धन्य वचन: भाग 5 धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं

(English version: “The Beatitudes – Blessed Are Those Who Hunger And Thirst For Righteousness”)
यह धन्य–वचन लेख–श्रृंखला के अंतर्गत पाँचवा लेख है | धन्य–वचन खण्ड मत्ती 5:3-12 तक विस्तारित है, जहाँ प्रभु यीशु ऐसे 8 मनोभावों के बारे में बताते हैं, जो उस प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए जो उसका अनुयायी होने का दावा करता है | इस लेख में , हम चौथे मनोभाव को देखेंगे–धर्म के लिए भूखे और प्यासे रहने का मनोभाव , जैसा कि मत्ती 5:6 में वर्णन किया गया है “धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जायेंगे |”
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भौतिक देह के संबंध में बहुधा यह प्रसिद्ध कहावत कही जाती है, “तुम वही हो जो तुम खाते हो |” यदि हम एक स्वस्थ जीवनशैली पाना चाहते हैं, तो अनिवार्य है कि हम केवल सही भोजन करें | भौतिक परिपेक्ष्य में जो बात सही है, वही बात आत्मिक परिपेक्ष्य में भी सही है!
दिलचस्प बात है कि चौथे धन्य–वचन में हमारा प्रभु हमें एक भोजन–योजना देते हैं, शरीर के लिए नहीं, परन्तु हमारी आत्मा के लिए | वे न केवल यह बताते हैं कि हमें क्या “खाना” चाहिए अर्थात धार्मिकता, परन्तु यह भी बताते हैं कि हमें कैसे खाना चाहिए, अर्थात्त एक बड़ी लालसा के साथ | “भूख” और प्यास तो बस एक तीव्र अभिलाषा को दिखाने वाले रूपक हैं | और यह अभिलाषा हैं, “धार्मिकता” के लिए अर्थात “सही ढंग” से जीने के लिए | यीशु मसीह कहते हैं कि जो लोग ऐसी लालसा दिखाते हैं, वे परमेश्वर की आशीष, अनुमोदन और कृपा को पाते हैं | वे “धन्य” लोग हैं | और “धार्मिकता” को एक जीवनशैली के रूप में अपनाने का प्रतिफल क्या है? यीशु मसीह कहते हैं, “वे तृप्त किये जायेंगे |” यही तो इस धन्य–वचन का सार–सन्देश है |
इस धन्य वचन में वर्णित धर्म [धार्मिकता] का अर्थ क्या है?
यहाँ पर जो धार्मिकता का वर्णन है वह मसीह में हमारी स्थिति को नहीं बताता है अर्थात यह धार्मिकता, मसीह पर विश्वास करने के कारण परमेश्वर के साथ हमारे सही संबंध बनने के बारे में नहीं बताता है [रोमियों 3:22] | सारे धन्यवचन और पहाड़ी उपदेश में जिस जीवनशैली की माँग की गयी है, वह सम्पूर्ण जीवनशैली परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने की योग्यता नहीं है | बल्कि इसके विपरीत, ये उन लोगों के गुण होने चाहिए जो प्रवेश कर चुके हैं | ये तो उद्धार के ‘परिणाम’ हैं, उद्धार के ‘कारण’ नहीं |
परन्तु हम सचमुच में कैसे जान सकते हैं कि हमारा परमेश्वर के साथ सही संबंध है? अलग तरीके से कहें तो, हम कैसे आश्वस्त हो सकते हैं कि हमारा सचमुच में उद्धार हुआ है? हम पक्के तौर पर कैसे जान सकते हैं कि हमारा विश्वास सच्चा है? उत्तर: अपने जीवन को यह देखने के लिए परखने के द्वारा कि क्या हम परमेश्वर की दृष्टि में सचमुच धर्मी हैं | यह धार्मिकता, वह ‘धार्मिकता’ है, जिसे ‘प्रायोगिक धार्मिकता’ कहा जाता है | यीशु मसीह में विश्वास के कारण मिलने वाली ‘स्थैतिक धार्मिकता’ सदैव ‘प्रायोगिक’ धार्मिकता की ओर ले जाती है! “हर एक अच्छा पेड़, अच्छा फल लाता है” [मत्ती 7:17]!
