धन्य–वचन: भाग 8 धन्य हैं वे जो मेल कराने वाले हैं

(English version: “Blessed Are The Peacemakers”)
यह धन्य–वचन लेख–श्रृंखला के अंतर्गत आठवाँ लेख है | धन्य–वचन खण्ड मत्ती 5:3-12 तक विस्तारित है | यहाँ प्रभु यीशु ऐसे 8 मनोभावों के बारे में बताते हैं, जो उस प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए जो उसका अनुयायी होने का दावा करता है | इस लेख में, हम सातवें मनोभाव को देखेंगे–मेल कराने का मनोभाव, जैसा कि मत्ती 5:9 में वर्णन किया गया है “धन्य हैं वे, जो मेल करवाने वाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलायेंगे |”
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कई प्रकार की हिंसा और युद्धों से भरे संसार में शान्ति एक असंभव सी बात लगती है |एक देश दूसरे देश से युद्ध कर रहा है; एक समुदाय का दूसरे समुदाय से युद्ध चल रहा है; कलीसियाएँ आपस में लड़ रही हैं; पति–पत्नी लड़ रहें हैं और माता–पिता की लड़ाई बच्चों से चल रही है | युद्ध, युद्ध और बस और अधिक युद्ध!
परन्तु, इन साड़ी गड़बड़ियों के मध्य, यीशु मसीह अपने संतानों को मेल कराने वालों के रूप में संसार में भेजता है | केवल ऐसे लोगों के रूप में नहीं जो मेल [शांति] से प्रेम करने वाले हैं, मेल [शांति] की कामना करने वाले हैं, या मेल [शांति] की आशा करने वाले हैं; परन्तु ऐसे लोगों के रूप में जो मेल कराने वाले हैं? ऐसे लोग जिनमें मेल कराने की सामर्थ है–परमेश्वर और मनुष्यों के मध्य तथा मनुष्य और मनुष्य के मध्य एक सच्चा मेल |
‘मेल करानेवाले’ शब्द, दो शब्दों का संयोजन है–मेल और करानेवाले | ‘मेल’ [शांति] शब्द, लड़ाई की अनुपस्थिति से भी अधिक किसी और बात की ओर संकेत करता है | इसमें सम्पूर्णता, कुशलता और परमेश्वर की ओर से आशीष पाने का अर्थ निहित है | और ‘कराने वाले’ शब्द में कुछ बनाने [कराने] या पैदा करने का विचार निहित है–यहाँ के सन्दर्भ में बात करें तो–मेल [शान्ति] उत्पन्न करने का विचार | अतः, एकसाथ मिलाकर बात करें तो ‘मेल कराने वाले’ शब्द में मेल लाने के लिए कार्य करने वाले मसीहियों का विचार निहित है |
मेल तो करना है परन्तु किसी भी कीमत पर नहीं !
मेल कराने वाले बनने की तड़प होने का अर्थ यह नहीं है कि हमें किसी भी कीमत पर मेल कराना है–विशेष तौर पर परमेश्वर के वचन के प्रति आज्ञाकारिता से समझौता करते हुए तो बिलकुल नहीं | इससे पहले का धन्य–वचन हृदय की शुद्धता की माँग करता है–एक ऐसा हृदय जो परमेश्वर को केंद्र में रखता है, एक ऐसा हृदय जो परमेश्वर का–अनुकरण करने का प्रयास करता है | साथ ही साथ यह याद रखें कि परमेश्वर शुद्धता की कुर्बानी देकर मेल नहीं कराता है, इसीलिए हमें भी वैसा ही करने के लिए परिश्रम करना चाहिए | हम शुद्धता की कुर्बानी देकर मेल के लिए परिश्रम नहीं कर सकते हैं और हमें ऐसा बिलकुल भी नहीं करना चाहिए | शुद्धता [पवित्रता], सदैव मेल [शांति] से बढ़कर है!
