जल का बपतिस्मा – 6 प्रश्न और उनके उत्तर

Posted byHindi Editor April 26, 2023 Comments:0

(English Version: Water Baptism – 6 Key Questions Asked And Answered)

प्रभु यीशु मसीह को अपने प्रभु और उद्धारकर्ता  के रूप में ग्रहण करने के पश्चात् दो मूल आज्ञाएं / रीति – विधियाँ हैं, जिनका पालन प्रत्येक मसीही को करना अनिवार्य है | पहला है, जल का बपतिस्मा | दूसरा है, प्रभु की मेज, जिसे प्रभु भोज भी कहा जाता है, में सहभागी होना | इन दोनों रीति – विधियों में अंतर है क्योंकि जल का बपतिस्मा एक बार किया जाने वाला कार्य है, जबकि प्रभु भोज में भाग लेना, निरंतर चलने वाला कार्य है | यह संक्षिप्त अवलोकन प्रथम रीति – विधि अर्थात जल का बपतिस्मा के संबंध में कुछ आधारभूत प्रश्नों का उत्तर का प्रयास करेगी | 

एक व्यक्ति के विश्वासी बनने के बाद – अर्थात अपने पापों से मनफिराकर यीशु मसीह पर विश्वास करने के बाद किया जानेवाला पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, जल का बपतिस्मा | हालाँकि बाईबल इस विषय पर स्पष्ट शिक्षा देती है तौभी इस स्पष्ट आज्ञा के प्रति अत्याधिक अनाज्ञाकारिता दिखाई पड़ती है | एक बाईबल शिक्षक के अनुसार, इस असफलता के पीछे निम्नांकित कारण हैं :

i. अज्ञानता: लोग इस विषय को ढंग से नहीं समझते हैं क्योंकि यह आज्ञा की शिक्षा उन्हें  नहीं दी गई है |

ii. आत्मिक अहंकार: बहुत देर बाद बपतिस्मा लेना समझ की कमी को दर्शाता है या फिर एक लम्बे समय तक की अनाज्ञाकारिता को प्रगट करता है | चूंकि इस अनाज्ञाकारिता को स्वीकार करना बहुत ही अपमानजनक बात हो सकती है, इसीलिए कई लोग इसी कारण विशेष से बपतिस्मा लेना नहीं चाहते हैं | दुख की बात है कि इस श्रेणी में जो लोग आते हैं उन्हें आज संसार के लोगों के सामने लज्जित होने के बदले न्याय के दिन प्रभु यीशु के सम्मुख लज्जित होना पड़ेगा |

iii. लापरवाह रवैया (प्रवृत्ति): बपतिस्मा के प्रति कई लोग लापरवाह रवैया रखते हैं | ये लोग ऐसे तो बपतिस्मा के विरोध में नहीं होते हैं | बस ये लोग इसे अपनी प्राथमिकता के रूप में नहीं देखते हैं | इस प्रकार का रवैया, कहता है, “ वर्तमान में कई जरूरी बातें हैं जिन पर ध्यान देना है | बाद में कभी, जब मेरे पास समय होगा, तब मैं बपतिस्मा लेने की सोच सकता हूँ | ”

iv. अंगीकार का भय: कुछ लोग अपने विश्वास का सार्वजनिक रूप से अंगीकार करने से डरते हैं क्योंकि वे अपने जीवन में कई पापों के साथ मधुर संबंध में हैं | उनको लगता है कि अपने विश्वास का सार्वजनिक अंगीकार करने के द्वारा वे स्वयं को एक ढोंगी के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं | कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि “ लोग क्या सोचेंगे ” (परिवार, समाज इत्यादि) | विशेष रूप से, जब बपतिस्मा के कारण परिवार से अलगाव का खतरा नजर आता है, तो लोग अक्सर बपतिस्मा लेने से पीछे हट जाते हैं |

v. वास्तविक मसीही न होना: कुछ एक बार, हो सकता है कि वह व्यक्ति एक सच्चा विश्वासी ही न हो | उनमें पवित्र आत्मा ही नहीं होता है, और इसीलिए इस आज्ञा को मानने के लिए कोई दृढ़ निश्चयता या दबाव उनमें नहीं होता है | हो सकता है कि वे कलीसिया आते हों और प्रभु – भोज से भी भाग लेते हों | परन्तु वे सच्चे रूप से मसीह के नहीं हैं |

