प्रार्थना को हमारी कलीसियाओं में और हमारे व्यक्तिगत जीवन में एक उच्च प्राथमिकता देना

(English version: “Giving Prayer A Higher Priority In Our Churches And In Our Personal Lives”)
यह कहा जाता है, “कोई कलीसिया कितनी लोकप्रिय है, यह आप यह देखकर बता सकते हैं कि रविवार सुबह को कितने लोग आते हैं | कोई पासबान या सुसमाचार प्रचारक कितना लोकप्रिय है, यह आप यह देखकर बता सकते हैं कि रविवार संध्या को कितने लोग आते हैं | परन्तु यीशु कितना लोकप्रिय है, यह आप यह देखकर बता सकते हैं कि प्रार्थना सभा में कितने लोग आते हैं |” अतः प्रत्येक विश्वासी के लिए जो प्रश्न है, वह यह है: “जिस कलीसिया में मैं जाता हूँ, वहाँ यीशु कितना लोकप्रिय है?” और हमारी कलीसियाओं में यीशु के लोकप्रिय होने के लिए, उसे पहले और सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप से हमारे स्वयं के जीवन में लोकप्रिय होना चाहिए | दूसरे शब्दों में कहें तो हमारा निजी प्रार्थना जीवन, कलीसिया के प्रार्थना जीवन पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है |
संभवतः, प्रेरितों के काम से लिए गए ये प्रार्थना—संबंधित बाईबल सन्दर्भ आनेवाले दिनों में प्रार्थना को एक उच्चतर प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित करने के द्वारा हमें और हमारी कलीसियाओं को यीशु को लोकप्रिय बनाने में प्रोत्साहित करे |
प्रेरितों के काम 1:14 “ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ एक चित्त होकर प्रार्थना में लगे रहे |”
प्रेरितों के काम 1:24-25 “24 और यह कहकर प्रार्थना की; कि हे प्रभु, तू जो सब के मन जानता है, यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तू ने किस को चुना है | 25 कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई का पद ले जिसे यहूदा छोड़ कर अपने स्थान को गया |”
प्रेरितों के काम 2:42 “और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे |”
प्रेरितों के काम 3:1 “पतरस और यूहन्ना तीसरे पहर प्रार्थना के समय मन्दिर में जा रहे थे |”
प्रेरितों के काम 4:24,29,31 “24 यह सुनकर, उन्होंने एक चित्त होकर ऊँचे शब्द से परमेश्वर से कहा, हे स्वामी, तू वही है जिस ने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उन में है बनाया… 29 अब, हे प्रभु, उन की धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे, कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनायें … 31 जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहां वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे |”
प्रेरितों के काम 6:3-4 “3 इसलिए हे भाइयो, अपने में से सात सुनाम पुरूषों को जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हों, चुन लो, कि हम उन्हें इस काम पर ठहरा दें | 4 परन्तु हम तो प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे |”
प्रेरितों के काम 6:6 “और इन्हें प्रेरितों के साम्हने खड़ा किया और उन्होंने प्रार्थना करके उन पर हाथ रखे |”
प्रेरितों के काम 7:60 “फिर घुटने टेककर ऊँचे शब्द से पुकारा, हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा, और यह कहकर सो गया: और शाऊल उसके बध में सहमत था |”
प्रेरितों के काम 8:15-16 “15 और उन्होंने जाकर उन के लिये प्रार्थना की कि पवित्र आत्मा पायें | 16 क्योंकि वह अब तक उन में से किसी पर न उतरा था, उन्होंने तो केवल प्रभु यीशु के नाम में बपतिस्मा लिया था |”
प्रेरितों के काम 8:22-24 “22 इसलिए अपनी इस बुराई से मन फिराकर प्रभु से प्रार्थना कर, सम्भव है तेरे मन का विचार क्षमा किया जाए | 23 क्योंकि मैं देखता हूं, कि तू पित्त की सी कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है | 24 शमौन ने उत्तर दिया, कि तुम मेरे लिये प्रभु से प्रार्थना करो कि जो बातें तुम ने कहीं, उन में से कोई मुझ पर न आ पड़े |”
प्रेरितों के काम 9:11 “तब प्रभु ने उस से कहा, उठकर उस गली में जा जो सीधी कहलाती है, और यहूदा के घर में शाऊल नाम एक तारसी को पूछ ले; क्योंकि देख, वह प्रार्थना कर रहा है |”
प्रेरितों के काम 9:40 “ तब पतरस ने सब को बाहर कर दिया, और घुटने टेककर प्रार्थना की; और लोथ की ओर देखकर कहा; हे तबीता उठ: तब उस ने अपनी आंखे खोल दी; और पतरस को देखकर उठ बैठी |”
प्रेरितों के काम 10:2 “वह भक्त था, और अपने सारे घराने समेत परमेश्वर से डरता था, और यहूदी लागों को बहुत दान देता, और बराबर परमेश्वर से प्रार्थना करता था |”