यह बात भी है कि मेल करानेवाले बनने का अर्थ यह नहीं है कि हमारी जिंदगी में कोई संघर्ष नहीं होगा या यह कि सब लोग हमें पसंद करेंगे | और न ही इसका अर्थ यह है कि हम समस्याओं को छिपा सकते हैं | परन्तु, चाहे बातें उलझी हुई लगें, तौभी हम इस त्रुटिपूर्ण संसार में परमेश्वर के दूत के रूप में मेल कराने के लिए कार्य करने हेतु भेजे गए हैं |
तो यीशु मसीह कहते हैं, कि ये लोग अर्थात मेल कराने वाले लोग ऐसे लोग होंगे जो “परमेश्वर की संतान” कहलायें | निश्चित रूप से यीशु मसीह यह नहीं कह रहे हैं कि मेल कराने वाले बनने से हम परमेश्वर की संतान बनते हैं | यदि ऐसा होता तो कोई भी व्यक्ति परमेश्वर की संतान नहीं बन पाता क्योंकि समय–समय पर हम सब परमेश्वर की आज्ञाओं के स्तर के अनुसार जीवन बिताने में असफल हो जाते हैं |
धन्य–वचन इस बात का वर्णन नहीं करते हैं कि हमें परमेश्वर की संतान बनने के लिए क्या करने की आवयश्कता है | वे उनके शैली और अभिलाषा को बताते हैं, जो पहले से ही परमेश्वर की संतान हैं | तो देखा आपने, हम यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा परमेश्वर के संतान बनते हैं | यूहन्ना 1:12 कहता है, “परन्तु जितनों ने उसे [यीशु को] ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया” | परमेश्वर की संतान बनने के लिए केवल यीशु पर विश्वास करना होता है | परन्तु, मेल करानेवाले बनने की बुलाहट के अनुसार जीने से यह सिद्ध होता है कि उस व्यक्ति का यीशु मसीह में विश्वास सच्चा है | यह कि वह व्यक्ति सचमुच में परमेश्वर कि एक संतान है | वह व्यक्ति, ‘धन्य’ है, एक ऐसा व्यक्ति जिस पर परमेश्वर का अनुमोदन और कृपा ठहरता है |
तब स्वाभाविक रूप से जो प्रश्न उठ खड़ा होता है, वह यह है: मेल करानेवाले में क्या गुण होते हैं, गुण जो सिद्ध करते हैं कि उसका विश्वास सच्चा है? मैं 8 गुणों के बारे में सोच सकता हूँ |
मेल करानेवाले के 8 गुण |
गुण #1: मेल करानेवाले परमेश्वर के साथ मेल में रहते हैं | सब प्रकार के मेलों [शांति] का एक ही आधार है, परमेश्वर के साथ मेल में रहना | और परमेश्वर के साथ मेल रखने का एकमात्र मार्ग उसके पुत्र के द्वारा है, प्रभु और उद्धारकर्ता मसीह के द्वारा | रोमियों 5:1, इस बात को स्पष्ट करता है: “सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें |” यह यीशु मसीह का लहू है, जो हमारे समस्त पापों को धो सकता है | चूंकि यीशु मसीह वह नियुक्त माध्यम है, जिसके द्वारा हम एक पवित्र परमेश्वर के साथ एक रिश्ते में आ सकते हैं, इसीलिए यहीं से आरम्भ किया जाना चाहिए |
गुण #2: मेल करानेवाले उस मेल [शांति] का अनुभव करते हैं, जो यीशु देता है | अपने पकड़वाये जाने वाले रात को यीशु मसीह ने यूहन्ना 14:27 में अपने चेलों से इन बातों को कहा, “मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे |” हताशा के मध्य, यीशु मसीह अपने चेलों को शान्ति देते हैं | उसी शान्ति का प्रस्ताव हमारे लिए भी है | इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम अपने जीवन में किस परिस्थिति से गुजर रहे हैं, जब तक हम यीशु पर आँख लगाये रहते हैं, हम भी उस मेल [शांति] का अनुभव कर सकते हैं, जो यीशु देता है |
