प्रभु के साथ एक अर्थपूर्ण ध्यान – मनन का समय कैसे गुजारें

(English version: “How To Have A Meaningful Quiet Time With The Lord”)
बहुत पहले की बात है, एक प्रचारक जो संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर आया हुआ था, एक शाम के समय किसी से फोन पर बात करना चाहता था | वह एक टेलीफोन बूथ में गया, परन्तु उसे वह बूथ अपने देश के टेलीफोन बूथों से अलग लगा | अन्धेरा होने लगा था, इसलिए उसे टेलीफोन निर्देशिका [Directory] में नंबर ढूँढने में दिक्कत हो रही थी | उसने छत पर एक लाईट–बल्ब देखा परन्तु उसे मालूम नहीं था कि उसे कैसे जलाये | जब वह शाम की धूमिल होती रोशनी में एक बार और नंबर को ढूँढने का प्रयास कर रहा था, तो वहाँ से गुजरने वाले एक व्यक्ति ने उसकी परेशानी पर गौर किया और कहा, “महाशय, यदि आप लाईट को चालू करना चाहते हैं, तो आपको दरवाजा बंद करना पड़ेगा |” जब उसने दरवाजा बंद किया तो बूथ रोशनी से जगमगा उठा, वह अब विस्मित और संतुष्ट था | उसने जल्दी ही नंबर ढूंढ लिया और फोन पर उसकी बात हो गई |
इसी प्रकार, हमें अपने व्यस्त जीवन की भागदौड़ को रोकना चाहिए और एक शांत स्थान में आना चाहिए ताकि परमेश्वर हमारे ह्रदय में अपने प्रकाश को चमकाये | तौभी, कई मसीही इस अत्यावश्यक मसीही अनुशासन की अक्सर अनदेखी करते हैं | इस लेख में इस विषय से संबंधित चार प्रश्न पूछे गए हैं और फिर उनका उत्तर भी दिया गया है | आशा करता हूँ कि प्रश्नों को पूछने और फिर उनका उत्तर देने के द्वारा यह लेख मसीहियों को इस अनुशासन को निरंतर अभ्यास में लाने के लिए प्रोत्साहित करेगी |
परन्तु, उन प्रश्नों को देखने से पूर्व आईये हम एक महत्वपूर्ण सच्चाई को स्मरण करें | ध्यान–मनन का समय प्रभु से आशीष पान एका कोई माध्यम नहीं है परन्तु यह तो हमारे भले प्रभु पर हमारी निर्भरता और उसके प्रति हमारे प्रेम को दर्शाने का एक प्रमाण है | हम अनुग्रह के लिए कार्य नहीं कर रहे हैं बल्कि अनुग्रह से कार्य कर रहे हैं | दूसरे शब्दों में कहें तो, केवल पापों से मन फिराने और हमारे पापों के लिए मसीह द्वारा बहाये गये लहू पर विश्वास करने के द्वारा ही हम परमेश्वर के सम्मुख निर्दोष खड़े हो पाते हैं | हमारा उद्धार हुआ है, केवल अनुग्रह के द्वारा, केवल विश्वास से और केवल मसीह पर विश्वास के द्वारा | ध्यान–मनन का समय, एक ऐसा आत्मिक अनुशासन है जो उद्धार के बाद आरम्भ होता है, यह उद्धार–प्राप्ति का कारण नहीं है | यह ऐसा कोई माध्यम नहीं है जिसके द्वारा हम अपने प्रभु से कोई आशीष पाते हैं |
इतना कहकर, आईये हम आगे बढ़ें!
1. ध्यान–मनन का समय क्या है?
यह वह दैनिक समय है जो एक व्यक्ति नितांत व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के साथ अकेले में गुजारता है और ऐसा वह बाईबल पढ़ते हुए [जब परमेश्वर हमसे बात करता है] एवं प्रार्थना करते हुए [जब हम परमेश्वर से बात करते हैं] करता है |
2. ध्यान–मनन का समय किसके लिए है?
