धन्य–वचन: भाग 9–धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं

(English version: “Blessed Are Those Who Are Persecuted”)
यह धन्य–वचन लेख–श्रृंखला के अंतर्गत नौवां लेख है | धन्य–वचन खण्ड, मत्ती 5:3-12 तक विस्तारित है, जहाँ प्रभु यीशु 8 मनोभावों के बारे में बताते हैं, जो उस प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए जो उसका अनुयायी होने का दावा करता है | इन मनोभावों का अनुकरण करना, संस्कृति–विपरीत कार्य है | इसीलिए धन्य–वचन आधारित जीवनशैली को, “संस्कृति-विपरीत मसीहियत” भी कहा जा सकता है |
इस लेख में हम आठवें और अंतिम मनोभाव को देखेंगे–हमारे मसीही जीवन को जीने के कारण आनेवाले क्लेशों को धीरज से सहना | यीशु मसीह ने मत्ती 5:10-12 में इसका वर्णन किया है,“10 धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है | 11 धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हरो विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें | 12 आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था|”
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कुछ वर्ष पूर्व ईराक में एक युवा अमेरिकन मसीही महिला की हत्या हुई | उसका अपराध क्या था? वह वहाँ दूसरो की सहायता करने गई थी; शरणार्थियों को शुद्ध पानी मुहैया कराने |
अद्भुत बात है कि उसने अपनी कलीसिया को एक पत्र लिखा था, जिसे उसकी मौत के पश्चात पढ़ा जाना था | उसने लिखा था, “जब परमेश्वर बुलाता है, तो कोई पछतावा नहीं | मैं एक स्थान के लिए नहीं बुलाई गई थी | मैं उसके पास बुलाई गई थी…आज्ञा मानना, मेरा उद्देश्य था, क्लेश सहना अपेक्षित, उसकी महिमा मेरा प्रतिफल था | उसकी महिमा मेरा प्रतिफल है |”
अपने अंतिम क्रियाकर्म के संबंध में इन बातों को उसने अपने पासबान को लिखा: “साहसी बनो और जीवन रक्षक, जीवन परिवर्तक, सदाकालीन अनंत सुसमाचार का प्रचार करो | हमारे पिता को आदर और महिमा दो |”
उसने अपने कुछ पसंदीदा बाईबल भागों को भी लिखा, जिसमें 2 कुरिन्थियों 5:15 भी सम्मिलित था, जहाँ लिखा है, “और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा |”
रोमियों 15: 20 एक अन्य बाईबल भाग था, जहाँ लिखा है, “पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहां जहां मसीह का नाम नहीं लिया गया, वहीं सुसमाचार सुनाऊं; ऐसा न हो कि दूसरे की नींव पर घर बनाऊं |”
अंत में उसने लिखा, “यीशु मसीह को जानने और उसकी सेवा करने करने के अलावा कोई आनन्द नहीं है |”
उसकी महिमा–मेरा प्रतिफल! यीशु मसीह को जानने और उसकी सेवा करने के अलावा कोई आनन्द नहीं! क्या ये शब्द प्रगट नहीं करते हैं कि इस महिला ने इस अंतिम धन्य–वचन के सार–सन्देश को समझ लिया था? परिणामस्वरुप, यद्यपि उसने, यीशु मसीह के कई विश्वासयोग्य अनुयायियों के समान दुखद रूप से अपने पार्थिव जीवन को खोया, परन्तु वास्तव में उसने अनन्तकाल के लिए एक सच्चे जीवन को प्राप्त करते हुए अलविदा कहा | उसने अब अपना प्रतिफल पा लिया है, परमेश्वर के साथ रहने और समस्त अनन्तकाल तक उसकी आराधना करने का आनन्द |
सताए जाने की वास्तविकता |
इन पदों में यीशु मसीह हमें स्मरण दिलाते हैं कि जब हम उसकी आज्ञाओं के अनुसार जीवन बितायेंगे, तो हम सताए जायेंगे | इस पद को इसकी पृष्ठभूमि में समझें तो इसका अर्थ है कि अब तक इन धन्य – वचनों में बताये गए एक “संस्कृति-विपरीत जीवनशैली” को जीने के कारण हम सताए जायेंगे | कृपया इस बात पर ध्यान दीजिये कि यीशु मसीह ने,“यदि” नहीं कहा, परन्तु कहा,“जब” लोग “तुम्हारा अपमान करें, तुम्हे सताएं और तुम्हारे विरोध में झूठ बोलते हुए सब प्रकार की बुरी बातें कहें” [मत्ती 5:11] | बस कुछ ही समय की बात है और फिर उसके समस्त अनुयायी उसकी आज्ञाओं के अनुसार जीवन बिताने के कारण भारी सताव का सामना करेंगे | सताव की तीव्रता भिन्न हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर कर सकता है कि वह मसीही कहाँ रहता है या कौन सी विशेष परिस्थिति का वह सामना करता है, परन्तु यहाँ पर सताव की वास्तविकता पर जोर दिया गया है|