प्रायोगिक धार्मिकता के गुण |
क्या आप जानते हैं कि हमारा जीवन कभी झूठ नहीं बोलता है | वे हमें बताते हैं कि क्या हम वही कार्य कर रहे हैं जो परमेश्वर के मापदण्ड के अनुसार है अर्थात यह कि वे कार्य परमेश्वर कि दृष्टि में सही हैं कि नहीं | तो, यह है, वह धार्मिकता जिसके बारे में यीशु मसीह इस धन्य वचन में बात कर रहे हैं–धार्मिकता का प्रायोगिक पक्ष | वास्तव में, सम्पूर्ण पहाड़ी उपदेश में यीशु मसीह इस बात का वर्णन करते हैं कि वह किस प्रकार का जीवन है जो परमेश्वर की दृष्टि में सही है | यदि हम मत्ती 5-7 का थोड़ा सर्वेक्षण करें तो , हमें कुछ इस प्रकार की बातें मिलेंगी |
एक धर्मी जीवन में भूख और प्यास होगी: मेल–मिलाप के लिए [मत्ती 5:23-24], यौन शुद्धता के लिए [मत्ती 5:28], वैवाहिक विश्वासयोग्यता के लिए [मत्ती 5:32], पवित्र बोलचाल के लिए [मत्ती 5:37], पलटा नहीं लेने के लिए [मत्ती 5:39], शत्रुओं से प्रेम करने के लिए [मत्ती 5:44], केवल परमेश्वर को प्रसन्न करने हेतु धर्म के काम करने के लिए [मत्ती 6:1], स्व-उन्नति के स्थान पर परमेश्वर की महिमा के लिए प्रार्थना करने के लिए [मत्ती 6:9-15], स्वर्ग में धन इकट्ठा करने के लिए [मत्ती 6:19-21], चिंता में पड़ने के स्थान पर, परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए [मत्ती 6:25-33], दूसरों का न्याय तरस भाव के साथ करने लिए [मत्ती 7:1-12], और अंततः यीशु मसीह के वचनों पर जीवन निर्माण करने के लिए [मत्ती 7:24-27] |
तो देखा आपने, पहाड़ी उपदेश में यीशु मसीह हमें सविस्तार बताते हैं कि एक धर्मी जीवन कैसा दिखता है | यीशु मसीह के अनुयायियों में, जिनमें पवित्र आत्मा वास करता है, हमेशा वह कार्य करने की भूख होती है, जो सही है | जिस प्रकार से हमारी प्राकृतिक देह प्रतिदिन भोजन और पानी के लिए तड़पती है, वैसे ही आत्मिक पक्ष इस धार्मिकता के लिए तड़पता है–हर समय इस सही जीवन शैली के लिए | यह कभी संतुष्ट नहीं होती है | इसी कारण से , यीशु मसीह इस भूख और प्यास का वर्णन वर्तमान काल का प्रयोग करते हुए करते हैं–जो उस कार्य को करने के लिए जो परमेश्वर की दृष्टि में सही है, हमेशा भूखा और प्यासा रहता है | यह सदा–उपस्थित और सदैव बढ़ने वाली भूख है | यह धर्म का कोई बाहरी प्रदर्शन नहीं है, परन्तु ह्रदय की गहराईयों से परमेश्वर की आज्ञा को मानने के लिए कभी ख़त्म न होने वाली एक अभिलाषा है |
एक धर्मी ह्रदय की निरंतर पुकार, उस बूढ़े स्काटलैंड वासी विश्वासी के पुकार के समान होती है, “हे परमेश्वर मुझे उतना ही पवित्र बना दे, जितना एक क्षमाप्राप्त पापी हो सकता है!” और जब परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में वह असफल होता है, तो उसकी आत्मा में भारी वेदना होती है | कोई बहाना नहीं बनाया जाता बल्कि एक ऐसा सच्चा दुख होता है जो पाप को मानने और पाप शुद्धि के लिए रास्ते पर वापस आने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करने की ओर ले जाता है |
एक धर्मी जीवन के लिए प्रतिफल |
यीशु मसीह, धर्म के लिए भूखे , और प्यासे लोगों से प्रतिज्ञा करते हैं कि , “वे [और केवल वे ही] तृप्त होंगे” | यहाँ प्रयुक्त भाषा संकेत देती है कि यह तृप्ति वैसी तृप्ति नहीं है जो हम अपने लिए कर सकते हैं | यह ऐसा कुछ है , जो परमेश्वर हममें करता है | परमेश्वर हमें तृप्त करता है | परन्तु परमेश्वर हमें किस बात से भरता है? यहाँ किस बात की तड़प है? धार्मिकता की तड़प! परमेश्वर हमें उस धार्मिकता से तृप्त करता है, जिसके लिए हम भूखे और प्यासे रहते हैं!
