नर्क – इसकी वास्तविकता और प्रभाव (भाग 1)

Posted byHindi Editor May 23, 2023 Comments:0

(English version: Hell – Its Realities and Implications – Part 1)

नर्क, एक पसंदीदा विषय नहीं है—कलीसिया में भी नहीं | परन्तु, यह एक महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि बाईबल नर्क के बारे में बहुत अधिक बात करती है | सवाल, यह नहीं है कि कोई विषय हमें आराम देता है या बेचैन करता है | यह उन कठोर सच्चाईयों के संबंध में है जिनके बारे में हमें लगातार सोचने की आवश्यकता है—हमारे स्वयं के अनंत लाभ के लिए!

आज से एक सदी पहले के एक भक्त प्रचारक, जे. सी. राईल, ने नर्क के बारे में यह लिखा, “आग को देखने के बाद जब एक पहरेदार चुप रहता है, तो वह घोर लापरवाही का दोषी है | जब हम मर रहे हैं , तब यदि एक चिकित्सक कहता है कि हम ठीक हो रहे हैं, तो वह एक झूठा मित्र है, और जो प्रचारक अपने प्रचार में नर्क को अपने लोगों से छुपाकर रखता है, वह न तो एक विश्वासयोग्य मनुष्य है और न ही एक प्रेमी मनुष्य |”

चूंकि मैं विश्वासयोग्य और प्रेमी दोनों ही बनना चाहता हूँ, इसलिए मैं नर्क के विषय पर बात करना चाहता हूँ, इसके 4 वास्तविकताओं और इन वास्तविकताओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले विशेष प्रभाव का वर्णन करते हुए |

वास्तविकता # 1 नर्क एक वास्तविक स्थान है |

किसी व्यक्ति के विश्वास न करने के कारण मात्र से, नर्क का अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता है | नर्क, एक वास्तविक स्थान है, जिसका अस्तित्व है | यदि नर्क एक वास्तविक स्थान नहीं है, तो फिर यीशु मसीह ने  क्यों इस संसार में आकर न केवल चेतावनी दी—बल्कि साथ ही साथ इस संसार में वह हमारे लिए मरने आया ताकि हमें वहाँ जाना न पड़े ? मत्ती 10:28 में प्रभु यीशु हमें चेतावनी देते हैं , जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उन से मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है | यदि नर्क नहीं है, तो फिर इन वचनों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है | यदि हम स्वर्ग पर विश्वास करते हैं तो फिर हमें नर्क पर भी विश्वास करना होगा—परमेश्वर का पवित्र और न्यायी स्वभाव माँग करता है कि पाप को दण्डित किया जाए—या तो क्रूस पर या व्यक्तिगत रूप से लोगों पर | 

जब हम मरते हैं तो हम दो में से एक स्थान में तुरंत चले जाते हैं : विश्वासी, स्वर्ग जाते हैं | अविश्वासी, पहले अधोलोक नामक एक स्थान (क्लेश का स्थान) को जाते हैं, और फिर न्याय के दिन वे नर्क में डाल दिए जायेंगे | जिस प्रकार से स्वर्ग, एक वास्तविक स्थान है, ठीक वैसे ही नर्क भी एक वास्ताविक स्थान है |

वास्तविकता # 2. नर्क, एक सचेतन अनन्त पीड़ा का स्थान है |

1. यह एक अनन्त स्थान है | मत्ती 25:46 में, यीशु ने कहा, और ये (दुष्ट) अनन्त दण्ड भोगेंगे परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे | ध्यान दीजिए, स्वर्ग और नर्क दोनों ही अनन्त हैं, क्योंकि दोनों ही स्थानों के वर्णन के लिए एक ही शब्द का प्रयोग किया गया है |  हम यह नहीं कह सकते कि जब “अनन्त ”, शब्द का प्रयोग स्वर्ग के लिए हुआ, तब इसका अर्थ “सदा” है और जब इसका प्रयोग नर्क के लिए हुआ, तब इसका अर्थ, “अस्थाई” है |