प्रत्येक मसीही को प्रभु के साथ ध्यान–मनन का समय गुजारना चाहिए | 1 कुरिन्थियों 1:9 में हम पढ़ते हैं, “परमेश्वर सच्चा है; जिस ने तुम को अपने पुत्र हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाया है |” यहाँ ‘संगति’, शब्द का अर्थ है, साझा करना या किसी वस्तु पर बराबरी का अधिकार होना | यह एक अंतरंग रिश्ते को दर्शाता है | जैसा कि उत्पत्ति 1 और 2 अध्याय में प्रगट है, परमेश्वर ने मनुष्य को अपने साथ संगति के लिए बनाया | हालांकि आदम के पाप ने परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते को तोड़ दिया, परन्तु परमेश्वर ने मसीह के द्वारा उस टूटे हुए रिश्ते को पुनः जोड़ा | और निरंतर संगति रखने के द्वारा इस रिश्ते का पालन–पोषण होता है और ध्यान–मनन का समय वह एक माध्यम है जिसके द्वारा संगति का पोषण किया जा सकता है और इसमें नवीनता लाई जा सकती है |
3. ध्यान–मनन क्यों करना चाहिए?
इसके कई कारण हैं | कुछ कारण निम्नलिखित हैं:
क ) मसीह के बारे में और अधिक जानने के लिए | अपने जीवन के उत्तरकालीन समय [कई वर्ष गुजारने के बाद का समय] में भी पौलुस ने लालसा के साथ कहा, “मैं मसीह को जानना चाहता हूँ” [फिलिप्पियों 3:10] | मसीह के बारे में किसी का ज्ञान तब बढ़ता है जब कोई व्यक्ति अकेले में परमेश्वर के वचन के अध्ययन में अधिक समय गुजारता है, वचन मसीह के बारे में वे सब बातें प्रगट करता है जिन्हें जानने की हमें आवश्यकता है |
ख ) मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए | दाऊद ने पुकारा, “4 हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे | 5 मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्धार करने वाला परमेश्वर है; मैं दिन भर तेरी ही बाट जोहता रहता हूँ |” हम भेड़ें हैं और हमें उस अच्छे चरवाहे से सतत मार्गदर्शन की आवश्यकता है | जब हम उसके साथ अकेले में समय गुजारते हैं तो वह अपने वचन के द्वारा हमारा मार्गदर्शन करता है |
ग ) विश्वास में दृढ़ होने के लिए | मसीही जीवन कोई गुलाब का बिछौना नहीं है | मुश्किलों की भरमार है | हमें स्मरण दिलाया गया है कि, “वह [प्रभु यीशु] जंगलों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था” [लूका 5:16] | यदि हमारे प्रभु और स्वामी ने पिता के साथ अकेले मिलने का समय अलग कर रखा था, तो क्या हम इस अनुशासन की अनदेखी कर सकते हैं? मसीही के तीन शत्रु–देह, संसार और शैतान हमारे विश्वास को पटरी से उतारने के लिए निरंतर लगे रहते हैं | केवल परमेश्वर के साथ अकेले में समय गुजारने के द्वारा अपने विश्वास में दृढ़ होकर ही हम इन सामर्थी और निष्ठुर शत्रुओं से लड़ सकते हैं!
इनके अतिरिक्त और भी कारण जोड़े जा सकते हैं | परन्तु ये तीन कारण पर्याप्त होंगे हमें यह समझाने के लिए कि प्रभु के साथ ध्यान–मनन का समय गुजारना आवश्यक है ताकि हम इस धरती पर हमारे दैनिक जीवन में दृढ़ हो सकें |
4. एक अर्थपूर्ण ध्यान–मनन समय का समय कैसे गुजारें?