मुझे निश्चय है, कि इस बात के लिए कि लोग क्यों बपतिस्मा लेने से बचते हैं, और भी कारण दिए जा सकते हैं | परन्तु, इस लेख का उद्देश्य, प्रथम कारण – अज्ञानता, के बारे में बात करना है |  मैं आशा करता हूँ कि, पवित्रशास्त्र से 6 प्रश्नों को पूछकर और उनका उत्तर देकर, यह लेख इस विषय पर स्पष्ट रोशनी डालेगी | पाठकों की यह जिम्मेदारी है कि वे इन सत्यों पर प्रार्थनापूर्वक ध्यान दें और इन सत्यों के अनुसार कार्य करें | 

आईए, पहले प्रश्न के साथ आरम्भ करें |

1. हमें जल का बपतिस्मा क्यों लेना है?

पहली बात, हम मत्ती 28:19 में पढ़ते हैं, यीशु मसीह कलीसिया को आज्ञा देते हैं, “जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो |” वाक्याँश, ‘नाम से’ का प्रयोग एकवचन में हुआ है (‘ नामों से ’ नहीं लिखा है) | एकवचन का यह प्रयोग पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की समानता को दर्शाता है | यह बपतिस्मा के समय दोहराया जाने वाला कोई सूत्र नहीं है | परन्तु इसका अर्थ है, कि वह विश्वासी, तीन व्यक्तियों में अस्त्तित्व रखने वाले एक परमेश्वर के साथ आत्मिक रूप से जुड़ जाता है |  

दूसरी बात, हम प्रेरितों के काम 2:38 में पढ़ते हैं कि इस आज्ञा को प्रत्येक व्यक्ति के लिए लागू किया गया : “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे |” आज्ञा स्पष्ट है : पहली बात, प्रत्येक व्यक्ति “अपने अपने पापों से मन फिराए” ( सुसमाचार सुनने और उस के प्रति विश्वास के साथ प्रतिक्रिया दिखाने के द्वारा ) | दूसरी बात, उन्हें “बपतिस्मा”, अवश्य लेना है | इन दोनों बातों का क्रम भी स्पष्ट है : सच्चे मनफिराव और यीशु मसीह पर विश्वास करने के बाद ही बपतिस्मा होना चाहिए | इसीलिए, हमें अनिवार्य रूप से बपतिस्मा लेना चाहिए क्योंकि यह एक आज्ञा है, यह विकल्प नहीं है ! 

2. जल के बपतिस्मा का अभिप्राय क्या है?

जल का बपतिस्मा, उद्धार के समय हुए आतंरिक नया जन्म का बाह्य और दृश्यमान प्रदर्शन है | यह एक आतंरिक आत्मिक सच्चाई का दैहिक प्रदर्शन है | रोमियों 6:3–5 में हमें यह सच्चाई बताई गई है, 3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया | 4 सो उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें। 5क्योंकि यदि हम उस की मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे |” उद्धार के समय अस्तित्व में आने वाली ये आत्मिक सच्चाईयां बाह्य रूप में जल के बपतिस्मा द्वारा सर्वोत्तम ढंग से चित्रित होती हैं |

जल का बपतिस्मा, मसीह के मृत्यु, दफ़न और पुनरुत्थान के साथ हमारे आत्मिक एकरूपता का एक दृश्यमान चित्र है | यह, हमें जो आशा है उसे भी बताता है : जैसे यीशु मृत्यु के बाद जी उठा, ठीक वैसे ही, भविष्य में, हम भी, जो उसके साथ एक हो गये हैं, जीने के लिए जी उठेंगे | 

3. यीशु के द्वारा लिए गये जल के बपतिस्मे का क्या अभिप्राय है? 