2.यह पीड़ा का स्थान है | नर्क को एक धधकते भट्ठे के रूप में दर्शाया गया है | मत्ती 3:12, में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला नर्क को “न बुझने वाली आग”, कहता है | मरकुस 9:43 में प्रभु यीशु ने कहा, “यदि तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल टुण्डा होकर जीवन में प्रवेश करना, तेरे लिये इस से भला है कि दो हाथ रहते हुए नरक के बीच उस आग में डाला जाए जो कभी बुझने की नहीं |” कुछ ही आयत आगे जाकर, मरकुस 9:47–48 में प्रभु यीशु ने कहना जारी रखा, 47 और यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल डाल, काना होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है, कि दो आंख रहते हुए तू नरक में डाला जाए | 48 जहां उन का कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती |”

पौलुस ने 2 थिस्सलुनीकियों 1:8–9 में लिखा, “8 और जो परमेश्वर को नहीं पहचानते, और हमारे प्रभु यीशु के सुसमाचार को नहीं मानते उन से पलटा लेगा | 9 वे प्रभु के साम्हने से, और उसकी शक्ति के तेज से दूर होकर अनन्त विनाश का दण्ड पाएंगे |” बाईबल की अंतिम पुस्तक, उन सब के अंतिम स्थान को बताती है, जिन्होंने प्रभु यीशु का तिरस्कार किया है – एक पीड़ा का स्थान | “14 मृत्यु और अधोलोक आग की झील में डाले गए। यह आग की झील दूसरी मृत्यु है; 15 और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाला गया।” (प्रकाशितवाक्य 20:14–15) |

ये समस्त आयतें स्पष्ट रूप से नर्क को एक पीड़ा का स्थान बताती हैं | 

3. यह एक ऐसा स्थान है जहाँ लोग पीड़ा के प्रति सचेत रहते हैंनर्क एक ऐसा स्थान है, जहाँ एक व्यक्ति पीड़ा के प्रति सचेत रहता है | नर्क में पड़े एक व्यक्ति में भावनायें होंगी | परन्तु, उनमें केवल दुःख की भावना होगी—अनवरत अनन्त दुःख | किसी भी प्रकार का कोई विराम नहीं | दुःख से कोई अवकाश नहीं | प्रभु यीशु ने मत्ती 25:30 में कहा, “और इस निकम्मे दास को बाहर के अन्धेरे में डाल दो, जहां रोना और दांत पीसना होगा |” ध्यान दीजिए, कि प्रभु यीशु, “रोना और दांत पीसना” जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए किस प्रकार नर्क के सतत (निरंतर)  दुःख का वर्णन करते हैं | उतना ही नहीं, प्रभु यीशु इसे एक “अन्धेरा” स्थान भी कहते हैं, जो कि सम्पूर्ण हताशा का प्रतीक है | 

प्रभु यीशु ने लाजर और धनवान मनुष्य की कहानी ( दृष्टान्त नहीं ) भी बताई और उसमें उन्होंने यह भी बताया कि अधोलोक में धनवान किस प्रकार अपने पीड़ा के प्रति सचेत था | हम लूका 16:23–24 में उस धनवान व्यक्ति के भयानक अनुभव को पढ़ते हैं | “23 और अधोलोक में उस ने पीड़ा में पड़े हुए अपनी आंखें उठाई, और दूर से इब्राहीम की गोद में लाजर को देखा | 24 और उस ने पुकार कर कहा, हे पिता इब्राहीम, मुझ पर दया करके लाजर को भेज दे, ताकि वह अपनी उंगली का सिरा पानी में भिगो कर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूँ |” धनवान व्यक्ति स्पष्ट रूप से अपनी पीड़ा के प्रति सचेत था |