प्रेरितों के काम 10:9 “दूसरे दिन, जब वे चलते चलते नगर के पास पहुंचे, तो दो पहर के निकट पतरस कोठे पर प्रार्थना करने चढ़ा |”
प्रेरितों के काम 12:5 “सो बन्दीगृह में पतरस की रखवाली हो रही थी; परन्तु कलीसिया उसके लिये लौ लगाकर परमेश्वर से प्रार्थना कर रही थी |”
प्रेरितों के काम 13:2-3 “2 जब वे उपवास सहित प्रभु की उपासना कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने कहा; मेरे निमित्त बरनबास और शाऊल को उस काम के लिये अलग करो जिस के लिये मैं ने उन्हें बुलाया है | 3 तब उन्होंने उपवास और प्रार्थना कर के और उन पर हाथ रखकर उन्हें विदा किया |”
प्रेरितों के काम 14:23 “और उन्होंने हर एक कलीसिया में उन के लिये प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्थना कर के, उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्होंने विश्वास किया था |”
प्रेरितों के काम 16:13 “सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए, कि वहाँ प्रार्थना करने का स्थान होगा; और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे |”
प्रेरितों के काम 16:16 “जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली जिस में भावी कहने वाली आत्मा थी; और भावी कहने से अपने स्वामियों के लिये बहुत कुछ कमा लाती थी |”
प्रेरितों के काम 16:25 “आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और बन्धुए उन की सुन रहे थे |”
प्रेरितों के काम 20:36 “यह कहकर उस ने घुटने टेके और उन सब के साथ प्रार्थना की |”
प्रेरितों के काम 21:5 “जब वे दिन पूरे हो गए, तो हम वहाँ से चल दिए; और सब ने स्त्रियों और बालकों समेत हमें नगर के बाहर तक पहुंचाया और हम ने किनारे पर घुटने टेककर प्रार्थना की |”
प्रेरितों के काम 27:29,35 “29 तब पत्थरीली जगहों पर पड़ने के डर से उन्होंने जहाज की पिछाड़ी चार लंगर डाले, और भोर का होना मनाते रहे … 35 और यह कहकर उस ने रोटी लेकर सब के साम्हने परमेश्वर का धन्यवाद किया; और तोड़कर खाने लगा |”
प्रेरितों के काम 28:8 “पुबलियुस का पिता ज्वर और आँव लोहू से रोगी पड़ा था: सो पौलुस ने उसके पास घर में जाकर प्रार्थना की, और उस पर हाथ रखकर उसे चंगा किया |”
व्यक्तिगत और सामूहिक प्रार्थनाओं के 25 से अधिक सन्दर्भ! जैसा कि हम देख सकते हैं, आरंभिक मसीहियों के लिए प्रार्थना बड़ा महत्व रखती थी | इसमें कोई अचरज की बात नहीं कि प्रार्थना को एक उच्च प्राथमिकता देने के कारण कलीसिया और इसके सदस्य इतने सामर्थी थे!
तो हम लोग अपने व्यक्तिगत जीवन में और हमारी स्थानीय कलीसियाओं में प्रार्थना को कैसे एक निरंतर प्राथमिकता बना सकते हैं? पॉल मिलर अपनी बेहतरीन पुस्तक, “ए प्रेयिंग लाईफ”, में इसका उत्तर देते हैं, वे लिखते हैं, “निरंतर प्रार्थना करने के लिए आपको आत्म—अनुशासित होना आवश्यक नहीं है, आपको केवल मन में दीन होने की आवश्यकता है |” दूसरे शब्दों में कहें तो प्रार्थना करने हेतु प्रेरित होने के लिए हमें और अधिक अनुशासित होने पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता नहीं है [यद्यपि इसका अपना महत्व है], बल्कि हमें इस बात पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है कि हम सचमुच में कितने जरूरतमंद हैं!
हम जितना मन में दीन होंगे—अर्थात जितना हम इस बात को समझेंगे कि हम आत्मिक रूप से कितने कंगाल हैं और प्रत्येक बात में हमें प्रभु की आवश्यकता है—हम उतना अधिक अपने घुटनों में आयेंगे और उससे प्रार्थना करेंगे—व्यक्तिगत रूप से और एक कलीसिया के रूप में | इस प्रकार का एक दृष्टिकोण हमें इस गंभीर सत्य को स्वीकार करने में सहायता करेगा कि जब तक परमेश्वर कार्य न करे तब तक कोई भी कार्य स्थाई आत्मिक प्रभाव के साथ नहीं होगा | हमारे समस्त मानवीय प्रयास कभी भी उस कार्य को नहीं कर पायेंगे जिसे परमेश्वर तब कर सकता है, जब अपने लोगों के जीवन में सामर्थ में होकर कार्य करने के लिए उससे ईमानदारी से प्रार्थना की जाती है |
ये बातें कितनी सही हैं, “एक प्रार्थना करने वाला स्वामी अर्थात यीशु, प्रार्थनारहित सेवक नहीं रख सकता!” लेपालकपन की आत्मा हमेशा एक व्यक्ति को परमेश्वर को पुकारने के लिए प्रेरित करेगा और अवश्य करेगा | परमेश्वर अपने पवित्र आत्मा के माध्यम से भविष्य में प्रार्थना को एक उच्च प्राथमिकता देने के लिए हमें सक्षम करने के द्वारा हमारी कलीसियाओं में और हमारे व्यक्तिगत जीवन में यीशु को लोकप्रिय बनाने में हमारी सहायता करे!