यीशु का बपतिस्मा (मत्ती 3:13–17), उन पापियों के साथ उसकी पहचान का एक सार्वजनिक चित्र था, जिनके लिए वह मरने वाला और तत्पश्चात जी उठाने वाला था | यीशु ने न केवल हमारे पापों के बदले क्रूस पर जाने के द्वारा परन्तु साथ ही एक ऐसा सिद्ध आज्ञाकारिता का जीवन जीने के द्वारा, जैसा हम कभी नहीं जी सकते थे, “सारी धार्मिकता” को पूरा किया | इसीलिए बाईबल आधारित सच्चा विश्वास सिखाता है कि उद्धार केवल अनुग्रह के द्वारा है क्योंकि यीशु ही वह एकमात्र व्यक्ति है जिसने सारी धार्मिकता को पूरा किया | हम हमारे कार्यों के द्वारा उद्धार नहीं पाते हैं, परन्तु केवल यीशु पर विश्वास करने के द्वारा, जिसने हमारे लिए सब कुछ पूरा कर दिया है|

इसीलिए, प्रभु यीशु के द्वारा जल का बपतिस्मा का लिया जाना, उसके बोले जाने के समय भविष्य की एक वास्तविकता का एक प्रतीकात्मक प्रदर्शन था (परन्तु यह अब पूरा हो चुका है): हमारे बदले में उसका मारा जाना और परमेश्वर द्वारा उसके बलिदान को स्वीकारने के  प्रमाण के रूप में उसका पुनरुत्थान | 

यह ध्यान देना भी रोचक है कि यीशु ने बपतिस्मा लेने के द्वारा पिता की सारी आज्ञाओं को मानने के महत्व को दर्शाया | यीशु ने यह चुनाव नहीं किया कि कौन सी आज्ञा माननी है और कौन सी नहीं माननी है | अपने सिद्ध जीवन के अंग के रूप में उसने अपने पिता की सारी आज्ञाओं के प्रति स्वेच्छापूर्वक और आनंदपूर्वक अपने आप को समर्पित किया | 

4. जल के बपतिस्मे की सही विधि क्या है? 

इसी बात पर सबसे अधिक उलझन और मतभेद है | बपतिस्मा देने की विधि में अत्याधिक बेजोड़ता है (जैसे कि, क्या केवल डूब का बपतिस्मा ही सही है, या क्या छिड़काव का बपतिस्मा लिया जा सकता है, इत्यादि) | तथापि, बपतिस्मा की विधि के संबंध में स्पष्ट उत्तर पाने के लिए, आईए हम बाईबल में ही देखें कि लोगों का बपतिस्मा किस प्रकार हुआ |

नया नियम में, बपतिस्मा शब्द अक्सर दो यूनानी क्रियाशब्दों से दिखाया गया है : बैप्टो (Bapto)  और बैप्टाईज़ (Baptize) |  नया नियम और पुराना नियम शब्दावलियों के एक शब्दकोष के अनुसार, बैप्टो (Bapto) का अर्थ है, “ डुबाना ” और इस शब्द का इस्तेमाल यूनानियों द्वारा किसी कपड़े को रंगने के लिए रंग में डुबाने या पानी निकालने के लिए किसी पानी से भरे पात्र में दूसरे पात्र को डुबाने के लिए किया जाता था | इंग्लिश भाषा में अनुवाद करते समय दूसरे शब्द बैप्टिजो (baptizo) को लिखा गया,  “to baptize” ( अर्थात, पूरी रीति से डुबाना या जलमग्न कर देना ), और यह शब्द नया नियम में कई बार आता है |

बपतिस्मा शब्द, नया नियम में, “ विसर्जन, डुबकी, डुबाना, गोता ” इत्यादि अर्थों की माँग करता है या इन अर्थों को दर्शाता है | साथ ही कभी यह नहीं कहा गया कि किसी व्यक्ति को जल से बपतिस्मा दो (छिड़काव या माथे पर पानी लगाने जैसा) | जितने सन्दर्भ हैं वे सब एक व्यक्ति द्वारा जल में बपतिस्मा लेने का है |

स्वयं प्रभु यीशु डूब का बपतिस्मा लेने के लिए जल में ( के अन्दर ) उतरे ! हम मत्ती 3:16 में पढ़ते हैं, “यीशु बपतिस्मा लेकर तुरंत पानी में से ऊपर आया” | वाक्याँश, “पानी में से ऊपर आया”, स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रभु यीशु मसीह ने डूब का बपतिस्मा लिया और वह भी तब जब वे वयस्क थे ! 

