धन से प्रेम करने के चार नुकसान

Posted byHindi Editor May 16, 2023 Comments:0

( English Version : 4 Dangers Of Loving Money )

एक पुराने हास्य कलाकार ने एक नाटक में यह दिखाया कि धन हमारे लिए कैसे किसी भी वस्तु से अधिक महत्वपूर्ण बन सकता है | यह हास्य कलाकार रास्ते से होकर जा रहा था, तभी एक हथियारबंद डाकू उसके पास पहुँचा और उसने कहा, “जान बचाना है या पैसा |” एक लम्बी खामोशी छा गई, और उस हास्य कलाकार ने कुछ भी जवाब नहीं दिया | डाकू ने बेचैन होकर पूछा, “क्या कहते हो ?” कलाकार ने जवाब दिया, “हड़बड़ी मत करो | मैं अभी सोच रहा हूँ |”

हालाँकि हम इस किस्से पर हँस सकते हैं, तौभी क्या यह सच नहीं है कि हमारे ऊपर धन इस प्रकार की एक पकड़ बना सकता है ? इसीलिए, यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं लगती है कि  बाईबल धन के कारण आने वाले खतरों के बारे में कई चेतावनी देती है | उनमें से कई चेतावनियाँ स्वयं प्रभु यीशु ने दीं | नीचे कुछ उदाहरण दिए गए हैं :

मत्ती 6:24 तुम परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकते |”

लूका 12:15 चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो; क्योंकि किसी का जीवन उसकी सम्पत्ति की बहुतायत से नहीं होता |

इब्रानियों का लेखक भी हमें स्मरण दिलाता है, तुम्हारा स्वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो (इब्रानियों 13:5) |

इस बात में आश्वस्त हो जाने के लिए, यह याद रखें कि धन से प्रेम के संबंध में चेतावनी केवल नया नियम की शिक्षा नहीं है | दस आज्ञाओं में से स्वयं दसवीं आज्ञा लालच के विरुद्ध एक प्रतिबन्ध थी, “तू लालच न करना” (निर्गमन 20:17) | 

धन की लालसा कई खतरों को खड़ा करती है | उनमें से चार खतरों का वर्णन नीचे दिया गया है |

खतरा # 1. यह हमें परमेश्वर के स्थान पर स्वयं (धन) पर भरोसा रखने वाला बना सकता है |

यीशु मसीह के पास अनन्त जीवन के लिए आने वाला जवान धनी सरदार एक उम्दा उदाहरण है (मरकुस 10:17–22) | वह धन के साथ घनिष्ठ प्रेम में था और उससे दूर नहीं जाना चाहता था | अंतिम परिणाम—अपने ऊपर हर तरफ मृत्युदण्ड की आज्ञा लिखवाये हुए, वह अनन्त जीवन के दाता से दूर चला गया | जब वह जवान धनी सरदार न्यायाधीश—यीशु के सम्मुख खड़ा होगा, तो क्या उद्धारकर्ता—यीशु का तिरस्कार करने के कारण मिलने वाले दण्ड से उसका धन उसका उद्धार कर पायेगा? 

हमारे अपने समय में भी, शेयर बाजार के औंधे मुँह गिरने, आर्थिक मंदी, नौकरी के अकस्मात् छूटने या व्यापार में असफलता के बावजूद, कई लोग एक पूर्णत: विश्वसनीय परमेश्वर पर भरोसा रखने के स्थान पर अविश्वसनीय धन पर भरोसा रखते हैं (1 तीमुथियुस 6:17) | कोई आश्चर्य नहीं कि नीतिवचन 11:4 एक समयोचित चेतावनी देती है, कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता

खतरा # 2. यह इस वर्तमान संसार के जीवन में भी कई दुःख ला सकता है |

बाईबल स्पष्ट रूप से कहती है, “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं” (1 तीमुथियुस 6:9) | अधिक धन कमाने का प्रलोभन लोगों को अग्रसर  करता है कि वे परमेश्वर और परिवार की अनदेखी करते हुए अधिक समय तक कार्य करें और यहाँ तक कि पापमय तरीकों से भी धन कमायें |

किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि धन एक ऐसी वस्तु है जिसका उपयोग एक सार्वभौमिक प्रदाता के रूप में किया जा सकता है, जिससे प्रत्येक वस्तु मिल जायेगी—खुशी को छोड़कर  ! अब तक के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक, श्रीमान रॉकफेलर ने कहा, “मैंने कई करोड़ कमाए परन्तु उनसे मुझे कोई खुशी नहीं मिली |” धनी हेनरी फ़ोर्ड ( फ़ोर्ड मोटर कंपनी के संस्थापक ) ने एक बार कहा, “मैं जब एक मैकेनिक था, तब अधिक खुश था |” यहाँ तक कि सर्वाधिक धनवान सुलैमान ने भी बाईबल में कहा है, परिश्रम करने वाला चाहे थोड़ा खाए, या बहुत, तौभी उसकी नींद सुखदाई होती है; परन्तु धनी के धन के बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती (सभोपदेशक 5:12) |    

खतरा # 3. यह हमें अत्याधिक स्वार्थी बनने के लिए अग्रसर कर सकता है |

स्वाभाविक बात है कि यदि हम अधिक लालसा रखेंगे, तो हम, हमारे पास जो है उसे छोड़ने के लिए उतने ही अनिच्छुक बनेंगे और इस प्रकार हमारे पास जो है हम उसे पकड़े रहने का प्रयास करने के लिए अधिक व्याकुल जायेंगे | इससे स्वार्थपन का प्रभाव बढ़ जायेगा – परमेश्वर के कार्य में देने के प्रति स्वार्थपन ( हाग्गै 1 ) और दूसरों की आवश्यकताओं की पूर्ति के संबंध में स्वार्थपन (1 यूहन्ना 3:16–18) |

हम भूल जाते हैं कि जब हमने बपतिस्मा लिया तब हमारे बैंक खाते ने भी बपतिस्मा लिया ! हम भूल जाते हैं कि हमारे सारे धन का स्वामी परमेश्वर है | जो कुछ भी हमारे हाथों में दिया गया है, हम उसके भण्डारी मात्र हैं | हम यह बात समझाने में चूक जाते हैं कि यदि परमेश्वर हमें संपन्न बनाता है, तो हो सकता है कि वह चाहता है कि हम अपने देने के स्तर को ऊँचा उठायें – जरूरी नहीं कि अपने जीवन जीने ( खर्च करने ) के स्तर को ऊँचा उठायें | मैं ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि यदि हम दयनीय परिस्थितियों में रहते हैं और यदि परमेश्वर हमें संपन्न बनाता  है तो हमें अपने जीवन की परिस्थितियों को यथोचित रूप से नहीं बदलना चाहिए | सावधानी रखने वाली बात यह है कि हमें उस धारणा से स्वयं की रक्षा करनी चाहिए जो सोचती है कि, “मेरे पास जो कुछ भी है वो सब मुझे केवल मेरी अभिलाषा—पूर्ति के लिए दी गई है |” 

यीशु मसीह ने चेतावनी दी, जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा; और जिसे बहुत सौंपा गया है, उससे बहुत लिया जाएगा (लूका 12:48) | हालांकि मैं अवश्य मानता हूँ कि इस आयत की सच्चाई को केवल धन के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं किया जा सकता है, तौभी यह आयत, वास्तव में हमारे धन के क्षेत्र में भी इसे लागू करने की माँग करता है !

खतरा # 4. यह हमें अस्थाई से बाँध सकता है और अनन्त के प्रति अंधा रख  सकता है |

रुपये का लोभ हमारी नज़र को कमजोर कर सकता है | मरकुस 10:17–22 में वर्णित जवान धनी सरदार एक अच्छा उदाहरण है | यीशु के साथ उसकी मुलाक़ात यह दिखाती है कि कैसे धन में, जो कि एक बहुत ही अस्थाई वस्तु है, इतनी सामर्थ है कि वह एक व्यक्ति को अंधा बना देता है कि वह न देख पाए, उस सच्चे अनन्त धन को जो कि केवल यीशु में मिलता है |