सार–रूप में यीशु मसीह कह रहें हैं कि जब हम उसकी आज्ञाओं का पीछा करेंगे [मानेंगे] तो संसार और शैतान हम पर दर्द डालने के लिए हमारा पीछा करेंगे | ‘सताव’ कोई आनन्ददायी विषय नहीं हैं | परन्तु यह तब भी उन सबके लिए जो यीशु मसीह के पीछे ईमानदारी से चलना चाहते हैं, एक महत्वपूर्ण विषय है | आखिर क्यों? क्योंकि यीशु मसीह ने अपनी सेवकाई के दौरान बहुधा निर्मम ईमानदारी से उस सताव की वास्तविकता के बारे में चर्चा की, जिस सताव का सामना उसके अनुयायी करेंगे | वह चाहता था कि वे स्पष्ट तौर से समझ लें कि उसके पीछे चलने की क्या कीमत उन्हें चुकानी होगी | यहाँ कुछ उदाहरण है:
मत्ती 10:22 “ मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे |”
मरकुस 8:34 “जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपने आपे से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले |”
लूका 14:27 “और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता |”
यूहन्ना 15:20 “दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता, उस को याद रखो: यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे |”
इस प्रकार हम स्पष्ट रूप से देख पाते हैं कि यीशु मसीह ने कैसे बार–बार सताव के बारे में बातें की और ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण विषय है |
परन्तु केवल यीशु मसीह ने ही इस विषय को महत्वपूर्ण नहीं समझा | बल्कि प्रेरितों ने भी अवश्य ही ऐसा समझा!
प्रेरितों 14:22 “ हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा |”
2 तीमुथियुस 3:12 “ पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे |”
1 पतरस 4:12 “हे प्रियों, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझ कर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है |”
यहाँ तक कि प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में, हम यूहन्ना के शब्दों को पढ़ते हैं, जहाँ वह बताता है कि जब ख्रीष्ट-विरोधी शासन करेगा तो विश्वासीगण अपने विश्वास के कारण भयंकर सताव से गुजरेंगे |
प्रकाशितवाक्य 13:10 “जिस को कैद में पड़ना है, वह कैद में पड़ेगा, जो तलवार से मारेगा, अवश्य है कि वह तलवार से मारा जाएगा |”
सताव का कारण |
प्रभु न केवल यह शिक्षा देते हैं कि हम इस या उस हद तक के सताव से गुजरेंगे, बल्कि साथ ही हमें इस सताव के कारण को भी बताते हैं | ध्यान दीजिये कि पद 10 में वह “धर्म के कारण सताए” जाने के बारे में बात करटा है | पद 11 के आखिरी भाग में वह, ‘मेरे कारण’ सताव से गुजरने के बारे में बात करटा है | अब, “धर्म” का अर्थ है, यीशु के लिए जीना–उसकी आज्ञाओं का पालन करते हुए जीना | इस कारण से यह ऐसा सताव नहीं है, जो हमारे पापमय कार्यों के कारण आता है [1 पतरस 4:15] | न ही यह वह सामान्य क्लेश है, जिसका अनुभव इस पतित संसार में जीवन बिताने वाले सभी लोग करते हैं [रोमियों 8:20-22] | नहीं, यह विशेष रूप से वह सताव है, जो यीशु मसीह का अनुयायी होने के कारण आता है |
