पापमय क्रोध और इसका कहर भाग 7: हम पापमय क्रोध से कैसे छुड़ाये जा सकते हैं?

Posted byHindi Editor May 27, 2025 Comments:0

English Version: Sinful Anger – The Havoc It Creates (Part 7)

यह लेख, क्रोध के विषय या ठीक–ठीक कहें तो पापमय क्रोध के विषय को संबोधित करने वाली लेख–श्रृंखला के अंतर्गत भाग 7 है | भाग 1, पापमय क्रोध के बारे में एक सामान्य परिचय था | भाग 2 में प्रश्न #1 पर विचार किया गया: “पापमय क्रोध क्या है?” भाग 3  में प्रश्न #2 पर चर्चा की गई: “पापमय क्रोध का स्रोत क्या है?” भाग 4 में प्रश्न #3 को देखा गया: “पापमय क्रोध के पात्र कौन हैं [किनके ऊपर यह क्रोध किया जाता है]?” भाग 5 में प्रश्न #4 पर चर्चा की गई: “ऐसी कौन–कौन सी सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं जिनसे पापमय क्रोध का प्रदर्शन किया जाता है?”

भाग 6 में प्रश्न #5 पर चर्चा की गई: “पापमय क्रोध के विनाशकारी दुष्परिणाम क्या – क्या हैं?”

और अब इस समापन लेख में हम प्रश्न #6 को देखेंगे:

VI. हम पापमय क्रोध से कैसे छुड़ाये जा सकते हैं?

पापमय क्रोध से छुटकारा चाहने का मुख्य कारण यह है: परमेश्वर हमें ऐसा करने के लिए कहता है! कुछ बाईबल भाग इस सच्चाई को प्रगट करती हैं | कुलुस्सियों 3:8, पर अब तुम भी इन सब को अर्थात क्रोध, रोष, बैरभाव, निन्दा, और मुंह से गालियां बकना ये सब बातें छोड़ दो,” और फिर इफिसियों 4:31 में लिखा है, सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए |”

हालाँकि क्रोध से छुटकारा पाने से रिश्ते खुशहाल हो जायेंगे या फिर इससे मन को शान्ति मिलेगी तौभी ये पापमय क्रोध को दूर करने के प्राथमिक कारण नहीं होने चाहिए | जैसा कि उपरोक्त आयतें दर्शाती हैं, परमेश्वर ने हमें पापमय क्रोध को दूर करने की आज्ञा दी है | और केवल वही एक कारण अपने आप में पर्याप्त होना चाहिए! 

और यदि बाईबल इस पाप को दूर करने की आज्ञा देता है, तो इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर के संतान होने के नाते हम उसके अनुग्रह से इस पाप पर जय पा सकते हैं | अतः, प्रश्न यह है : हम इस पाप पर जय कैसे पाते हैं? 

नीचे 6 सुझाव दिए गये हैं, जो मैं आशा करता हूँ कि इस पाप को मार डालने के हमारे संघर्ष में हमारी सहायता करेंगे | 

1. हमें अवश्य ही इस बात को स्वीकार करना होगा कि हमें क्रोध करने की समस्या है |

मुझे स्मरण आता है कि मैंने एक मनुष्य के बारे में पढ़ा था जो प्रत्येक व्यक्ति से यह बहस करते रहता था कि वह मर चुका था | इसीलिए उसकी पत्नी उसे गलत सिद्ध करने के लिए एक चिकित्सक के पास ले गई | चिकित्सक ने पूछा, “क्या मरे हुए लोगों के देह से खून बहता है?” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “नहीं ” | तब, चिकित्सक ने एक पिन लिया और उस व्यक्ति के हाथ में चुभो दिया और तुरंत ही खून बह निकला | तब चिकित्सक ने उस व्यक्ति से पूछा, “तो, अब तुम क्या सोचते हो?” उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “मुझे लगता है कि मैं गलत था | मरे हुए लोगों के देह से खून बिल्कुल बहता है!”