एक अर्थ में, हम जो यीशु मसीह के अनुयायी हैं , उस आनंद का अनुभव करते हैं, जो हमें हमारी स्थैतिक धार्मिकता से मिलती है | अतः, एक प्रकार की तृप्ति है, जिसका अनुभव हम करते हैं | परन्तु जब हम उस कार्य को करने की लालसा भी करते हैं जो परमेश्वर की दृष्टि में सही है, तो पवित्र आत्मा वास्तव में हमारी सहायता करता है कि हम उस लालसा को कार्य में बदल सकें | और उस अर्थ में उस लालसा की तृप्ति होती है | यह है प्रायोगिक धार्मिकता का आनंद|
परन्तु हममें पाप के बसे होने के कारण इस लालसा की तृप्ति निरंतर नहीं होती है | परन्तु, भविष्य में, जब यीशु मसीह वापस आयेंगे, तो हमें नया देह मिलेगा | और वह नयी देह, फिर पाप नहीं करेगी, और इस प्रकार पूरी अनन्ता तक, हम निरंतर परमेश्वर की आज्ञाओं के प्रति समर्पित बने रहेंगे | और तब हम निरंतर उस आनन्द से तृप्त रहेंगे जो अनवरत आज्ञाकारिता के कारण मिलता है |
क्या आप एक सम्पूर्ण आज्ञाकारिता वाले जीवन की कल्पना कर सकते हैं–हमेशा वही करना जो परमेश्वर परमेश्वर की दृष्टि में सही है? हम धार्मिकता को केवल व्यक्तिगत जीवन में नहीं, बल्कि सम्पूर्ण संसार में शासन करते देखेंगे | पतरस कहता है , “पर उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धामिर्कता वास करेगी |” [2 पतरस 3 :13]| जो अभी लालसा करते हैं–वे अंततः पायेंगे कि जब यीशु मसीह भविष्य में अपना राज्य स्थापित करेंगे तब उनकी लालसा सम्पूर्णता में पूरी हो जाएगी | यह है उसकी प्रतिज्ञा |
धार्मिकता की जीवनशैली का अनुकरण करने के तीन लाभ |
हालंकि यह धन्य वचन जिस धार्मिकता की जीवनशैली की बुलाहट देता है , उसके कई लाभों कि सूची बनाई जा सकती है, परन्तु मैंने हमारी समझ के लिये तीन लाभों को सूचीबध्द किया है |
लाभ # 1: हमें उद्धार का एक सच्चा आश्वासन मिलता है [रोमियों 8:14 -16]
निम्न दर्जे की आज्ञाकारिता से उच्च दर्जे का आश्वासन प्राप्त नहीं किया जा सकता इस बारे में सोचिए | जब हम अपने उद्धार पर संदेह करते है, तो क्या अधिकांश समय इसका कारण पाप में जीवन बिताना नहीं होता है? बेशक, कोई भी व्यक्ति अपने उद्धार के विषय में धोखा खा सकता है | परन्तु सामान्य तौर पर बात करें, तो एक जीवनशैली के रूप में आज्ञाकारिता अवश्य ही सच्चे आश्वासन को प्रदान करती है और परिणामस्वरूप हम मसीह जीवन में आनन्द का अनुभव करते हैं |
लाभ #2: हमें हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर मिलेगा, व्यक्तिगत रूप से भी और दूसरे के लिए प्रार्थना में [भजन संहिता 66:18, याकूब 5:16ब]|