जब हम मसीह के लिए जीते हैं, तो शत्रु शांत नहीं बैठता है | अन्धकार की सेना आक्रमण करेगी और तगड़ा आक्रमण करेगी | यीशु मसीह एक अन्य भाग, यूहन्ना 3:19ब-20 में बताते हैं कि विश्वासियों को सताव क्यों सहना होगा, “मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे | 20 क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए |” ज्योति का काम है, जो प्रगट नहीं है, उसे प्रगट करना |
अतः, जब मसीही अपने बातों या अपने जीवन से अविश्वासियों के कार्यों को प्रगट करेंगे [बेपर्दा करेंगे], तब उन्हें प्रतिशोध का सामना करना पड़ेगा | उन्हें अपमान, सताव और सब प्रकार की बुराई का सामना करना पड़ेगा! जिस तरीके से भी विश्वासियों के जीवन को तकलीफ़देह बनाया जा सके, और विरोध में कार्य करते हुए उन्हें चाहे किसी भी हद तक जाना पड़े, सताने वाले हर तरीके को आजमाएंगे और हर हद तक जायेंगे–अपनी बातों से और कार्यों से |
सताव के प्रति प्रतिक्रिया |
जब हम सताए जायें, तो हमारी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए? यीशु मसीह पद 12 के पहले भाग में इसका एक स्पष्ट उत्तर देते है: “आनन्दित और मगन होना” [मत्ती 5:12] | दूसरे ढंग से अनुवाद करते हुए, ऐसा भी लिखा जा सकता है–‘आनन्द से उछलना’ | यीशु मसीह जो राज्य स्थापित करने जा रहे हैं, उस राज्य में त्रिएक परमेश्वर के साथ रहने की आगामी वास्तविकता के प्रकाश में देखें तो, भरपूर आनन्द ही उपयुक्त प्रतिक्रिया होगी | इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि सताव के प्रति विश्वासियों के प्रतिक्रिया के रूप में ‘बड़ा आनन्द’, नया नियम का एक–सूत्रीय विषय है |
सताव से होकर गुजरते विश्वासियों को लिखते हुए, पतरस उन्हें आज्ञा देता है: “पर जैसे जैसे मसीह के दुखों में सहभागी होते हो, आनन्द करो” [1 पतरस 4:13] | याकूब हमें कहता है: “हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो | तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो” [याकूब 1:2-3] |
प्रेरितों का काम 5:40-41 हमें दिखाता है कि जब प्रेरितों को यीशु मसीह का प्रचार करने के कारण धार्मिक अधिकारियों द्वारा “कोड़े मरवाए गये” तो वे, “इस बात से आनन्दित होकर महासभा के साम्हने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे |” अगला पद हमें बताता है कि सताए जाने के बावजूद वे , “प्रति दिन मन्दिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है न रूके” [प्रेरितों के काम 5:42] | प्रेरितों के काम 16:23-25 में बताया गया है कि पौलुस और सीलास, बंदीगृह में “कोड़े खाने…पीटे जाने के बाद…प्रार्थना करते हुए भजन गा रहे थे |”
उपरोक्त प्रतिक्रियाएँ दर्शाती हैं कि आरंभिक मसीहियों ने एक या अधिक दर्दनाक अनुभवों के उपरान्त अपने विश्वास का त्याग नहीं किया | यीशु के पीछे चलने की बुलाहट के प्रति वे विश्वासयोग्य बने रहे |
परन्तु दुख की बात है कि अक्सर हमारी प्रतिक्रिया विपरीत होती है | कई बार तो हम दुख में डूबने के कारण बिस्तर से भी नहीं निकलते हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि मसीह के प्रति निष्ठावान रहने की हमने एक भारी कीमत चुकाई है | अपमानित होने जैसी कोई छोटी–मोटी बात हुई होगी और हम कई दिनों तक शोक मनाते हैं | ऐसी प्रतिक्रिया क्यों? यहाँ कुछ कारण दिए गए हैं: हममें बहुत अधिक संसार समाया है, यीशु मसीह की बातों को गंभीरता से लेने की असफलता; अत्यधिक अहंकार | इसी कारण से हम सही प्रतिक्रिया नहीं दिखाते हैं, यहाँ तक कि “सताव” शब्द के उल्लेख मात्र के समय भी |
परन्तु, आईए स्मरण रखें कि इस हद तक या उस हद तक सताया जाना उन सबके लिए अनिवार्य है जो परमेश्वर के राज्य में जीने की अभिलाषा रखते हैं [2 तीमुथियुस 3:12 ] | और सताव की घटनाओं में भरपूर आनन्द ही हमारी प्रतिक्रिया होनी चाहिए |