तो समझा आपने, हम कई बार उस व्यक्ति के समान ही होते हैं | हमारे चारों ओर रहने वाले लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति देख सकता है कि हमें क्रोध करने की समस्या है | परन्तु यदि हम इसे स्वयं नहीं देख पायें तो हम कभी छुटकारा नहीं चाहेंगे | अतः, हमें प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमारी आँखों को खोल दे ताकि हम देख सकें कि क्या हमें क्रोध करने की समस्या है और फिर इस बात को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त रूप से दीन बनें | दाऊद के समान हमें भी अवश्य ही सदैव यह प्रार्थना करनी चाहिए, “23 हे ईश्वर, मुझे जांच कर जान ले! मुझे परख कर मेरी चिन्ताओं को जान ले! 24 और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर!” [भजनसंहिता 139:23-24]|

2. इस पाप से छुड़ाये जाने के लिए हमें गंभीरतापूर्वक अभिलाषा करना चाहिए |  

इस बात को स्वीकार करना एक बात है कि हम किसी समस्या से पीड़ित हैं और उस समस्या से छूट जाने की चाहत रखना बिल्कुल ही अलग बात | पाप से छुटकारा पाना कोई आसान बात नहीं है—फिर चाहे वह कोई भी पाप क्यों न हो | हमारे 3 भयंकर शत्रु हैं जिनसे हमें लगातार लड़ना है: (क) हमारी देह जो आसानी से समर्पण नहीं करेगी | (ख) शैतान जो हमारी विश्वासरूपी नाव को डुबाने में लगा हुआ है, जो पवित्रता के हमारे प्रयासों को चौपट करने के लिए वह सब कुछ करेगा जो वह कर सकता है और (ग) अपनी समस्त ईश्वर—विरोधी सोच के साथ यह संसार, जो हमारे विश्वास को पटरी से उतार देने के लक्ष्य में लगा हुआ है | 

हालाँकि, इन शत्रुओं का सामना करना आसान नहीं होगा | अत्याधिक धीरज की आवश्यकता होगी और वह तभी आयेगा यदि हम इस पाप से छुटकारे के लिए लगातार तड़पेंगे | और ऐसी तड़प को उत्पन्न करने का एक तरीका यह है कि परमेश्वर की पवित्रता और पाप की पापमयता पर लगातार मनन किया जाये |

3. हमें अवश्य ही अपने सोचने के तरीकों को बदलना चाहिए |  

जैसा कि हमने अपने पहले के लेखों में अध्ययन किया कि ह्रदय ही पापमय क्रोध का स्रोत है [मरकुस 7:21-23, याकूब 4:1-2] | इसीलिए, यदि हम इस पाप से छूटना चाहते हैं तो कुछ बाहरी परिवर्तन करने मात्र से कुछ नहीं होगा | यदि हम इस पाप को जड़ से खत्म करना चाहते हैं तो हमें ह्रदय की गलत अभिलाषाओं तक पहुँचना होगा जो कि इस समस्या के स्रोत हैं | हमें अवश्य ही अपने सोचने के तरीकों को बदलने का प्रयास करना चाहिए | दूसरे शब्दों में कहें तो, हमें बदबूदार सोच के स्थान पर पवित्र सोच को लाने की आवश्यकता है | बाईबल इसे “उतारने” और “पहनने” के सिद्धांत के रूप में बताती है [इफिसियों 4:22-24; कुलुस्सियों 3:9-10] | 

पापमय क्रोध के स्रोत पर चर्चा करते समय, इस लेख के भाग 3 में हमने गलत सोच के एक उदाहरण को देखा जो क्रोध भड़कने की ओर ले जाता है [आगे पढ़ने से पहले उसकी एक त्वरित समीक्षा कर लेना सहायक सिद्ध होगा] | पापमय क्रोध से व्यवहार करने के लिए यह आवश्यक है कि गहराई में उतरा जाए और समस्यारूपी वृक्ष की कुछ टहनियों को काँटने या कुछ पत्तियों को छाँटने के बजाय उसकी जड़ तक पहुँचा जाये | हमें यह स्मरण रखना आवश्यक है कि क्रोध हमेशा ही विशाल हिमखंड का ऊपरी हिस्सा मात्र है | चुनौती यह है कि उसके नीचे की सतह को देखा जाए | 

