परमेश्वर की बाट जोहना

(English version: Waiting On God)
कहा जाता है, “हमारे मसीही जीवन में सबसे बड़ी समस्या जिसका सामना हम करते हैं वह है परमेश्वर की बाट जोहना ताकि वह अपने उद्देश्यों को पूरा करे; हमारे अन्दर कुछ तो ऐसा है जो बाट जोहने के स्थान पर गलत कार्य करता है |” सच्ची बात!
मसीही जीवन की एक सच्चाई यह है कि हममें से किसी में भी बाट जोहने [प्रतीक्षा करने] की स्वाभाविक प्रवृत्ति नहीं है | हम कुछ पाना चाहते हैं, और हम इसे अभी पाना चाहते हैं! बाट न जोहने के दर्दनाक दुष्परिणाम भुगतने के बाद भी हम इस पाप को अक्सर करने के इच्छुक रहते हैं | सर्वज्ञानी परमेश्वर हमारी इस प्रवृत्ति से पूर्णतः अवगत है | यही कारण है कि उसने अपने वचन में हमारी इस आवश्यकता को बार–बार दोहराया है कि हम उसकी बाट जोहें और जल्दबाजी न करें |
प्रभु की बाट जोहने का क्या अर्थ है?
इसका अर्थ आलसी या निष्क्रिय रहना नहीं है | इसका सरल अर्थ है, “हमारी सहायता के लिए केवल परमेश्वर पर सक्रिय रूप से भरोसा रखना |” इसका अर्थ है कि हम अपनी बुद्धि, संपत्ति, सामर्थ और लोगों के साथ अपने रिश्तों पर भरोसा रखना छोड़कर केवल परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं |
किसी परिस्थिति को बदलने के लिए अपने ऊपर जिम्मेदारी लेने या इंतज़ार लंबा हो गया कहकर कुड़कुड़ाने और शिकायत करने से शांति का नुकसान और अत्यंत दुःख के सिवाय और कुछ प्राप्त नहीं होगा | जार्ज मैकडोनाल्ड ने सही कहा है, “मनुष्य परमेश्वर के बिना जो कुछ भी करता है, उसमें या तो वह बुरी तरह से असफल होता है या उससे भी बुरी तरह से सफल |”
वेन स्टिल्स, “वेटिंग ऑन गॉड” नामक अपनी शानदार पुस्तक में लिखते हैं:
हम पहले खुशी चाहते हैं; परमेश्वर चाहते हैं पवित्रता | हम चाहते हैं आनंद; परमेश्वर चाहते हैं शुद्धता | जिस प्रकार ट्रैफिक सिग्नल पर लालबत्ती के समय इंतज़ार करते हुए यदि हम सिग्नल तोड़कर आगे बढ़ते हैं तो हम दुर्घटना के शिकार हो सकते हैं [और कई बार होते भी हैं] | उसी प्रकार, यदि हमें बाट जोहना समय की बड़ी बर्बादी लगती है, और हम परमेश्वर से आगे बढ़ जाते हैं, तो हम चोट खायेंगे | बाट जोहना एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा परमेश्वर हमें बदलते हैं – परिस्थितियों को बदलने से भी अधिक।
संभवतः आप परमेश्वर की बाट जोहते हुए थक चुके हैं या निराश हो चुके हैं | “हे प्रभु, कब तक ?”, पुकारना, आपकी निरंतर पुकार बन गई है | आप लगभग हिम्मत हारने के कगार पर हैं | ऐसा मत करिए! मैं चाहता हूँ कि आप यशायाह 64:4–5अ पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उस आशीष का आनंद उठायें जो प्रभु की बाट जोहने के परिणामस्वरूप मिलती है:
“4 क्योंकि प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्वर न तो कभी देखा गया और न कान से उसकी चर्चा सुनी गई जो अपनी बाट जोहने वालों के लिये काम करे | 5 तू तो उन्हीं से मिलता है जो धर्म के काम हर्ष के साथ करते, और तेरे मार्गों पर चलते हुए तुझे स्मरण करते हैं |”
यह भाग हमें स्पष्ट शब्दों में बताता है कि परमेश्वर सहायता करने के लिए मिलने आने के द्वारा [5अ] उनके लिए कार्य करता है जो उसकी बाट जोहते हैं [4ब] | परन्तु यह भी बताया गया है कि यदि हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारे बदले कार्य करे तो नीचे बताये गये दो गुण हमारे जीवन में होने चाहिए:
1. हमें परमेश्वर के चरित्र के बारे में एक उच्च कोटि का दृष्टिकोण रखना चाहिए [4अ] |
2. हमें एक पवित्र जीवन जीना चाहिए [5अ] |
यह हमारे लिए कोई नई या अपरिचित बात नहीं है | परन्तु उम्मीद है कि यह प्रभु की बाट जोहने के लिए हमें प्रोत्साहित करने हेतु एक अच्छा अनुस्मारक होगा |
1. हमें परमेश्वर के चरित्र के बारे में एक उच्च कोटि का दृष्टिकोण रखना चाहिए [4अ] |
ध्यान दीजिए कि यशायाह 64:4 के पहले भाग में क्या लिखा है, “क्योंकि प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्वर न तो कभी देखा गया और न कान से उसकी चर्चा सुनी गई”| यशायाह परमेश्वर के बारे में एक उच्च दृष्टिकोण रखता था | इस आयत से पहले यशायाह ने भूतकाल में परमेश्वर द्वारा किये गए कार्यों का वर्णन किया, विशेष रूप से पहाड़ को कंपाने के कार्य का [यशायाह 64:3] | यह सीनै पर्वत को कंपाने का संदर्भ था जब परमेश्वर ने वहाँ पर दस आज्ञाएँ दी थी | यशायाह बाईबल के परमेश्वर को एक शक्तिशाली और सामर्थी परमेश्वर के रूप में देखता है जिसके समान कोई नहीं है |वह यह भी जानता था कि परमेश्वर अपने लोगों से प्रेम करने वाला और दयालु है [निर्गमन 34:6] | और क्योंकि वह परमेश्वर के चरित्र का ऐसा उच्च दृष्टिकोण रखता था इसीलिए वह आश्वस्त था कि परमेश्वर अपने लोगों की सहायता के लिए आगे आयेगा |
इसी प्रकार का या इससे भी अधिक आश्वासन हममें होना चाहिए—हममें जो यशायाह के समान क्रूस के उस ओर नहीं परन्तु क्रूस के इस ओर खड़े हैं | प्रभु यीशु के द्वारा हमें परमेश्वर के चरित्र का एक स्पष्ट चित्र मिला है | और उसके चरित्र की समझ हमें प्रोत्साहित करनी चाहिए कि हम भरोसे के साथ परमेश्वर की बाट जोहें कि वह हमारे लिए कार्य करेगा | इसलिए, आईए हम परमेश्वर के गुणों पर, जो कि परमेश्वर के चरित्र को प्रगट करता है, ध्यान करते हुए परमेश्वर के चरित्र के प्रति एक उच्च दृष्टिकोण विकसित करने पर निरंतर ध्यान केन्द्रित करते रहें |
2. हमें एक पवित्र जीवन जीना चाहिए [5अ] |