यह सच है, कि हो सकता है और अक्सर होगा कि आँसू बहाना पड़े | परन्तु वे आँसू हमें अगाध रूप से आनन्दित होने से नहीं रोकने चाहिए, हमें इस बात को जानना चाहिए कि हम उसके लिए मार खा रहे हैं, जिसने हमारे लिए बहुत अधिक मार खाया है | और यह समझ वेदना के महारूदन के मध्य भी एक अगाध और स्थिर आनन्द को लाना चाहिए | जैसा पौलुस लिखता है, हम ऐसे लोग हैं जो, “दुखी हैं, परन्तु सदैव आनन्द करते हैं ” [2 कुरिन्थियों 6:10] |
सताव सहने का प्रतिफल |
इन सब सतावों से होकर गुजरने की बात को ध्यान में रखते हुए कोई व्यक्ति एक तर्कपूर्ण प्रश्न को पूछ सकता है: इन सबका क्या लाभ? मुझे अंत में क्या मिलेगा? यदि यीशु के पीछे चलने में अत्याधिक कष्ट मिलेगा, तो फिर क्या उसके पीछे चलना सही है? यीशु मसीह जो उत्तर देते हैं, वह बिल्कुल स्पष्ट है: “स्वर्ग का राज्य उनका [और केवल उनका] है” [मत्ती 5:10] | मैं यह भी विश्वास करता हूँ कि पद 11 में जब यीशु मसीह कहते हैं , “स्वर्ग में [उनका] बड़ा प्रतिफल है”, तब उनका तात्पर्य वही है जो पद 10 में है |
केवल वे ही लोग स्वर्ग के राज्य के वारिस होंगे जो सताव से होकर गुजरने के इच्छुक हैं | भविष्य में आगामी स्वर्ग के राज्य में मसीह के लहू से अपने पाप धोये जाने के कारण केवल वे ही लोग पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा परमेश्वर की उपस्थिति में रहेंगे और उनकी आराधना करेंगे | तो यह है, प्रतिफल! वे सचमुच में, “धन्य” लोग हैं [मत्ती 5:10] | वे ऐसे लोग हैं, जिन पर परमेश्वर की कृपा और अनुमोदन ठहरती है!
सच कहें तो, एक अर्थ में, सम्पूर्ण धन्य–वचन, परमेश्वर के राज्य में रहने के बारे में ही है | इस बात पर ध्यान दें कि मत्ती 5:3, जहाँ उसने अंतिम धन्य–वचन कहा और मत्ती 5:10 जहां उसने अंतिम धन्य–वचन कहा, कैसे एक ही वाक्यांश के साथ समाप्त होते हैं, “स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है” | शेष समस्त धन्य–वचन, पद 3 और 10 के मध्य मानों सैंडविच के समान दबाकर रखे गए हैं और इस प्रकार मुख्य ध्यान परमेश्वर के राज्य में जीने के ऊपर दिया गया है|
और इस प्रतिफल को पाने के लिए मेहनत करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए यीशु मसीह ने मत्ती 5:12 के अंतिम भाग में इस बात को जोड़ा, “इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहिले थे इसी रीति से सताया था |” परमेश्वर के लोगों के लिए सदाकाल से यही नमूना रहा है, पुराना नियम में भी यही नमूना था | अपने स्वयं के भाई कैन के हाथों सताए जाने वाले हाबिल से लेकर, परमेश्वर के सत्य का प्रचार करने वाले भविष्यद्वक्ताओं समेत, परमेश्वर के समस्त लोग सदा से सताए जा रहे हैं |
अतः यीशु मसीह के कहने का अर्थ यह है: इस बात में तुम अकेले नहीं हो, और न ही यह सताव कोई नया कार्य है | परमेश्वर के पीछे चलने के कारण सताया जाना हमेशा से होता आया है | परन्तु इसका प्रतिफल, शानदार है: त्रिएक परमेश्वर के साथ सम्पूर्ण अनन्तकाल के लिए रहना | एकमात्र यही कारण ही बड़े आनन्द को उत्पन्न कर देना चाहिए–भारी क्लेश के मध्य भी |
समापन विचार |
आएई स्मरण रखें | इन धन्य–वचनों सहित सम्पूर्ण पहाड़ी उपदेश में यीशु मसीह द्वारा दी गई शिक्षायें उन सबके लिए एक दर्पण का काम करती है, जो मसीही होने का दावा करते हैं | यह सच है कि हम इनमें से किसी भी आज्ञा का पालन सिद्धता में नहीं कर सकते हैं | केवल यीशु मसीह ने ही ऐसा किया | केवल उसके कार्य के कारण ही हमारा संबंध परमेश्वर से सही हो पाया है!