हमारे समस्त कार्य हमारी सोच के परिणाम—फल ही तो हैं | इसीलिए, यदि हम अपनी सोच को बदलेंगे तो हमारे कार्य स्वतः ही बदल जायेंगे |  

रोमियों 12:2 हमें स्मरण दिलाता है कि हमें हमारे मन के नए हो जाने के द्वारा रूपांतरित” हो जाने की आवश्यकता है | हमें नीतिवचन 4:23 में यह भी स्पष्टता से स्मरण दिलाया गया है कि, “सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर क्योंकि जीवन का मूल स्रोत यही है |” मन और हृदय हमारे उस हिस्से की ओर संकेत करते हैं, जहाँ सोच [विचार] उत्पन्न होते हैं | और सोच आज नहीं तो कल कार्य में परिवर्तित होते हैं | अतः, स्रोत [मन / हृदय] जितना स्वच्छ होगा, कार्य [व्यवहार] उतना ही स्वच्छ होगा! 

हममें से कई लोग क्रोध की समस्या से लगातार जूझते रहते हैं, क्योंकि हम गंभीर मुद्दों पर कार्य नहीं करना चाहते हैं | और ऐसा क्यों है? क्योंकि हम अपनी आतंरिक अभिलाषाओं को बदलना नहीं चाहते हैं | हम अपने क्रोधी स्वभाव के साथ सहज महसूस करते हैं हालांकि कई बार हममें इस पाप के विरुद्ध दोषसिद्धि उत्पन्न होती है | इसीलिए हम कुछ बाहरी परिवर्तन पर ध्यान लगाते हैं | हम इस पाप को ख़त्म करना चाहते हैं—परन्तु संपूर्णतः नहीं—या कम से कम लगता तो ऐसा ही है! परिवर्तन करो, अधिक से अधिक परिवर्तन, परन्तु केवल तब तक जब तक कि वे परिवर्तन हमें असहज न कर दें! परन्तु ऐसी सोच और भी अधिक बड़े पापों की ओर ले जायेगी | इस पाप से व्यवहार करने का एकमात्र तरीका यह है कि एक सम्पूर्ण हृदय परिवर्तन के लिए प्रयास किया जाये | हमें अपने मन को बाईबल की सच्चाईयों से भरना चाहिए, जिससे स्वच्छ विचारों का निर्माण होगा जिसके परिणामस्वरुप स्वच्छ कार्यों का निर्माण होगा [इस बारे में और अधिक 5वें सुझाव में] |   

4. अवश्य ही हमें उन बातों पर ध्यान देना चाहिए जो हमारे क्रोध को भड़काते हैं और फिर उन बातों से बुद्धिमानी के साथ निपटना चाहिए |

नीतिवचन 22:3 कहता है,चतुर मनुष्य विपत्ति को आते देख कर छिप जाता है; परन्तु भोले लोग आगे बढ़ कर दण्ड भोगते हैं |” अतः, हमें बुद्धिमान होने और यह देखने की आवश्यकता है कि जब हम क्रोधित हुए थे, तो क्यों हुए थे?  इस प्रकार से विचार करने से हमें कारणों को बेहतर रूप से पहचानने में और फिर उनसे अधिक प्रभावशाली रूप से निपटने में सहायता मिलेगी | हालाँकि प्रत्येक व्यक्ति के लिए क्रोधित होने के कारण भिन्न होते हैं, तौभी यहाँ कुछ आम बातों को बताया गया है जो क्रोध को भड़काते हैं: भिन्न—भिन्न कारणों से तनाव [कार्य, परिवार, स्वास्थ्य], नींद की कमी, अवास्तविक अपेक्षायें, जिन्होंने हमें चोट पहुँचाया है उनके प्रति कड़वाहट, अधीरता इत्यादि | यह सूची और लम्बी हो सकती है | 