गुण #3: जो लोग परमेश्वर के साथ मेल में नहीं हैं , मेल करानेवाले उन लोगों को विस्वस्योग्यता से बताता है कि उनके लिए मेल [शांति ] उपलब्ध है | मेल करानेवाले चाहते हैं कि मसीह के माध्यम से उन्हें जो शान्ति मिली है, दूसरे भी उसी शान्ति को पा लें–एक ऐसी शांति जो यीशु मसीह के लहू के द्वारा उनके पापों के धोये जाने से आता है | इसलिए वे उनको यीशु मसीह का सुसमाचार सुनाते हैं | वे यशायाह 52:7 को अपने दिल में बसाये रखते हैं, “पहाड़ों पर उसके पाँव क्या ही सुहावने हैं जो शुभ समाचार लाता है, जो शान्ति की बातें सुनाता है और कल्याण का शुभ समाचार और उद्धार का सन्देश देता है |” जब वे ऐसे लोगों के संपर्क में आते हैं, जो यीशु मसीह से दूर हैं, तो वे 2 कुरिन्थियों 5:20 में लिखे पौलुस के शब्दों को अभ्यास में उतारने के लिए संघर्ष करते हैं, “हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो |”
गुण #4: मेल करानेवाले सभी लोगों के साथ मेल रखने के प्रयास में रहते हैं | बाईबल, बार–बार सभी मसीहियों को अर्थात उन लोगों को जो मेल करानेवाले कहे गए हैं, बुलाहट देता है कि वे दूसरे लोगों के साथ मेलमिलाप से रहें | यीशु मसीह मत्ती 5:23-24 में हमें आज्ञा देते है , “23 इसलिये यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के साम्हने छोड़ दे | 24 और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा |” रोमियों 14:19 में पौलुस कहता है , “इसलिये हम उन बातों का प्रयत्न करें, जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो |” इब्रानियों का लेखक हमसे बिनती करता है, “जितना संभव हो, सबके साथ मेल–मिलाप से रहो |” इन पदों के आधार पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि मेल [शांति] का पीछा करना कोई वैकल्पिक कार्य नहीं है |
गुण #5: मेल करानेवाले शांति का प्रयास करते हैं, भले ही वे जानते हों कि उनके रिश्ते हमेशा शांतिपूर्ण नहीं रहेंगे| आईये, सच का सामना करें | सिद्ध मेल कराने वाले यीशु मसीह के भी सब के साथ शांतिमय सम्बन्ध नहीं थे | प्रेरितों के भी नहीं थे | और हमारे साथ भी ऐसा ही है | आप जानते ही हैं कि सुसमाचार के प्रति विश्वासयोग्य बने रहना अक्सर संघर्षों को लेकर आता है | यीशु मसीह ने स्वयं कहा कि “यह न समझो कि मैं पृथ्वी पर मिलाप कराने को आया हूं; मैं मिलाप कराने को नहीं, पर तलवार चलवाने आया हूँ |” और यह भी कि “मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे” [मत्ती 10:34-36] |
इसीलिए रोमियों 12:18 में प्रेरित पौलुस ने बुद्धिमानीपूर्वक इन बातों को लिखा, “जहाँ तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो!” जहाँ तक से हमारी बात है, तो हमें दूसरों के साथ मेल बनाये रखने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास करना है | मेल के लिए परिश्रम करते हुए हमें अतिरिक्त दूरी तय करना होगा–हालांकि हमारा सामना कुछ ऐसे लोगों से होगा जो हमेशा लड़ाई की ताक में रहेंगे और ऐसा मात्र इसलिए क्योंकि वे शांति से प्रेम करने वाले नहीं हैं|