जिन लोगों को यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने बपतिस्मा दिया, उन्होंने “यरदन नदी में उससे बपतिस्मा लिया” ( मत्ती 3:6 ) | यूहन्ना 3:23 एक और संकेत देता है कि यूहन्ना डूब का बपतिस्मा देता था | हम पढ़ते हैं, “यूहन्ना भी शालें के निकट ऐनोन में बपतिस्मा देता था, क्योंकि वहाँ बहुत जल था , और लोग आकर बपतिस्मा लेते थे!” 

आरंभिक कलीसिया ने भी डूब के बपतिस्मे का अभ्यास किया | प्रेरित 8:38 में, हम पढ़ते हैं कि फिलिप्पुस ने कूश देश के खोजे को बपतिस्मा दिया और ऐसा लिखा है, “फिलिप्पुस और खोजा दोनों जल में उतर पड़े, और उसने खोजा को बपतिस्मा दिया |” 

इन कुछ आयतों को पढ़ने से ही कोई भी व्यक्ति इस बात को मानने के लिए विवश हो जायेगा कि नया नियम में बपतिस्मा के लिए जल में उतरने वाले लोगों ने डूब के बपतिस्मे का अभ्यास किया | केवल डूब का बपतिस्मा ही उद्धार के समय की आत्मिक सच्चाई के लिए उपयुक्त है, बपतिस्मा लेने वाला विश्वासी यीशु मसीह के साथ डूबता है, उसकी मृत्यु, दफ़न और पुनरुत्थान में सहभागी होने के उद्देश्य के साथ |  

छिड़काव या माथे पर पानी लगाना जल के बपतिस्मे के लिए बाईबल आधारित तरीका नहीं है | यह रोमन कैथोलिक कलीसिया द्वारा आरंभ किया गया | हालांकि रोमन कैथोलिक कलीसिया  भी 13वीं शताब्दी तक बपतिस्मा के तरीके के रूप में डूब के बपतिस्मे का ही अभ्यास कर रही थी | दुःख की बात है कि कुछ प्रोटेस्टेंट कलीसियाओं ने भी ( जैसे कि, प्रिसबिटेरियन, मेथोडिस्ट, लूथरन इत्यादि ) बाद में रोमन कैथोलिक कलीसिया की छिड़काव विधि को अपना लिया | 

5. जल के बपतिस्मे का उद्धार से क्या संबंध है ?

क्या उद्धार के लिए जल का बपतिस्मा आवश्यक है ? जब हम सम्पूर्ण बाईबल की शिक्षा को देखते हैं तो, उद्धार के बारे में एक बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है : जब एक व्यक्ति अपने पापों से मन फिराता है और उद्धार के लिए केवल यीशु की ओर मुड़ता है तब उद्धार होता है, केवल अनुग्रह से, केवल विश्वास द्वारा, और केवल यीशु पर विश्वास द्वारा ( देखिए, मरकुस 1:15; यूहन्ना 3:16; यूहन्ना 5:24; प्रेरित 20:21; रोमियों 4:5; रोमियों 10:9–13; इफिसियों 2:8–9; तीतुस 3:5)| प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में केवल यीशु पर विश्वास करने से एक मनुष्य का उद्धार होता है | जल के बपतिस्में में सार्वजनिक अंगीकार यीशु पर वास्तविक विश्वास की पुष्टि करता है |

हालाँकि, कुछ बाईबल भाग में, जल का बपतिस्मा उद्धार के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है क्योंकि सच्चा उद्धार हमेशा आज्ञाकारिता उत्पन्न करता है और एक मसीही के लिए आज्ञाकारिता का पहला कदम है बपतिस्मा लेना, अर्थात मसीह में अपने विश्वास को  सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना | नीचे प्रेरितों के काम में वर्णित, कुछ लोगों के उदाहरण दिये गये हैं, जिन्होंने बिना देर किये इस आज्ञा का पालन किया : 

क. पिन्तेकुस्त के दिन, जब कलीसिया का जन्म हुआ : 

प्रेरितों के काम 2:41 में लिखा है, “अतः जिन्होंने उसका ( अर्थात पतरस के उद्धार के सन्देश ) वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन … |”

जैसा कि आप देख सकते हैं कि उद्धार के सन्देश को ग्रहण करने के पश्चात बपतिस्मा के लिए कोई देरी नहीं की गई | उसी दिन, उन्हें बपतिस्मा दिया गया |