जिस प्रकार से पाप परमेश्वर को रोकती है ताकि वह हमारी प्रार्थनाओं को न सुनें, ठीक वैसे ही धार्मिकता परमेश्वर के लिये द्वार को खोलती है ताकि वह हमारी प्रार्थना को सुने और उनका उत्तर दें | यदि हम पाप में ही जीते रहें और उसे छोड़ने की इच्छा हममें न हो तो व्यक्तिगत प्रार्थना और दूसरों के लिए की जाने वाली प्रार्थनायें अनुपयोगी सिद्ध होंगे | परन्तु जब ये प्रार्थनाएं उस व्यक्ति के द्वारा की जाती है, जो धार्मिकता के लिए भूखा और प्यासा है, तब ये प्रार्थनायें सामर्थशाली बन जाती हैं |
लाभ #3: आप मसीह के लिए एक प्रभावशाली गवाह बन सकते है [मत्ती 5:16, 1 पतरस 2:12]|
एक धार्मिक जीवन छिपा हुआ नहीं रह सकता है | सुसमाचार के लिए ऐसा जीवन सर्वोत्तम विज्ञापन है | एक परिवर्तित जीवन दर्शाता है कि यीशु मसीह में जीवन को परिवर्तित करने की सामर्थ है |
धार्मिकता के लिए एक अनवरत भूख और प्यास कैसे पैदा करें?
हम इस धन्य–वचन में कैसे बढ़ें? हम इस धार्मिकता के लिए एक अनवरत भूख और प्यास कैसे पैदा करें? ऐसा हम दो तरीके से कर सकते हैं |
1. अवश्य ही हमें सक्रिय रूप से स्वयं परमेश्वर के प्रति ही एक लालसा पैदा करनी चाहिए |
सर्वप्रथम हमें इस बात को समझना होगा कि जो सही है वह करने की लालसा तभी आती है, जब स्वयं परमेश्वर के प्रति एक गहरी लालसा होती है–परमेश्वर जो पूर्णत–धर्मी है उसके प्रति एक लालसा! यह केवल एक सही जीवन जीना ही नहीं है | मुख्य रूप से, हमें स्वयं परमेश्वर का अनुकरण करना चाहिए, जो सब प्रकार की धार्मिकता का स्रोत और सरल धार्मिकता है | परमेश्वर के लोगों का बीता समय में यही दृष्टिकोण रहा है |
भजन संहिता 42:1 “जैसे हरिणी नदी के जल के लिये हाँफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिये हाँफता हूँ|”
भजन संहिता 63:1 “हे परमेश्वर, तू मेरा ईश्वर है, मैं तुझे यत्न से ढूँढूँगा; सूखी और निर्जल ऊसर भूमि पर, मेरा मन तेरा प्यासा है, मेरा शरीर तेरा अति अभिलाषी है |”
यशायाह 26:9 “रात के समय मैं जी से तरी लालसा करता हूं, मेरा सम्पूर्ण मन से यत्न के साथ तुझे ढूंढ़ता है। क्योंकि जब तेरे न्याय के काम पृथ्वी पर प्रगट होते हैं, तब जगत के रहने वाले धर्म की सीखते हैं |”
अतः हमें अवश्य ही स्वयं परमेश्वर के लिए तड़पना चाहिए | किसी भी वस्तु से बढ़कर, उन वस्तुओं को देने वाला दाता ही हमारे ह्रदय की अभिलाषा होनी चाहिए |
2. हमें अवश्य ही सक्रियता दिखाते हुए परमेश्वर के वचन के एक लालसा उत्पन्न करनी चाहिए!
