सुसमाचार प्रचार की राह में आनेवाले सामान्य बाधाएं और उन पर जय पाने के तरीके – भाग 2

(English version: Common Barriers To Evangelism & How To Overcome Them – Part 2)
इसी विषय पर लिखे गए पिछले लेख को आगे बढ़ाते हुए आईये सुसमाचार प्रचार की राह में आनेवाले कुछ और सामान्य बाधाओं को देखें |
11. मैं किसी पर दबाव डालना नहीं चाहता कि मैं जिस बात पर विश्वास करता हूँ वे भी उसी बात पर विश्वास करें |
सत्य को बताना किसी पर दबाव डालना नहीं है ! विश्वास करने के लिए हम किसी पर दबाव नहीं डाल सकते [और हमें डालना भी नहीं चाहिए]–केवल प्रभु ही लोगों के ह्रदय को खोलता है |
यदि हम किसी बीमारी से ग्रस्त हों और फिर हमें उसका कोई अच्छा इलाज मिल जाए तो हम उन लोगों को उस इलाज के बारे में बताने के लिए दौड़ पड़ते हैं जो उसी प्रकार की बीमार अवस्था में पड़े हैं | क्योंकि हमें उनकी चिंता है! इसी प्रकार से, सभी मनुष्य “पाप–रोग” से ग्रसित हैं | और इस प्राणघातक बीमारी के लिए यीशु ही एकमात्र इलाज है | क्या हमें उन्हें इस शुभ समाचार को नहीं बताना चाहिए? “अपने विश्वास को मैं अपने तक ही रखूँगा…यदि कोई मुझसे पूछेगा तब मैं बताऊँगा,” इत्यादि जैसे कथन समाज में अधिक स्वीकार्य प्रतीत हो सकते हैं परन्तु ये बाईबल के अनुसार नहीं हैं | मसीहियों को अपने विश्वास को संभाले रखना है–परन्तु अपने तक ही नहीं!
2 कुरिन्थियों 5:20 “सो हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो |”
यदि हम सही में विश्वास करते हैं कि जो मसीह के बिना हैं वे अनन्त काल तक क्लेश सहेंगे, तो फिर हम उन लोगों से याचना करेंगे कि वे मसीह के पास आ जायें |
12. मैं केवल अपनी संस्कृति के लोगों के मध्य गवाही दे सकता हूँ |
हालांकि हमारी संस्कृति के लोगों तक पहुँचना हमारे लिए आसान हो सकता है क्योंकि हम उनके तौर—तरीकों और आदतों को कहीं अधिक आसानी से पहचान सकते हैं तौभी हमें हमारे सुसमाचार प्रचार को एक संस्कृति विशेष के लोगों तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए | आज्ञा यह है कि हम सुसमाचार को प्रत्येक प्राणी तक पहुँचायें! मसीह की आवश्यकता सबको है |
लूका 24:47 “और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा |”
हमारे राह में भिन्न–भिन्न संस्कृति के लोगों को लेकर आने के पीछे परमेश्वर के पास एक कारण है–यह कोई दुर्घटना नहीं है | परमेश्वर चाहते हैं कि हम लोगों के सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों को न देखते हुए उनको सत्य को बतायें [उदाहरण के लिए, कूश देश के खोजे के पास फिलिप्पुस का भेजा जाना – प्रेरितों के काम 8:26–39] |
13. मेरे पास बताने के लिए कोई बड़ी गवाही नहीं है |
कई लोग सोचते हैं कि उनकी गवाही पौलुस के “दमिश्क मार्ग अनुभव” के समान नहीं होने के कारण अन्य लोग उससे प्रभावित नहीं हो पायेंगे | यह गलत सोच है | यहाँ जोर स्वयं पर दिया जा रहा है न कि मसीह पर | सन्देश जो दिया जाना चाहिए, वह यह है, “मैं पाप में मरा हुआ था–परन्तु अब मैंने मसीह के द्वारा क्षमा पाई है |” लोगों का उद्धार करने के लिए पवित्र आत्मा कई भिन्न तरीकों से कार्य करता है |
यूहन्ना 3:8 “ हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है। ”
14. चूँकि परमेश्वर ने पहले से ही ठहरा दिया है कि किन लोगों का उद्धार होगा, तो फिर हमें सुसमाचार प्रचार के लिए चिंतित होने की क्या आवश्यकता है?
