सुखद विवाह के लिए परमेश्वर का सिद्धांत : 1+1 = 1

Posted byHindi Editor April 18, 2023 Comments:0

(English Version: God’s Formula For A Happy Marriage)

एक आदमी, बीमारी के लक्षण दिखने के कई सप्ताह पश्चात, डॉक्टर के पास गया | सावधानी पूर्वक जाँच करने के बाद, डॉक्टर ने उसकी पत्नी को एक तरफ बुलाया और कहा, “तुम्हारा पति एक दुर्लभ प्रकार का एनीमिया है | इलाज न करने पर वह 3 महीने में मर जायेगा | परन्तु, अच्छी बात यह है कि समुचित पोषण से यह ठीक हो सकता है | तुम्हें, हर दिन सुबह जल्दी उठाना होगा और उसे भारी नाश्ता देना होगा | उसे प्रतिदिन घर पर बना हुआ दोपहर का भोजन ( लंच ), और  शानदार रात का भोजन ( डिनर ) चाहिए | केक, पाई और घर पर बने हुए ब्रेड इत्यादि , लगातार मिलने से भी, उसकी जिन्दगी लम्बी होने में सहायता मिलेगी | एक और बात | उसकी प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर है, इसलिए तुम्हारा घर हमेशा साफ़ – सुथरा होना चाहिए | क्या तुम्हें कुछ पूछना है ?”  पत्नी ने कुछ भी नहीं पूछा |

फिर डॉक्टर ने पूछा “ये खबर उसे तुम दोगी या मैं दूँ ?” पत्नी ने कहा, “मैं दूँगी” | वह अन्दर कमरे में गई | अपनी बीमारी की गंभीरता को भाँपते हुए, पति ने उससे पूछा, “कुछ बुरी खबर है, है ना ? पत्नी ने सहमति में सर हिलाया, उसके आँखों से आँसू बहने लगे | उसने पूछा, “मुझे क्या होने वाला है ?” पत्नी ने सिसकते हुए कहा, “डॉक्टर का कहना है कि आप  तीन महीने में मरने वाले हो !”

हालांकि, हम इस प्रकार के चुटकुलों पर हँस सकते हैं, तौभी कई लोग विवाह को इसी प्रकार से देखते हैं | जब मुश्किल बढ़ जाए, तो बस, अलग हो जाओ ! परन्तु, क्या मसीहियों को, विवाह को इसी ढंग से देखना चाहिए ? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या परमेश्वर, विवाह को इसी ढंग से देखता है ? यह दृष्टिकोण, बाईबल के अनुसार नहीं है !

उत्पत्ति 2:24 बताता है कि विवाह – क्रिया के द्वारा पुरुष और स्त्री “मिल” जायेंगे  (जुड़ या चिपक जायेंगे) और “एक तन” बन जायेंगे |  “एक तन” और “मिलना” शब्द, एक साथ मिलकर उस सुंदर चित्र को हमारे सम्मुख रखते हैं, जो परमेश्वर के मन में एक सफल विवाह के लिए था | एक ऐसे समय में जब “बिना किसी गलती का तलाक ” प्रचलन में है, परमेश्वर का दृष्टिकोण है, “मिलना और एक तन बनना”  | हमें पवित्रशास्त्र यह भी स्मरण दिलाता है कि एक पति और पत्नी के बीच का वैवाहिक संबंध, मसीह और कलीसिया के मध्य के संबंध को चित्रित करता है (इफिसियों 5:32) | 

इस प्रकार, विवाह एक शारीरिक रिश्ते से कहीं बढ़कर है | जिस प्रकार, मसीह और उसकी कलीसिया के द्वारा परमेश्वर की महिमा होनी चाहिए ( इफिसियों 3:21 ), उसी प्रकार परमेश्वर के लोगों के विवाह के द्वारा भी परमेश्वर को महिमा मिलनी चाहिए ! ऐसा तभी संभव है, जब पति और पत्नी दोनों ही, अपने जीवन के समस्त क्षेत्रों में मसीह के अधिकार को सम्पूर्ण मन से स्वीकार करें – विवाह का क्षेत्र भी इसमें सम्मिलित है | पति और पत्नी दोनों को ही मिलकर एक उद्देश्य के साथ जीना चाहिए और सहकर्मी के समान, अपने जीवन में प्रभु यीशु की महिमा के लिए प्रयास करना चाहिए |

