रूपांतरित जीवन भाग 9—आवश्यकता में पड़े लोगों की सहायता करना

Posted byHindi Editor July 23, 2024 Comments:0

(English version: The Transformed Life – Sharing With Others In Need)

रोमियों 12:13 का पहला भाग हमें आज्ञा देता है कि, “पवित्र लोगों को जो कुछ आवश्यक हो, उसमें उनकी सहायता करो |” हिन्दी बाईबल में प्रयुक्त ‘सहायता’ शब्द के लिए मूल भाषा यूनानी में ‘कोईनोनिया’ शब्द का प्रयोग हुआ है, जिससे हमें इंग्लिश भाषा का शब्द ‘फेलोशिप’ मिलता है | ‘कोईनोनिया’ एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग मसीही संदर्भ में अक्सर हुआ है | नया नियम में इस शब्द का अनुवाद संदर्भ को देखते हुए विभिन्न तरीकों से हुआ है: हिस्सा लेना, साझेदारी, अपना हिस्सा किसी और को देना, और संगति | इसमें एक साथ एक सामुदायिक जीवन जीने का विचार निहित है | 

बाईबल हमें स्मरण दिलाता है कि परमेश्वर के साथ हमारी संगति, अन्य समस्त प्रकार की संगति का आधार है | 1 कुरिंथियों 1:9 हमें बताता है, परमेश्वर सच्चा है; जिस ने तुम को अपने पुत्र, हमारे प्रभु यीशु मसीह की संगति में बुलाया है |” और जो लोग परमेश्वर के पुत्र के माध्यम से परमेश्वर की संगति में हैं, वे स्वतः ही अन्य मसीहियों की संगति में लाये जाते हैं | अंततः हम सब एक देह के अंग हैं, जिसका सिर मसीह है | और इस संगति का एक गुण यह है कि यह हमें आवश्यकता में पड़े अन्य विश्वासियों के साथ अपनी भौतिक वस्तुयें बाँटने की आज्ञा देता है | रोमियों 12:13 का मूल विचार यही है |

यहाँ नया नियम से कुछ और भाग दिए गए हैं, जहाँ विश्वासियों को आवश्यकता में पड़े अन्य विश्वासियों के साथ अपनी भौतिक वस्तुयें बाँटने की आज्ञा दी गई है |

1 तीमुथियुस 6:18 “और भलाई करें, और भले कामों में धनी बनें, और उदार और सहायता देने में तत्पर हों |”

इब्रानियों 13:16 “पर भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानों से प्रसन्न होता है |”

इस प्रकार से हम देखते हैं कि अपने हिस्से को दूसरों के साथ बाँटना, विश्वासियों के लिए एक विकल्प के तौर पर नहीं है | यह तो एक स्पष्ट आज्ञा है | हम सब एक देह के अंग हैं, और इस नाते हमें एक दूसरे की देख—रेख और चिंता में मसीही जीवन को जीना है | 

जॉन मरे नामक एक आध्यात्मज्ञानी ने कहा था, “हमें पवित्र लोगों की आवश्यकताओं को पहचानना है और उन्हें अपना बना लेना है |” आरंभिक कलीसिया का यही दृष्टिकोण था | प्रेरितों के काम 2:44-45 में लिखा है, 44 और वे सब विश्वास करने वाले इकट्ठे रहते थे, और उन की सब वस्तुएं साझे की थीं | 45 और वे अपनी अपनी सम्पत्ति और सामान बेच बेचकर जैसी जिस की आवश्यकता होती थी बांट दिया करते थे |” यह साम्यवाद नहीं था बल्कि आधारभूत मसीहियत था! बाद में, प्रेरितों के काम 4:32-35 में बताया गया है कि विश्वासी इस दृष्टिकोण के साथ लगातार बढ़ रहे थे |

अतः, इन विचारों को देखने के पश्चात, आईए 2 प्रश्नों को पूछते हुए और उनका उत्तर देते हुए हम इस आज्ञा को प्रायोगिक रूप से लागू करें | 

प्रश्न # 1. हमें किन लोगों को देना चाहिए?