ख. फिलिप्पुस के प्रचार के प्रति सामरियों की प्रतिक्रिया :

प्रेरितों का काम 8:12 में लिखा है, “परन्तु जब उन्होंने फिलिप्पुस का विश्वास किया जो परमेश्वर के राज्य और यीशु के नाम का सुसमाचार सुनाता था तो लोग, क्या पुरूष, क्या स्त्री बपतिस्मा लेने लगे ।” 

फिलिप्पुस के द्वारा प्रचार किये गए सन्देश पर अर्थात “परमेश्वर के राज्य और यीशु के नाम का सुसमाचार” पर उनके द्वारा विश्वास करने के तुरंत पश्चात बपतिस्मा का काम हुआ |

ग. कुरनेलियुस और परिवार का बपतिस्मा :

जब पतरस ने कुरनेलियुस और उसके परिवार को सुसमाचार का प्रचार किया, तो सुसमाचार के सन्देश को ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने तुरंत बपतिस्मा लिया | जब उनके द्वारा सुसमाचार के सन्देश  को ग्रहण कर लिया गया तब प्रेरितों के काम 10:47 – 48 में पतरस, बपतिस्मा लेने की आवश्यकता की पुष्टि करते हुए दिखाई देता है, 47 इस पर पतरस ने कहा; क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि ये बपतिस्मा न पाएं, जिन्हों ने हमारी नाईं पवित्र आत्मा पाया है?  48 और उस ने आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह ने नाम में बपतिस्मा दिया जाए |”

घ. फिलिप्पी में लुदिया और दरोगा का बपतिस्मा :

प्रेरितों के कम 16:14–15 में हम पढ़ते हैं कि कैसे परमेश्वर ने लुदिया नामक एक महिला का उद्धार किया और कैसे उसने तुरंत बपतिस्मा के लिए समर्पण किया :

“14 … प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर चित्त लगाए। 15 और जब उस ने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उस ने बिनती की, कि यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो; और वह हमें मनाकर ले गई |’’

ध्यान दीजिए कि स्पष्ट रूप से लिखा है कि उसका बपतिस्मा, उसक एड्वारा पौलुस के सन्देश को स्वीकार करने के पश्चात हुआ |

फिर उसी अध्याय में हम आगे पढ़ते हैं कि कैसे परमेश्वर ने उस दरोगा को बचाया जो पौलुस की उस समय निगरानी कर रहा था, जब पौलुस जेल में बंद था और कैसे सुसमाचार को स्वीकार करने के पश्चात वह उसने बपतिस्मा लिया | पूरी घटना प्रेरितों के काम 16:16–34 में लिपिबद्ध है |

पहले, दरोगा ने पौलुस और सीलास से पूछा, “30 हे साहिबो, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूं? 31 उन्होंने कहा, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा। 32 और उन्होंने उस को, और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया। ” यहाँ स्पष्ट रूप से लिखा है, पौलुस और सीलास ने  “उस को, और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया |” 

फिर, हम आगे पढ़ते हैं : “33 और रात को उसी घड़ी उस ने उन्हें ले जाकर उन के घाव धोए, और उस ने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया।”

कोई पूछ सकता है, “ ऐसा तो नहीं लिखा है कि उन्होंने बपतिस्मा लेने से पहले विश्वास किया | ” परन्तु यदि हम अगले आयत को सावधानी से देखें, तो हमें दिखेगा कि उन्होंने बपतिस्मा लेने से पहले अवश्य विश्वास किया था | “34 और उस ने उन्हें अपने घर में ले जाकर, उन के आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्द किया |” न केवल दरोगा ने विश्वास किया, परन्तु पाठ में आगे लिखा है, “सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास” किया !

इस प्रकार एक बार फिर, सुसमाचार पर विश्वास करने के पश्चात बपतिस्मा लेने का प्रमाण हमें मिलता है ! रोचक बात है कि कुछ आयत पहले इस बात को बताया गया है कि यह घटना “मध्यरात्रि” को घटित हुई ( प्रेरित 16:25 ) ! उन्होंने मध्यरात्रि को बपतिस्मा लिया ! परन्तु इस बात से पौलुस और दरोगा के घराने को कोई फर्क नहीं पड़ा |  सच्चा विश्वास हमेशा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना चाहता है, और वह भी, बिना देर किए ! 