हालाँकि, दुःख की मात्रा प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग—अलग होगी (अर्थात, जो अधिक दुष्ट हैं, वे अधिक दुःख पायेंगे), तौभी प्रत्येक व्यक्ति दुःख का अनुभव निरंतर करता रहेगा | पुरिटन टीकाकार मैथ्यू हेनरी ने इन दुःख भरे शब्दों को लिखा: “यदि एक व्यक्ति मतूशेलह के समान दीर्घायु हो जाए, और अपने जीवन के समस्त दिनों को पाप के द्वारा प्रस्तावित चरम आनंद में गुजारे, तौभी पीड़ा और क्लेश का वह एक घंटा जिसका आना अनिवार्य है, उसके जीवन भर के समस्त चरम आनन्द के दिनों पर भारी पड़ेगा |” आईए, इसे दूसरे ढंग से समझें; चलिए कल्पना करके देखते हैं, कि वह सर्वाधिक बुरा क्लेश क्या होगा जिससे इस धरती पर रहते हुए होकर गुजरने के विषय में कोई व्यक्ति सोच सकता है | अब उस दर्द को 1000 गुना—नहीं, 10,000 गुणा—नहीं, दस लाख गुणा बढ़ा दें; और तब भी वह दर्द, नर्क में अनन्त काल तक होने वाले दर्द के बराबर नहीं होगा !

शारीरिक प्रताड़ना के साथ ही साथ, वहाँ मानसिक प्रताड़ना भी होगी क्योंकि नर्क में पड़े किसी व्यक्ति की बुद्धि को परमेश्वर नहीं छिनेगा | एक लेखक किसी व्यक्ति द्वारा नर्क में सहे जाने वाले मानसिक प्रताड़ना के बारे में इस ढंग से लिखता है: 

यदि परमेश्वर नर्क में पड़े किसी व्यक्ति की बुद्धि छिन लेता, तो यह करुणा मानी जाती, परन्तु ऐसा नहीं होगा और यही तो नर्क की वेदना है | करुणा किसी और समय के लिए था, अब से बहुत पहले का समय | एक व्यक्ति को अकेले ही जीना पड़ेगा, छद्म दयालुता और बनावटी सुन्दरता से प्राप्त होने वाली महिमा के बिना | शरीर में होने वाले कष्टों के बावजूद, उसका मस्तिष्क ही उसका सबसे प्रताड़ित अंग होगा | निसंदेह, “उसका कीड़ा नहीं मरेगा”, कहने का यही अर्थ है |

उसके दिमाग में बस यही डरावनी बात आती—जाती रहती है कि वह जो है वैसा ही अनन्तकाल तक रहेगा और इसे वह नहीं बदल सकता और इसीलिए उसके साथ, अब फिर से कभी कोई आशा या कोई राहत, या कोई आनन्द, या कोई प्रेम की बात नहीं हो सकती है | वह हमेशा घृणा करना चाहेगा, और वह कभी प्रेम करने की कामना नहीं कर पायेगा, यद्यपि उसमें ऐसी लालसा के लिए तड़प उत्पन्न होगी , और फिर वह ऐसी लालसा करने के कारण स्वयं से घृणा करेगा क्योंकि परमेश्वर के प्रति उसके मन में अत्याधिक घृणा होगी | 

कोई सोच सकता है, कि, “क्या किसी व्यक्ति के लिए अनन्तकाल की सजा अनुचित नहीं है ?” समस्या यह है: नर्क में भी, लोग अपने पापों से मन नहीं फिरायेंगे क्योंकि मनफिराव का समय, मृत्यु के समय पर समाप्त हो जाता है | इसलिए, वे अपने विद्रोही स्वभाव में बने रहेंगे जिससे उनके पाप में बढ़ोत्तरी होगी | इसी कारण से वे लोग अनन्तकाल की वेदना का अनुभव करते रहेंगे |

वास्तविकता # 3. नर्क एक ऐसा स्थान है, जहाँ अत्यंत दुष्ट लोग और सभ्य लोग साथ में होंगे |

पौलुस ने 1 कुरिन्थियों 6:9–10 में लिखा, “9 क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरूषगामी | 10 न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देने वाले, न अन्धेर करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे |” पौलुस पापियों की एक बड़े वर्ग की सूची देता है जो परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे | चोर और गाली देने वाले लोग, पियक्कड़ों के साथ यौन अनैतिकता में लिप्त लोग, सब के सब नर्क के वारिस होंगे | दूसरे शब्दों में कहें तो, वहाँ, उस धनवान सरदार युवक (मत्ती 19:16–22) के समान तथाकथित अच्छे चरित्र वाले लोग हिटलर और स्टालिन्स के साथ होंगे | 

