मसीही ह्रदय एक धन्यवादित ( कृतज्ञ ) ह्रदय है

(English Version : The Christian Heart Is A Thankful Heart)
अक्सर ऐसा लगता है कि कृतज्ञता एक भूला दी गई आदत है, जैसा कि इस सच्ची घटना से पता चलता है | एडवर्ड स्पेंसर, इलिनोइस प्रांत के इवान्स्टन शहर के एक बाईबल कॉलेज में एक विद्यार्थी थे | वे एक जीवन–रक्षा दल के सदस्य भी थे | जब इवान्स्टन के समीप मिशीगन झील में एक जहाज डूब रहा था तो एडवर्ड ने उस बर्फीले पानी में बार–बार जाकर 17 यात्रियों के प्राण बचाए | इस कार्य में उसके स्वास्थ्य को स्थाई क्षति पहुँची | कुछ वर्षों के पश्चात, उसके अंतिम क्रियाकर्म के समय, यह बात विशेष रूप से बताई गई कि जिन 17 लोगों के प्राण उसने बचाए थे, उनमें से किसी ने भी उसे कभी भी धन्यवाद नहीं दिया |
हम ऐसी कहानियों को पढ़ते हैं और सोचते हैं, “वे 17 लोग ऐसे कृतघ्न कैसे हो सकते हैं?” परन्तु कई–कई बार विश्वासी भी इसी कृतघ्नता के पाप में दोषी ठहरते हैं-इससे भी बड़े खतरे अर्थात अनन्त दण्ड से बचाये जाने के बावजूद |
पवित्रशास्त्र में कई स्थान पर इस बात को बताया गया है कि धन्यवाद देना मसीही जीवन में कभी–कभार दिखाई पड़ने वाला गुण नहीं है बल्कि यह मसीही जीवन की स्थाई विशेषता है | नीचे कुछ उदाहरण दिए गए हैं:
“उसके फाटकों से धन्यवाद, और उसके आंगनों में स्तुति करते हुए प्रवेश करो, उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो” [भजनसंहिता 100:4] |
“यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है” [भजनसंहिता 106:1] |
“सदा सब बातों के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो” [इफिसियों 5:20] |
“अत्यन्त धन्यवाद करते रहो” [कुलुस्सियों 2:7] |
इन कुछ बाईबल आयतों के आधार पर एक बात स्पष्ट है: विश्वासियों के लिए धन्यवाद देने का कार्य कभी–कभार किया जाने वाला कार्य नहीं है | बल्कि यह तो हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग होना चाहिए! हमारी पहचान ऐसे लोगों के रूप में होनी चाहिए जो धन्यवादित हैं – हर समय!
अब, आपके अनुसार परमेश्वर क्यों चाहते होंगे कि हम एक कृतज्ञ मन रखें? इसका क्या महत्व है? मैं विश्वास करता हूँ कि भजनसंहिता 50:23 इसका एक सुराग दे सकता है: “धन्यवाद के बलिदान का चढ़ाने वाला मेरी महिमा करता है |” हमारे धन्यवाद देने से परमेश्वर को महिमा मिलती है | इस प्रकार जो बात यहाँ दाँव पर लगी है, वह है परमेश्वर की महिमा | और यह कोई छोटी–मोटी बात नहीं है!
