जब हम संकट में होते हैं तो क्या परमेश्वर हमारी चिंता करता है ?

(English Version: Does God Care When We Are In Trouble?)
एक जवान महिला घोड़े से गिर गई और उसके हाथ और पैर में गंभीर चोटें आईं और उसने पूछा, “ प्रेम का परमेश्वर जिसके नियंत्रण में सब कुछ है, मेरे साथ ऐसा कैसे होने दे सकता है ? उसके पासबान ने कुछ देर के मौन के बाद पूछा, “ क्या जब प्लास्टर चढ़ाया गया तो बहुत दर्द हुआ ? ” उसने उत्तर दिया “ दर्द भयानक था ” |
पासबान ने फिर पूछा, “ क्या तुम्हारे पिता ने डॉक्टर को तुम्हें इतना दर्द देने दिया ? ” उसने उत्तर दिया, “ हाँ, परन्तु ऐसा करना आवश्यक था | ” पासबान ने पुन: पूछा, “ तुमसे प्यार करने के बावजूद तुम्हारे पिता ने डॉक्टर को तुम्हें इतना दर्द देने दिया या इसका कारण ही यही था कि वह तुमसे प्यार करते हैं ? ” अब उसने चौंकते हुए प्रतिक्रिया दी, “ आप यह कहना चाहते हैं कि परमेश्वर मुझसे प्रेम करते हैं और इसीलिए उन्होंने मुझे चोट लगने दिया ? ”
पासबान ने सहमति में अपनी गर्दन हिलाई और कहा, “ परमेश्वर की ओर से ये पाँच शब्द तुम्हें साँत्वना दें, ‘यह मेरी ओर से है ’ | वे काले बादल में सफ़ेद रेखाओं के समान आशा प्रदान करें वाले हों | यह तुम्हारा ‘दुर्भाग्य’ नहीं है | परमेश्वर ने इस परीक्षा को सोच-समझकर रखा है | यदि तुम उसकी संतान हो तो वह तुम्हें किसी बेहतर सेवा के लिए तैयार कर रहा है | ”
शेक्सपीयर ने कहा है, “बीमारी में मुझे ज्यादा यह नहीं पूछना चाहिए, ‘ क्या मेरा दर्द ठीक हो रहा है ? बल्कि पूछना चाहिए, क्या मैं इस दर्द के कारण ठीक हो रहा हूँ ?’ ” इसी प्रकार से मसीहियों को ‘मैं इस परीक्षा से कब निकलूँगा ?’ पूछने के स्थान पर, पूछना चाहिए, ‘क्या मैं इस परीक्षा के कारण बेहतर हो पा रहा हूँ ?’ दुःख की बात है कि कई मसीही ऐसी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं | वे प्रश्न पूछते हैं, “जब मैं संकट में हूँ तो क्या परमेश्वर मेरी चिंता करता है ? ”
बाईबल के दृष्टिकोण से इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, आईये मरकुस 4:35-41 में प्रभु यीशु मसीह द्वारा आँधी को शांत करने वाले सुपरिचित घटना को देखें और कुछ सच्चाईयों को सीखें |
३५ उसी दिन जब साँझ हुई, तो उसने चेलों से कहा, “ आओ, हम पार चलें |”
३६ और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ और भी नावें थीं |
३७ तब बड़ी आँधी आई, और लहरें नाव पर यहाँ तक लगीं कि वह पानी से भरी जाती थी |
३८ पर वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था | तब उन्होंने उसे जगाकर उससे कहा, “ हे गुरु, क्या तुझे चिंता नहीं कि हम नष्ट हुए जाते हैं ? ”
३९ तब उसने उठकर आँधी को डाँटा , और पानी से कहा, “ शांत रह, थम जा ! ” और आँधी थम गई और बड़ा चैन हो गया;
४० और उनसे कहा, “ तुम क्यों डरते हो ? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं ? ”
४१ वे बहुत ही डर गये और आपस में बोले, “ यह कौन है कि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं ? ”
गलील में सेवकाई के एक व्यस्त दिन के बाद, प्रभु यीशु ने अपने चेलों को गलील छोड़कर गलील की झील के उस पार गिरासेनियों के देश में चलने की आज्ञा दी ( 35-36 )| वे यात्रा में ही थे कि बड़ी आँधी ने उन्हें आ घेरा (37) | चेले भयभीत हो उठे और प्रभु यीशु के पास भागे | प्रभु यीशु तब सो रहे, उन्होंने उसे जगाकर पूछा कि क्या उसे उनकी चिंता नहीं थी (38) |प्रभु यीशु उठे, आँधी को शांत किया और चेलों को उनके विश्वास की कमी के कारण डाँटे (39-40) |अलौकिक शक्तियों के ऊपर प्रभु यीशु के सामर्थ को देखकर चेले और भी अधिक डर गये (41) |