यशायाह 64:5 का पहले भाग में लिखा है, “तू तो उन्हीं से मिलता है जो धर्म के काम हर्ष के साथ करते, और तेरे [परमेश्वर के] मार्गों पर चलते हुए तुझे स्मरण करते हैं |” वे लोग जो आनंदित मन के साथ एक पवित्र जीवन जीते हैं वे परमेश्वर की सहायता पायेंगे | परमेश्वर के चरित्र पर विश्वास करना और उसकी आज्ञाओं के प्रति समर्पण दिखाने वाला व्यवहार, परमेश्वर की बाट जोहने के अभिन्न भाग के रूप में साथ-साथ चलते हैं |
यशायाह के समय में रहने वाले लोग परमेश्वर के छुटकारे का अनुभव नहीं कर रहे थे और इसका कारण यह था कि वे पाप में ज़ी रहे थे, “देख, तू क्रोधित हुआ था, क्योंकि हम ने पाप किया; हमारी यह दशा तो बहुत काल से है, क्या हमारा उद्धार हो सकता है ?” [यशायाह 64:5ब]! इसके अलावा वे परमेश्वर को पुकार भी नहीं रहे थे [यशायाह 64:7] | उनका जीवन प्रार्थना का जीवन नहीं था | यहाँ तक कि जब वे प्रार्थना और उपवास करते थे तो वह भी केवल बाह्य क्रियाकलाप होता था, और परमेश्वर ने ऐसे पाखण्ड को नकार दिया [यशायाह 58] | पाप ने परमेश्वर को उनके लिए कार्य करने से रोक दिया—“परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उस का मुँह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता” [यशायाह 59:2] |
ठीक इसी प्रकार, आप और मैं भी पाप में जीते हुए परमेश्वर से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि वह हमारे लिए कार्य करेगा | पाप सदैव परमेश्वर की आशीष का रास्ता रोकता है! परन्तु यदि हम पवित्रता का अनुसरण करें, तो हम आश्वस्त हो सकते हैं कि वह, “उन्हीं से मिलता है जो धर्म के काम हर्ष के साथ करते, और [उसके] मार्गों पर चलते हुए [उसे] स्मरण करते हैं |” इसीलिए हमें अवश्य ही पवित्रता का अनुसरण करना चाहिए |
तो, हमने सीख लिया | परमेश्वर की बाट जोहते हुए जब हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारे लिए कार्य करे तो आवश्यक है कि हम उसके चरित्र का एक उच्च दृष्टिकोण रखें और पवित्रता का अनुसरण करें |
समापन विचार
अक्सर प्रभु की बाट जोहते हुए हम निराश हो जाते हैं | हम परमेश्वर पर संदेह करना आरम्भ करते हैं | हम क्रोधित और चिड़चिड़े हो जाते हैं क्योंकि चीजें उस ढंग से नहीं हो रही होती हैं जिस ढंग से हम चाहते हैं! यहाँ तक कि हम दूसरों से ईर्ष्या करने वाले बन जाते हैं | यही आसाप के साथ हुआ था जब उसने दुष्ट को उन्नति करते और धर्मी को क्लेश उठाते देखा [भजनसंहिता 73] | यह आसानी से भूलने वाली बात है कि एक धर्मी परमेश्वर ही सब बातों पर नियंत्रण रखता है! हम अत्यंत आलसी भी बन सकते हैं | कुछ इस प्रकार के विचार हमें नियंत्रित करना आरम्भ कर सकते हैं, जैसे: “परमेश्वर की सेवा करने से क्या लाभ? वह मेरी चिंता नहीं करता है | मैं इतने समय से उसकी बाट जोह रहा हूँ, परन्तु वह सहायता करने नहीं आया | मैं क्यों उसकी सेवा करना जारी रखूँ?”