यह लेख हर समय धन्यवादित बने रहने में विश्वासियों की सहायता करने का प्रयास करती है, और ऐसा करने के लिए यह लेख 3 बातों को सम्मुख रखती है: (I) एक कृतघ्न (धन्यवाद न देने वाला) ह्रदय होने का खतरा, (II) एक धन्यवादित (कृतज्ञ) ह्रदय विकसित करने के लाभ, और (III) एक धन्यवादित (कृतज्ञ) ह्रदय विकसित करने में सहायता करने के लिए कुछ सुझाव |
इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, कृतज्ञता की एक परिभाषा को देख लेते हैं: कृतज्ञता इस बात की एक स्वैच्छिक स्वीकृति है कि हम पूर्णतः निर्भर हैं, एक भले और सर्वाधिकारी परमेश्वर पर, जो हमारी समस्त आत्मिक और शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है |
I. एक कृतघ्न ह्रदय होने का खतरा |
एक कृतघ्न ह्रदय से दो खतरे जुड़े हुए हैं |
खतरा # 1. एक कृतघ्न आत्मा एक अविश्वासी की पहचान है |
अविश्वासियों की जीवनशैली का वर्णन करते हुए हमें रोमियों 1:21 में बताया गया है कि “उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया |” कई पार्थिव आशीषों को पाने के बावजूद [मत्ती 5:45; प्रेरितों के काम 14:15–17] अविश्वासी बाईबल के परमेश्वर को धन्यवाद देने में असफल रहे, उस परमेश्वर को जो अकेले ही समस्त आशीषों का स्रोत है | इस प्रकार, यदि कोई विश्वासी होने का दावा करता है और उसके बाद भी उसमें एक कृतघ्न आत्मा है, तो पवित्रशास्त्र उसे एक अविश्वासी बताता है |
खतरा # 2. यह परमेश्वर की एक प्रगट इच्छा के प्रति अनाज्ञाकारिता की एक अभिव्यक्ति है |
हमें 1 थिस्सलुनीकियों 5:18 में आज्ञा दी गई है कि “हर बात में धन्यवाद करो: क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है |” परमेश्वर की इच्छा अपने संतानों के लिए यही है कि उनका ह्रदय हर परिस्थिति में धन्यवाद देने वाला हो | यहाँ तक कि दुखद परिस्थिति में भी हम इस बात के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दे सकते हैं कि वह पूर्ण नियंत्रण रखे हुए है और वह सब कुछ हमारी भलाई और अपनी महिमा के लिए करता है [रोमियों 8:28–29] |
जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में कई विश्वासी परमेश्वर की इच्छा नहीं जान पाते हैं क्योंकि वे अपने जीवन में परमेश्वर की एक प्रगट इच्छा की लगातार अनदेखी करते रहते हैं–हर समय धन्यवादित रहने की इच्छा! क्या परमेश्वर को ऐसे लोगों पर अपनी और अधिक इच्छाओं को प्रगट करना चाहिए जो उसकी प्रगट इच्छा की लगातार अवहेलना करते हैं?
हिटलर के समय में कई यहूदियों को छिपाने वाली जर्मनी की प्रसिद्ध विश्वासिनी कॉरी टेन बूम ने अपनी पुस्तक “द हाइडिंग प्लेस” में उस घटना का वर्णन किया है जिसने उसे हर समय धन्यवादित रहने को सिखाया | कॉरी और उसकी बहन बेट्सी को अभी–अभी रैवंसब्रक के कैदखाने में स्थानांतरित किया गया था–इससे बदतर कैदखाना उन्होंने अब तक नहीं देखा था | कैद कोठरी में घुसते ही उन्होंने देखा कि कोठरी में क्षमता से अधिक लोग रखे गए थे और वह कोठरी पिस्सुओं (अन्य प्राणियों का खून चूसने वाली एक छोटी परजीवी कीट) से भरी हुई थी |
उस सुबह 1 थिस्सलुनीकियों के उनके बाईबल पाठ ने उन्हें सदैव आनंदित रहने, निरंतर प्रार्थना करने और हमेशा धन्यवादित रहने की याद दिलाई | बेट्सी ने कॉरी को कहा कि थोड़ा ठहरो और हमारे नए रहने के स्थान की प्रत्येक बातों के लिए प्रभु को धन्यवाद दो | यद्यपि कॉरी ने पहले ऐसा करने से मना कर दिया था परन्तु अंततः वह बेट्सी के अनुरोध पर राजी हो गई |
उस कैदखाने में महीनों गुजारने के दौरान वे इस बात से अचंभित थे कि कैसे वे खुलेआम बाईबल अध्ययन और प्रार्थना सभा आयोजित कर पा रहे और पहरेदार उन्हें रोक नहीं रहे थे | महीनों बाद उन्हें पता चला कि पहरेदार पिस्सुओं के कारण कोठरी में प्रवेश नहीं करते थे |
अद्भुत! जब हम उसके वचन के सम्मुख दीनता से समर्पण करते हैं तो परमेश्वर कैसे सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी अपनी महिमा के लिए कार्य करता है!
प्रभु यीशु ने भी अपनी शिक्षाओं में परमेश्वर को धन्यवाद देने के महत्व पर जोर दिया | दस कोढ़ियों को चंगा करने के पश्चात जब उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति ही वापस आया था तो उन्होंने यह कहा: “17 इस पर यीशु ने कहा, क्या दसों शुद्ध न हुए ? तो फिर वे नौ कहां हैं? 18 क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्वर की बड़ाई करता?” सरल भाषा में कहें तो एक कृतज्ञ आत्मा की अनुपस्थिति अनाज्ञाकारिता का एक कार्य है जिससे परमेश्वर अप्रसन्न होता है |
इस प्रकार आप समझ सकते हैं कि एक कृतघ्न ह्रदय होने के वास्तव में गंभीर खतरे हैं! यह एक ऐसा कार्य है जिससे परमेश्वर अप्रसन्न होता है-क्योंकि यह उसकी प्रगट इच्छा का उल्लंघन करता है | यह हमारी वास्तविक अवस्था को भी दर्शाता है–हम उसके संतान नहीं हैं–इससे फर्क नहीं पड़ता कि हम अपने मुँह से क्या दावा करते हैं!
