जीवनसाथी का चुनाव कैसे करें

Posted byHindi Editor July 25, 2023 Comments:0

(English version: How To Choose A Marriage Partner) 

एक छोटी लड़की ने पहली बार राजकुमारी स्नो व्हाईट की कहानी सुनी और तुरंत ही उसने बड़े उत्साह से उस परीकथा को अपनी माँ को सुनाया | यह बताने के बाद कि कैसे एक आकर्षक राजकुमार सफ़ेद घोड़े में सवार होकर आया और राजकुमारी का चुंबन लेकर राजकुमारी को वापस ज़िंदा कर दिया, उसने अपनी माँ से पूछा, “और क्या आप जानते हैं कि फिर क्या हुआ?” उसकी माँ ने कहा, “हाँ, उसके बाद वे खुशी – खुशी रहने लगे |” उस छोटी लड़की ने चिढ़ते हुए कहा, “नहीं…, फिर उन्होंने विवाह कर लिया |” 

बचपन की मासूमियत में उस छोटी लड़की ने एक आशिंक सत्य का बखान कर दिया | वास्तविक जीवन के अनुभव इस बात का जबरदस्त रीति से संकेत देते हैं कि विवाह करना और खुशी – खुशी जीना, दोनों काम हमेशा साथ – साथ नहीं हो पाता है | परन्तु, परमेश्वर प्रतिज्ञा करते हैं कि यदि कोई बाईबल में दी गई उसकी शिक्षाओं का पालन करे तो विवाह और आनंद दोनों साथ – साथ संभव है | चूँकि वैवाहिक जीवन में आने वाली कई बड़ी समस्याओं में से एक समस्या विवाह से पूर्व सही जीवनसाथी का चुनाव नहीं कर पाने की असफलता के कारण आती है, इसीलिए एक व्यक्ति को सही जीवनसाथी का चुनाव करने में सहायता करने के लिए 5 बाईबल आधारित सिद्धांतों को बताते हुए, इस लेख को लिखा गया है | जब मसीही बच्चों के विवाह की बात आये, तो मसीही माता – पिता भी अपने बच्चों का यह मार्गदर्शन करते हुए सहायता कर सकते हैं कि जीवनसाथी का चुनाव करते समय वे इन सिद्धांतों का पालन करें |

आईये, एक बुनियादी सच्चाई के साथ आरम्भ करें |

1. कुँवारा या कुँवारी  (अकेला) रह जाना कोई श्राप नहीं है | 

यदि किसी का विवाह नहीं हुआ तो यह संसार इसे एक कमी और यहाँ तक कि एक श्राप के रूप में भी देखता है | परन्तु, संसार के द्वारा मार्गदर्शन पाने के स्थान पर विश्वासियों को अवश्य ही पहले यह निश्चित कर लेना चाहिए कि क्या प्रभु चाहते हैं कि वे विवाह करें | प्रत्येक व्यक्ति को विवाह करने के लिए नहीं बुलाया गया है (मत्ती 19:10–12; 1 कुरिन्थियों 7:25–38) | स्वयं पौलुस अपने अकेलेपन को परमेश्वर के द्वारा दिए गए एक उपहार के रूप में देखता है (1 कुरिन्थियों 7:7) | इसीलिए, यदि परमेश्वर ने आपको अकेले रहने के लिए बुलाया है, तो फिर उसे एक श्राप के रूप में न देखें | बल्कि, आप उसे एक बुलाहट के रूप में समझें, परमेश्वर की महिमा के लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया वरदान | जिन लोगों को अकेले रहने के लिए बुलाया गया है, परमेश्वर उन्हें यथोचित अनुग्रह और आनंद देगा | 

विश्वासी होने के नाते हम सब को उस ने मसीह में स्वर्गीय स्थानों में सब प्रकार की आशीष दी है ( इफिसियों 1:3) और उसी (मसीह) में  (हम) भरपूर हो गए हैं” (कुलुस्सियों 2:10) | आशीषित और पूर्ण (भरपूर) – यही है प्रत्येक मसीही की स्थिति | इससे अधिक हमें और क्या चाहिए , यदि परमेश्वर ने आपको अकेले रहने के लिए बुलाया है तो आनंदित रहिये और जीवन भर आनंदपूर्वक उसकी सेवा करिये |  यदि, परमेश्वर ने आपको अकेले रहने के लिए नहीं बुलाया है तो फिर निम्नांकित 4 बातें आपसे संबंधित होंगी |

आगे बढ़ने से पहले छोटी टिप्पणी :