परन्तु, पाप ऐसा होने से रोकता है | व्यभिचार, अहंकार, क्षमा करने की कमी, पुरानी गलतियों का हिसाब रखना, स्वार्थपूर्ण कार्य, धन का लोभ इत्यादि पाप आज विवाह टूटने के प्रमुख कारण हैं | यह संसार भी दृढ़ विवाह का समर्थक ( मित्र ) नहीं है | यह संसार कहता है, “यदि बात नहीं बन रही है, तो आगे बढ़ो,” या “आप तलाक लेने के लिए विवाह करते हैं और विवाह करने के लिए तलाक लेते हैं,” या “तुम्हें अपनी खुशी के लिए जीने की आवश्यकता है,” इत्यादि | आमतौर पर देखें तो, गैर – बाईबल आधारित शिक्षा देने वाली कलीसिया भी कोई अधिक उपयोगी प्रतीत नहीं होती है, ऐसी कलीसिया जो मसीह का अनुसरण करने के कर्तव्य के रूप में  ‘आत्मत्याग’ के स्थान पर ‘आत्मसम्मान’ पर ध्यान केन्द्रित करती है |   

इन सारे आक्रमणों के मध्य, यह लेख सोच – विचार के लिए 10 बातें बताकर, उनकी सहायता करने का प्रयास करती है, जो विवाह के संबंध में परमेश्वर की शिक्षाओं का पालन करना चाहते हैं | यदि हम अपने जीवन में परमेश्वर को प्रथम स्थान पर रखने के लिए परिश्रम करें तो, वह हमें एक कठिन विवाह में भी बने रहने के लिए सामर्थ देगा |

1. परमेश्वर के वचन से भर जायें   

कुलुस्सियों 3:16 हमसे कहता है कि “मसीह के वचन को अपने ह्रदय में अधिकाई से बसने दो” | भजनसंहिता 1:1-2 हमें स्मरण दिलाता है कि परमेश्वर की आशीष उन पर होती है, जो उसकी व्यवस्था से “प्रसन्न” रहते और “रात दिन उस पर ध्यान करते रहते हैं” |  यही कारण है कि हमें अनिवार्य रूप से प्रत्येक दिन पवित्रशास्त्र में पर्याप्त समय व्यतीत करना चाहिए | यदि हम परमेश्वर को सम्मान देने वाले विवाह को पाना चाहते हैं तो हमें इस देह, शैतान और संसार की ओर से आ रही आवाजों का प्रत्युत्तर देने के लिए निरंतर परमेश्वर से सुनना पड़ेगा | इफिसियों 5:21–32 और 1 कुरिन्थियों 13 जैसे बाईबल भाग पर बार – बार मनन करना भी एक स्वस्थ विवाह के लिए महत्वपूर्ण है | 

2. अपने जीवनसाथी से सच्चा प्रेम करना सीखिए 

इफिसियों 5:25 में पतियों को आज्ञा दी गई है, “अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिए दे दिया |” तीतुस 2:4 पत्नियों को आज्ञा देता है, कि वे अपने “पतियों से प्रीति” रखें | यहाँ तक कि “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख” सिखाने वाली आज्ञा पर विचार करते समय भी, एक व्यक्ति को यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि उसका सबसे करीबी पड़ोसी उसका जीवनसाथी ही है !

हाँ, हमारा जीवनसाथी संसार का सबसे सिद्ध व्यक्ति नहीं है, परन्तु हमें यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि – हम भी सिद्द नहीं हैं ! हम उद्धार पाए हुए ऐसे पापी हैं जो अब भी इस पापमय देह में रहते हैं और जब तक यीशु मसीह दुबारा न आ जाए तब तक पाप के साथ जीवन – पर्यन्त  युद्ध में लगे हुए हैं | अतः, हमें यह स्मरण रखना होगा कि जैसे यह हमारे लिए संघर्षपूर्ण है, वैसे ही हमारे जीवनसाथी के लिए भी यह संघर्षपूर्ण है | तौभी, यह जानना  सान्त्वनादायक है कि परमेश्वर त्रुटिपूर्ण असिद्ध लोगों से प्रेम करता है और साथ ही उन्हें त्रुटिपूर्ण लोगों से प्रेम करने की सामर्थ देने की प्रतिज्ञा भी करता है (1 थिस्सलुनीकियों 4:9) |