हममें से प्रत्येक व्यक्ति को उन बातों को जो हमें क्रोध दिलाते हैं व्यक्तिगत रूप से पहचानना है | और एक बार जब हम उनकी पहचान कर लेते हैं तो फिर हमें यह पता लगाने के लिए उसकी गहराई तक जाने की आवश्यकता है कि हृदय की वह कौन सी अभिलाषा है जो हमें पापमय तरीके से प्रतिक्रिया दिखाने के लिए प्रेरित करता है और फिर हमें उन पापमय प्रयोजनों से उचित रीति से निपटने के लिए संघर्ष करना चाहिए | उदाहरण के लिए, यदि हम इसलिए क्रोधित होते हैं क्योंकि हम किसी अन्य व्यक्ति की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे, तो हमें अपने आप से यह पूछने की आवश्यकता है कि हम दूसरों से प्रशंसा और अनुमोदन पाने के लिए इतने बेचैन क्यों हैं | क्या यह हमारा अहंकार है जो दूसरों के सम्मुख अच्छा दिखने के लक्ष्य को रखे हुए है? और क्या जब हम असफल हो जाते हैं तो स्वयं के प्रति और अंततः दूसरों के प्रति क्रोध के साथ प्रतिक्रिया दिखाते हैं? तो समझा आपने, एक बार यदि हम वास्तविक कारण को जान लेते हैं तो हम उससे प्रभावशाली रूप से निपट सकते हैं | 

दूसरों की अपेक्षाओं पर खरा न उतर पाने की उपरोक्त घटना का एक समाधान यह हो सकता है कि हम लगातार स्मरण करते रहें कि सफलतापूर्वक कार्य करना ही मसीही जीवन नहीं है | यह तो उस ज्ञान में विश्राम पाना है कि हमारे पास एक परमेश्वर है जिसने हमसे तब प्रेम किया जब हम उसके शत्रु ही थे [रोमियों 8:38-39] | इस सच्चाई का ज्ञान हमारी सोच पर हावी होनी चाहिए और जब दूसरों [या स्वयं] की अपेक्षाओं पर खरा न उतर पाने के कारण क्रोध उमड़ने लगे, तो हमें इस बात पर ध्यान करना चाहिए कि “परमेश्वर मेरी असफलताओं के बावजूद मुझसे प्रेम करता है और मैं बस इस सच्चाई में विश्राम कर सकता हूँ |”

हम अब “बदबूदार सोच” के स्थान पर “पवित्र सोच” ला चुके हैं | अब, इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें दूसरे लोगों की भावनाओं की परवाह नहीं करनी चाहिए | बल्कि, इसके विपरीत, सच्चाई तो यह है कि हमें दूसरों से प्रेम करने और उनके लिए एक आशीष बनने के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिए—परन्तु इस प्रकार की एक सोच हमारी सहायता करती है कि हम एक ऐसा जीवन न जीयें जो लगातार अन्य लोगों के होठों से अनुमोदन और प्रशंसा की तलाश में रहता है ! और ऐसा एक कदम अन्य लोगों और स्वयं के विरुद्ध भी उठने वाले क्रोध के विचारों को मार डालेगी | 

मुख्य बात यह है कि हम हमारे कमजोर पक्ष का विश्लेषण करें और इतनी गहराई तक उनकी जाँच करें कि हृदय का वह प्रयोजन दिख जाए, जो हमें पापमय रीति से प्रतिक्रिया दिखाने के लिए प्रेरित करती है | यह एक दर्दभरी प्रक्रिया है—प्याज की परतें उतारने के समान | जैसे—जैसे परतें उतरती जाती हैं, आँसू भी बढ़ते जाते हैं | परन्तु इसकी जरूरत है ! और एक बार जब हम उस प्रयोजन को पा लेते हैं, तो हमें अवश्य ही गलत अभिलाषाओं के स्थान पर ऐसी अभिलाषाओं को लाने के लिए संघर्ष करना चाहिए जो पवित्रशास्त्र के अनुरूप हों |