जब कोई विश्वासी किसी अकेले ( अविवाहित ) व्यक्ति से बात करे तो आवश्यक है कि वह ऐसी बातों को कहने से स्वयं को रोक रखे जो इस बात को दर्शाते हों कि जो अकेले हैं वे किसी रूप से अपूर्ण हैं और उन्हें विवाह करने की आवश्यकता है और वह भी जल्द से जल्द | “चिंता मत करो | जल्दी ही शादी हो जायेगी,” कहने से या फिर बार बार यह पूछने से कि “सब सही में ठीक चल रहा है ना ?”,  किसी को कोई बहुत अधिक सहायता नहीं मिलती है, फिर चाहे यह काम अच्छे उद्देश्य से ही क्यों न किया गया हो | 

अविवाहित व्यक्ति ऐसे ही अत्याधिक दबाव में रहते हैं | उनके दबाव को और न बढ़ायें | आईये संवेदनशील बनें और स्मरण रखें कि परमेश्वर अविवाहित और विवाहित दोनों को समान रूप से ग्रहण करता है |  हम मसीह में पूर्ण हैं, फिर चाहे हम अविवाहित हों या विवाहित | अपनी बातों और कार्यों के द्वारा उन्हें हतोत्साहित करने के स्थान पर, आईये उनके लिए प्रार्थना करें और उन्हें उनके मसीही जीवन में प्रोत्साहित करें |

2. केवल मसीही से ही विवाह करने का संकल्प लें |

इस संबंध में बाईबल बिल्कुल ही स्पष्ट है | 1 कुरिन्थियों 7:39 में हमें बताया गया है कि एक विश्वासी विवाह करने के लिए स्वतंत्र है यदि वह इस शर्त को पूरा करता है : उसका साथी “केवल प्रभु में” होना चाहिए | यहाँ तक कि परमेश्वर ने पुराने नियम में भी अपने संतानों को अविश्वासी से विवाह करने से मना किया था | व्यवस्थाविवरण 7:3 कहता है, और न उनसे ब्याह शादी करना, न तो अपनी बेटी उनके बेटे को ब्याह देना, और न उनकी बेटी को अपने बेटे के लिये ब्याह लेना |” 

विश्वासी अपने उस शरीर को, जिसमें पवित्र आत्मा वास करता है, एक ऐसे व्यक्ति के साथ नहीं जोड़ सकता है जो अब भी आत्मिक अंधियारे में है और पापों में मरा हुआ है (2 कुरिन्थियों 6:14–7:1) | आमोस 3:3 भी कहता है कि, “यदि दो मनुष्य परस्पर सहमत न हों, तो क्या वे एक संग चल सकेंगे?” विश्वासी और अविश्वासी के मध्य कोई आत्मिक अनुबंध नहीं है ! वे दोनों बिल्कुल ही भिन्न संसार के हैं ! यह सोचना कि “संभवतः मेरे द्वारा परमेश्वर इस अविश्वासी का उद्धार करेगा”, न केवल मूर्खतापूर्ण है बल्कि साथ ही साथ यह अनुमान आधारित और खतरनाक है | कोई भी किसी के उद्धार की गारण्टी नहीं दे सकता (1 कुरिन्थियों 7:16) | सुसमाचार सुनाने के लिए किसी अविश्वासी के साथ पूर्व – वैवाहिक मिलन बाईबल के अनुसार नहीं है ! अविश्वासी कितना भी अच्छा क्यों न दिखाई पड़ता हो, एक विश्वासी किसी अविश्वासी के साथ विवाह नहीं कर सकता है ! 

सीधे – सीधे कहें तो यह परमेश्वर की इच्छा नहीं है कि एक मसीही किसी गैर मसीही से विवाह करे | परमेश्वर की स्पष्ट इच्छा का उल्लंघन करना पाप है | यह आशा करना परमेश्वर की परीक्षा लेना है कि जब हम जान बूझकर पाप करेंगे तो परमेश्वर अपनी आँखों को दूसरी दिशा में मोड़ लेगा और हमें आशीष देता रहेगा और क्षमा करता रहेगा – अब यह भी (परमेश्वर की परीक्षा लेना) एक पाप है (मत्ती 4:7) | अब देखिये, कितनी आसानी से पाप बढ़ता जाता है ! परमेश्वर ने इस विषय पर अपना मन नहीं बदला है | इसलिए, किसी को भी इस मुद्दे पर पाप के साथ वार्तालाप करने की आवश्यकता नहीं है | यदि हम वार्तालाप करेंगे तो अवश्य ही गिर जायेंगे ! जब परमेश्वर की किसी स्पष्ट आज्ञा को तोड़ने की परीक्षा हमारे सम्मुख आये तो हमें वही करना चाहिए जो युसुफ ने किया – भाग जायें ! (उत्पत्ति 39:12)|