गुण #6: मेल करानेवाले हमेशा लोगों के मध्य मेल कराने के लिए परिश्रम करते हैं | दूसरे शब्दों में कहें तो, मसीहियों को यह चिंता अवश्य करनी चाहिए कि जहाँ कहीं संभव हो वे लोगों के मध्य मेल स्थापित कराने के कार्य में सम्मिलित रहें | यह सच है कि लोगों को एक दूसरे के साथ मेल से रहने के लिए प्रोत्साहित करने में बड़ा खतरा है | हमें गलत समझा जा सकता है, हम बदनाम हो सकते हैं और यहाँ तक कि हमारी दोस्ती भी टूट सकती है | परन्तु मेल कराने वाले के रूप में, हमें अवश्य ही हमेशा लोगों के मध्य मेल कराने के लिए परिश्रम करना चाहिए | प्रेरित पौलुस ऐसा ही एक व्यक्ति था |इसका एक उदाहरण फिलिप्पियों 4:2 में मिलता है, जहाँ उसने दो स्त्रियों के मध्य मेल करवाने का प्रयास किया, “मैं यूओदिया को भी समझाता हूँ, और सुन्तुखे को भी, कि वे प्रभु में एक मन रहें |” दूसरा उदाहरण है, फिलेमोन और उसके सेवक उनेसिमुस के मध्य मेल कराने का पौलुस का प्रयास | विश्वासी बनने से पहले, उनेसिमुस फिलेमोन के पास से भाग गया था [अधिकांश सम्भावना है कि वहां से कुछ चुराकर] | इसीलिए, अपने मेल कराने के प्रयास में पौलुस ने यह प्रस्ताव रखा कि यदि उनेसिमुस को कुछ भरपाई करनी है तो उसकी ओर से पौलुस इस कार्य को करेगा , “17 सो यदि तू मुझे सहभागी समझता है, तो उसे इस प्रकार ग्रहण कर जैसे मुझे। 18और यदि उस ने तेरी कुछ हानि की है, या उस पर तेरा कुछ आता है, तो मेरे नाम पर लिख ले” [फिलेमोन 1:17-18] | वह लोगों के मध्य मेल कराने के लिए इस सीमा तक जा सकता था |
गुण # 7: मेल कराने वाले मेल को प्रोत्साहन देने के लिए कीमत चुकाने के लिए इच्छुक रहते हैं | मेल की एक कीमत होती है | हमारा मेल स्वयं से कराने के लिए पिता को कीमत के रूप में अपना पुत्र देना पड़ा , ताकि हम आगे से परमेश्वर के साथ शत्रुता में न रहें | उस मेल को हमारे लिए खरीदने के लिए पुत्र को कीमत के रूप में अपना जीवन देना पड़ा | संसार में सुसमाचार ले जाने वाले आरंभिक प्रेरितों को कीमत चुकानी पड़ी [कुछ को तो अपना जीवन भी] |
इसी प्रकार से, जब हम मेल को प्रोत्साहन देने का प्रयास करते हैं तो कई बार हमें भी कुछ कीमत चुकानी पड़ेगी | इसीलिए, यीशु मसीह अगले धन्य वचन में [मत्ती 5:10-12], धन्य-वचनों के अनुसार जीवन बिताने के परिणामस्वरूप आने वाले क्लेशों के बारे में बात करते हैं | हम चाहे कितनी भी कोमलता से ही क्यों न कहें, सत्य चोट पहुँचाता है, और घमंडी लोग यह सुनना पसंद नहीं करते हैं कि वे गलत हैं | केवल अविश्वासियों से ही हमें यह नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलेगी | विश्वासी भी, घर में, कलीसिया में या यहाँ तक कि कार्यस्थल में भी बेकाबू हो सकते हैं | परन्तु, कीमत चुकाने के डर से हम मेल के लिए प्रोत्साहित करने से पीछे नहीं हट सकते | परमेश्वर हमें मेल को प्रोत्साहित करने की आज्ञा देता है, और हमें उसकी आज्ञा अवश्य ही माननी चाहिए |
गुण #8: मेल कराने वाले, रिश्तों में मेल खोने का कारण नहीं बनेंगे | हालांकि हमें मेल कराने वाले बनने के लिए बुलाया गया है, तौभी हम अक्सर इस तरह से कार्य करते हैं कि हमें मेल–भंग कराने वाले के रूप में पुकारा जा सकता है! हमारे दृष्टिकोण, शब्दों और कार्यों में मेल का पीछा करने की अनुपस्थिति होने की कमी होती है | बल्कि ये तो एक प्रकार के संकेत है कि हम हमारे तरीकों पर अड़े रहते हैं | हम हमेशा ही सही ठहरना चाहते हैं | परमेश्वर न करे यदि कोई हमारी गलतियों पर उंगली रख दे तो आफत ही आ जाती है | ऐसा सब जगह होता है,वैवाहिक रिश्तों में, माता–पिता और संतानों के रिश्तों में, दूसरे विश्वासियों के साथ रिश्तों में, और यहाँ तक कि कार्य स्थल में दूसरे लोगों के साथ भी | मुँह से कितनी अनाप–शनाप बातें | बहुत ज्यादा गुस्सा–बहुत छोटे कारणों से भी | धीरज की कमी और क्षमाशील आत्मा की कमी हमारी नियमित पहचान प्रतीत होती है |