5. हमें नियमित रूप से पवित्रशास्त्र का मनन करना चाहिए और उन्हें कंठस्थ करना चाहिए |

यीशु मसीह ने अपनी महायाजकीय प्रार्थना में कहा, “सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर, तेरा वचन सत्य है” [यूहन्ना 17:17] | भजनकार ने भजनसंहिता 119:11 में कहा, “मैंने तेरे वचन को अपने ह्रदय में रख छोड़ा है कि तेरे विरुद्ध पाप न करूँ |” पौलुस ने कहा, “आत्मा की तलवार, जो परमेश्वर का वचन है” [इफिसियों 6:17] | इसका तात्पर्य यह है कि हमें और अधिक पवित्र बनने में सहायता करने के लिए पवित्र आत्मा जिस हथियार का इस्तेमाल करता है, वह है परमेश्वर का वचन! अपने पास बाईबल रखने मात्र से शैतान, संसार और इस देह पर जय नहीं पाई जा सकती! बाईबल की बातों को अन्दर लेना चाहिए ताकि वे हमारी सोच और अंततः हमारे कार्यों को प्रभावित करें | 

दुर्भाग्यवश, कई मसीहियों के लिए ‘मनन करना’ और ‘कंठस्थ करना,’ अपरिचित शब्द हैं | हम इतने व्यस्त हैं कि इन मौलिक बाईबल आधारित सिद्धांतों का पालन करने के लिए हमारे पास समय ही नहीं है | इसमें कोई अचरज की बात नहीं कि हम पाप के चपेट में इतनी आसानी से आ जाते हैं | परन्तु यदि हम परमेश्वर के वचन को सही में अपने अन्दर लेंगे और उन पर निरंतर ध्यान करेंगे तो हम परमेश्वर के अनुग्रह से इस पाप को प्रभावकारी रूप से मौत के घाट उतार पायेंगे | 

यहाँ एक सुझाव है | इस लेख को आरंभ से अंत तक पढ़ें और क्रोध के बारे में चर्चा करने वाले 6 आयतों को लें | प्रत्येक आयत पर प्रत्येक सप्ताह मनन करें और उन आयतों के अनुसार प्रार्थना करें और ऐसा 6 सप्ताह तक करें | वे 6 आयतें! ये 0 [शून्य] आयत को हरा देती हैं ! फिर अधिक आयतों के लिए जायें | अन्य विषय को भी सम्मिलित करते हुए अपने इस कार्य का विस्तार करें | और इसे अपने पार्थिव जीवन के अंतिम क्षण तक करें | यह आपके जीवन में क्या ही अद्भुत बदलाव लायेगा ! मनन करना और कंठस्थ करना ऐसे अनिवार्य औजार हैं जो पापमय सोच के तरीकों और परिणामस्वरूप पापमय कार्यों को ख़त्म करने में सहायता देंगे |

6. हमें स्वयं को मर्मस्पर्शी प्रार्थना के लिए सौंप देना है |

जहाँ एक ओर वचन के द्वारा परमेश्वर हमसे बात करता है, वहीं यदि हम पापमय क्रोध पर जय पाने के इस युद्ध में जीतने की आशा रखते हैं तो आवश्यक है कि हम भी परमेश्वर से बातें करें | प्रार्थना, उस परमेश्वर पर हमारी सम्पूर्ण निर्भरता को दर्शाने का सर्वश्रेष्ठ रूप है जो पाप को मौत के घाट उतारने में हमारी सहायता कर सकता है | 