ङ . इफिसुस में बपतिस्मा 

प्रेरितों के काम 19:1–7 में प्रेरितों के काम में लिपिबद्ध अंतिम बपतिस्मा का विवरण है | इफिसुस में पौलुस ने कुछ ऐसे लोगों के समूह को प्रचार किया जो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के चेले थे | पौलुस के द्वारा उद्धार का सन्देश सुनने पर उन्होंने प्रतिक्रिया दिखाई और जल के बपतिस्मे द्वारा अपनी आज्ञाकारिता का प्रदर्शन किया – “5 यह सुनकर (अर्थात, पौलुस द्वारा उद्धार का सन्देश ) उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा लिया” (प्रेरितों के काम 19:5) | 

हालांकि यह आयत सीधे – सीधे नहीं बताती है कि उन्होंने सुसमाचार को स्वीकार किया, परन्तु यह सच्चाई इस आयत में अवश्य बताई गयी है कि उन्होंने सन्देश को सकारात्मक ढंग से स्वीकार किया, क्योंकि लिखा है, “यह सुनकर” | तो एक बार फिर, लोगों के द्वारा सुसमाचार सन्देश को सुनने  और उस पर विश्वास करने के पश्चात बपतिस्मा लिया गया |

उपरोक्त सभी 5 उदाहरणों से, यह स्पष्ट है कि बपतिस्मा ने सुसमाचार की वास्तविक स्वीकृति का पालन किया। जबकि बपतिस्मा किसी को नहीं बचाता, यह हमेशा बचाने वाले सच्चे विश्वास का पालन करता है! तो, यह उद्धार के साथ पानी के बपतिस्मे का संबंध है।

6. नवजात बच्चों के बपतिस्मे के बारे में क्या शिक्षा है?

चूंकि नया नियम इस बात को बहुत अच्छे से स्पष्ट करती है कि बपतिस्मा से पहले एक व्यक्ति को अवश्य ही व्यक्तिगत रूप से मन फिराना चाहिए और मसीह पर विश्वास करना चाहिए, इसलिए नवजात बच्चों के बपतिस्मे की पूरी प्रक्रिया ही बाईबल अनाधारित है | एक नवजात बच्चा कैसे मन फिरायेगा और विश्वास करेगा ? सम्पूर्ण बाईबल में नवजात बच्चों को बपतिस्मा देने की एक भी आज्ञा नहीं है और न ही नवजात बच्चों को बपतिस्मा देने का एक भी स्पष्ट ब्यौरा है | कुछ लोग यह व्याख्या करते हैं, कि जिस प्रकार पुराना नियम में खतना के द्वारा एक नवजात “ वाचा परिवार ” का सदस्य बनता था, उसी प्रकार नया नियम में एक नवजात, बपतिस्मे के द्वारा “ वाचा परिवार ” का सदस्य बनता है | इस प्रकार के दृष्टिकोण के साथ समस्या यह है कि बाईबल में कहीं पर भी ऐसा नहीं लिखा है |

बल्कि इसके विपरीत, बाईबल स्पष्ट रूप से कहती है कि जल का बपतिस्मा केवल उनके लिए है जिन्होंने सुसमाचार को समझा है और अपने पापों की क्षमा के लिए मन फिराने और केवल प्रभु यीशु पर विश्वास करने के द्वारा सुसमाचार को ग्रहण किया है | जिन्होंने ऐसा किया है, उनके लिए सबसे पहली आज्ञा है, डूब के द्वारा जल का बपतिस्मा; और इसका पालन बिना देरी किए होना चाहिए ! इस बात के पवित्रशास्त्र में जबरदस्त प्रमाण हैं, और हमने इस लेख में यह देख लिया है |

अंतिम विचार  

मैं आशा करता हूँ कि पाठकगण जल के बपतिस्मे के अभिप्राय के महत्व को देख पाए | शैतान इस सरल बात को उलझाना चाहता है | क्यों ? क्योंकि, शैतान चाहता है कि विश्वासीगण, मसीही जीवन के आरंभ से ही अनाज्ञाकारी बनें | जब वह उद्धार को नहीं रोक पाता है, तब वह विश्वासियों को इस प्रथम और आधारभूत आज्ञा को न मानने की परीक्षा में डालकर कमजोर करता है | जब वह इस क्षेत्र में विश्वासियों को आज्ञा न मानने के लिए तैयार कर लेता है, तो वह उन्हें दूसरे क्षेत्रों में आज्ञा न मानने के लिए भी आसानी से तैयार कर सकता है ! तो, यह है, उसकी योजना ! 