जहाँ घमंड शासन करता है, वहाँ और कुछ नहीं, बस शान्ति की हानि होती है | यदि हम मेल–भंग करानेवाले के समान जी रहें हैं तो हम मेल करानेवाले नहीं बन सकते! इसीलिए याकूब हमें ईश्वरीय बुद्धि का पीछा करने की सही शिक्षा देता है, “16 इसलिये कि जहां डाह और विरोध होता है, वहां बखेड़ा और हर प्रकार का दुष्कर्म भी होता है | 17 पर जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है | 18 और मिलाप कराने वालों के लिये धामिर्कता का फल मेल-मिलाप के साथ बोया जाता है |” [याकूब 3:16-18] |
इस धन्य–वचन के अनुसार जीवन बिताना |
हम मेल कराने वाले के रूप में अपनी बुलाहट को कैसे पूरा करते हैं? केवल एक तरीका है, पवित्रआत्मा पर निरंतर निर्भर रहना | हम इस प्रकार के जीवन को अपने दम पर नहीं जी सकते | इसीलिए यीशु मसीह ने हमारे बदले न केवल इस धन्य–वचन को सिद्धता में जीया, बल्कि इस धन्य–वचन के अनुसार जीवन बिताने में हमारी सहायता करने के लिए हमें पवित्र आत्मा को भी दिया | गलातियों 5:22 में लिखा है, “पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज… है |” यह हमारे अन्दर कार्य करने वाले पवित्र आत्मा की सामर्थ है, जो हमें मेल कराने वाला बनने के लिए शक्ति दे सकता है | और हममें इस मनोभाव को पैदा करने के लिए पवित्र आत्मा, पवित्रशास्त्र के माध्यम से, प्रार्थना के माध्यम से, संगति के माध्यम से, जीवन की विभिन्न परिस्थितियों [मुख्यतः परीक्षाओं] के माध्यम से कार्य करता है |
इसीलिए इस बात को पक्का करना है कि पवित्र आत्मा हमारे अन्दर हो | वह हमारे अन्दर रहे, इसका एक ही तरीका है और वह तरीका है, पापों की क्षमा के लिए केवल यीशु मसीह पर भरोसा रखना | दूसरे शब्दों में कहें तो हमारी बुनियादी आवयश्कता है कि हम परमेश्वर के साथ मेल में रहें [गुण #1 देखें] | तभी और केवल तभी पवित्र आत्मा हममें और हमारे द्वारा मेल के इस अद्भुत गुण को पैदा कर सकता है |
बाईबल लगातार हमें दीन, क्षमाशील, धीरजवंत और अपनी जिद में अड़े न रहने वाले बनने की बुलाहट देता है | बहुत जरूरी है कि हम अपमान और तिरस्कार को अनदेखा करने के इच्छुक रहें और जितना हमारे बस में हो, हम मेल को प्रोत्साहित करें–ठीक वैसा, जैसा यीशु ने किया! हमें अवश्य ही “करुणा,दया,दीनता,नम्रता और धीरज को धारण करना है |” हमें अवश्य ही, “एकदूसरे की सहना है और एक दूसरे को क्षमा करना है |” हमें अवश्य ही उसी तरह “क्षमा करना है, जैसा प्रभु ने किया |” हमें अवश्य ही “प्रेम को बांधना” है और “चूँकि एक देह के अंग होने के नाते हम मेल के लिए बुलाये गए हैं, इसीलिए हमें मसीह की शान्ति को अपने हृदय में राज करने देना है |” और अंतिम बात, हमें अवश्य ही, “धन्यवादित बनना” है [कुलुस्सियों 3:12-17]!
जब हम इस प्रकार की जीवनशैली का अनुकरण करते हैं, तो हम सचमुच में, उसके अनुग्रह से और पवित्रता के लिए सक्षम बनानेवाली पवित्र आत्मा की सामर्थ से मेल कराने वाले के रूप में अपनी बुलाहट को पूरा कर सकते हैं!
मेल करानेवाले सचमुच में धन्य हैं, क्योंकि वे परमेश्वर की संतान कहलायेंगे !