परमेश्वर न केवल मंजिल को ठहराते हैं वरन उस मंजिल तक पहुँचने के माध्यमों को भी | दूसरे शब्दों में कहें तो, हालाँकि परमेश्वर ने उद्धार के लिए लोगों को चुना है, परन्तु आवश्यक है कि इन चुने हुओं का उद्धार किया जाये और उनका उद्धार होता है, उनके द्वारा सुसमाचार सुनने और सुसमाचार को स्वीकार करने से | हम लोग वे माध्यम हैं जिनके द्वारा वे सुसमाचार को सुन सकते हैं और संभवतः सुसमाचार को स्वीकार कर सकते हैं | दूसरे शब्दों में कहें तो सुसमाचार प्रचार वह माध्यम है, जिसका इस्तेमाल परमेश्वर अपने लोगों का उद्धार करने के लिए करता है |
प्रेरितों के काम 13:48 “यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे: और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया |”
प्रेरितों के काम 16:14 “और लुदिया नाम थुआथीरा नगर की बैंजनी कपड़े बेचने वाली एक भक्त स्त्री सुनती थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर चित्त लगाए |”
2 तीमुथियुस 2:10 “इस कारण मैं चुने हुए लोगों के लिये सब कुछ सहता हूँ, कि वे भी उस उद्धार को जो मसीह यीशु में है, अनन्त महिमा के साथ पायें |”
चुना जाना और पहले से ठहराया जाना इत्यादि जैसी बाईबल शिक्षाओं की समुचित समझ एक मसीही को सुसमाचार प्रचार करने में और अधिक उत्साहित होने के लिए प्रेरित करनी चाहिए न कि इससे दूर रहने के लिए!
15. लोगों को सुसमाचार सुनाना आरम्भ करने से पूर्व मुझे उनके साथ प्रगाढ़ दोस्ती करना आवश्यक है |
हालांकि दोस्ती करके सुसमाचार सुनाने के कई सकारात्मक पहलू हैं, तौभी इस तरीके में एक खतरा यह है: कई बार यह केवल दोस्ती बनकर रह जाता है, कोई सुसमाचार प्रचार नहीं होता | सुसमाचार सुनाये बिना रिश्ता जितना लम्बा होगा उतना ही मुश्किल होगा मसीह के लिए बोलने के लिए मुँह खोलना |
16. जब भी मैं सुसमाचार सुनाता हूँ, मैं कोशिश करता हूँ कि वार्तालाप को छोटा और मधुर रख
दूसरे शब्दों में कहें तो सुसमाचार प्रचार को “मुझे अवसर मिला है” के स्थान पर “मुझे करना पड़ेगा” के रूप में देखा जाता है | यह सच है कि इस बात को स्वीकार किया जाता है कि सुसमाचार प्रचार करने की आज्ञा दी गयी है | तौभी, क्योंकि यह असहज लगता है, इसीलिए इस कार्य को अपने विवेक को शांत करने के लिए फुर्ती से कर लिया जाता है | कोशिश यह रहती है कि फुर्ती से सुसमाचार को सुना दिया जाए और अविश्वासी की ओर से असहमति या प्रतिरोध के पहले संकेत पर ही इसे रोक दिया जाए | यह सोच कुछ ऐसी है, “वाह! मैं खुश हूँ कि यह काम ख़त्म हुआ | मैंने कम से कम अपना कर्तव्य तो निभा दिया!”