साथ ही साथ, बपतिस्मा, एक अच्छा परीक्षण है, जिससे पता चलता है कि क्या एक नया विश्वासी यीशु के पीछे चलने की कीमत चुकाने को इच्छुक है | यदि एक व्यक्ति जल के बपतिस्मे के द्वारा “ यीशु को प्रभु के रूप में ” स्वीकार करने की सार्वजनिक घोषणा करने से इंकार करता है, तो संभावना है कि वह व्यक्ति सच्चे रूप से मन फिराकर, यीशु के पास नहीं आया है |   इसीलिए, बपतिस्मा यह देखने के लिए एक बेहतरीन परीक्षण हो सकता है कि क्या किसी का ह्रदय सही में रूपांतरित हुआ है, अर्थात, क्या वह व्यक्ति एक सच्चा मसीही है, एक ऐसा व्यक्ति जिसने सचमुच में नया जन्म पाया है और पापों से फिरकर जो यीशु के पास आया है |

कुछ लोग जिन्होंने आरंभ में ही बपतिस्मा ले लिया था, इस बात को जानने के लिए ही संघर्ष करते रहते हैं कि अपने बपतिस्मे से पहले क्या उन्होंने सचमुच में मन फिराकर यीशु पर विश्वास किया था | यह एक सामान्य उलझन है, विशेषकर उनके साथ यह होता है, जिनका जन्म और पालन – पोषण मसीही घर में हुआ हो | वे इस बात को जानते हैं कि वर्तमान में वे प्रभु यीशु पर विश्वास करते हैं और वह उनके जीवन का स्वामी है और वे उसके हैं |

परन्तु वे अपने बपतिस्मे के समय के अपने मनफिराव और विश्वास की असलियत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं | इस अनिश्चितता के पीछे का कारण यह हो सकता है कि कई वर्षों तक पापमय जीवन जीने के बाद, अब वर्तमान में वे यीशु की आज्ञाओं का पालन कर रहे हैं | 

अनाज्ञाकारिता के समय को मात्र “ विश्वास से पीछे हटना ” कहने के स्थान पर मैं ऐसे व्यक्ति से आग्रह करूँगा कि वह अपने बपतिस्मे का आँकलन करे | यह बिलकुल हो सकता है कि उसके बपतिस्मा लेने से पहले उसका सच्चा उद्धार नहीं हुआ था | हो सकता है कि वह एक भावनात्मक निर्णय हो, या फिर परिवार या कलीसिया के दबाव में, या दूसरे मित्रों को बपतिस्मा लेते देखने पर उत्पन्न दबाव के कारण उसने ऐसा किया हो | 

ऐसी घटनाओं में प्रश्न यह उठता है: क्या मुझे फिर से बपतिस्मा लेना चाहिए ?  इसका उत्तर है, “यदि आपने नया नियम में दी गयी शिक्षा के अनुसार बपतिस्मा नहीं किया है, अर्थात, वास्तविक मंफिराव और यीशु पर विश्वास के पश्चात, तो फिर आपको अवश्य ही फिर से बपतिस्मा लेना चाहिए और वह भी डूब का बपतिस्मा | आपके पहले बपतिस्मा का कोई अर्थ नहीं है, फिर चाहे वह डूब का ही बपतिस्मा क्यों न रहा हो |”

तो आपने देखा, जल का बपतिस्मा का अर्थ केवल जल में डूबने की एक सरल प्रक्रिया नहीं है | हाँ, जल के बपतिस्मे को एक रीति – विधि / परम्परा के रूप में देखा जा सकता है | तौभी, इस पवित्र आज्ञा की स्थापना करते समय हमारे प्रभु का अभिप्राय ऐसा नहीं था | प्रभु की प्रत्येक आज्ञा का पालन आनंदित ह्रदय से किया जाना चाहिए, बाध्यता से नहीं | 1 शमूएल 16:7 में प्रभु द्वारा शमूएल को कही गई बात को स्मरण रखना अच्छा होगा, “मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है” |  यह जानना आनंददायक बात है कि प्रभु मन को देखता है |  परन्तु इस बात को जानना भयभीत करने वाला विचार भी है कि वह हमारे ह्रदय और मन को परखता है ( प्रकाशितवाक्य 2:23 ) | 

