथ रिश्त्ते रख सकते हैं |

दया दिखाने के गुण का विकास कैसे करें |

तो , हम दया से प्रेम कैसे कर सकते है? हम दया दिखाने में आनन्दित कैसे हो सकते है? हमारे पाप और उस क्षमा को लगातार देखने के द्वारा, जो हमें परमेश्वर के पुत्र द्वारा हमारे क्षमा को खरीदने के लिए क्रूस पर उठाये गए क्लेश के कारण मिलती है | इस सत्य को स्वयम को याद दिलाते रहें: “मैं नर्क का हकदार हूँ | तौभी हे परमेश्वर आपने मुझ पर दया दिखाई और दिखाए जा रहें हैं–मुझ जैसे एक भयानक पापी पर! हे यीशु! जब मैं आपको देखता हूँ तो मुझे दया का सम्पूर्ण दैहिक रूप दिखाई पड़ता है | अपने जैसे बनने के लिए मेरी सहायता करिए |”

जब हम ऐसे व्यवाहर का अनुकरण करेंगे, तो कभी नहीं कह पायेंगे, “जिसने मुझे चोट पहुँचाई है, मैं उस पर दया नहीं दिखाऊँगा |” यह हो ही नहीं सकता कि हम क्रूस को देखते रहें और हमारे पापों के लिए लहुलहान और दर्द में कराहते क्रूसित उद्धारकर्ता को और फिर भी कहें, “मैं अमुक व्यक्ति को क्षमा नहीं कर सकता | आपको नहीं मालुम, उन्होंने मुझे कितनी चोट पहुँचाई है | वे दया पाने के लायक नहीं है |” परन्तु, भाइयों, “यदि वे योग्य होते, तो उनके प्रति किया गया कार्य दया कहलाता ही नहीं | सही है कि नहीं?”

हम जितना अधिक अपने पाप को देखेंगे, जितना अधिक क्रूस पर चढ़े मसीह को देखेंगे, हमारा कठोर हृदय उतना ही अधिक पिघलेगा | हम जितना अधिक देखेंगे कि हमने एक अनंत पवित्र परमेश्वर को कितना दुःख दिया है और तौभी उसने हम पर कैसी महान दया की और प्रतिदिन हमें उसकी दया की अब भी कितनी आवश्यकता है, तो हम हमारे विरुध्द किये गए अपराधों को भूलने के लिए उतने ही अधिक इच्छुक बन जायेंगे–तुच्छ अपराधों को भूलने के लिए और बड़े अपराधों को भूलने के लिए–और तब हम दूसरों पर दया दिखाने की चाहत में और अधिक बढ़ेंगे |

समापन विचार |

क्या आपकी जिन्दगी में ऐसा कोई व्यक्ति है, जिस पर आपको दया दिखने की आवयश्कता है? फिर उन पर दया दिखाइए | मेरा तात्पर्य यह नहीं कि बस एक बाध्यता के रूप में दया दिखाई जाए, एक ऐसे दृष्टिकोण के साथ जो यह कहती है, “मुझे दया दिखाना पड़ेगा |” बल्कि इसे एक ऐसे दृष्टिकोण से करें, जो कहता है, “मुझे दया दिखानी है, मैंने सेंतमेत पाया है, मैं सेंतमेत दूंगा!” परन्तु ऐसा तभी हो सकता है, जब आप दया दिखाने से प्रेम करें | और आप दया दिखाने से तभी प्रेम कर सकते हैं, जब आप अपने जीवन में परमेश्वर की दया पर अधिक से अधिक ध्यान करें [रोमियों 12:1-2] |

स्मरण रखें , दया दिखाना कोई वैकल्पिक कार्य नहीं है | यह तो उद्धार पाए हुए हृदय का ही एक स्पष्ट प्रमाण है | जब हमने आत्मा की दीनता में होकर हमारे पापों पर विलाप किया और नम्रता में होकर, दया के लिए मसीह की ओर फिरे, तब दया पाने के साथ ही हमारे नए जन्म का आरम्भ हुआ | और जैसे ही उसने हमारा उद्धार किया , उसने पवित्र आत्मा के द्वारा हममें धर्म के लिए भूख और प्यास उत्पन्न करने हेतु कार्य करना आरम्भ किया–एक ऐसा जीवन जो दैनिक जीवन में परमेश्वर के धार्मिक आज्ञाओं का अनुकरण करता है–जो हमें चोट पहुंचाते हैं, उन पर दया दिखाने में प्रसन्न होने के लिए दी गई परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने से इसका आरम्भ होता है |

अब मैं आपसे पूछता हूँ , “क्या आपने परमेश्वर की उद्धारकारी दया को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त किया है?” संभवतः आप आवश्यकता में पड़े लोगों पर दया दिखाने में इसकिये असमर्थ हैं क्योंकि आपने स्वयं दया प्राप्त नहीं की है | संभवतः आपने अपने पाप को इसकी सम्पूर्ण कुरूपता में कभी नहीं देखा है और दया पाने के लिए क्रूस के पास कभी नहीं गये | यदि ऐसी बात है, तो परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह आपकी आँखों को खोले, ताकि आप देख सकें कि आपके पाप कितने कुरूप हैं | उससे प्रार्थना करें कि वह आपको क्रूस के पास ले जाए | उससे प्रार्थना करें कि वह आप पर दया करें | यह है आरंभिक बिंदु | तब आप दूसरों पर दया दिखने की सामर्थ पायेंगे | और इससे उन्हें मसीह की ओर फिरने में सहायता करने के कार्य में भी एक सामर्थशाली प्रभाव आएगा |

स्मरण रखें, पहाड़ी उपदेश की शिक्षायें वह दर्पण है जिसे यीशु मसीह हमें दिखाते हैं ताकि हमें यह देखने में सहायता मिले कि क्या हम सचमुच में परमेश्वर की संतान है? यदि ऐसा है तो आप आश्वस्त हो सकते हैं कि इस धन्य–वचन में यीशु मसीह द्वारा कहे गए वचन आपके लिए लागू होते हैं |

जो दयावन्त है, वे सचमुच धन्य हैं, क्योंकि जब समस्त दया का दैहिक रूप अर्थात यीशु मसीह अपना राज्य स्थापित करने आएगा, तब वे और केवल वे ही दया को पाएंगे!

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