3. यौन पवित्रता का अनुसरण करें 

इब्रानियों 13:4 में यह आज्ञा दी गई है : विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और विवाह बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्‍वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा | कई विवाह अश्लील फिल्मों और व्यभिचार के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं | इसीलिए इस बात पर निरंतर निगरानी रखी जानी चाहिए कि हमारी आँखें क्या देख रही हैं और हमारा ह्रदय गुप्त रूप से किस बात का अभिलाषी है (मत्ती 5:28–30) | 

पापमय विचार, आज नहीं तो कल पापमय कार्य की ओर ले जायेंगे | हमें इस बात को स्मरण रखना है कि “ थोड़ी बहुत छेड़छाड़ ” जैसी कोई चीज नहीं है | परमेश्वर- प्रदत्त जीवनसाथी के अलावा किसी और की अभिलाषा करना एक पाप है | इसीलिए एक विश्वासी को कभी भी ऐसी बात या कार्य नहीं करनी चाहिए, या ऐसे कपड़े नहीं पहनने चाहिए जिससे दूसरों को एक गलत सन्देश पहुँचे | इससे अनावश्यक बखेड़े खड़े होते हैं | हमें अवश्य ही हमेशा “यौन अनैतिकता से बचना चाहिए” क्योंकि यह “परमेश्वर की इच्छा” है कि हम “पवित्र रहें” (1 थिस्सलुनीकियों 4:3) |

4. यौन अंतरंगता का अनुसरण करें   

हालाँकि यौन शुद्धता का अनुसरण करना आवश्यक है, परन्तु उसके साथ ही साथ यौन अंतरंगता का अनुसरण करना भी जरूरी है | 1 कुरिन्थियों 7:1–5 में, पौलुस वैवाहिक जोड़ों को यौन अंतरंगता के संबंध में कुछ सच्चाईयों का स्मरण दिलाता है | आयत 2  में वह कहता है, परन्तु व्यभिचार के डर से हर एक पुरूष की पत्नी, और हर एक स्त्री का पति हो |”  इस आयत से स्पष्ट है कि वह यौन अंतरंगता को प्रोत्साहित करता है | वह आयत 3–5 में अपनी बात को जारी रखता है, पति अपनी पत्नी का हक पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का | पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी को | तुम एक दूसरे से अलग न रहो; परन्तु केवल कुछ समय तक आपस की सम्मति से कि प्रार्थना के लिये अवकाश मिले, और फिर एक साथ रहो, ऐसा न हो, कि तुम्हारे असंयम के कारण शैतान तुम्हें परखे | हालांकि इन आयतों का इस्तेमाल पति या पत्नी द्वारा यौनक्रिया की माँग के लिए नहीं किया जाना चाहिए, तौभी ये आयतें एक निस्वार्थ प्रेम के परिवेश में यौन अंतरंगता के अनुसरण पर जोर देती है ! कई विवाह में, एक या दोनों जीवनसाथी अपने शरीर को अपने जीवनसंगी को नहीं सौंपते हैं, कभी व्यस्तता के कारण और कभी कड़वाहट के कारण भी ! एक स्वस्थ विवाह के लिए यह परमेश्वर की योजना नहीं है | दृढ़ विवाह की विशेषता, न केवल यौन शुद्धता है, परन्तु साथ ही साथ यौन अंतरंगता भी | इसीलिए परमेश्वर ने, विवाह – बंध के अन्दर यौन अंतरंगता की अच्छाई को महिमामण्डित करने के लिए बाईबल में एक पूरी पुस्तक को रखा है, जिसे हम श्रेष्ठगीत के नाम से जानते हैं |

5. एक क्षमाशील ह्रदय को विकसित करें  

इफिसियों 4:32 हमें यह शिक्षा देता है : एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो |” अपराध चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, विश्वासी होने के नाते हमें अपने ह्रदय में कभी भी कड़वाहट नहीं रखनी चाहिए और हमें क्षमा करने के लिए हमेशा इच्छुक रहना चाहिए | पुरानी गलतियों के कारण बार – बार मारे गये तानों ने कई विवाह बर्बाद किये हैं |  इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि 1 कुरिन्थियों 13:5 में हमें बताया गया है कि हम “ बुरा न मानें ” (बुरी बातों का लेखा – जोखा न रखें )| कड़वाहट लोगों को दासता की जंजीर में बाँध के रखता है, जबकि क्षमाशील आत्मा का प्रदर्शन उन्हें स्वतंत्र करता है | मसीह द्वारा हमारे पापों की क्षमा का लगातार स्मरण, कड़वाहट पर जय पाने और एक क्षमाशील ह्रदय का अभ्यास करने की कुँजी है |