परन्तु, अब क्योंकि विश्वास के द्वारा हम यीशु मसीह के साथ जुड़ गए हैं और हममें पवित्र आत्मा निवास करता है और हमें निरंतर और अधिक यीशु के समान बनाना ही पवित्र आत्मा का कार्य है | इसीलिए ये गुण हममें दिखाई देने ही चाहिए | और जहाँ भी इस प्रकार की धार्मिकता दिखाई देगी, वहाँ सताव होगा | यीशु मसीह का अनुकरण करने के कारण हमें घर में, कार्यस्थल में, स्कूल में, कॉलेज में, सामाजिक रिश्तों में और यहाँ तक कि कलीसिया में भी तिरस्कार का सामना करना पड़ेगा | परन्तु यह तो महाआनंद का कारण है क्योंकि यह दर्शाता है कि हम सचमुच में यीशु मसीह के अनुयायी हैं |
मसीही होने का दावा करने वाले कई लोग किसी भी प्रकार के सताव का सामना नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनके जीवन में कोई अधिक धार्मिकता दिखाई नहीं पड़ती है | अगर कोई धार्मिकता दिखाई भी पड़ती है, तो वह है, स्व-धार्मिकता | अपनी दृष्टि में धर्मी होना, वास्तविक बाईबल आधारित धार्मिकता नहीं है, यह वह धार्मिकता नहीं है, जिसके बारे में यीशु मसीह यहाँ पर बात कर रहें हैं, ऐसी धार्मिकता जो उसके साथ जुड़ जाने के कारण सही जीवन जीने की बुलाहट देता है | यीशु मसीह ऐसे लोगों को अपने उपदेश के अंत में इन चुभते शब्दों के साथ संबोधित करते हैं , “जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है ” [मत्ती 7:21] | पिता की इच्छा यही है कि केवल वे ही लोग उसके राज्य में रहें, जो धन्य–वचन आधारित जीवनशैली प्रदर्शित करते हैं |
अलग ढंग से कहें तो, इन धन्य–वचनों में यीशु के वचनों के अनुसार, केवल वही स्वर्ग के राज्य में होंगे जो: मन के दीन हैं, अपने पापों पर शोक करने वाले हैं, नम्र हैं, धर्म के भूखे और प्यासे हैं, दयावंत हैं, आंतरिक रूप से–अर्थात हृदय से शुद्धता का पीछा करने वाले हैं, और सताव से होकर गुजरने के इच्छुक हैं | इसीलिए, यदि पापों की क्षमा के लिए आप सही मायनों में कभी यीशु मसीह के पास नहीं गए है, तो कृपया देर न करें| अपने पापों से फिरें और उसके द्वारा दिए जाने वाले क्षमा का आलिंगन करें, और केवल तभी आपमें इस धन्य–वचन आधारित जीवनशैली के अनुसार चलने की सामर्थ आएगी–उसके लिए दुख उठाने की योग्यता भी इसमें सम्मिलित है |
अंतिम बात यह है: विश्वास के लिए दुख उठाना प्रत्येक विश्वासयोग्य मसीही का भाग है | यीशु ने दुख उठाया | पुराना नियम और नया नियम, दोनों में विश्वासियों ने दुख उठाया | फिर हममें से किसी के लिए कोई दूसरा नियम कैसे हो सकता है? अक्सर हम सोचते हैं कि सताया जाना, हमारे प्रति परमेश्वर की अप्रसन्नता का एक संकेत है | इसीलिए सम्पन्नता की प्रतिज्ञा करने वाला सुसमाचार सन्देश [Prosperity Gospel Message] इतना लोकप्रिय है!
