3 भक्तिमय आदतें जो सच्ची सफलता की ओर ले जाती हैं

Posted byHindi Editor June 13, 2023 Comments:0

(English version: 3 Godly Habits That Lead To True Success!)

पुराना नियम में एज्रा नामक एक भक्त जन के जीवन का वर्णन है ; यह भक्त जन,  परमेश्वर द्वारा परिभाषित सच्चे और स्थायी सफलता के रहस्य का चित्रण करता है | परमेश्वर के वचन के शिक्षक एज्रा ने अपने जीवन में, 3 भक्तिमय आदतों का अनुसरण करने के परिणामस्वरूप, “परमेश्वर के अनुग्रहित हाथ” ( अर्थात, सच्ची सफलता ) का अनुभव किया ( एज्रा 7:9 ) | एज्रा 7:10 में लिखा है, क्योंकि एज्रा ने यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया था |” 

यह आयत सिखाती है कि एज्रा का मन 3 आदतों में लगा हुआ था या समर्पित था:  

(1) परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने के लिए 

(2) परमेश्वर के वचन का पालन करने के लिए 

(3) परमेश्वर के वचन को सिखाने के लिए 

यदि हम भी सफलता का अनुभव करना चाहते हैं – परमेश्वर द्वारा परिभाषित सच्ची सफलता का, तो आईये, इन तीनों में से प्रत्येक आदत को देखें:

आदत # 1 .  एज्रा के समान ही हमें भी अपने मन को परमेश्वर के वचन के तत्परतापूर्वक अध्ययन में लगाना चाहिए |

क्योंकि एज्रा ने यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने… के लिये अपना मन लगाया था |” 

सबसे पहली और सर्वाधिक महत्वपूर्ण आदत जिसका पीछा करने करने के लिए एज्रा ने अपना मन लगाया था, वह था, अपने स्वयं की आत्मा (जीवन) के लिए परमेश्वर के वचन (यहोवा की व्यवस्था) का अध्ययन करना | यद्यपि वह एक शिक्षक था, तौभी वह विद्यार्थी भी था | एज्रा के समान, हमें भी, हमारे स्वयं की आत्मा (जीवन) के लिए परमेश्वर के वचन का तत्परता से अध्ययन करने की आदत डालनी चाहिए | यही प्रारंभ बिंदु है |

समस्त पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और जीवन से संबंधित समस्त बातों के लिए लाभकारी है (2 तीमुथियुस 3:16 – 17) | यदि पवित्रशास्त्र एक हथियार है जो सब प्रकार की परीक्षाओं से प्रभावशाली ढंग से निपटता है (इफिसियों 6:17), तब तो इसे हमारे ह्रदय में भंडारित करना चाहिए (भजन संहिता 119:11) |  किसी मसीही के आलमारी में एक या कई बाईबल रखे होने के कारण शैतान नहीं भागेगा | यदि कोई अपने साथ बाईबल रखे, तो भी वह नहीं भागेगा | वह केवल तभी भागेगा जब बाईबल को स्वयं में लिया जाए और उसका उपयोग किया जाए ! 

नियमित शिक्षक की अनुपस्थिति में एक नए पासबान (पास्टर) को लड़कों की कक्षा लेने के लिए कहा गया | वह जानना चाहता था कि वे कितना जानते थे, इसलिए उसने पूछा कि यरीहो की दीवार को किसने गिराया | सब लड़कों ने सफाई दी कि उन्होंने नहीं गिराया, और प्रचारक उनकी अज्ञानता को देखकर दंग रह गया |

सेवकों (डीकन्स) की सभा में, उसने इस अनुभव को बताया, उसने दुःख के साथ कहा, “उनमें से किसी को नहीं मालूम कि यरीहो की दीवार को किसने गिराया |” काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा, फिर अंततः एक अनुभवी वयोवृद्ध ने चुप्पी तोडी | “पासबान, लगता है कि आप इस बात से बहुत चिंतित हैं | परन्तु मैं उन सब लड़कों को उनके जन्म के समय से जानता हूँ , वे सब अच्छे लडके  | यदि उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते हैं, तो मुझे उन पर भरोसा है कि वे नहीं जानते होंगे | मरम्मत और रखरखाव कोष से कुछ पैसे ले लीजिए, दीवार की मरम्मत करा  लीजिए और बात को यहीं ख़त्म कीजिए|”   

हमारे समय के कई तथाकथित मसीहियों का क्या ही उपयुक्त चित्र ! इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि आज कलीसिया कमजोर है ! यदि हम मजबूत होना चाहते हैं तो हमें अपने बाईबल को अच्छे से पढ़ना होगा | प्रभावशाली बाईबल पठन में तीन बुनियादी सिद्धांत सम्मिलित हैं :

(1) पाठ को पढ़ना (यह क्या कहता है ?)    