हालाँकि बाईबल में अनेक सन्दर्भ हैं जहाँ विश्वासियों को अविश्वासियों की सहायता करने की आज्ञा दी गयी है, परन्तु यहाँ, विश्वासियों को देने के लिए आज्ञा दी गई है—परिचित विश्वासियों को भी और अपरिचित को भी | बाईबल में दोनों प्रकार के विश्वासियों की सहायता करने के सन्दर्भ हैं | ऊपर में दिए गये प्रेरितों के काम 2:42 के सन्दर्भ में विश्वासियों के द्वारा अपने परिचित विश्वासियों की सहायता करने का सन्दर्भ है | रोमियों 15:26-27 में कुरिन्थ, थिस्सलुनीकिया और फिलिप्पी की कलीसियाओं के विश्वासियों को यरूशलेम के उन विश्वासियों के लिए देने के लिए कहा गया, जिन्हें वे नहीं जानते थे |

अतः, हम आवश्यकता में पड़े परिचित और अपरिचित दोनों ही प्रकार के विश्वासियों को देते हैं |

प्रश्न # 2. हमारे देने के कार्य में क्या—क्या गुण होने चाहिए? 

हमारे दान में तीन गुण होने चाहिए |

# 1. हमें उत्सुकता के भाव में होकर देना चाहिए | मकिदुनिया के विश्वासियों के देने के कार्य का वर्णन करते हुए, पौलुस ने कहा, 3…उन्होंने अपनी सामर्थ भर वरन सामर्थ से भी बाहर मन से दिया | 4 और इस दान में और पवित्र लोगों की सेवा में भागी होने के अनुग्रह के विषय में हम से बार बार बहुत बिनती की” [2 कुरिन्थियों 8:3-4] | मकिदुनिया के विश्वासियों को धक्का देने की आवश्यकता नहीं थी | उन्हें आवश्यकता की जानकारी थी और वे देने के लिए उत्सुक थे | पवित्र आत्मा के आधीनता में रहने वाले विश्वासी देना चाहेंगे | जब भी वे किसी आवश्यकता के बारे में सुनते हैं, उनका हृदय तुरंत खुल जाता है और उसी प्रकार खुल जाते हैं, उनके बटुए भी! उन्हें देने के लिए धक्का देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है |  

# 2. हमें उदारता के भाव में होकर देना चाहिए | जब हम देते हैं तो हमें कुढ़ते हुए नहीं देना चाहिए बल्कि आनंददायी और उदार मन से देना चाहिए | हमारा देना उस व्यक्ति के देने के समान नहीं होना चाहिए जो किसी स्लॉट मशीन में इसलिए कुछ सिक्के डालता है ताकि उसे वहाँ से और भी अधिक सिक्के प्राप्त हो सके | दूसरे शब्दों में कहें तो हमें और अधिक पाने के उद्देश्य से परमेश्वर को घूस देने के भाव में होकर नहीं देना चाहिए | बल्कि, हमें तो वापसी में कुछ भी पाने की आशा रखे बगैर उदारता से देना चाहिए | 

इस संबंध में मूसा की ये बातें स्मरण रखी जानी चाहिए, जो उसने इस्राएलियों को तब कहीं थी जब वे प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने के लिए तैयार थे: 7 जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसके किसी फाटक के भीतर यदि तेरे भाइयों में से कोई तेरे पास द्ररिद्र हो, तो अपने उस दरिद्र भाई के लिये न तो अपना हृदय कठोर करना, और न अपनी मुट्ठी कड़ी करना; 8 जिस वस्तु की घटी उसको हो, उसका जितना प्रयोजन हो उतना अवश्य अपना हाथ ढीला करके उसको उधार देना…10 तू उसको अवश्य देना, और उसे देते समय तेरे मन को बुरा न लगे; क्योकि इसी बात के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में जिन में तू अपना हाथ लगाएगा तुझे आशीष देगा | 11 तेरे देश में दरिद्र तो सदा पाए जाएंगे, इसलिये मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं कि तू अपने देश में अपने दीन-दरिद्र भाइयों को अपना हाथ ढीला करके अवश्य दान देना |” [व्यवस्थाविवरण 15:7-8, 10, 11] |

यीशु मसीह ने हमें उदारता से देने की आज्ञा दी है [लूका 6:38] | उदारता से देना विश्वास का एक कार्य है | विश्वास उस प्रतिज्ञा पर भरोसा करता है और उसके आधार पर कार्य करता है कि यदि मैं मेरे पास उपलब्ध संसाधनों से दूसरों की सहायता करूँ तो परमेश्वर मेरी आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा |

# 3. हमें परमेश्वर की महिमा को लक्ष्य के रूप में रखते हुए देना चाहिए |  दूसरों को इसलिए नहीं देना है, ताकि हमें अच्छा महसूस हो [जो कि हमें होगा, यदि हम इस कार्य को सही भाव से करेंगे]; इसलिए नहीं ताकि दूसरे इसे देख सकें [कई बार इससे बचा नहीं जा सकता]; इसलिए नहीं ताकि दूसरे इससे लाभ पायें [जो कि होगा ही] | परन्तु लक्ष्य तो हमेशा यही होना चाहिए कि परमेश्वर की महिमा हो |

पौलुस 2 कुरिन्थियों 9:12-15 में इन शब्दों को लिखता है: 12 क्योंकि इस सेवा के पूरा करने से, न केवल पवित्र लोगों की घटियां पूरी होती हैं, परन्तु लोगों की ओर से परमेश्वर का बहुत धन्यवाद होता है | 13 क्योंकि इस सेवा से प्रमाण लेकर वे परमेश्वर की महिमा प्रगट करते हैं, कि तुम मसीह के सुसमाचार को मान कर उसके आधीन रहते हो, और उन की, और सब की सहायता करने में उदारता प्रगट करते रहते हो | 14 ओर वे तुम्हारे लिये प्रार्थना करते हैं; और इसलिये कि तुम पर परमेश्वर का बड़ा ही अनुग्रह है, तुम्हारी लालसा करते रहते हैं | 15 परमेश्वर को उसके उस दान के लिये जो वर्णन से बाहर है, धन्यवाद हो |”

परमेश्वर को धन्यवाद दिया जाएगा [पद 12]; परमेश्वर की स्तुति की जायेगी [पद 13] | यही तो अंतिम लक्ष्य है | हम अपने जीवन में जो कुछ भी करते हैं, उनमें ‘परमेश्वर की महिमा’, ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए, और इसमें हमारे देने के कार्य भी सम्मिलित हैं | 

तो इस प्रकार हमारे देने के कार्य में ये तीन गुण होने चाहिए: उत्सुकता, उदारता और परमेश्वर की महिमा का लक्ष्य | 

सही दृष्टिकोण होने के लिए, उपाय [कुंजी] यह है: प्रभु को, हम सर्वप्रथम स्वयं को देते हैं |  मैं यह बात 2 कुरिन्थियों 8:5 के आधार पर कहता हूँ, उन्होंने प्रभु को, फिर परमेश्वर की इच्छा से हम को भी अपने तईं दे दिया |हम स्वयं को जितना अधिक परमेश्वर को अर्पित करेंगे; दूसरों के साथ अपनी वस्तुओं को बाँटने की बात जब आयेगी, तो उतना ही अधिक सही दृष्टिकोण हमारा होगा | हम जब इस परमेश्वर को एक ऐसे उदार परमेश्वर के रूप में देखेंगे, जिसने अपने पुत्र को हमारे लिए मरने हेतु दे दिया, और हम जितना अधिक उस उद्धारकर्ता के प्रेम में डूबेंगे, जिसने हमारे लिए स्वयं को दे दिया; तो दूसरों के साथ अपने संसाधनों को बाँटने की बारी आने पर, हम अपने सही दृष्टिकोण में उतना ही अधिक विकास का अनुभव करेंगे | 

देते समय बरती जाने वाली सावधानी |

जिस प्रकार से हर अच्छे कार्य का गलत फायदा उठाया जा सकता है, उसी प्रकार से “देने के कार्य” का भी सरलता से गलत फ़ायदा उठाया जा सकता है | मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हमेशा यह संभावना बनी रहती है कि मसीही होने का दावा करने वाले कुछ लोग, दूसरे मसीहियों का गलत फ़ायदा उठा लें | थिस्सलुनीके की कलीसिया में ऐसा हो रहा था | हम 2 थिस्सलुनीकियों 3:10 में पढ़ते हैं, और जब हम तुम्हारे यहाँ थे, तब भी यह आज्ञा तुम्हें देते थे, कि यदि कोई काम करना न चाहे, तो खाने भी न पाये | समस्या यह नहीं थी कि  थिस्सलुनीके के कुछ आलसी लोग काम नहीं कर सकते थे; समस्या यह थी कि वे काम नहीं करते थे; वे अनिच्छुक थे, असमर्थ नहीं! और वे लोग उन मसीहियों का गलत फ़ायदा उठा रहे थे, जो अपने संसाधनों को उनके साथ बाँट रहे थे | इसलिए, पौलुस ने इन आलसी विश्वासियों को अपना चालचलन सुधारने की चेतावनी दी और विश्वासियों को चेतावनी दी कि वे उनकी सहायता न करें |