यह घटना अलौकिक शक्तियों के ऊपर प्रभु यीशु के सामर्थ को तो बताती ही है, परन्तु साथ ही साथ परीक्षाओं और प्रत्येक विश्वासी के जीवन में परीक्षाओं के दौरान परमेश्वर द्वारा देखभाल से संबंधित 4 सच्चाईयों को भी सिखाती हैं |
1. मसीहियों को परीक्षाओं से छूट नहीं है (पद 35-37)
क्या प्रभु यीशु को मालूम था कि आँधी आ रही थी ? बेशक, वे जानते थे ! तौभी उन्होंने चेलों को आँधी के मध्य में जाने दिया ! आँधी चेलों के लिए उस दिन के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का एक हिस्सा था |
कई लोग सोचते हैं कि आँधी केवल अनाज्ञाकारिता के कारण आती है, परन्तु ऐसा हमेशा नहीं होता है | यह सच है कि योना अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण आँधी में फँसा था | परन्तु चेले यहाँ पर प्रभु की आज्ञा मानने के कारण फँसे थे ! इन सब चेलों ने प्रभु के पीछे चलने के लिए अपने घरबार और व्यवसाय को छोड़ दिया था और तब भी उन्हें कई परीक्षाओं का सामना करना पड़ा | यह हमें अय्यूब की याद दिलाता है, जो धर्मी होने बावजूद कई परीक्षाओं से गुजरा (अय्यूब 1:8;2:3) |
प्रभु के प्रति आज्ञाकारिता और प्रभु की सेवा परीक्षाओं से बचने की गारण्टी नहीं देते हैं | मसीही होने के नाते हमें यह समझना होगा कि परमेश्वर हमें हमेशा परीक्षाओं से नहीं बचायेंगे परन्तु वे परीक्षाओं के मध्य हमारी रक्षा करेंगे | कई बार वे आँधी को शांत करेंगे | कई बार वे आँधी को भड़कने देंगे और अपने संतान को शांत करेंगे | परिणाम की परवाह न करते हुए, आईए इस बात को स्मरण रखें, “ आँधी के मध्य में मसीह के साथ नाव पर होना, मसीह के बिना किनारे पर रहने से कहीं उत्तम है ! ”
2. ऐसा प्रतीत हो सकता है कि परीक्षाओं के दौरान प्रभु अनुपस्थित हैं (38)
भजनकार ने पुकार लगाई, “ हे यहोवा तू क्यों दूर खड़ा रहता है ? संकट के समय में क्यों छिपा रहता है ? ” (भजन 10:1) और “ हे प्रभु जाग ! तू क्यों सोता है ? उठ! हम को सदा के लिए त्याग न दे ” (भजन 44:23) |
इसी प्रकार से चेलों के परीक्षा के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ मानो प्रभु यीशु उदासीन थे और उन्हें उनकी कोई चिंता नहीं थी, और इस बात ने उन्हें यह पुकारने को प्रेरित किया, “हे गुरु, क्या तुझे चिंता नहीं कि हम नष्ट हुए जाते हैं ?” दूसरे शब्दों में कहें तो “ परमेश्वर यदि आप मुझे प्रेम करते हैं तो फिर आप मुझे इस परीक्षा से होकर क्यों गुजरने दे रहे हैं? आप देख भी रहे हैं कि नहीं ? ”
इसका उत्तर यह है : परमेश्वर की आँखें सदैव हम पर लगी रहती हैं | वह हमें कभी भी अकेला नहीं छोड़ते हैं परन्तु हमसे चाहते हैं कि हम अपने जीवन के सबसे अंधकारपूर्ण समय में भी दृढ़ बने रहें और उस पर भरोसा रखें |
यशायाह 50:10 हमें स्मरण दिलाता है, “ तुम में से कौन है जो यहोवा का भय मानता और उसके दास की बातें सुनता है, जो अंधियारे में चलता हो और उसके पास ज्योति न हो ? वह यहोवा के नाम का भरोसा रखे, और अपने परमेश्वर पर आशा लगाए रहे | ”
3. परीक्षाएं हमें परमेश्वर के समीप जाने में सहायता करती हैं (38) |