चूंकि आज्ञाकारिता–रहित ज्ञान अनुपयोगी ही है, इसलिए आईये देखें कि इस आत्मिक अनुशासन को हम “कैसे” लागू करें | हमारे ध्यान देने के लिए तीन महत्वपूर्ण बातें हैं |
क ) एक नियत समय: विश्वासियों को प्रभु के साथ प्रति सुबह और प्रति रात समय गुजारने के लिए कम से कम एक नियत समय ठहराना चाहिए | हम प्रभु को देखे बगैर अपने दिन की शुरुआत नहीं कर सकते हैं | प्रातः कालीन मनन के महत्व को बताते हुए हडसन टेलर ने ऐसा कहा, ‘आप संगीत समारोह के पश्चात अपने वाद्ययंत्रों को ठीक नहीं करते हैं, बल्कि यह काम आप समारोह से पहले करते हैं!’
प्रातः कालीन मनन के लिए सही समय पर जागने के लिए आवश्यक है कि एक सही समय पर सोया जाये | आवश्यक है कि हम रात को सोने से पहले प्रार्थना करें कि प्रभु सुबह उठने में हमारी सहायता करे ताकि हम उसके साथ समय गुजार सकें | और जब सुबह अलार्म बजे तो बिस्तर से उठने के बारे में सोचते रहने के स्थान पर हमें तुरंत उठ जाना चाहिए | हमें सचेत रहना चाहिए कि बिस्तर से उठने की लड़ाई पहले पाँच सेकंड्स में ही हारी या जीती जाती है | हमें प्रभु को पहली प्राथमिकता देने के लिए अवश्य संघर्ष करना चाहिए |
इसके साथ ही साथ हमें अपने दिन का समापन भी प्रभु के साथ करना चाहिए | उसने हमें दिन भर चलाया | वह धन्यवाद पाने का हकदार है | इसीलिए हमें रात के मनन को आधी नींद में करने से बचना चाहिए | प्रभु को पूरा अधिकार है कि वह हमसे पूर्ण सावधान स्थिति में रहने की अपेक्षा करे |
हालांकि प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से यह निर्णय लेना चाहिए कि वह कितना समय गुजारेगा, तौभी सुझाव यह है कि हम सुबह 20 मिनट और रात को 20 मिनट गुजारने का प्रयास कर सकते हैं और कुछ समय गुजर जाने के बाद इस समयावधि को बढ़ा सकते हैं | इसके साथ ही यदि समय हमें अनुमति दे तो हमें दिन के समय भी प्रभु के साथ वार्तालाप के लिए कम से कम कुछ मिनट निकालने के लिए संघर्ष करना चाहिए | इसके अतिरिक्त, सप्ताहांत [सप्ताह का आख़िरी दिन] में प्रभु के साथ समय गुजारने के लिए अधिक समय अलग करने का प्रयास किया जा सकता है |
ख ) एक नियत स्थान: यदि संभव हो तो अच्छा होगा कि एक निजी और शांत स्थान तय कर लें जहाँ प्रभु के साथ बिना व्यवधान के [टी. वी., इंटरनेट, मोबाईल इत्यादि के व्यवधानों के बिना] समय गुजारा जा सके | प्रभु के साथ हमारे संवाद के लिए एकांत स्थान अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकता है | किसी को यह स्थान अपने घर के किसी कोने में मिल सकता है और किसी को अपने कार में | जगह कहीं पर भी मिले, हमें एक ऐसा स्थान ढूँढना होगा जिसे हम अपनी, “गुप्त कोठरी” कह सकें |
ग ) एक नियत तरीका: बाईबल अव्यवस्थित विचारों से भरी पुस्तक नहीं है | परमेश्वर ने एक उत्तरोत्तर एवं सुव्यवस्थित ढंग से अपने प्रकाशन को प्रदान किया है | इसीलिए, हमें बाईबल पठन की एक ऐसी सुसंगत योजना बनानी चाहिए जिससे हमें सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र का अध्ययन करने में सहायता मिले और फिर हमें उस योजना के अनुसार चलना चाहिए | पवित्रशास्त्र के अध्ययन के साथ ही साथ हमें प्रार्थना में समय गुजारने की भी आवश्यकता है | हमारी प्रार्थना में, परमेश्वर की स्तुति करना, अपने पापों का अंगीकार करना, धन्यवाद देना और परमेश्वर से निवेदन करना सम्मिलित होने चाहिए |