हम प्रार्थना के द्वारा यह कहते हैं: “प्रभु, मैं इसे अकेले नहीं कर सकता | मुझे आपकी नितांत आवश्यकता है | कृप्या अपनी आत्मा के द्वारा मुझे इस युद्ध को जीतने के योग्य बनायें | मैं आपको प्रसन्न करना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि आपके विरुद्ध मैं पाप न करूँ | कृपया मेरी सहायता करिए |”  स्वयं प्रभु यीशु मसीह ने कहा है, “मेरे बिना तुम कुछ नहीं कर सकते” [यूहन्ना 15:5ब] | ‘कुछ नहीं कर सकते’ से तात्पर्य है कि परमेश्वर की महिमा के लिए कुछ नहीं कर सकते! यही वह कहना चाहता है | पाप से निपटना एक युद्ध है | पवित्र आत्मा के माध्यम से कार्य करने वाले मसीह की सहायता के बिना हम एक क्रोधी आत्मा को जड़ से नहीं उखाड़ सकते हैं | 

जहाँ आवश्यकता हो वहाँ उपवास करना पवित्रता के इस युद्ध में और अधिक गंभीर होने का एक अन्य उत्कृष्ट तरीका है | यदि आपने कभी उपवास नहीं किया है तो धीमी शुरुआत करें [आधा दिन का उपवास भी चलेगा, जहाँ आप सुबह के नाश्ते से दूर रहते है] | उस समय का प्रयोग, प्रार्थना करने, पाप—अंगीकार करने—विशेष रूप से क्रोध के पाप का अंगीकार, परमेश्वर की करुणा के लिए परमेश्वर की स्तुति करने और पवित्रशास्त्र का मनन करने में करिए | परमेश्वर को जानने दीजिए कि आप इस पाप से निपटने के लिए अति व्याकुल हैं | वह आपकी सहायता करेगा | 

यह दिलचस्प है कि याकूब 4:3 में हमारे हृदय के पापमय अभिलाषाओं को हमारे क्रोध का स्रोत बताने के पश्चात, लेखक, याकूब 4:6-10 में इस समस्या का समाधान भी प्रदान करता है | वह हमें हार्दिक दुःख और आँसूओं के साथ अपने पापों का अंगीकार करने के द्वारा अपने आप को दीन बनाने और परमेश्वर के आधीन हो जाने के लिए कहता है | और प्रतिज्ञा यह है कि परमेश्वर हमारे निकट आयेगा—अर्थात वह हमारी प्रार्थना को सुनेगा! अपने पाप—अंगीकार के कार्य में हमें पारदर्शी और ईमानदार रहने की आवश्यकता है | कुछ ऐसी बातें हमारे पश्चाताप में होनी चाहिए, “हे प्रभु, मेरे अहंकार ने मुझे अमुक—अमुक व्यक्ति पर भड़कने के लिए प्रेरित किया | मैंने आपके और अमुक—अमुक व्यक्तियों के विरुद्ध पाप किया है | अपने कार्य की पूर्ण जिम्मेदारी मैं लेता हूँ | कृप्या मेरे पाप—अंगीकार को स्वीकार करें | हे प्रभु, मेरी सहायता करिए! मैं अपने इस पाप को छोड़ना चाहता हूँ |”

अपने क्रोधी स्वभाव में कोई अधिक परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ने पर हम अपने प्रयास को रोकने की परीक्षा में पड़ सकते हैं, परन्तु आईए उन बातों को स्मरण रखें जो स्वयं हमारे प्रभु ने कहीं, “नित्य प्रार्थना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए  ” [लूका 18:1] | प्रार्थना, विश्वास से उत्पन्न वह कार्य है, जो परमेश्वर के सिंहासन—कक्ष में बार—बार प्रवेश करता है | विश्वास के द्वारा हम जानते हैं कि हम उसके अनुग्रह और करुणा को प्राप्त करेंगे | इब्रानियों की पत्री का लेखक कहता है, “हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें [या जाते रहें] , कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पायें, जो आवश्यकता के समय हमारी सहायता करे” [इब्रानियों 4:16] | 