यदि हमारा विश्वास सच्चा होगा, तो हमारा मनफिराव भी सच्चा होगा | झूठा मंफिराव केवल पाप के दुष्परिणाम (पाप के कारण आने वाले दंड ) से डरता है, जबकि सच्चा मनफिराव पाप (करने ) से ही डरता है | सच्चा मनफिराव जानता है कि पाप क्या है, और यह जानकर पाप से घृणा करता है – पाप है, एक पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध अपराध | इस बात की जानकारी कि पाप बुरा है और परमेश्वर पाप से घृणा करता है, एक सच्चे मनफिराए हुए व्यक्ति को पाप को  त्यागने के लिए प्रेरित करता है | इस प्रकार, सच्चा मनफिराव पाप को त्यागता है और पूर्ण समर्पण में होकर यीशु की ओर मुड़ता है |

अंत में, इस महत्वपूर्ण विषय के संबंध में, मैं स्वयं यीशु मसीह के मुख से निकले दो आयतों को उद्धृत करने की अनुमति चाहूँगा :

लूका 6:46 “जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्यों मुझे हे प्रभु, हे प्रभु, कहते हो ?”

मत्ती 10:32 -33 “ 32 जो कोई मनुष्यों के साम्हने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के साम्हने मान लूंगा | 33 पर जो कोई मनुष्यों के साम्हने मेरा इन्कार करेगा उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के साम्हने इन्कार करूंगा।”

ये स्वयं हमारे प्रभु यीशु मसीह के मुख से निकले सामर्थी और गंभीर वचन हैं | मैं हम सबको प्रोत्साहित करना चाहूँगा कि भजनकार के शिक्षा का अनुकरण करें, जो उसने भजनसंहिता 119:60 में कही है, “मैं ने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है |”

प्रिय पाठकगण, यदि आपको बाईबल की शिक्षा अनुसार और सही तरीके से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, तो देर मत कीजिए | नया नियम में इस बात के कोई प्रमाण नहीं है कि किसी विश्वासी ने बपतिस्मा के लिए देर की हो या किसी अवसर की प्रतीक्षा की हो | यह अवश्य ही तुरंत होना चाहिए और ऐसा तुरंत करने के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहिए |

स्मरण रखें कि सच्चे मनफिराव का वैध प्रमाण है परमेश्वर की आज्ञाओं के प्रति आज्ञाकारिता, न केवल बपतिस्मा के मुद्दे पर वरन जीवन के समस्त क्षेत्रों में | आज्ञाकारिता दर्शाने के लिए बपतिस्मा एक अच्छा आरम्भ है : सच्चे मनफिराव के पश्चात जल का बपतिस्मा का लिया जाना , एक आज्ञा है, कोई विकल्प नहीं, और इसका पालन बिना देर किए किया जाना चाहिए ! 

अहंकार ( इतने लम्बे समय बाद बपतिस्मा लेने पर लोग क्या सोचेंगे ), भय ( मेरा परिवार क्या कहेगा या करेगा ), या कोई और कारण आपको प्रभु यीशु की आज्ञा मानने से रोकने न पाये | प्रभु यीशु को प्रसन्न करने के लिए और केवल उसे ही प्रसन्न करने के लिए इस कार्य को करें ! उसकी आज्ञा मानें क्योंकि आप उससे प्रेम करते हैं | वही, वह व्यक्ति है, जो आपको अनंत नर्क से बचाने के लिए आपके स्थान पर क्रूस पर चढ़ गया | वह इस योग्य है कि आप उसके प्रति आनंदपूर्ण, हार्दिक और त्वरित आज्ञाकारिता को दिखायें ! 

प्रभु जो भला है वो हम सब को अपने समस्त आज्ञाओं में चलने की सामर्थ दे, क्योंकि, “क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गों पर चलता है |

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