रूपांतरित जीवन—भाग 8 विश्वासयोग्यता से प्रार्थना करना

Posted byHindi Editor July 9, 2024 Comments:0

(English version: “The Transformed Life – Faithful Praying”)

प्रार्थना, रूपांतरित जीवन का एक अभिन्न भाग है | इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि रोमियों 12 में रूपांतरित जीवन का वर्णन करते हुए पौलुस विश्वासियों को “विश्वासयोग्यता से प्रार्थना” करने के लिए बुलाता है, वह कहता है, “प्रार्थना में नित्य लगे रहो” [रोमियों 12:12स] | यह प्रार्थना में एकाग्रचित्त होकर लगे रहने वाले एक जीवन जीने की बुलाहट है | यह बुलाहट हमारे लिए अचंभित करने वाली बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि यदि पूर्णतः मसीह के समान बनना ही हमारे रूपान्तरण का अंतिम लक्ष्य है, तो फिर प्रार्थना हमारे जीवन का विलक्षण गुण बन जाना चाहिए क्योंकि प्रार्थना स्वयं मसीह का भी विलक्षण गुण था |

यदि कभी कोई ऐसा व्यक्ति रहा है, जिसे प्रार्थना की आवश्यकता नहीं थी, तो वह थे यीशु मसीह | परन्तु, सुसमाचार की पुस्तकों में लिखा विवरण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि यीशु मसीह ही ऐसा एक व्यक्ति था, जिसने नित्य प्रार्थना  में लगे रहने के लिए आदर्श प्रस्तुत किया | यीशु मसीह की सेवकाई प्रार्थना द्वारा नियंत्रित थी | यद्यपि उनके पास सार्वजनिक सेवकाई के लिए 3 वर्ष से कुछ ही अधिक का समय था, तौभी वे कभी भी इतनी हड़बड़ी में नहीं रहे कि प्रार्थना के लिए समय न निकाल सकें; वे तो प्रार्थना में कई घंटे बिताया करते थे | उन्होंने अपनी गिरफ़्तारी से पूर्व गतसमनी के वाटिका में प्रार्थना किया और क्रूस पर चढ़े हुए भी | अपनी अंतिम साँस तक उन्होंने प्रार्थना की | यीशु मसीह की बात करें तो, उनके जीवन में ऐसा कोई भी दिन नहीं था जो प्रार्थना से आरम्भ और समाप्त नहीं हुआ हो | 

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उनको निकटता से देखने वाले उनके चेलों ने, न केवल उसने यह निवेदन किया कि वह उन्हें प्रार्थना करना सिखायें [लूका 11:1], बल्कि पवित्र आत्मा के आगमन के पश्चात अपने स्वयं के जीवन में भी उन्होंने प्रार्थना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी | जैसा कि प्रेरितों के काम 2:42 में दिखाई पड़ता है, प्रार्थना में समर्पित रहना, आरंभिक कलीसिया का विलक्षण गुण था | जब कलीसिया संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ा, तब भी प्रेरित प्रार्थना करने और प्रचार करने की अपनी प्राथमिक बुलाहट से अलग नहीं हुए [प्रेरितों के काम 6:4] | 

‘प्रेरितों के कामों का वर्णन’, नामक बाईबल की पुस्तक बार—बार दिखाती है कि आरंभिक कलीसिया ने कैसे अपने आप को प्रार्थना के लिए समर्पित कर दिया था | वास्तव में यदि कोई व्यक्ति ‘प्रेरितों के कामों का वर्णन’ को आरम्भ से अंत तक पढ़े तो उसे प्रार्थना के संबंध में कम से कम 20 सन्दर्भ मिलेंगे [प्रेरितों के काम 1:13-14; 1:24-25; 2:42; 3:1; 4:24, 29, 31; 6:3-4, 6; 7:60; 8:15-17; 9:11, 40; 10:2, 9; 12:5, 12; 13:3; 14:23; 16:25; 20:36; 21:5; 27:35-36; 28:8] | जैसा कि हम देख सकते हैं, आरंभिक मसीहियों के लिए प्रार्थना अत्यंत महत्वपूर्ण बात थी | कोई आश्चर्य की बात नहीं कि आरंभिक कलीसिया एक शक्तिशाली सेना थी! 