फिर, यह भी याद रखें कि मसीही जीवन साथी ढूंढते समय भी हमें कुछ शारीरिक विचारों से दूर रहना चाहिए, जैसे कि, “क्या वे दिखने में सुन्दर हैं ? क्या वे धनवान हैं और अच्छी तरह से व्यवस्थित हैं?”  इसके स्थान पर हमें कुछ इस प्रकार के मुख्य प्रश्नों को पूछना चाहिए : “क्या उसका सही में उद्धार हुआ है और वह गंभीरता से प्रभु यीशु के पीछे चल रहा / रही है?” “क्या उसके जीवन में प्रभु के प्रति, उसके वचन के प्रति और उसकी सेवा के प्रति प्रेम दिखाई पड़ता है?” “क्या उसमें दीनता, पाप के प्रति एक घृणा, भक्ति के लिए प्रेम और स्थानीय कलीसिया के प्रति समर्पण है?”  यह देखना दुखद है कि कई लोग बाह्य बातों पर केन्द्रित हैं और विश्वास से संबंधित मुद्दे को सबसे अंत में रखते हैं – मानो उनके जीवनसाथी का मसीही होना उनके लिए एक बोनस के सामान है ! अवश्य है कि यीशु मसीह मुख्य प्राथमिकता रहे (मत्ती 6:33) | जब वह सर्वप्रथम है तो हमें हियाव हो सकता है कि शेष सभी बातें भी अच्छी होंगी !

3. पति, पत्नी और माता – पिता के रूप में अपनी बाईबल आधारित भूमिका को समझें | 

प्रत्येक व्यक्ति को मसीही पति और पत्नी की भूमिका का वर्णन करने वाले भागों का अध्ययन करना चाहिए (इफिसियों 5:22–33; कुलुस्सियों 3:18–19; तीतुस 2:3–5; 1 पतरस 3:1–7; नीतिवचन 31:10–31) | इसके साथ ही साथ हमें बच्चों के पालन – पोषण के बारे में  भी अध्ययन करना चाहिए (उदाहरण के लिए, नीतिवचन 6:20; 13:24; 22:6; 22:15; 29:15; इफिसियों 6:4; कुलुस्सियों 3:21) | बाईबल आधारित ज्ञान एक व्यक्ति की सहायता करता है कि वह बुद्धिमानी के साथ तैयारी कर सके |

हमें वैवाहिक जीवन में यथार्थ स्थितियों की अपेक्षा करना सीखना चाहिए | जब दो पापी (यद्यपि अनुग्रह द्वारा उद्धार प्राप्त) एक साथ रहेंगे तो समस्याएं तो आयेंगीं | वचन के अनुसार चलने के अपने सर्वोत्तम प्रयास के बावजूद पति और पत्नी दोनों के ही जीवन में “कुछ गिरावट” के क्षण आयेंगे | उन अवसरों पर अपने साथी को प्रेम करने और क्षमा करने का संकल्प अवश्य ही होना चाहिए | विवाह को बनाए रखने के लिए प्रभु पर एक सतत निर्भरता होना आवश्यक है |

प्रत्येक विवाह प्रतिदिन दो अंत्येष्टि की माँग करता है – अपने स्वार्थी लालसाओं के प्रति पति और पत्नी की मौत | आवश्यक है कि दोनों ही इस प्रकार की आत्म – त्याग वाली जीवनशैली को अपनायें |  आपने देखा, विवाह केवल आनंद की बात नहीं है | यह एक कर्तव्य भी है – परमेश्वर को महिमा देना वाला कर्तव्य ! निश्चित रूप से ऐसे दिन भी होंगे जब विवाह कोई बड़े आनंद की बात नहीं लगेगी – किसी भी ऐसे जोड़े से पूछकर देख लें जिन्हें विवाह किए कुछ समय हो गया है | वे इस सत्य की गवाही देंगे | परन्तु उन दिनों में भी दोनों को ही स्वयं को अवश्य ही यह सत्य स्मरण दिलाना चाहिए कि विवाह एक पवित्र परमेश्वर के सम्मुख की गई एक प्रतिज्ञा है, और उस प्रतिज्ञा का सम्मान करना उनका कर्तव्य है | उसके अनुग्रह से, उस प्रतिज्ञा को पूरा करना और आनंद को वापस पा लेना संभव है !

4. परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करें |

परमेश्वर के संतानों को बार – बार “यहोवा की बाट जोहने” की आज्ञा दी गई है (भजनसंहिता 27:14; 40:1; 130:5–6) | उतावलापन ने कई जिंदगी बर्बाद की हैं | अपने बच्चे के लिए परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करने में इब्राहीम की असफलता ने इब्राहीम के जीवन में बड़ा दुःख लाया  (उत्पत्ति 16) | शाऊल ने उतावलापन के कारण अपना राज्य गँवा दिया (1 शमूएल 10:8; 13:8–14)|

इसी प्रकार उतावले निर्णयों के कारण कई विवाह बर्बाद हुए हैं | यह सच बात है कि अविवाहित रहने के कारण दर्द और अकेलापन आ सकता है और कई बार उन्हें सहना कठिन हो सकता है | इस स्थिति से बचने के लिए कई लोग बिना सोचे – समझे उतावली से (और दुर्भाग्य से) विवाह के लिए आगे बढ़ते हैं और दुखदाई विवाह के शिकार बन जाते हैं – वे इस बात को भूल जाते हैं कि दुखदाई विवाह के कारण उत्पन्न दर्द और अकेलापन अविवाहित रहने के कारण आने वाले दर्द और अकेलापन की तुलना में सहने के लिए कहीं अधिक भारी बोझ है | यह तो कपडे से दाग निकालने के प्रयास में कपड़ा ही फाड़ डालने के समान है !