हालाँकि हम अविश्वासियों को लगातार परेशान नहीं कर सकते और हमें करना भी नहीं चाहिए , परन्तु हमें “पूरे आराम और सुविधा में रहते हुए” सुसमाचार प्रचार करने के तरीके से बचना भी चाहिए | हमें अवश्य ही अविश्वासियों के मन में कार्य करने के लिए पवित्र आत्मा को अनुमति देना चाहिए | सुसमाचार प्रचार करने के दौरान कुछ मिनट का शांत समय अटपटा लग सकता है–परन्तु यह अत्याधिक प्रभावकारी भी हो सकता है ! सुसमाचार प्रचार को “नौकरी” नहीं समझना चाहिए | अपने प्रभु के बारे में बात करना मसीहियों के लिए एक प्रसन्नता की बात होनी चाहिए!
17. यदि मैं अपने घर और कार्य की जिम्मेदारियों को विश्वासयोग्यता से निभा रहा हूँ तो मैं अपनी मसीही भूमिका को पूरा कर रहा हूँ |
यह सच है कि अपने घर में [एक अच्छा पति, एक अच्छी पत्नी, माता–पिता इत्यादि बनना] और अपने कार्य स्थल पर [एक अच्छा कर्मचारी और एक अच्छा मालिक बनकर] एक अच्छे आदर्श के रूप में रहना आवश्यक है | तौभी सुसमाचार नहीं सुनाने के लिए इन बातों का बहाना नहीं बनाया जाना चाहिए | हम कुछ क्षेत्रों में आज्ञाकारी रहकर और कुछ में अनाज्ञाकारी रहकर मसीही जीवन को सीमित नहीं कर सकते |
18. मैं अपने कार्य और परिवार में अत्यंत व्यस्त हूँ | मेरे पास मसीह की गवाही देने के लिए समय नहीं है |
यदि हम इतने व्यस्त हैं कि मसीह के लिए गवाही नहीं दे सकते—तो फिर हम वास्तव में अत्यंत ही व्यस्त हैं! हमें नौकरी किसने दिया है? हमें परिवार कौन देता है? हमें मनोरंजक गतिविधियाँ कौन प्रदान करता है? क्या हमें अपने उपहारों को उन उपहारों को देने वाले से बढ़कर प्राथमिकता देनी चाहिए? हम सब के पास उन कार्यों को करने के लिए समय होता है, जिन्हें हम पसंद करते हैं या जिन्हें हम करना चाहते हैं |
यहाँ व्यस्तता, समस्या नहीं है – समस्या है गलत प्राथमिकताएं | मसीह के लिए जीना ही हमारा कर्तव्य है | जो मसीह के लिए गवाही देने में विश्वासयोग्य रहते हैं वे सामान्य तौर पर परिवार में और कार्यक्षेत्र में भी विश्वासयोग्य रहते हैं |
19. मैं बाईबल की सच्चाईयों को मसीहियों के मध्य बाँटने में सहज महसूस करता हूँ परन्तु गैर मसीहियों के मध्य नहीं |
स्वर्ग में हम एक दूसरे के साथ अत्याधिक संगति रखेंगे! परन्तु, पृथ्वी में रहते हुए हमें सुसमाचार प्रचार की जिम्मेदारी दी गई है | यह सच है कि संगी मसीहियों के साथ बाईबल की बातों पर विचार–विमर्श करना सरल, अधिक सहज और आनंददायक है | एक ही प्रजाति के पक्षी एक साथ रहने का प्रयास करते हैं! हालांकि अन्य मसीहियों के साथ संगति आवश्यक और प्रशंसनीय है [इब्रानियों 10:24–25], तौभी हमें अपने सुविधाजनक आवरण से बाहर आना ही चाहिए और बाहरी दुनिया के लोगों को मसीह के बारे में बताना चाहिए–यह भी तो एक आज्ञा है [प्रेरितों के काम 1:8]|
20. मैं किसी और स्थान पर जाऊँगा और एक मिशनरी के रूप में सुसमाचार का प्रचार करूँगा |
जहाँ प्रभु जाने के लिए कहे वहाँ जाने के लिए तैयार रहना एक सुन्दर बात है | परन्तु, यदि एक व्यक्ति उस स्थान पर मसीह की गवाही देने के लिए अपना मुँह नहीं खोल रहा है, जहाँ वह वर्तमान में है; तो फिर क्या गारण्टी है कि उसका मुँह अन्य स्थान में खुलेगा?