रोमियों की पत्री के इस भाग के समान ही पौलुस अपने अन्य पत्रियों में भी नित्य प्रार्थना में लगे रहने की आवश्यकता पर जोर देता है | यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

इफिसियों 6:18 और हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो, और इसी लिये जागते रहो, कि सब पवित्र लोगों के लिये लगातार बिनती किया करो |

फिलिप्पियों 4:6 किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जायें |

कुलुस्सियों 4:2 प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवाद के साथ उस में जागृत रहो |

1 थिस्सलुनीकियों 5:17 निरन्तर प्रार्थना मे लगे रहो |

चूँकि विश्वासयोग्यता से प्रार्थना करना यीशु मसीह का विलक्षण गुण था, इसलिए यह हमारा भी विलक्षण गुण होना चाहिए! आरंभिक कलीसिया ने उसके आदर्श का अनुसरण किया, और हमें भी अवश्य ही करना चाहिए! यही उपयुक्त जान पड़ता है कि प्रार्थना करने वाले स्वामी के सेवक भी प्रार्थना करने वाले हों | परन्तु, हमारा यही स्वभाव है कि हम जीवन की समस्याओं को सुलझाने के लिए पहले परमेश्वर की ओर नहीं भागते हैं बल्कि हमारी स्वयं की सामर्थ पर भरोसा करते हैं |  

एक व्यक्ति के बारे में एक कहानी बताई जाती है | उसके कैंसर के इलाज के लिए सारे विकल्पों को आजमा लेने के पश्चात् उसके डॉक्टर ने उससे कहा, “हमने सब उपाय करके देख लिया | संभवतः अब समय आ गया है कि आप प्रार्थना करें |”  उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, “अच्छा, तो आख़िरकर, बात यहाँ तक पहुँच ही गई!”

प्रार्थना अंतिम विकल्प है! “जब सब प्रयास असफल हो जाए, तो प्रार्थना को आजमाईए |” यह तो संसार की मानसिकता है! बाईबल की शिक्षा से कितनी विपरीत सोच! प्रार्थना हमारा प्रथम, द्वितीय, और अंतिम विकल्प है | हमारे द्वारा की जाने वाली शेष समस्त गतिविधियाँ प्रार्थनामय वातावरण से प्रवाहित होना चाहिए | जब हम प्रार्थना नहीं करते हैं तो हम घोषणा करते हैं कि हम परमेश्वर पर नहीं बल्कि स्वयं पर निर्भर हैं | संभवतः हम इसे बोलकर नहीं बता रहे हों परन्तु हमारे कार्य खुले तौर पर इसकी घोषणा करते हैं |

सेवकाई में भी प्रार्थना ही सर्वोपरी कार्य होना चाहिए | हमें सेवकाई को देखते हुए प्रार्थना नहीं करनी चाहिए, बल्कि हमें प्रार्थना के अनुसार सारी सेवकाईयों को करना चाहिए! प्रार्थना में बिताया गया समय ही सेवकाई का मूल स्रोत होना चाहिए | जब यीशु मसीह ने अपने 12 प्रेरितों को चुना तो उसने सर्वप्रथम उन्हें इसलिए चुना ताकि वे “उसके साथ रहें” और फिर “प्रचार करने के लिए जायें” [मरकुस 3:14] | पहले उसके साथ रहें, और फिर सेवा करने के लिए बाहर जायें!

यीशु मसीह पिता के साथ समय बिताते थे और फिर सेवकाई करते थे | प्रेरितों ने यीशु मसीह के साथ समय बिताया और फिर सेवकाई की | प्रथम मिशनरी यात्रा ने प्रार्थना और उपवास की पृष्ठभूमि में जन्म लिया [प्रेरितों के काम 13:1-3] | हमें भी ठीक ऐसा ही करना चाहिए | हमारी प्रार्थना हमारी समस्त गतिविधियों के लिए ईंधन का काम करना चाहिए | मसीही होने का दावा करने वाले कई लोग केवल अपने मुसीबत के समय में ही प्रार्थना करते हैं | परन्तु ऐसा तो अविश्वासी भी करते हैं | परन्तु, हम विश्वासियों को बोझ के साथ प्रार्थना करने के लिए परीक्षाओं का इंतज़ार नहीं करना चाहिए | हमें सदैव तत्परतापूर्वक प्रार्थना करना चाहिए |

मिशनरी महिला एमी कर्मीकेल के शब्द इस सत्य की पुष्टि करते हैं:

“हमें युद्ध के घावों से सुरक्षा, उनके विनाश से राहत और उनके दर्द से विश्राम के लिए प्रार्थना करने के स्थान पर आत्मिक युद्ध में विजय के लिए कहीं अधिक प्रार्थना करनी चाहिए | इस  विजय का अर्थ परीक्षा से छुटकारा पाना नहीं है, बल्कि यह तो परीक्षा में जय पाना है और यह कभी—कभार की बात नहीं है, बल्कि स्थाई बात है |” 