प्रभु यीशु ने स्वयं कहा, “चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश को पहुँचाता है; और बहुत से हैं जो उस से प्रवेश करते हैं” (मत्ती 7:13) | नर्क केवल दुष्ट लोगों के लिए  नहीं होगा, परन्तु यह शैतान और उसके दुष्टात्माओं के लिए भी होगा (मत्ती 25:41) | एक क्षण के लिए इसकी कल्पना करें | दुष्ट लोगों के साथ रहने का ही दुःख सहने से बाहर है, परन्तु उसके साथ ही साथ नर्क में एक व्यक्ति को शैतान और उसके दुष्टात्माओं के साथ एक संगति में अनन्तकाल के लिए रहना होगा! 

वास्तविकता # 4. नर्क एक ऐसा स्थान है जहाँ कोई आशा नहीं है |

नर्क में पड़े लोगों में केवल हताशा की भावना होगी | बाहर निकलने की कोई भी आशा नहीं | हम लूका 16:24–28 में इन शब्दों को पढ़ते हैं, “24 और उस ने पुकार कर कहा, हे पिता इब्राहीम, मुझ पर दया करके लाजर को भेज दे, ताकि वह अपनी उंगली का सिरा पानी में भिगो कर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूं | 25 परन्तु इब्राहीम ने कहा; हे पुत्र स्मरण कर, कि तू अपने जीवन में अच्छी वस्तुएं ले चुका है, और वैसे ही लाजर बुरी वस्तुएं: परन्तु अब वह यहां शान्ति पा रहा है, और तू तड़प रहा है | 26 और इन सब बातों को छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गड़हा ठहराया गया है कि जो यहां से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सकें, और न कोई वहां से इस पार हमारे पास आ सके | 27 उस ने कहा; तो हे पिता मैं तुझ से बिनती करता हूं, कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज | 28 क्योंकि मेरे पांच भाई हैं, वह उन के साम्हने इन बातों की गवाही दे, ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आयें |” 

ध्यान दीजिए कि किस अत्यावश्यकता के साथ वह धनवान व्यक्ति निवेदन करता है ताकि उसका परिवार उस स्थान में आने से बच जाये, जहाँ पर वह था | क्यों ? क्योंकि वह जानता था कि एक बार वहाँ कोई व्यक्ति फँस गया, तो कोई बचाव नहीं है | पीड़ा में सदाकाल तक | किसी भी प्रकार का कोई छुटकारा नहीं ! आनंद या राहत का एक क्षण भी नहीं ! वह कितना भयानक होगा ! वास्तव में, यह इतना डरावना है कि दुष्टात्मायें भी वहाँ नहीं जाना चाहते हैं | इसीलिए उन्होंने प्रभु यीशु ने निवेदन किया था कि उन्हें अथाह गड़हे में भेजने के स्थान पर सुअरों के झुण्ड में भेज दिया जाए (लूका 8:28, 31)!

इस प्रकार, नर्क की चार वास्तविकतायें: (1) यह, एक वास्तविक स्थान है; (2) यह, एक सचेतन अनन्त पीड़ा का स्थान है; (3) यह एक ऐसा स्थान है, जहाँ अत्यंत दुष्ट लोग और सर्वाधिक सभ्य लोग साथ में होंगे; (4) यह, एक ऐसा स्थान है जहाँ कोई आशा नहीं है |

हालांकि इस बात को पूरी दृढ़ता के साथ कहना मुश्किल होगा कि नर्क के बारे में दिए गये  विवरणों में से कौन—कौन से विवरण शाब्दिक हैं और कौन—कौन से प्रतीकात्मक, तौभी यह तो सच्ची बात है: नर्क भयानक क्लेश का स्थान है—शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के क्लेश ! फिर विश्वासियों और अविश्वासियों को इन वास्तविकताओं के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए ? इसका उत्तर, इस लेख के भाग 2 में मिलेगा |

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