परमेश्वर हमें आमंत्रित करता है कि हम प्रार्थना में होकर उसके सम्मुख जायें | द्वार सदैव खुला हुआ है | क्या हम इस आमंत्रण का लाभ उठाते हैं? एक दिन में हम सबके पास 24 घंटे होते हैं | 30 मिनट इन 24 घंटों का 2% ही होता है | क्या हमें जो 1 दिन प्राप्त हुआ है, हम  उसका कम से कम 2% उसे देंगे जो हमारी प्रार्थना और स्तुति का हकदार है? क्या हम उसको ढूँढते हैं जो एकमात्र ऐसा व्यक्ति है, जो उस प्रकार का एक जीवन जीने में हमारी सहायता कर सकता है, जिस प्रकार का जीवन जीने के लिए हम बुलाये गए हैं? यदि पापमय क्रोध पर जय पाने के इस युद्ध को हम जीतना चाहते हैं, तो अपने आपको एक दृढ़ प्रार्थना में सौंपे बिना हमारा काम नहीं चलने वाला |  

इस प्रकार, हमारे पास 6 सुझाव हैं जो मैं आशा करता हूँ कि इस युद्ध में हमारी सहायता करेंगे | हमें यह विश्वास करना ही चाहिए कि यदि हम सच्चे मन से छुटकारे की तलाश करेंगे तो परमेश्वर हमारी सहायता करेगा | यदि हम इस पाप से तत्काल नहीं निपटते हैं तो हम शैतान को हमारे जीवन में पैर जमाने का एक बड़ा मौक़ा देते हैं | इफिसियों 4:26-27 में पौलुस यही चेतावनी देता है, “26 क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे | 27 और न शैतान को अवसर दो |” हृदय में बसा हुआ क्रोध समय गुजरने पर एक महाविपदा की ओर ले जायेगा | इसीलिए आईए, हम आज के दिन से ही इस पाप को मौत के घाट उतारने के लिए एक पवित्र संकल्प को विकसित करने के प्रयास में लग जायें | 

आप में से उन लोगों के लिए जो इस लेख को पढ़ रहे हैं और अपने क्रोध के कारण प्रबल  दोषसिद्धि तथा उस क्रोध के परिणाम के रूप में मिलने वाले दुष्परिणामों का अनुभव कर रहे हैं, मैं साँत्वना के कुछ व्यक्तिगत शब्दों को कहना चाहूँगा |

आपकी असफलताओं के बावजूद प्रभु यीशु मसीह आपसे प्रेम करता है और आपको अपने पास आने का आमंत्रण देता है | वह आपको बदलना चाहता है | लोगों के साथ जो रिश्ते टूट चुके हैं, वे बदल भी सकते हैं और नहीं भी | परन्तु, एक बात का भरोसा मैं दे सकता हूँ : आप जब इस विषय पर मसीह और उसकी इच्छा का अनुसरण करेंगे तो वह आपको बदलने लगेगा और उसी समय अपनी शान्ति भी प्रदान करेगा | वह अपनी उपस्थिति का आनंद आपको प्रदान करेगा, यहाँ तक कि अंधकारमय क्षणों के दौरान भी | अतः, हिम्मत मत हारिये |

प्रभु यीशु मसीह अभी भी हृदयों को बदलने के कार्य में लगा हुआ हुआ है | पापमय ढाँचाओं  को तोड़ने के लिए [फिर चाहे वे लम्बे समय से बने हुए हों], वह पवित्र आत्मा के माध्यम से अपनी सामर्थ को पूरे बल से भेजेगा | विश्वास में होकर उसे ढूँढिये और आप कभी भी निराश नहीं होंगे | बस थोड़ा सा ही समय रह गया है, शीघ्र ही आप उसके मुख को देखेंगे और शेष जीवन भर आभारी होकर उसकी आराधना करेंगे | इसीलिए, इस अच्छे विश्वास की लड़ाई लड़ते रहो ! हिम्मत मत हारो !  

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