इसलिए, सावधान रहिये ! प्रभु के समय का इंतजार कीजिये | स्मरण रखें, “क्योंकि प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्वर न तो कभी देखा गया और न कान से उसकी चर्चा सुनी गई जो अपनी बाट जोहने वालों के लिये काम करे” (यशायाह 64:4) | जब परमेश्वर के संतान परमेश्वर के समय का इंतज़ार करते हैं तब परमेश्वर जो करता है वह अविश्वसनीय होता है|

5. निरंतर प्रार्थना करें |

प्रभु यीशु मसीह ने यह बात बहुत ही स्पष्ट कर दी थी कि हम उसके बिना “कुछ नहीं कर सकते” (यूहन्ना 15:5) | इस सच्चाई की समझ विश्वासी को प्रत्येक बात के लिए लगन के साथ प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करनी चाहिए – इस महत्वपूर्ण विषय पर भी | यदि लगे कि परिस्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा है तब भी विश्वासी को “नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए” (लूका 18:1) | प्रार्थना को उपवास का साथ भी मिलना चाहिए ! परमेश्वर अपने उन बच्चों की निरंतर पुकार को सुनेगा जो जीवन को बदलने वाली इस घटना (विवाह) के संबंध में उसकी इच्छा जानने की इच्छा रखते हैं ! 

समापन विचार |

प्रिय विश्वासी, विवाह के करता परमेश्वर के द्वारा विवाह के संबंध में दिए गये आज्ञाओं का पालन करते हुए एक व्यक्ति विवाह कर सकता है (यदि उसके लिए विवाह करना परमेश्वर की इच्छा है) और हमेशा खुशी – खुशी रह सकता है | उसकी आज्ञाओं के पालन करने में असफल रहने वाले व्यक्ति को वही कहना पड़ेगा जो किसी नाखुश पत्नी ने कहा था:

जब मैंने विवाह किया तो मैं एक आदर्श स्थिति (Ideal)की अपेक्षा कर रही थी |

फिर विवाह अग्नि – परीक्षा (Ordeal) बन गई |

अब मैं इस विवाह से निकलकर नया समझौता (Deal) करना चाहती हूँ |

तो देखा आपने, विवाह कोई खेल नहीं है | यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सम्मुख लिया जाने वाला संकल्प है जिसका सम्मान किया जाना चाहिए ! यह सब आरम्भ होता है विवाह से पूर्व सही जीवन साथी की तलाश से | 

एक अंतिम अनुस्मारक: विवाह अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है | यह उस लक्ष्य की ओर बढ़ने का एक माध्यम है – लक्ष्य है, परमेश्वर की महिमा (1 कुरिन्थियों 10:31) | यह अनुस्मारक एक व्यक्ति को विवाह को जीवन का अंतिम लक्ष्य बनाने से रोकेगा ! जब हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य परमेश्वर की महिमा करना बन जाता है तो विवाह उन कई तरीकों में से एक तरीका बन जाता है जिससे परमेश्वर को महिमा मिलती है |  

संभव है कि इस लेख को पढ़ने वाले कुछ लोगों ने विवाह के संबंध में कुछ खराब चुनाव किया हो | निराश न हों ! प्रभु के सम्मुख अपने पापों का अंगीकार करें और उससे प्रार्थना करें कि वह  जिस परिस्थिति में आप हैं उससे होकर गुजरने की सामर्थ आपको दे | परमेश्वर आपको आवश्यक सामर्थ प्रदान करेंगे ताकि आप उसके लिए जीवन बिता सकें | स्मरण रखें, विवाह में गलत चुनाव करने के कारण परमेश्वर ने आपको त्याग नहीं दिया है | और न ही आप इसलिए स्वीकार किए गए हैं कि आपने सही चुनाव किया है | आप केवल प्रभु यीशु मसीह के द्वारा बहाये गये लहू के आधार पर स्वीकार किए गये हैं | इसलिए आप इस अद्भुत परमेश्वर के अनुग्रहकारी बाहों में विश्राम करिए जिसने आपको यीशु मसीह के द्वारा अपना पुत्र या पुत्री बनाया है !

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