6. संतुष्ट रहें 

इब्रानियों 13:5 में लिखा है, “तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, “मैं तुझे कभी न छोड़ूँगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा |”  यह रोचक बात है कि बिछौना निष्कलंक रखने की शिक्षा (इब्रानियों 13:4) के बाद इब्रानियों 13:5 आता है, जहाँ संतोष करने की शिक्षा दी गई है | विवाह को बर्बाद करने वाले दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण बातें हैं, यौन पाप और धन का लोभ ! 

धन, कैरियर, और अन्य अस्वस्थ लालसाओं का नौसरन करना कैंसर के समान है जो तेजी से बढ़ता है और विवाह को बर्बाद कर देता है (1 तीमुथियुस 6:6–10) | पति और पत्नी के बीच कई मतभेद गलत बातों का पीछा करने के कारण उत्पन्न होते हैं | याकूब 4:1–3 सब प्रकार के झगड़ों के स्रोत का सही पता बताता है, तुम में लड़ाइयां और झगड़े कहां से आ गए ? क्या उन सुख-विलासों से नहीं जो तुम्हारे अंगों में लड़ते-भिड़ते हैं ? तुम लालसा रखते हो, और तुम्हें मिलता नहीं; तुम हत्या और डाह करते हो, ओर कुछ प्राप्त नहीं कर सकते; तुम झगड़ते और लड़ते हो; तुम्हें इसलिये नहीं मिलता, कि मांगते नहीं | तुम मांगते हो और पाते नहीं, इसलिये कि बुरी इच्छा से मांगते हो, ताकि अपने भोग विलास में उड़ा दो |” 

अतः, यदि कोई व्यक्ति लोभी कार्यों से अपने ह्रदय की रक्षा करे और संतोष का अनुसरण करे तो विवाह को दृढ़ ( मजबूत ) बनाने में उसे सहायता मिलेगी |

7. प्रभु की सेवा मिलकर करें  

वर्षों तक प्रभु की सेवा करने के बाद, अपने जीवन के बिल्कुल अंत समय में भी, यहोशू में  प्रभु की सेवा करने का जोश कभी ख़त्म नहीं हुआ | यहोशू 24:15 में हम उसके पवित्र संकल्प को पढ़ते हैं : “और यदि यहोवा की सेवा करनी तुम्हें बुरी लगे, तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे, चाहे उन देवताओं की जिनकी सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, और चाहे एमोरियों के देवताओं की सेवा करो जिनके देश में तुम रहते हो; परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा की सेवा नित करूंगा |” स बात की परवाह किए बगैर कि उसके चारों ओर के लोग किस लक्ष्य के साथ जी रहे हैं, यहोशू ने प्रभु की सेवा करने के महान लक्ष्य का पीछा करने का संकल्प लिया |

प्रत्येक मसीही जोड़े का लक्ष्य भी यही होना चाहिए, “इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सेवा कर रहा है और कौन पीछे हट गया, हम साथ मिलकर प्रभु की सेवा करेंगे |” यह स्मरण रखना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक मसीही का उद्धार सेवा करने के लिए हुआ है | एक मन से प्रभु की सेवा करने के लिए परिश्रम करने वाला परिवार सचमुच में वैवाहिक आशीष को पायेगा | 

8. दीन  बनो 

नीतिवचन 16:5 कहता है, “सब मन के घमंडियों से यहोवा घृणा करता है; मैं दृढ़ता से कहता हूँ, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे |” जहाँ विवाह में घमण्ड होगा, वहाँ कभी शान्ति नहीं होगी | इसीलिए, पति और पत्नी दोनों के लिए, दीनता का अनुसरण करना, दैनिक और निरंतर प्राथमिकता होनी चाहिए |  सचमुच में परमेश्वर जहाँ “अभिमानियों का सामना करता है”, वहीं, वह “दीनों पर अनुग्रह करता है” (याकूब 4:6) |

क्या आप एक सुखद विवाह चाहते हैं ? इसका उत्तर आपको दीनता के दैनिक अनुसरण में मिलेगा | परमेश्वर हमेशा दीन जन को आशीष देता है क्योंकि दीनता वह पथ है जिस पर मसीह चला, और उसी पथ पर चलने के लिए हम भी बुलाये गये हैं !