ठीक इसी प्रकार से, हमें भी सावधान रहना चाहिए | ऐसा कहने के पश्चात, मैं यह भी जोड़ना चाहता हूँ: कुछ बुरे अनुभव, हमें इस आज्ञा को पालन करने से रोकने न पाये | हमें परमेश्वर से प्रार्थनापूर्वक सहायता माँगनी चाहिए कि वह इस आज्ञा को विश्वासयोग्यता से लागू करने में हमारी सहायता करे | 

आवश्यकता में पड़े मसीहियों की सहायता करना एक बार या विशेष अवसरों पर किया जाने वाला कार्य नहीं है | यदि हम सहायता करने की स्थिति में हैं, तो हमें मुश्किल में पड़े विश्वासियों की सहायता करनी ही चाहिए | गलातियों 6:10 में लिखा है, इसलिए जहाँ तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ |

स्मरण रखें, परमेश्वर हमसे यह अपेक्षा नहीं रखता है कि हम वह चीज दें, जो हमारे पास नहीं है | हमारे पास जो है, हमें वहीं से ही देना है | हम अपनी कमाई को जितनी बुद्धिमानी पूर्वक संभालेंगे, हम उतना ही अधिक दे पायेंगे | विश्वासियों की आवश्यकताओं के लिए देना  हमारे मासिक बजट [खर्च] का हिस्सा होना चाहिए | हम नहीं जानते कि कब कोई अत्यावश्यक जरूरत आ खड़ी होगी | तीतुस 3:14 कहता है, और हमारे लोग भी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अच्छे कामों में लगे रहना सीखें ताकि निष्फल न रहें |”  

अक्सर परमेश्वर हमारी धन—संपत्ति को इसलिए बढ़ाता है ताकि हम अपने देने के स्तर को ऊँचा उठायें, न कि इसलिए कि हम अपने जीने के स्तर को ऊँचा उठायें | आवश्यकता में पड़े लोगों की सहायता करने के आधार पर हम स्वयं को परख सकते हैं कि हमारा सचमुच में उद्धार हुआ है कि नहीं | याकूब 1:27 कहता है, हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें |” ऐसा करने में असफल रहना, उस प्रकार की भक्ति है, जिसे परमेश्वर अस्वीकार करता है | स्वयं यीशु मसीह ने कहा, “जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है” [मत्ती 7:21] | और उसकी एक इच्छा यह है कि हम दूसरों के साथ अपनी वस्तुओं को सेंतमेंत में बाँटे | 

क्या हम विश्वासयोग्य रूप से देने वाले हैं? क्या हमारे द्वारा दी जाने वाली राशि, हमारे द्वारा जमा किए जाने वाली राशि से बढ़कर है ? बैंक के खाते झूठ नहीं बोलते हैं | वे हमें बताते हैं कि हमारा सही खजाना कहाँ है | वे हमें बताते हैं कि सही में हमारा स्वामी कौन है: यीशु मसीह या धन?  इस प्रश्न को पूछते हुए अपने आप को लगातार परखते रहना महत्वपूर्ण है क्योंकि रूपांतरित जीवन धीरे—धीरे इस बात के प्रमाण देता जाएगा कि यीशु मसीह सचमुच में प्रभु है, हमारे धन—संपत्ति का प्रभु भी !

यह कहा जाता है कि जब हम देते हैं तो हम परमेश्वर की सर्वाधिक समानता में होते हैं | सत्य वचन ! परमेश्वर, सबसे बड़ा दाता है | उसके संतानों को इसी सोच का पीछा करना चाहिए | दूसरों के साथ अपनी वस्तुओं को बाँटने की आज्ञा को अभ्यास में लाने वाले लोगों के लिए परमेश्वर की एक प्रतिज्ञा यह है,क्योंकि परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की, और कर भी रहे हो [इब्रानियों 6:10]

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