हम भूल जाते हैं कि जब हम बाट जोहते रहते हैं उस समय भी परमेश्वर कार्य करता रहता है | वह हमारे चरित्र का निर्माण करता है | वह हमारे ह्रदय में बसे मूर्तियों को हमारे सम्मुख उघाड़ कर रख देता है ताकि हम पश्चाताप करें और उन मूर्तियों से दूर हो जायें | वह हममें धीरज, सहनशक्ति, दीनता और दया पैदा करता है ताकि हम दूसरों के दर्द और तकलीफ़ के प्रति संवेदनशील बन सकें और इस प्रकार प्रभावशाली रूप से उनकी सेवा कर सकें |
इसके अलावा, बाट जोहने की प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर हमें यह भी सिखाता है कि हम हमारे जीवन में उसके सर्वाधिकार को स्वीकार करें | वह हमें सिखाता है कि वह कुम्हार है और हम मिट्टी | वह सबका हाकिम है | वह जो चाहता है, जब चाहता है और जैसे चाहता है, वैसे ही कार्य करता है | कोई भी उसे विवश नहीं कर सकता कि वह उनके सोच के अनुसार कार्य करे | वह हमसे चाहता है कि हम इन सच्चाईयों को सम्पूर्ण मन से स्वीकार कर लें |
जॉन पाईपर ने बिल्कुल ठीक कहा है, “परमेश्वर उनके लिए कार्य करने के द्वारा स्वयं की महिमा करना चाहता है जो उसकी बाट जोहते हैं |” वारेन विअर्सबी ने अपनी पुस्तक, “गॉड इजन्ट इन अ हरी” में बिल्कुल ठीक लिखा है, “आप और मैं जो सबसे बढ़िया काम कर सकते हैं वह यह है कि हम हमारी घड़ियों और कैलेंडरों को देखना बंद करें और बस विश्वास के द्वारा परमेश्वर के मुख को देखते रहें और उसे अपने तरीके से काम करने दें—उसके अपने समय में|”
भक्ति, परिपक्वता और सच्ची आत्मिकता के लिए हममें से अधिकाँश जिन महानतम शिक्षकों और प्रशिक्षकों को पा सकते हैं उनमें दुःख [क्लेश] के बाद दूसरा स्थान संभवतः बाट जोहने का आता है | इसलिए, आईए पीछे न देखें कि हमने कितना इंतज़ार कर लिया और न ही आगे देखें कि हमें और कितना इंतज़ार करना पड़ेगा | आईए चिड़चिड़े, क्रोधी, हताश या भयभीत होकर अपनी और अपने चारों ओर के लोगों की शांति को बर्बाद करने वाले न बनें – आईए अपने चारों ओर के लोगों के सम्मुख नकारात्मक गवाही का प्रदर्शन बंद करें |
क्या परमेश्वर तभी भला है जब वह शीघ्रता से और उसी ढंग से काम करे जो हमारे लिए अनुकुल है?
यदि हमारा उत्तर ‘हाँ’ है, तो फिर यह बात यह प्रगट करता है कि हम जो चाहते हैं उसे पाने के लिए हम परमेश्वर का केवल इस्तेमाल कर रहे हैं बनिस्बत इसके कि हम परमेश्वर को अनुमति दें कि वह परमेश्वर बना रहे और हमें वह जैसा चाहता है वैसा बनाए | आईए, ऐसे पापमय दृष्टिकोण से मन फिरायें | आईए, जिस ढंग से उसे पसंद है उस ढंग से बाट जोहने के लिए सामर्थ हेतु हम उस पर आश्रित हो जायें | कल की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है | प्रत्येक दिन की चिंता उस दिन के लिए पर्याप्त है [मत्ती 6:34] | परमेश्वर आज बाट जोहने के लिए सामर्थ और अनुग्रह हमें देता है | जब कल आयेगा तो वह आज बन जाएगा और उसका अनुग्रह उस दिन के लिए पर्याप्त होगा | आईए, इस बात पर विश्वास करना सीखें कि जब उत्तर के रूप में ‘नहीं’ मिलता है तब भी परमेश्वर हमारी ओर से, हमारी भलाई और अपने परम महिमा के लिए कार्य करता है |
अतः, मैं आप सबको बाईबल के अनुसार परमेश्वर की बाट जोहने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ | यह बहुत बढ़िया “परमेश्वर” जो किसी के सामान नहीं है, “उन लोगों के लिए कार्य करता है जो उसकी बाट जोहते हैं |” वह बिल्कुल “उनकी सहायता करने के लिए आता है जो धर्म के काम हर्ष के साथ करते, और [उसके] मार्गों पर चलते हुए [उसे] स्मरण करते हैं |”