किसी ने कहा है, “मसीही लोग जितना समय शिकायत करने में लगाते हैं, यदि उतना ही समय प्रार्थना करने में लगायें तो उनके पास शिकायत करने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं |”  

अब सवाल यह उठता है कि हम प्रार्थना में विश्वासयोग्य रहने की इस आज्ञा को अभ्यास में कैसे लायेंगे ? मैं 10 अनुस्मारक या 10 सहायक सुझाव देना चाहता हूँ, जिससे प्रार्थना में विश्वासयोग्य बने रहने के हमारे प्रयास में हमें सहायता मिलेगी |

1. एक शांत स्थान निर्धारित कर लें |  

हमें घर के अन्दर या बाहर एक ऐसा स्थान ढूँढना होगा जहाँ हम बिना किसी व्यवधान के प्रार्थना कर सकें | ऐसे स्थान को अपनी प्रार्थना कोठरी बना लें |

2. नियत समय का निर्धारण करें |

हमें परमेश्वर के साथ अकेले में नियत समय गुजारने के लिए और पूर्वनियुक्त समय का पालन करने के लिए स्वयं को अनुशासन में लाना ही होगा | उस पवित्र समय की रक्षा हर कीमत पर की जानी चाहिए | नियत समयों पर प्रार्थना करने से, हमें अन्य समयों में भी और अधिक प्रार्थना करने के लिए सहायता मिलेगी |  

3. प्रार्थना करते समय बाईबल का उपयोग करें |

बाईबल का उपयोग करने के द्वारा हम निश्चित कर सकते हैं कि हमारी प्रार्थना परमेश्वर के वचन में प्रकाशित परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है | हमें प्रार्थना के रूप में बाईबल के आयतों का इस्तेमाल करना सीखना होगा | बाईबल की आयतों के साथ प्रार्थना करते समय, ऊँची आवाज में प्रार्थना करें | ऐसा करने से हमें हमारे मन को केन्द्रित रखने में सहायता मिलती है | 

4. दीनता के साथ प्रार्थना करें |

परमेश्वर सृष्टिकर्ता है; हम उसकी रचना मात्र हैं | हमारे मध्य एक महान अंतर है | यह सच्चाई हमें उसके सम्मुख दीनता के साथ पहुँचने में सहायता करेगी | यद्यपि हम उसकी संतान हैं, तौभी हमें उसके पास दीनता के भाव में होकर जाना चाहिए और दीनता के इस भाव में हमारे पापों का अंगीकार किया जाना एवं पश्चाताप करना सम्मिलित है | हमारी प्रार्थना एक नम्र मन से निकलनी चाहिए, जो कहे और सच में कहे, “मेरी नहीं, परन्तु तेरी इच्छा पूरी हो” [लूका 22:42] |

5. ईमानदारी से प्रार्थना करना |

परमेश्वर, हमें, उससे अपनी बात ईमानदारी से कहने का न्यौता देता है | इसलिए, हमें हमारी पुकार को सुनने वाले के सामने अपने हृदय को आदर सहित और पूरी रीति से खोलकर रख देना चाहिए | 

6. अपने प्रार्थना–विषय का ठीक–ठीक ब्यौरा दें |  

यह सच है कि, परमेश्वर हमारी समस्त आवश्यकताओं को हमारे बताने से पहले ही जानता है | परन्तु उससे प्रार्थना करने के द्वारा हम उस पर अपनी निर्भरता को दिखाते हैं | और अपने प्रार्थना विषयों को ठीक–ठीक बताने से हमें यह देखने में भी सहायता मिलती है कि हमारे मंसूबे सही हैं कि नहीं |

7. ध्यान भटकाने वाली वस्तुओं को दूर करें |

हमें प्रार्थना करते समय अपने इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों को दूर रखना चाहिए | मोबाईल या टेबलेट से आनेवाली नोटिफिकेशन की आवाज तुरंत हमारा ध्यान भटका सकती है | कई बार तो किसी उपकरण की उपस्थिति मात्र ही हमें रिझाती है कि हम एक नजर उसकी ओर देख लें और इस प्रकार प्रार्थना से हमारा ध्यान भटकता है | प्रभु यीशु मसीह इस बात के हकदार हैं कि हम अपना संपूर्ण ध्यान उन पर लगायें | अपने जीवन साथी या बच्चों से बात करते हुए, हमें प्रार्थना नहीं करना चाहिए | यह बहुत अधिक ध्यान भटकाने वाला हो सकता है | इसीलिए हमें एक शान्त स्थान की आवश्यकता होती है | 