उनके कमजोर विश्वास के बावजूद आँधी चेलों को मसीह के पास खींच लाया | हालाँकि जिस ढंग से वे उसके पास आये वह गलत था, तौभी वे अंतत: उसके पास आये | प्रभु ने उन्हें इसलिए नहीं डाँटा कि उन्होंने अपनी बिनती से उसके आराम में व्यवधान उत्पन्न किया | बल्कि उन्हें इसलिए डाँटा कि वे घबराये हुए और भयभीत थे | यह बात सच है कि परीक्षाएं किसी व्यक्ति को कठोर करके परमेश्वर से दूर ले जा सकती हैं | तौभी, जहाँ तक से परमेश्वर के संतान की बात है, परीक्षाएं हमेशा उसे परमेश्वर के पास खींचती हैं | परीक्षाएं परमेश्वर के वचन के प्रति प्रेम में बढ़ने में और प्रार्थना में उसके साथ और अधिक सार्थक समय बिताने में सहायता करती हैं |
4. परीक्षाएं परमेश्वर के गुणों के प्रति हमारे ज्ञान में वृद्धि करती हैं (39-41) |
इस अनुभव से होकर गुजरने के बाद चेले परमेश्वर के प्रेम और समस्त चीजों के ऊपर उसके सामर्थ को और अधिक अच्छे से समझ पाये | परीक्षाओं से गुजरकर हम भी इसी प्रकार की समझ में बढ़ सकते हैं | ये सभी बहुमूल्य सच्चाईयाँ प्रगट करती हैं कि परमेश्वर अपने संतानों की चिंता हर समय करते हैं |
अब, हम यहाँ पर खड़े हैं | परीक्षाओं और प्रत्येक विश्वासी के जीवन में परीक्षाओं के दौरान परमेश्वर द्वारा देखभाल से संबंधित 4 सच्चाईयाँ |
मसीही बनना एक संकट-मुक्त जीवन की गारण्टी नहीं देता है | जैसा कि किसी लेखक ने लिखा है :
“शैतान ने बड़ी चालाकी से हमारा ध्यान हमारे मुख्य संदेश से हटा दिया है| इस सुसमाचार का प्रचार करने के स्थानपर कि एक पापी व्यक्ति मसीह में धर्मी बनाया जा सकता है और वह आनेवाले क्रोध से बच सकता है, हमने एक अलग ही “ सुसमाचार ” को अपना लिया है जो इस बात को सिखाती है कि परमेश्वर द्वारा हमें बचाने के पीछे प्राथमिक उद्देश्य उस “ अद्भुत योजना ” से परदा हटाना है जिसमें हमारे जीवन के समस्याओं का समाधान मिलता है, मसीह में हमें सुख मिलता है और हमें इस जीवन की परेशानियों से मुक्ति मिलती है |
जो मसीह में सुख ढूँढने वाले द्वार से होकर विश्वास जीवन में प्रवेश करते हैं वे सोचेंगे कि उनके जीवन में जो सुख है वह परमेश्वर के प्रेम का प्रमाण है | जब परीक्षाएं आयेंगी और उनका सुख जाता रहेगा तब वे यह भी सोचेंगे कि परमेश्वर ने उन्हें छोड़ दिया है | परन्तु जो क्रूस को उसके प्रेम के चिन्ह के रूप में देखते हैं वे अपने प्रति उसके स्थिर प्रेम पर कभी संदेह नहीं करेंगे | ”
परमेश्वर के संतानों को यह विश्वास करने की आवश्यकता है कि जीवन की आँधियों के मध्य भी परमेश्वर इस योग्य है कि हम उस पर सम्पूर्ण ह्रदय से भरोसा रख सकें | यदि हम मसीह पर शैतान और नरक से छुटकारे के लिए भरोसा कर सकते हैं तो फिर हमारे दैनिक जीवन की समस्याओं से छुटकारे के लिए उस पर भरोसा करना हमें कठिन क्यों लगता है ? विश्वास भय को दूर भगाता है और भय विश्वास को | हमें अपने विश्वास में दृढ़ता की कमी के लिए पश्चाताप करना चाहिये और पुकारना चाहिये, “ मेरे अविश्वास का उपाय कर ! ” (मरकुस 9:24)| जब हम इस प्रकार से पुकारेंगे तो हमारा अच्छा प्रभु हमारे सबसे अंधकारमय क्षणों में भी अपने पवित्र आत्मा के द्वारा हमें इन वचनों की सच्चाई का अनुभव करने में सहायता करेंगे, “ जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए है, उसकी तू पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है | ” (यशायाह 26:3) |
आईये स्मरण रखें : इस पद के अनुसार आज्ञाकारिता के कारण आने वाली परीक्षाएं सदैव मसीह की उपस्थिति का आश्वासन देती हैं ! और जब मसीह नाव में है तो हम सही में आँधी को देखकर मुस्करा सकते हैं और हियाव से कह सकते हैं, “ हाँ, मेरा प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह मेरी तब भी चिंता करता है जब मैं संकट में हूँ ! ”