9. अपने ह्रदय की रक्षा करें  

नीतिवचन 4:23 कहता है, “सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर, क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है |” इसीलिए ह्रदय को चाहिए, कि वह सब प्रकार के गलत विचारों को आरंभिक चरण में ही मार डाले, और यह न सोचे कि पहले इन्हें बड़ा होने देता हूँ, फिर इनसे निपटूँगा | फिर तो बहुत देर हो जायेगी | याकूब 1:14–15 हमें इस सिद्धांत को स्पष्ट शब्दों में समझाता है, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंच कर, और फंस कर परीक्षा में पड़ता है | फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है |”  

जब बात बुरे विचारों के स्थान पर अच्छे विचारों को विकसित करने की आये तो विवाहित जोड़ों के लिए फिलिप्पियों 4:8 एक उत्कृष्ट आयत है कि उस पर मनन किया जाये (मुखाग्र भी) और नियमित रूप से जीवन अभ्यास में लागू किया जाये :इसलिए, हे भाइयों, जो-जो बातें सत्य हैं, और जो-जो बातें आदरणीय हैं, और जो-जो बातें उचित हैं, और जो-जो बातें पवित्र हैं, और जो-जो बातें सुहावनी हैं, और जो-जो बातें मनभावनी हैं, अर्थात्, जो भी सद्‍गुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो |”  

10. अधिक प्रार्थना करें 

हम स्वयं पर निर्भर रहकर, अपने विवाह को दृढ़ नहीं रख सकते | इस युद्ध को हम अपनी सामर्थ से नहीं जीत सकते | हम अपने विवाह को हल्के में नहीं ले सकते – बल्कि सच कहें तो इसे हल्के में लेने की हिम्मत करने भी नहीं चाहिए | इफिसियों 6:12 हमें स्मरण दिलाता है कि,क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं | हमें अवश्य ही यह समझना चाहिए कि हम निरंतर एक गंभीर और क्रूर युद्ध में सम्मिलित हैं और यह ज्ञान हमें प्रतिदिन हमारे घुटनों पर लाये और हम प्रभु को पुकारते रहें कि वह हमारी रक्षा करे | 

इफिसियों 6:18 हमें आज्ञा देता है, हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो | आत्मा में प्रार्थना करने का सरल अर्थ है, आत्मा के द्वारा प्रगट किए गए  वचन के अनुसार और आत्मा की अधीनता में प्रार्थना करना | प्रभु की सहायता के बिना हमारा विवाह चूर चूर हो जायेगा |  प्रभु यीशु ने साफ़ – साफ़ कह दिया है, “मुझ से अलग होकर  तुम कुछ भी नहीं कर सकते” ( यूहन्ना 15:5 ) |

तो, हमने देख लिया | परमेश्वर की दृष्टि में सही ( पवित्र ) विवाह को विकसित करने के 10 सरल और ( आशा करता हूँ कि ) सहायक सिद्धांत | 

प्रभु की सहायता से, उसकी आत्मा और उसके वचन के द्वारा, प्रत्येक विवाह एक पवित्र विवाह हो सकता है | ऐसा न सोचें कि नए सिरे से आरम्भ करने के लिए बहुत देर हो गयी है | एक ऐसे संसार में जहाँ मसीही लगातार परीक्षाओं के निशाने पर रहते हैं, परमेश्वर ने उन लोगों के लिए अपने अनुग्रह की प्रतिज्ञा की है जो विश्वासयोग्यता से उसके पीछे चलने के इच्छुक हैं | हिम्मत हार जाना आसान है और ऐसा करने का मन करता है | परन्तु परमेश्वर हमें स्पष्ट रूप से उसके साथ अपनी यात्रा में दृढ़ बने रहने के लिए बुलाता है और यह बुलाहट विवाह के क्षेत्र में भी लागू होता है |