एक व्यापारी के बारे में एक किस्सा सुनाया जाता है, जिसके पास एक स्वर्गदूत आया और उसने उससे वादा किया कि उसकी एक बिनती ( इच्छा ) पूरी की जायेगी | उस मनुष्य ने निवेदन किया कि उसे आने वाले एक साल के शेयर बाजार के भाव की एक प्रति उसी समय दे दी जाये | जब उसने अलग—अलग शेयर के भविष्य की कीमतों का अध्ययन किया तो उसे अपनी योजना पर और उस अपार धन पर गर्व महसूस हुआ, जो कि भविष्य में “अंदरूनी” दृष्टि रख पाने के कारण  उसका हो जायेगा | 

फिर उसने समाचार – पत्र के  पृष्ठ पर अपनी सरसरी नज़र दौड़ाई और उसे शोक – संदेश वाले स्थान पर अपना नाम दिखाई दिया | अब बताईए, क्या उसकी अटल मौत के प्रकाश में उसका धन अब उतना महत्वपूर्ण था ? 

यह वही सत्य है जिसके बारे में यीशु मसीह ने लूका 12:13–21 के एक दृष्टांत के द्वारा शिक्षा दी | यह दृष्टांत एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जो परमेश्वर का पीछा करने के स्थान पर धन का पीछा करते हुए, इस संसार के अस्थाई संपत्ति से बँधा हुआ था और अनंतता के प्रति अँधा था | परन्तु परमेश्वर ने उस से कहा; ‘हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा: तब जो कुछ तू ने इकट्ठा किया है, वह किस का होगा?’” और फिर, यीशु मसीह ने इस दृष्टांत का अनुप्रयोग बताया, “ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं” (लूका 12:20–21) |

इस तरह से, धन से प्रेम करने से चार स्पष्ट नुकसान जुड़े हुए हैं—ऐसे खतरे जिनके अस्थाई और अनन्त दुष्परिणाम भी हैं |

अब, हम कैसे निश्चित करें कि हम धन के प्रेम से मुक्त रहें ? सीधी बात है, हमें धन से अधिक प्रेम यीशु से करना चाहिए | हमें यह बात अवश्य ही निरंतर स्मरण में रखना चाहिए कि यह यीशु था जिसने स्वर्ग की महिमा को छोड़ा ताकि वह हमारे मध्य जीवन बिताये, और हमारे स्थान पर मारा जाए ताकि हमें हमारे पापों से क्षमा मिल सके | हमें यह बात अवश्य स्मरण रखनी चाहिए कि उसके और हमारे बीच कुछ भी नहीं आना चाहिए, धन भी नहीं | हमें संसार के  समस्त खजानों से ( जिनका इस जीवन के पार कोई मूल्य नहीं है ) बढ़कर, उसे बहुमूल्य समझना चाहिए | हमें अपने जीवन के समस्त क्षेत्रों में उसके स्वामित्व के सम्मुख घुटने टेकने की आवश्यकता है | हमें उसे लगातार पुकारते रहने की आवश्यकता है ताकि धन की जो पकड़ हमारे ऊपर हो सकती है उस पर विजय पाने में वह हमारी सहायता करे | 

और जब हम ऐसा करेंगे, तो यीशु मसीह, पवित्रात्मा  द्वारा हमें सामर्थ देगा कि हम धन को गुलाम बनाकर रख सकें, न कि धन हमारे स्वामी की तरह हम पर हुक्म चलाये | वह हमें धन के प्रेम (रुपये के लोभ ) से स्वतंत्र करेगा ताकि हम परमेश्वर को प्रेम कर सकें और उसके स्वरुप में रचे गए अन्य लोगों के लिए आशीष का कारण बन जायें ! 

कैसा रहेगा, यदि नीतिवचन की पुस्तक की इस प्रार्थना को मुखाग्र करके प्रतिदिन प्रार्थना करने और उसे जीवन में लागू करने का संकल्प लिया जाए?

नीतिवचन 30:8 व्यर्थ और झूठी बात मुझ से दूर रख; मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना; प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर |”     

यह रोचक बात है कि यह प्रार्थना नीतिवचन की सम्पूर्ण पुस्तक में पाई जाने वाली एकमात्र प्रार्थना है | क्या यह अत्याधिक प्रायोगिक प्रार्थना नहीं है?

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