(2) पाठ की व्याख्या करना (इसका क्या अर्थ है ?) और 

(3) पाठ को लागू करना (यह मेरे जीवन में कैसे लागू होता है ?) |

जब हम पूछते हैं, “इस आयत या भाग का क्या अर्थ है ?”, तब हमें अवश्य ही मूल पाठकों को अपने दिमाग (विचार) में रखना चाहिए | दूसरे शब्दों में कहें तो, इस बात को जानना ही मुख्य लक्ष्य होना चाहिए, कि “जिन लोगों के लिए यह मूल रूप से लिखा गया था, उनके लिए इसका क्या अर्थ था ?”  यदि हम उस बात को सही ढंग से न जान पाये, तो फिर हम उस पाठ की गलत व्याख्या करेंगे, जो हमें एक गलत अनुप्रयोग की ओर ले जायेगा | 

प्रभु ने अपनी कलीसिया को आशीष स्वरुप अध्ययन बाईबल, टीका पुस्तक (कमेन्ट्री) और भक्त प्रचारक दिये हैं | परन्तु, इन स्रोतों का उपयोग करने से पूर्व, हमें स्वयं से बाईबल पढ़ना चाहिए और  पवित्र आत्मा से  प्रार्थना करना चाहिए और कहना चाहिए कि जब हम स्वयं से बाईबल पढ़ रहें हैं तो वह हमारी आँखों को खोले ताकि हम समझ पायें | ऐसा करने के बाद ही हमें इन स्रोतों का उपयोग करना चाहिए | दूसरे शब्दों में कहें तो, हमें अवश्य ही सावधान रहना चाहिए कि हम इन स्रोतों को उतनी अनुमति न दें कि हमारे ह्रदय से परमेश्वर के वचन के द्वारा प्रत्यक्ष बात किये जाने से भी अधिक बातें ये स्रोत हमसे करें |

न्यूनतम स्तर पर बात करें तो, वचन के व्यवस्थित अध्ययन के लिए सुबह 15 मिनट और रात को 15 मिनट का समय भी अत्यंत लाभकारी होगा | कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के वचन के अध्ययन के लिए 24 घंटे वाले एक दिन में 30 मिनट सरलता से दे सकता है | प्रार्थना के लिए अतिरिक्त समय भी अनिवार्य है | हम हमेशा उन कार्यों को करने के लिए समय निकाल लेते हैं जिन कार्यों में हमारी रूचि होती है | क्या एक विश्वासी के लिए परमेश्वर का वचन और प्रार्थना सर्वोपरी रूचि नहीं होनी चाहिए?

अतः, यदि हम अपने जीवन में सच्ची सफलता चाहते हैं, तो आईये परमेश्वर के वचन का तत्परतापूर्वक अध्ययन करें |

आदत # 2 . एज्रा के समान ही, हमें भी परमेश्वर के वचन का पालन (अभ्यास) गंभीरता से करने के लिए अपना मन लगाना चाहिए | 

क्योंकि एज्रा ने यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने … के लिये अपना मन लगाया था |” 

जिस दूसरी आदत का पीछा करने के लिए एज्रा ने अपना मन लगाया था, वह था, परमेश्वर के वचन के अपने अध्ययन से सीखी बात को अपने स्वयं के जीवन में अभ्यास में लाना | यदि हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करें और स्वयं उसका पालन न करें, तो यह स्वयं को धोखा देना होगा | हमें प्रत्यक्ष रूप से स्मरण दिलाया गया है, कि हम केवल सुनने वाले ही नहीं बनें  जो अपने आप को धोखा देते हैं”, बल्कि, “वचन पर चलने वाले बनें (याकूब 1:22) |! प्रभु यीशु ने सायं कहा, धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं (लूका 11:28) | निम्नांकित उदाहरण यह दर्शाता है कि अपने पापों के प्रति अंधे बने रहते हुए, उन लोगों पर जो परमेश्वर के वचन का पालन नहीं करते हैं दोष लगाना कितना सरल है | 

पश्चिमी सरहद के एक कस्बे की एक कहानी प्रचलित है, जहां के लोग लकड़ी काटने का कार्य करते थे | इस कस्बे के लोग एक कलीसिया चाहते थे, इसलिए उन्होंने एक कलीसिया भवन बनाया और एक सेवक को बुलाया | उस प्रचारक को उस दिन तक अच्छा आवभगत मिला जिस दिन तक उसने कुछ ऐसा न देख लिया जो बहुत परेशान करने वाली बात थी | उसने अपनी कलीसिया के कई सदस्यों को नदी से कई लकड़ी के लट्ठों को झपटते हुए देखा | ये वे लकड़ी के लट्ठे थे जो दूसरे गाँव के लोगों द्वारा बहाए गए थे, उन लोगों के लिए जो उन्हें  आगे से इकट्ठा करेंगे और बेचेंगे | प्रत्येक लट्ठे में एक सिरे पर मालिक का नाम छापा गया था | 