दूसरी बात यह है कि परमेश्वर के प्रति लालसा में यह वृद्धी अवश्य ही परमेश्वर के वचन के प्रति हमारी लालसा में वृद्धी करनी चाहिए | क्यों? एक मिनट के लिए इस बारे में सोचिये | जब हम किसी से प्यार करते हैं, तो हम उसके बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं | वे क्या पसंद करते हैं, उन्हें क्या पसंद नहीं है, इत्यादि |
इसी प्रकार से, यदि हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं और जानना चाहते हैं कि उसे क्या पसंद नहीं है, तो हमें अवश्य ही एक स्रोत की ओर जाना होगा जो इन सच्चाईयों को हम पर प्रगट करता है–और वह स्रोत है, पवित्रशास्त्र | चूँकि इस धन्य वचन में जिस धार्मिकता की बात की गई है, उसका अर्थ है, वह करना, जो परमेश्वर की दृष्टि में सही है, और फिर वह एकमात्र स्थान जहाँ से हम पा सकते हैं कि परमेश्वर की दृष्टि में सही क्या है, वह है उसका पवित्र वचन | दूसरे शब्दों में कहें तो, जो लोग धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, परमेश्वर का वचन अवश्य ही उनका नियमित भोजन होना चाहिए | यही कारण है कि हम बाईबल में बार–बार परमेश्वर के लोगों को परमेश्वर के वचन की निरंतर अभिलाषा करते और उसमें आनंदित होते हुए देखते हैं |
भजन 119:20 “मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है |”
अय्यूब 23:12 “उसकी आज्ञा का पालन करने से मैं न हटा, और मैं ने उसके वचन अपनी इच्छा से कहीं अधिक काम के जान कर सुरक्षित रखे |”
यिर्मयाह 15:16 “जब तेरे वचन मेरे पास पहुँचे, तब मैं ने उन्हें मानो खा लिया, और तेरे वचन मेरे मन के हर्ष और आनन्द का कारण हुए; क्योंकि, हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मैं तेरा कहलाता हूँ |”
मत्ती 4:4 “मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा |”
1 पतरस 2:1-3 “1 इसलिये सब प्रकार का बैर भाव और छल और कपट और डाह और बदनामी को दूर करके | 2 नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो, ताकि उसके द्वारा उद्धार पाने के लिये बढ़ते जाओ | 3 यदि तुम ने प्रभु की कृपा का स्वाद चख लिया है |”
परमेश्वर के वचन के प्रति हममें जितनी भूख होगी, उतना ही हम परमेश्वर की आज्ञाओं को मानेंगे–यह भूख केवल अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए नहीं, परन्तु आज्ञाकारिता के लिए होनी चाहिए | हम जितना अधिक आज्ञा मानेंगे, उतना ही अधिक धार्मिकता के इस तृप्ति का अनुभव करेंगे | परिणामस्वरूप, हममें परमेश्वर के वचन के प्रति और अधिक भूख और प्यास उत्पन्न होगी | यह चक्र चलता रहेगा |
इसी प्रकार से, हम जितना अधिक अनाज्ञाकारिता में चलते हैं, परमेश्वर के वचन के प्रति उतनी ही कम भूख और प्यास होती है | और परमेश्वर के वचन के प्रति जितनी कम भूख और प्यास होगी, आज्ञाकारिता में उतनी ही कमी आयेगी | इस घटना में, ये दोनों एक दूसरे का पोषण करते हैं–इस बार एक नकारात्मक अर्थ में |
अतः परमेश्वर के प्रति लालसा, परमेश्वर के वचन के प्रति लालसा की ओर ले जाता है–धार्मिकता के भूख और प्यास में बढ़ने के लिए ये दो साधन हैं | क्या आपमें ऐसी एक लालसा है? याद रखिये, आप वही हैं, जो आप खाते हैं | आपके हृदय की अभिलाषा क्या है? अभिलाषायें झूठ नहीं बोलती हैं!
इस धार्मिकता के प्रति भूख और प्यास के लिए एक निवेदन |
भारत देश में, एक रस्म है, जिसे कई हिन्दु तब करते हैं, जब किसी की मौत हो जाती है | मुझे स्मरण आता है कि मेरे पिता की मृत्यु होने पर, एक छोटे लडके के रूप में मैंने यह रस्म निभाया था [तब मेरा उद्धार नहीं हुआ था] | मृत व्यक्ति के मुँह में एक मुट्ठी चावल डाला जाता था | और जब मृत देह शमशान पहुंचा दिया जाता था, तब भी वह चावल साबूत ही रहता था | क्यों? क्योंकि एक मृत देह को भूख और प्यास नहीं है!