परन्तु प्रेरित पौलुस बिलकुल ही भिन्न बात कहता है | वह हमें फिलिप्पियों 1:29 में स्मरण दिलाता है, “क्योंकि मसीह के कारण हम पर यह अनुग्रह हुआ कि न केवल उस पर विश्वास करें बल्कि उसके लिए दुख भी उठायें ”| “अनुग्रह” शब्द में एक “दान” का विचार निहित है | मसीह में विश्वास [इस पद का पहला भाग] और मसीह के लिए दुख उठाना, [इस पद का दूसरा भाग] दोनों ही एक “दान” हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अपने अनुग्रह में होकर हमें दिया है | हम कैसे उसे एक “दान” के लिए धन्यवाद दें और दूसरे “दान” के लिए धन्यवाद देने से इनकार करें? यह एक सौभाग्य है कि न केवल उस पर विश्वास करें बल्कि उसके लिए दुख भी उठायें |
इसिलए, जब हमारा अपमान और तिरस्कार हो, तो बदला लेने के स्थान पर, आइए हमारे प्रभु के पदचिन्हों पर चले, जो दुखों का सामना करते हुए, इस प्रकार की प्रत्रिक्रिया देते थे: “वह गाली सुन कर गाली नहीं देता था, और दुख उठा कर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौपता था” [1 पतरस 2:23] |
प्रिय पाठकों, जब हमारा यह जीवन समाप्त होगा और हम प्रभु यीशु की उपस्थिति में जायेंगे, तो हम महसूस करेंगे कि हमने जो कुछ भी उसके लिए सहा–फिर चाहे वह मृत्यु ही क्यों न हो–उनमें से कुछ भी, उस दुख के करीब भी नहीं पहुंचता है, जो उसने हमारे लिए सहा | पिता की उपस्थिति और स्वर्ग की समस्त महिमा को उसने छोड़ा और धरती पर आ गया | धरती पर रहते हुए उसने अवर्णनीय दुख उठाया और अंततः जिस शर्मनाक मृत्यु के हम हकदार थे, उस मृत्यु के बदले मरने के लिए वह क्रूस पर चढ़ गया | हमारे पापों के लिए उसने पिता के क्रोध का सामना किया | फिर हम उसके लिए दुख उठाने को अपना सौभाग्य कैसे न समझें?
अतः, आइए हम जिन तिरस्कारों और अपमानों का सामना करते हैं, उन पर ध्यान लगायें और अपने आप से पूछें: क्या मसीह के लिए जीने के कारण मैं इस दुख में हूँ? या फिर यह मेरे पापमय कार्यों का परिणाम है? यदि पहला कारण है, तो आनन्दित हों, मगन हों और इस बात को जानते हुए धीरज से सहते रहें कि अंत में यह बेशकीमती साबित होगा | परन्तु यदि दूसरा कारण है, तो फिर अपने पापों को परमेश्वर के सम्मुख मान लें, अपने कार्यों से मन फिरायें और इन प्रवृत्तियों पर विजय पाने में सहायता करने के लिए उससे प्रार्थना करें |
कोई संकोच नहीं, कोई वापसी नहीं, कोई पछतावा नहीं |
विलियम बॅार्डेन ने सन 1904 में शिकागों में अपनी हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की | वह बॅार्डेन डेयरी स्टेट का अत्तराधिकारी था | हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी कर लेने पर, उसे विश्व–भ्रमण में जाने का एक असाधारण उपहार मिला | जिन लोगों ने उसे यह उपहार दिया था, उन्हें जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि यह उपहार उसके जीवन में क्या परिवर्तन लाएगा |
अपनी यात्रा के दौरान, संसार भर के गरीबों और मसीह की आवश्यकता में पड़े लोगों के लिए विलियम एक बोझ को महसूस करने लगा | उसने अपने घर एक पत्र लिखा, जिसमें उसने मसीह की सेवा एक मिशनरी के रूप में करने के लिए अपना जीवन समपर्ण करने की अपनी इच्छा को व्यक्त किया | यद्यपि उसके मित्रों और रिश्तेदारों ने इस बात पर विश्वास नहीं किया, परन्तु बॅार्डेन ने अपने बाईबल के अंतिम पृष्ठ पर तीन शब्द लिख लिया: “कोई संकोच नहीं” |