साथ ही, हमें आज्ञा दी गयी है कि हम वर्तमान में जहाँ पर हैं वहाँ मसीह की गवाही दें | तभी और केवल तभी हम आश्वस्त हो सकते हैं कि हम अन्य स्थान में विश्वासयोग्य रहेंगे | हम क्यों अपनी अनाज्ञाकारिता को अन्य स्थान पर ले जायें?
21. मैं पाप में ज़ी रहा हूँ | मैं कैसे मसीह का गवाह बन सकता हूँ ?
हालांकि अपने पाप को स्वीकार करना और पाप में रहते हुए मसीह के लिए गवाही देते समय अपने आप को ढोंगी महसूस करना अच्छी बात है, तौभी अपनी पापमय अवस्था में लगातार बने रहना अच्छी बात नहीं है | हमें पाप को जो कि हानिकारक है स्वयं से दूर करना चाहिए और फिर सुसमाचार प्रचार के काम में जुट जाना चाहिए | यह सच है कि जब तक हम इस देह में हैं तब तक कभी सिद्ध नहीं होंगे | परन्तु यह एक पापमय शैली में जीवन बिताने और इस प्रकार सुसमाचार प्रचार से दूर रहने के लिए कोई बहाना नहीं है |
जैसा कि कोई भी समझ सकता है कि यह सूची और व्यापक हो सकती है | परन्तु अंतिम बात यह है कि: सुसमाचार प्रचार नहीं करने के लिए आप कोई भी बहाना क्यों न बनायें–यदि मसीह के लिए गवाही देने में आप असफल होते हैं तो यह पाप ही है! जब तक हम इस सच्चाई को कसकर पकड़ न लें तब तक हम सुसमाचार प्रचार करने की बात तो छोड़िए–इस बारे में प्रार्थना तक नहीं करेंगे!
इसलिए, आईये कुछ देर इन सच्चाईयों पर विचार करें और जहाँ आवश्यक है वहाँ परमेश्वर के सम्मुख अपनी गलतियों को मान लें और उन पर जय पाने के लिए उसकी सहायता माँगे | तभी और केवल तभी हम परमेश्वर से उम्मीद कर सकते हैं कि वह एक विश्वासयोग्य गवाह बनने की आज्ञा को पूरा करने में हमारी सहायता करेगा |
यदि आप विश्वासयोग्यता से बीज बो रहे हैं और उसके बावजूद अच्छे परिणाम नहीं देख पा रहे हैं तो संभवतः सुसमाचार प्रचार के संबंध में मार्क डीवर द्वारा लिखी गयी पुस्तक “द गोस्पल एन्ड पर्सनल इवेन्जेलिस्म” के ये शब्द आपको सांत्वना दें:
सुसमाचार प्रचार करने की मसीही बुलाहट लोगों को एक निर्णय लेने के लिए प्रेरित करने की एक बुलाहट मात्र नहीं है, परन्तु यह तो उनके सम्मुख मसीह में उद्धार के शुभ–सन्देश की घोषणा करने, उन्हें मनफिराने के लिए आह्वान देने और नया जन्म एवं [मन] परिवर्तन के लिए परमेश्वर को महिमा देने की बुलाहट है | यदि हम किसी को विश्वासयोग्यता से सुसमाचार सुनायें और फिर भी उसका मन परिवर्तन न हो तो ऐसा नहीं है कि हम सुसमाचार प्रचार के कार्य में असफल हो गये; हम असफल तभी हैं यदि हमने विश्वासयोग्यता से सुसमाचार सुनाने का काम ही नहीं किया |