इसी प्रकार, आत्मिक रूप से मृत लोगों में धार्मिकता की कोई भूख और प्यास नहीं होती है | अतः यदि आप एक मसीही होने का दावा करते हैं और तब भी जो परमेश्वर की दृष्टि में सही है, वह कार्य करने की भूख आपमें नहीं है, तो फिर आपको इस महत्वपूर्ण प्रश्न को अवश्य ही पूछना चाहिए: क्या मैं आत्मिक रूप से जीवित हूँ?
स्मरण रखें, पहाड़ी उपदेश एक दर्पण है, जिसे यीशु मसीह हमारे सामने रखते हैं ताकि हम देखें कि क्या हमारा जीवन उस जीवन से मेल खाता है, जिस प्रकार का जीवन जीने को यीशु मसीह ने उसके अनुयायी होने का दावा करने वालें लोगों को कहा | पहाड़ी उपदेश के अंत में उसके द्वारा कहे गए शब्द इस बात को स्पष्ट करते हैं , “जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है” [मत्ती 7:21]| अन्य बातों के साथ , पिता की इच्छा यह है कि हममें धार्मिकता के लिए एक पवित्र भूख और एक पवित्र प्यास होनी चाहिए–उसकी दृष्टि में जो सही है, वह कार्य करने की भूख | यदि हममें वह भूख नहीं है, तो हम वैधानिक रूप से उसकी संतान होने का दावा नहीं कर सकते हैं |
यह जरूरी है कि हम अपने आप को धोखा न दें | यदि हमारी जीवनशैली धार्मिकता को नहीं दिखाती है, तो हमें बिना देर किये पश्चाताप करना है और अपने पापों के कारण टूटे हुए सच्चे मन से मसीह के पास आयें और उसके द्वारा दिए जाने वाले क्षमा को विश्वास के द्वारा ग्रहण करें | यह वह तरीका है, जिससे हम परमेश्वर की धार्मिकता को प्राप्त करते हैं | और फिर उस समय से हम पवित्र आत्मा द्वारा उत्त्तेजित किये जायेंगे कि हम जब तक जीवित रहते हैं तब तक अपने प्रतिदिन के जीवन में इस धार्मिकता के लिए अधिक और अधिक लालसा रखें, और परमेश्वर इस लालसा को पूरी करते रहेंगे | और जब मसीह वापस आएगा , तो हम एक ही बार में और हमेशा के लिए उस पूर्ण तृप्ति को पा लेंगे, क्योंकि उस समय से सर्वदा परमेश्वर को प्रसन्न करेंगे |
एक चेतावनी |
जो लोग इस जीवन में , धार्मिकता के जीवन के भूख और प्यास की अवहेलना करते हैं, वे लोग भविष्य में एक भूख और प्यास का अनुभव करेंगे | परन्तु, यह तो उस क्लेश से राहत पाने की एक भूख और प्यास होगी जो क्लेश नर्क की पीड़ा का परिणाम है [लूका 16:24] | और उस भूख और प्यास से तृप्ति कभी नहीं मिलेगी–अनन्तकाल तक भी नहीं | क्या ही भयानक जीवन!
हम वही हैं, जो हम खाते हैं | यदि पाप हमारा भोजन है, तो उसका अंतिम परिणाम है, नर्क में भयानक क्लेश | वहीँ दूसरी तरफ, यदि हमारा भोजन धार्मिकता है, तो अंतिम परिणाम है, स्वर्ग में अपरम्पार आशीष | केवल ये दो मंजिलें हैं | हम क्या चुनेंगे? भयानक क्लेश या अपार आनन्द? परमेश्वर हमारी सहायता करे कि, यीशु मसीह इस धन्य–वचन में जिस बात का अनुसरण करने की बुलाहट देते हैं, हम उस बात का अनुसरण करने के कारण आनन्द का चुनाव कर सकें | वे लोग सचमुच में धन्य हैं , जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं , क्योंकि वे तृप्त किये जायेंगे |