वहीं दूसरी ओर, यदि एक कृतज्ञ आत्मा हमारी पहचान है तो हमें कई लाभ प्राप्त होंगे ! आईये, उनमें से 4 लाभों को देखें |
II. एक धन्यवादित (कृतज्ञ) ह्रदय विकसित करने के लाभ |
लाभ # 1. घमंड कम होता है – दीनता बढ़ती है |
एक कृतज्ञ ह्रदय के निर्माण में आने वाले प्रमुख अवरोधों में से एक अवरोध है, घमंड | हममें से प्रत्येक में हमारी सफलता का श्रेय लेने की प्रवृत्ति होती है | परन्तु, एक कृतज्ञ ह्रदय इस बात को समझता है कि सभी अच्छी बातें उस सर्वाधिकारी परमेश्वर की ओर से आती हैं और यह भी कि उसकी करुणा के बगैर कोई भी अच्छी बात संभव नहीं है | हमें 1 कुरिन्थियों 4:7 में स्मरण दिलाया गया है, “क्योंकि तुझ में और दूसरे में कौन भेद करता है? और तेरे पास क्या है जो तू ने (दूसरे से) नहीं पाया: और जब कि तूने (दूसरे से) पाया है, तो ऐसा घमण्ड क्यों करता है, कि मानों नही पाया?”
हॉवर्ड बट्ट नामक एक प्रसिद्ध मसीही उद्योगपति ने “दी आर्ट ऑफ़ बिन्ग अ बिग शॉट” शीर्षक वाले अपने लेख में लिखा:
यह मेरा घमंड है जो मुझे परमेश्वर से अलग कर देता है | यह मुझे यह महसूस करने के लिए कहता है कि मैं मेरे भाग्य का स्वामी हूँ, अपने जीवन को मैं ही संचालित करता हूँ, अपने लक्ष्यों का निर्धारण स्वयं करता हूँ और अकेले ही उन लक्ष्यों की ओर चल पड़ता हूँ | परन्तु ऐसी भावना मेरी बुनियादी बेईमानी है | मैं अपने लक्ष्य की ओर अकेले नहीं जा सकता हूँ | मुझे दूसरे लोगों की सहायता लेनी पड़ेगी, और मैं अंततः स्वयं पर निर्भर नहीं रह सकता | मैं अपनी अगली श्वांस के लिए परमेश्वर पर निर्भर हूँ | अपने आप को एक मनुष्य–कमजोर और सीमित प्राणी छोड़कर कुछ और मानने का दिखावा करना बेईमानी है…जब मैं अभिमानी बनता हूँ तो मैं स्वयं से झूठ बोलता हूँ | मैं मनुष्य नहीं परन्तु परमेश्वर होने का दिखावा करता हूँ | मेरा घमंड एक मूर्तिपूजा है जिसमें मैं स्वयं की आराधना करता हूँ | यह तो नर्क का राष्ट्रीय धर्म है!
दूसरी ओर धन्यवाद देना घमंड की बीमारी का एक सिद्ध ईलाज है | इस बात की निरंतर स्वीकारोक्ति कि हमारे पास जो कुछ भी है वो सब परमेश्वर के अनुग्रह का परिणाम है, हमें दीनता में बढ़ने की ओर ले जाता है |
लाभ # 2. शिकायत घटती है – संतुष्टि बढ़ती है |
यदि हम उन बातों के लिए परमेश्वर को लगातार धन्यवाद देते हैं जो परमेश्वर ने हमारे लिए किया है और कर रहा है, तो हम शिकायत करने के पाप के शिकार नहीं बनते हैं | किसी विशेष परिस्थिति के बारे में बताना जो कि वास्तविक में गलत है, शिकायत करना नहीं कहलाता है | बल्कि शिकायत करना [कुड़कुड़ाना] हमारे जीवन के क्रियाकलापों के ऊपर परमेश्वर के सर्वाधिकार पर प्रश्न उठाने वाला एक दृष्टिकोण है | यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो अपने आपको इस प्रकार से दिखाता है: “यदि परमेश्वर सचमुच में मुझसे प्रेम करता है तो फिर वह मेरे साथ ऐसा कैसे होने दे सकता है?” यदि हम बोलकर शिकायत नहीं करते हैं [कई लोग अंतर्मुखी होते हैं] तब भी यह पापमय है | क्या पापी प्राणी [जिसमें हम सब सम्मिलित हैं], अपने पापों को देखने के बाद भी शिकायत कर सकते हैं?