वह अमेरिका लौटा और येल विश्वविद्यालय में उसने दाखिला लिया | वह एक आदर्श विद्यार्थी था | यद्यपि अन्य लोगों ने सोचा था कि महाविद्यालय का जीवन, सेवा करने की विलियम की इच्छा को ख़त्म कर देगा, परन्तु इसने तो केवल इसे और भड़काने का कार्य किया | उसने एक बाईबल अध्ययन आरम्भ किया और अपने प्रथम वर्ष के अंत में 150 विद्यार्थी वचन अध्ययन और प्रार्थना के लिए प्रति सप्ताह इकट्ठे होते थे | जब वह अंतिम वर्ष में पहुँचा, तब तक येल के तेरह सौ विद्यार्थी में से एक हजार विद्यार्थी “डिसाईपलशिप ग्रुप्स” में थे और वे साप्ताहिक बाईबल अध्ययन और प्रार्थना के लिए इकट्ठे होते थे |
उसने अपनी सुसमाचारीय प्रयास को केवल येल के प्रिस्टीन कैंपस के चारों ओर रहने वाले संभ्रांत लोगों तक ही सीमित नहीं रखा | उसका हृदय दुर्द्शाग्रस्त लोगों की ओर भी समान रूप से लगा हुआ था | उसने येल होप मिशन की स्थापना की | उसने कनेक्टिकट प्रांत के न्यू हेवन शहर के फुटपाथों में रहने वाले लोगों की सेवा की | उसने अनाथों, विधवाओं, बेघरों और भूखे लोगों को आशा और पनाह देते हुए मसीह की सेवा में हाथ बँटाया |
बाहर देश से आये हुए एक यात्री से यह पूछा गया कि उसके अमेरिका प्रवास के दौरान कौन सी बात ने उसे सर्वाधिक प्रभावित किया | उसने उत्तर दिया , “येल होप मिशन का वह दृश्य, जिसमें वह करोड़पति जवान एक फुटपाथ में रहने वाले भिखारी को आलिंगनबद्ध करते हुए अपने घुटने पर था |”
जब बॅार्डेन ने येल विश्वयविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की, तो उसे कई लुभावने रोज़गार प्रस्ताव मिले | तौभी अपने कई मित्रों और रिश्तेदारों को निराश करते हुए, उसने सभी प्रस्तावों को ठुकरा दिया | फिर, उसने अपनी बाईबल के अंतिम पृष्ठ में तीन और शब्द लिखे , “कोई वापसी नहीं” |
उसने प्रिंसटन सेमिनरी [बाईबल सेमीनरी] में दाखिला लिया और पढ़ाई पूरी करने के पश्चात वह चीन जाने के लिए निकल पड़ा | मुस्लिम लोगों के मध्य मसीह की सेवा करने के अभिप्राय से वह अध्ययन करने और अरबी भाषा सीखने के लिए मिस्र देश में रूक गया | परन्तु, वहाँ रहते समय ही, वह स्पाईनल मेनीन्जिटिस [मेरूदण्ड तनिकाशोष] नामक खरतनाक बीमारी से ग्रस्त हो गया | वह केवल एक महीने तक ही जीवित रह पाया |
पच्चीस वर्ष की उम्र में, विलियम बॅार्डेन की मौत हो गई | मसीह को जानने और उसे दूसरों तक पहुँचाने की खातिर बॅार्डेन ने सब बातों को हानि समझा | उसने अपने पुरखों से उत्तराधिकार में मिले जीवन की व्यर्थता में प्रवेश करने से इंकार किया बल्कि उसके स्थान पर उसने यीशु मसीह के लहू के द्वारा मिले छुटकारे की महिमा को जीने का उसने प्रयास किया |
उसकी मृत्यु के पश्चात, जब उसका बाईबल मिला, तो पाया गया कि उसने अंतिम पृष्ठ पर तीन और शब्द जोड़ रखे थे: “कोई पछतावा नहीं” |
जो अपने छुटकारे की कीमत जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि जिसने उन्हें छुआ है, उसके लिए समर्पित एक जीवन, ऐसा जीवन है, जिसमें कोई पछतावा नहीं है…विलियम बॅार्डेन ने उसके साथ जाने का निश्चय किया जिसने उसने छुड़ाया था | आपकी स्थिति क्या है?
[ कार्टर; एन्थोनी (2013-03-19) | ब्लड वर्क, (पृष्ठ संख्या 106-108), रिफॉर्मेशन ट्रस्ट पब्लिशिंग | किन्डल एडिशन |]