यह देखकर  पास्टर को बड़ी निराशा हुई कि उसके कलीसिया के सदस्य उन लट्ठों को खींच रहे थे और उस हिस्से को काट दे रहे थे जहां मालिक का नाम छापा गया था और फिर उन लट्ठों को अपना बताकर बेच दे रहे थे |  अगले रविवार को उसने दस आज्ञाओं में से आठवी आज्ञा, “तू चोरी न करना”, वाले पाठ से एक कठोर संदेश तैयार किया (निर्गमन 20:15) |  सभा समाप्ति के पश्चात, उसके लोग कतारबद्ध खड़े हुए और उन्होंने उसे बधाई दी : “अद्भुत संदेश, शानदार सामर्थी प्रचार|”

परन्तु, अगले सप्ताह, जब प्रचारक ने नदी की तरफ नजर उठाई तो उसने अपने सदस्यों को लकड़ी चुराने का काम जारी रखे हुए पाया | इस बात ने उसे बहुत परेशान किया | वह चला गया और उसने अगले सप्ताह के लिए एक सन्देश तैयार किया | विषय था, “अपने पड़ोसी के लट्ठे के सिरे को तू न काटना |” जैसे ही उसने सन्देश समाप्त किया, कलीसिया ने तुरंत उसे बर्खास्त कर दिया ! 

ऐसे कपटपूर्ण व्यवहार से परमेश्वर हमारी रक्षा करे ! ऐसा कभी न होने पाए कि हम परमेश्वर के वचन को केवल अपने पड़ोसी पर लागू करें, स्वयं पर नहीं | हम परमेश्वर द्वारा यहोशू को कही गए बैटन को निरंतर अपने स्मरण में रखें, “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा” (यहोशू 1:8) | क्या आप मेहरबानी करके इस बात पर ध्यान देंगे कि कैसे सफलता (तेरे सब काम सफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा), परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने (इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना) और उसका पालन करने (उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे) के परिणामस्वरूप ही आती है ! 

अतः, यदि हम अपने जीवन में सच्ची सफलता चाहते हैं, तो आईये हम परमेश्वर के वचन को स्वयं के जीवन में लागू करने की गंभीर इच्छा रखें |

आदत # 3 . एज्रा के समान ही, हमें भी परमेश्वर के वचन को तत्परता से सिखाने के लिए  अपना मन लगाना चाहिए | 

क्योंकि एज्रा ने … इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया था |” 

जिस तीसरी आदत का पीछा करने के लिए एज्रा ने अपना मन लगाया था, वह था, परमेश्वर के वचन को दूसरों को सिखाना | मत्ती 28:20 प्रत्येक मसीही को आज्ञा देता है कि वह अन्य लोगों को पवित्रशास्त्र की सारी बातों को सिखाए | हालाँकि प्रत्येक व्यक्ति को कलीसिया में आधिकारिक रूप से शिक्षक बनने के लिए नहीं बुलाया गया है, तौभी प्रत्येक मसीही अन्य लोगों को उपयुक्त तरीके से परमेश्वर का वचन सिखा सकता है और उसे सिखाना भी चाहिए : माता –पिता अपने बच्चों को, परिपक्व मसीही नए विश्वासियों को इत्यादि |  हममें से प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को ढूंढ सकते हैं जो हमसे  कम ज्ञान रखते हैं और हम उन्हें परमेश्वर का वचन सिखाने के लिए प्रयास कर सकते हैं ! यदि हम गंभीरतापूर्वक प्रार्थना करेंगे तो परमेश्वर हमारे लिए द्वार खोलेंगे !

अतः, यदि हम अपने जीवन में सच्ची सफलता चाहते हैं, तो आईये दूसरों को परमेश्वर के वचन सिखाने की गंभीर इच्छा रखें |

एज्रा ने अध्ययन किया, उसके अनुसार चला और फिर उसने लोगों को परमेश्वर का वचन सिखाया | परिणामस्वरूप उसने सच्ची सफलता पाई | हम भी, इन 3 आदतों का निरंतर पीछा करने के लिए, अपने मनों को लगाकर सच्ची सफलता को पा सकते हैं | ऐसा करने के लिए परमेश्वर हमारी सहायता करे ! 

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