विलापगीत 3:39 हमें स्मरण दिलाता है, “सो जीवित मनुष्य क्यों कुड़कुड़ाए? और पुरुष अपने पाप के दण्ड को क्यों बुरा माने?” यदि हम समझ जायें कि हमारे पापों के कारण हम कोई भी अच्छी वस्तु पाने के हकदार नहीं हैं, तो हम हमारे जीवन में परमेश्वर की करुणा को देखकर चकित होंगे–हर परिस्थिति में संतुष्ट और धन्यवादित रहेंगे और निरंतर कहेंगे, “यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी” [भजनसंहिता 23:1] |
लाभ # 3. परमेश्वर पर संदेह कम होता है – परमेश्वर पर भरोसा बढ़ता है |
परमेश्वर पर हर समय भरोसा करने की राह में आनेवाली एक महत्वपूर्ण बाधा है, धन्यवादित ह्रदय की अनुपस्थिति | परन्तु धन्यवाद देने का कार्य इस समस्या का पूर्ण समाधान प्रदान करता है | पौलुस अपनी समस्त परीक्षाओं में परमेश्वर पर भरोसा रख सका क्योंकि वह लगातार परमेश्वर द्वारा पहले किये गये छुटकारों का स्मरण किया करता था और इस प्रकार भविष्य के लिए भी वह हियाव के साथ परमेश्वर पर भरोसा रख सका | उसके शब्दों पर ध्यान दीजिए, “3 हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर, और पिता का धन्यवाद हो, जो दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्वर है | 10 उसी ने हमें ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया, और बचाएगा; और उस से हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा” [2 कुरिन्थियों 1:3, 10] |
एक कृतज्ञ आत्मा जो परमेश्वर द्वारा दिखाई गई पिछली करुणा की बातों पर लगातार ध्यान करता है, वह आत्मा वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखने के लिए बलवन्त होता है | इस तरीके से वह आत्मा (व्यक्ति) संदेह में पड़ने, हताश होने और यहाँ तक कि कोई छोटा मार्ग (गलत मार्ग) लेने से भी बचाया जाता है|
लाभ # 4. चिंता घटती है – शांति बढ़ती है |
मसीही जीवन की कई त्रुटियों में से एक त्रुटि है, नकारात्मक बातों पर हानिकारक रूप से ध्यान केन्द्रित करने और परमेश्वर की आशीषों के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देने हेतु अधिक समय न निकालने की प्रवृत्ति | इस प्रकार का दृष्टिकोण हमारे ह्रदय में चिंता को शासन करने के लिए एक सिद्ध साधन प्रदान करता है | परन्तु परमेश्वर के वचन के पास चिंता के लिए एक ईलाज है: एक धन्यवादित ह्रदय रखना, जैसा कि फिलिप्पियों 4:6–7 में दिखाई पड़ता है |
परमेश्वर फिलिप्पियों 4:6 में हमें यह करने की आज्ञा देता है: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जायें |” और जब हमारी प्रार्थनायें हमारे धन्यवाद के साथ मिल जाती हैं तो परमेश्वर की प्रतिज्ञा यह है कि हमारे ह्रदय चिंता से मुक्त हो जायेंगे क्योंकि “तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, [हमारे] हृदय और [हमारे] विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी” [फिलिप्पियों 4:7]!