8. दूसरों के साथ प्रार्थना करें |

व्यक्तिगत प्रार्थना के साथ ही साथ हमें हमारे परिवार के सदस्यों और संगी विश्वासियों के साथ प्रार्थना करने का भी प्रयास करना चाहिए | हमें कलीसियाई प्रार्थना सभा में सम्मिलित होने की आवश्यकता है | एक साथ प्रार्थना करने के द्वारा हम न केवल दूसरों को प्रोत्साहित कर सकते हैं, बल्कि हम पायेंगे कि ऐसा करने से हम और अधिक विश्वासयोग्यता से प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं | 

9. दूसरों के लिए प्रार्थना करें |

दूसरों के लिए प्रार्थना करना [मध्यस्थता की प्रार्थना], हमारे प्रार्थना जीवन का एक अभिन्न अंग होना चाहिए | और यह आवश्यक है कि दूसरों के लिए हमारी प्रार्थना, उनके शारीरिक और वस्तु संबंधी आवश्यकताओं से कहीं आगे जाये; उनकी आत्मिक आवश्यकतायें, हमारी प्रार्थना में अधिक हावी होनी चाहिए | इसमें उद्धार न पाए हुए लोगों के उद्धार के लिए और संगी विश्वासियों के जीवन में और अधिक आत्मिक फल आने के लिए प्रार्थना करना सम्मिलित है; परंतु यह यहीं तक सीमित नहीं है, दूसरों के लिए प्रार्थना करने में और भी कई बातें सम्मिलित हैं |

10. न केवल परमेश्वर का हाथ देखने के लिए बल्कि परमेश्वर का मुख देखने के लिए प्रार्थना करें |  

अक्सर हमारी प्रार्थना परमेश्वर के हाथों से कुछ पा लेने की आशा तक ही सीमित रह जाती है | हमें सीखना होगा कि हमें परमेश्वर के मुख के दर्शन का प्रयास कहीं अधिक करना है | हमें उसके साथ और अधिक अंतरंग हो जाने के लिए और उसकी उपस्थिति को और अधिक अनुभव करने के लिए अवश्य ही संघर्ष करना चाहिए |  1 इतिहास 16:11 में लिखा है,यहोवा और उसकी सामर्थ की खोज करो; उसके दर्शन के लिए लगातार खोज करो |” भजनसंहिता 27:8 के अनुसार दाऊद ने यह संकल्प लिया था: “मेरा मन तुझ से कहता है, कि हे यहोवा, तेरे दर्शन का मैं खोजी रहूंगा |” 

इस सूची में हम और भी कई बातों को जोड़ सकते हैं [जैसे विश्वास के साथ प्रार्थना करना, धीरज के साथ प्रार्थना करना इत्यादि] | परंतु मैं आशा करता हूँ कि उपरोक्त बताये गये कुछ विचार हमें और अधिक विश्वासयोग्यता से प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करेंगे | 

यीशु मसीह ने मत्ती 26:40 में कहा है, क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी [घण्टा] भी न जाग सके?” हममें से कितने लोग उस एक घण्टे को उसे प्रतिदिन देते हैं? आम तौर पर विश्वासी, प्रार्थना के लिए, अधिक से अधिक 10-15 मिनट का समय देते हैं | इतना कम समय देने के पश्चात, हम परमेश्वर से कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह हमारी प्रार्थना सुनेगा? एक घण्टा, 24 घण्टे वाले एक सम्पूर्ण दिन का लगभग 4% है | 5% से भी कम!  हम कई अनावश्यक बातों के लिए इससे अधिक समय देते हैं–टीवी और सोशल मीडिया के लिए दिए जाने वाले समय के बारे में जरा सोचें ! समय की कमी नहीं, बल्कि प्रार्थना करने की आवश्यकता के प्रति गंभीर होने की हमारी समझ की कमी ही हमें प्रार्थना में विश्वासयोग्य बनने से रोकती है |

प्रार्थना करने वाले स्वामी के सेवक भी प्रार्थना करने वाले ही होने चाहिए!  इसलिए, आईए हम स्वयं को एक विश्वासयोग्य प्रार्थना वाले जीवन के लिए समर्पित कर दें और इस प्रकार मसीह के स्वरूप में और भी अधिक रूपांतरित हो जायें

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