संभव है कि इस लेख को पढ़ने वाले कुछ लोगों का वैवाहिक जीवन अभी खतरे में हो | मैं सचमुच में आपसे सहानुभूति रखता हूँ |  संभवतः, आपके स्वयं के बुरे चुनाव के कारण यह स्थिति बनी है | या हो सकता है कि कोई दूसरा कारण हो | कारण, चाहे कुछ भी क्यों न हो, मैं चाहता हूँ कि आप इस विचार में शान्ति पायें : सर्वसामर्थी और सर्वाधिकारी प्रभु के हाथों में सम्पूर्ण नियंत्रण  है | 

यिर्मयाह 32:26-27 में हम परमेश्वर को यह कहते हुए सुनते हैं, मैं तो सब प्राणियों का परमेश्वर यहोवा हूँ ; क्या मेरे लिये कोई भी काम कठिन है ?”  यदि वह चाहे तो आपको इसी क्षण छुड़ा सकता है | परन्तु यदि परमेश्वर की इच्छा यह है कि आप इसमें कुछ और समय तक बने रहें तो फिर उसका विरोध न करें | उसकी योजना के प्रति समर्पित हो जायें और इस परिस्थिति से आपको लेकर चलने के लिए उसके अनुग्रह पर भरोसा करें (2 कुरिन्थियों 12:9) | अपने जीवनसाथी से प्रेम करते रहें | आपका पापमय देह, आपको जो कार्य करने पर विवश कर रहा है, उसे करने के लिए सहमत न हो जायें |

हालांकि, दयालु परमेश्वर ने कुछ परिस्थितियों में तलाक के लिए कुछ बाईबल आधार दिया है, तौभी वह अंतिम विकल्प ही होना चाहिए (मत्ती 5:31–32; मत्ती 19:9; 1 कुरिन्थियों 7:15–16) | एक मसीही को, अपने पाप में पड़े जीवनसाथी को सच्चे मनफिराव की ओर मोड़ने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए | इसमें क्षमा करने की तत्परता सम्मिलित है, यहाँ तक कि व्यभिचार की घटनाओं में भी | हाँ, ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं, जहाँ दुर्भाग्य से तलाक लेने के सिवाय कुछ न किया जा सके | तौभी, ऐसी परिस्थितियों में भी मसीहियों को यह निश्चित करना चाहिए कि विवाह को बनाए रखने के लिए उन्होंने अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर लिया है |

यदि आप पवित्र आत्मा से सहायता माँगेगे, तो वह आपकी सहायता करेगा ! जब आप उस पर भरोसा रखते हैं, तो वह आपको टिके रहने की सामर्थ देता है ! स्वर्ग में, हममें से कोई भी मसीह के लिए दृढ़ बने रहने के कारण नहीं पछतायेगा | बल्कि, हमारा पछतावा यह होगा कि हमें जितनी दृढ़ता दिखानी चाहिए थी, हमने उतनी नहीं दिखाई !  इसीलिए हमें निरंतर अनंतता के बारे में सोचना चाहिए, जिससे हमें धरती पर की अपनी अस्थाई यात्रा के कठिनाईयों के दौरान टिके रहने के लिए सहायता मिलेगी | 

अंत में, एक अंतिम टिप्पणी, सारे विश्वासियों के लिए एक विचार : हमें अपनी रक्षा करनी है, ताकि हम उन लोगों के सम्मुख जिनका तलाक हो गया है या फिर जिन्होंने व्यभिचार किया है, न तो स्वयं को धर्मी समझने लगें और न ही उनके प्रति उदासीन हो जायें | जो लोग अपने वैवाहिक संकल्प में असफल हो गये हैं उन पर पत्थर फेंकने के स्थान पर, हमें प्रेम में होकर उन के पास जाना चाहिए, उन्हें प्रभु के साथ पुनर्स्थापित करने की एक सच्ची अभिलाषा के साथ (गलातियों 6:1) |

प्रभु यीशु ने कहा, परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्‍टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका” (मत्ती 5:28) | हममें से कौन कह सकता है कि हम इस क्षेत्र में दोषी नहीं हैं ? और यह एक कारण ही हमें प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए कि हम उनके प्रति नर्म हो जायें, जो विवाह के क्षेत्र में ठोकर खाए हुए हैं |  

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