एक कृतज्ञ ह्रदय के विकास से होने वाले 4 लाभों को देखने के पश्चात आईये देखें कि हम इस प्रकार के ह्रदय को कैसे विकसित कर सकते हैं |
III. एक धन्यवादित (कृतज्ञ) ह्रदय विकसित करने में सहायता करने के लिए कुछ सुझाव |
एक धन्वादित ह्रदय विकसित करने के लिए 2 सुझाव निम्नांकित हैं |
सुझाव # 1. क्रूस पर नित्य ध्यान करें |
अब तक के सबसे महान मसीहियों में से एक हैं प्रेरित पौलुस | कई क्लेशों से होकर गुजरने के बाद भी हम प्रेरित पौलुस को धन्यवादित बने रहते हुए देखते हैं | उनका रहस्य क्या था? मैं विश्वास करता हूँ कि इसका एक उत्तर 1 कुरिन्थियों 2:2 में मिलता है, “क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं |” अब, इसका अर्थ यह नहीं था कि पौलुस अन्य विषयों पर बात नहीं करता था | इसी पत्री में ही वह विभिन्न विषयों पर बात करता है | परन्तु उसका मुख्य ध्यान यीशु मसीह पर था, मुख्य रूप से उस कार्य पर जो मसीह ने क्रूस पर अपनी मृत्यु और उसके पश्चात के पुनरुत्थान के द्वारा पूरा किया था | उन सच्चाईयों पर लगातार ध्यान करते रहने से उसे अनन्त दृष्टिकोण मिला | और इस दृष्टिकोण के कारण अंततः उसमें से धन्यवाद छलकने लगा–फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि वह किस परीक्षा में था!
यही बात हम पर भी लागू होती है | प्रभु यीशु मसीह ने हमारे लिए क्रूस पर जो कार्य किया है, हम उस बात पर जितना अधिक ध्यान लगायेंगे, हम उतना ही अधिक धन्यवाद देने के स्वभाव में बढ़ते जायेंगे |
सुझाव # 2. धन्यवाद को प्रार्थना के अभिन्न अंग के रूप में समाविष्ट करिये (जोड़िये) |
कुलुस्सियों 4:2 में यह हमारे लिए परमेश्वर की आज्ञा है, “प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवाद के साथ उस में जागृत रहो |” दूसरे शब्दों में कहें तो, धन्यवाद देना हमारे प्रत्येक प्रार्थना का एक अभिन्न अंग होना चाहिए! परमेश्वर ने हमारे लिए जो कुछ भी किया है उन सब बातों के लिए उसे धन्यवाद देने हेतु हमें अवश्य ही समय अलग करके रखना चाहिए |
बस कल्पना करिए कि हमारे बच्चे हमसे तभी बात करते हैं जब उन्हें कुछ आवश्यकता है और वे कदाचित ही धन्यवाद देते हैं! क्या हमें दुख नहीं लगेगा? तौभी, हम कितने ही बार अपने स्वर्गीय पिता के पास केवल अपनी आवश्यकताओं के लिए जाते हैं और उसे कभी “धन्यवाद” नहीं कहते और ऐसा करके उसे शोकित करते हैं | होने पाए, कि हम उसे भविष्य में कभी शोकित न करें! आईये, परमेश्वर जो है और उसने हमारे लिए जो किया है उन सब बातों के लिए उसे निरंतर धन्यवाद देने हेतु हम एक संकल्पित प्रयास करें |
समापन विचार |
दानिय्येल, बाईबल में एक सुपरिचित और अति-प्रिय व्यक्ति है | अपनी युवावस्था में ही प्रभु के लिए खड़े रहने के उसके संकल्प ने कई लोगों को प्रेरणा दी है [दानिय्येल 1] | दानिय्येल ने अपनी बुजुर्ग अवस्था के दौरान एक बड़े संकट का सामना किया–केवल राजा से प्रार्थना करो या सिंहों की माँद में फेंके जाकर मौत का सामना करो | उसकी प्रतिक्रिया अविस्मरणीय है | हम पढ़ते हैं, “जब दानिय्येल को मालूम हुआ कि उस पत्र पर हस्ताक्षर किया गया है, तब वह अपने घर में गया जिसकी उपरौठी कोठरी की खिड़कियां यरूशलेम के सामने खुली रहती थीं, और अपनी रीति के अनुसार जैसा वह दिन में तीन बार अपने परमेश्वर के साम्हने घुटने टेक कर प्रार्थना और धन्यवाद करता था, वैसा ही तब भी करता रहा |” [दानिय्येल 6:10] |
ध्यान दीजिये, दानिय्येल ने परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाने का काम नहीं किया | उसने नहीं कहा, “इतने वर्षों से मैं अब तक आपके प्रति विश्वासयोग्य बना रहा और उसका मुझे क्या यही फ़ल मिला?” बल्कि वह तो अपने परमेशर को धन्यवाद देता है, “जैसा वह पहले करता था उसी प्रकार से |” सम्पन्नता के समय आदतन धन्यवाद देने के उसके स्वभाव ने विपदा के समय में भी उसे धन्यवाद देने के लिए सक्षम बनाया | और परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनी–क्योंकि वह प्रार्थना एक धन्यवादित ह्रदय से निकली थी! आईये, हम भी, एक वैसा ही ह्रदय पाने के लिए संघर्ष करें |