अब चार प्रश्नों कोक संक्षेप में देखने के पश्चात, हम कुछ अंतिम बातों को देखेंगे |
किसी भी कार्य को आदत बनने के लिए लगभग चार सप्ताह लगते हैं | यदि हम नियमित रूप से ध्यान–मनन नहीं कर पा रहे हैं, तो फिर क्यों न ऐसा करना हम तुरंत आरम्भ करें–आज रात से या कल सुबह से? यदि हम कहें कि हम तब तक इंतज़ार करेंगे जब तक ऐसा करने के लिए हममें लालसा उत्पन्न न हो जाए, तो हमारी देह [और शैतान] इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे कि हममें वह लालसा उत्पन्न न होने पाए |
यह बात सच है कि एक मसीही को अपने ध्यान–मनन के दौरान कई बार खालीपन का अहसास होता है | परन्तु इनके कारण ध्यान–मनन करना नहीं छोड़ना चाहिए | बल्कि ऐसे समय में तो हमें अपने प्रभु के और समीप रहने की आवश्यकता होती है! कई लोगों ने [पासबानों ने भी] इस बात को स्वीकारा है कि उनके किसी विशेष पाप में गिरने से पहले, उनका ध्यान–मनन करने का कार्य यदि पूरी तरह से नहीं रुका था तो कम से कम इस कार्य में शिथिलता तो आ ही चुकी थी |
हमें अपने स्वयं को जीवन को जाँचने और एक गंभीर प्रश्न पूछने की आवश्यकता है: यदि हम किसी पाप में संघर्ष कर रहे हैं या अपने मसीही जीवन में कोई अधिक आत्मिक उन्नति या आनंद महसूस नहीं कर रहे हैं तो कहीं यह अपने प्रभु के साथ एक निरंतर ध्यान–मनन के समय के अभाव के कारण तो नहीं हुआ है? यदि ऐसा है, तो होने पाए कि हम इस पाप से मन फिरायें और तुरंत सारी बातों को ठीक करें!
मसीहियत को स्वीकार करने वाले आरंभिक अफ्रीकी विश्वासी अपने व्यक्तिगत मनन में नियमित और उत्साही थे | कहा जाता है कि झाड़ियों के बीच में उनमें से प्रत्येक का एक निजी स्थान हुआ करता था जहाँ वे अपने परमेश्वर के सम्मुख अपने ह्रदय को उण्डेलते थे | समय गुजरने के साथ ही, लगातार चलने के कारण उस मार्ग की घास गायब हो जाती थी | इसका नतीजा ये होता था कि यदि कोई विश्वासी प्रार्थना की अनदेखी करता था तो दूसरों को यह बात जल्द ही पता चल जाती थी | वे उस व्यक्ति को प्रेम के साथ स्मरण दिलाते थे, “भाई, तुम्हारे मार्ग में घास उग आये हैं |”
आईये, हम अपने जीवन को जाँचें : क्या हमारे मार्गों में घास उग आये हैं? यदि ऐसा है, तो अभी बहुत देर नहीं हुई है | आईए, मन फिरायें और प्रभु से प्रार्थना करें कि वह पवित्र आत्मा की सामर्थ से हमें मार्ग पर वापस आने में सहायता करे | वह हमारी सच्ची पुकार को सुनेगा | वह मार्ग में वापस आने और उसके साथ हमारी संगति का आनंद उठाने में हमारी सहायता करेगा |
और अंततः, आईए स्मरण रखें कि ध्यान–मनन एक छुड़ाए हुए व्यक्ति का सौभाग्य और आनंद है–एक ऐसे व्यक्ति का सौभाग्य और आनंद जो पहले ही प्रभु यीशु मसीह के साथ संगति में प्रवेश कर चुका है | आईए, इस संगति का अनुभव हम अपने शेष पार्थिव जीवन के समस्त दिनों में करते रहें!