रूपांतरित जीवन भाग 12—जो आनंद करते हैं उनके साथ आनंद करो

(English version: “The Transformed Life – Rejoice With Those Who Rejoice”)
रोमियों 12:15 हमें आज्ञा देता है कि “जो आनंद करते हैं उनके साथ आनंद करो |” इसका अर्थ यह है कि जो विश्वासी अपने जीवन में परमेश्वर की आशीष का अनुभव कर रहे हैं, उनके आनंद को हमें उस ईमानदारी से महसूस करना है, मानो वे आशीषें व्यक्तिगत रूप से हमें मिल रही हों | इसका बस बाहरी दिखावा नहीं करना है, परन्तु इस आनंद को सच्चे रूप में दिल की गहराई से महसूस करना है | एक सच्ची सहभागिता के जीवन का भागीदार बनकर जीने का यह अर्थ होता है |
ऊपरी तौर पर देखें तो, जो आनंद करते हैं, उनके साथ आनंद करना आसान जान पड़ता है, परन्तु इसका निरंतर अभ्यास करना, कई लोगों के लिए अक्सर ही कठिन बात बन जाती है | वास्तव में, कई बार तो, जो आनंद करते हैं, उनके साथ आनंद करने की तुलना में, जो शोक करते हैं, उनके साथ शोक करना आसान होता है | इसका कारण क्या है? एक प्राथमिक कारण है, ईर्ष्या या जलन | यहाँ तक कि इस आज्ञा के पालन में मसीहियों के चूकने का प्राथमिक कारण भी ईर्ष्या ही है |
अक्सर हम दूसरों के साथ इसलिए आनंद नहीं कर पाते हैं क्योंकि उन्हें वह मिल जाता है जो हमारे पास नहीं है या जो हम पाना चाहते थे; या जब उन्हें वही मिल जाता है, जो हमारे पास है | और इसके कारण हम अपने आपको छोटा समझने लगते हैं | कई मसीही लोग उस व्यक्ति के समान होते हैं जो एक दिन अत्यंत ही दुखी दिखाई दे रहा था | उसे भली—भाँति जानने वाले एक व्यक्ति ने उसके बारे में कहा, “या तो उसके साथ कुछ बहुत ही बुरा हुआ है या फिर उसके किसी करीबी के साथ कुछ बहुत ही अच्छा |”
जबकि बाहर से कोई मुस्कुरा सकता है, अंदर से ईर्ष्या की भावनाएँ होती हैं। और यह दूसरों के साथ वास्तव में आनंद मनाने पर रोक लगाता है | ईर्ष्या अपने आप को कई तरीकों से प्रदर्शित करती है:
- यह कोई ऐसा अविवाहित व्यक्ति हो सकता है जो अपने पहचान वालों के विवाहित होने पर आनंदित नहीं हो पाता है | जैसा कि एक अविवाहित युवती ने जिसकी उम्र बढ़ती जा रही थी, कहा, “मैं अपने मित्रों के विवाह में सम्मिलित होकर और कई बार वैवाहिक समारोह में उनकी सखी बनकर थक चुकी हूँ | मैं अब अपनी शादी के अलावा कोई और शादी में सम्मिलित नहीं हो सकती!”
- यह कोई ऐसी पत्नी हो सकती है, जो बाँझ है और जिसका गर्भधारण नहीं हो रहा है | परिणामस्वरूप, वह दूसरी महिला के गर्भवती होने या उसके माँ बनने पर आनंदित नहीं हो सकती |
- ये ऐसे माता या पिता भी हो सकते हैं जो अपने बच्चों की तुलना दूसरों के बच्चों से करते है | मेरा बच्चा दूसरे बच्चों के समान होशियार क्यों नहीं है? जब अन्य बच्चे तरक्की कर रहे हैं और मेरे बच्चे साधारण स्तर पर पड़े हुए हैं, तो मैं कैसे आनंद कर सकता हूँ?
- हो सकता है कि कोई अपने कार्यस्थल में या व्यापार में तरक्की किए जा रहा हो, जबकि आप जहाँ थे, अब भी वहीं हों, तब आपको लगे, “मैं कड़ा परिश्रम करता हूँ | मैं बहुत गंभीर हूँ | तौभी मुझे कोई नहीं पूछता | जो तरक्की मुझे मिलनी चाहिए थी वो मेरे अधीनस्थ को मिल गई | मैं कैसे आनंद कर सकता हूँ?”
- यह किसी के घर के आकार के कारण भी हो सकता है | “मैं अभी भी एक कबूतर—खाने में पड़ा हूँ, जबकि दूसरों के पास बड़े—बड़े घर हैं | मैं उनको मिली आशीषों के कारण कैसे आनंदित हो सकता हूँ?”
- ऐसा तब भी हो सकता है, जब आपके प्रदर्शन पर कोई भी ध्यान न दे और आपका साथी सबकी तारीफ़ पा जाए!
- यहाँ तक कि किसी और की कलीसिया का आकार भी इसका एक कारण हो सकता है | यह विश्वास करना आपको कठिन जान पड़ेगा, लेकिन यह सच है कि जो लोग सेवकाई में हैं, उनको भी दूसरों की सेवकाई की सफलता को देखकर आनंदित होने में समस्या होती है | “जब मेरी कलीसिया बढ़ने के स्थान पर सिकुड़ती जा रही है, तो फिर मैं किसी दूसरी कलीसिया की तरक्की में कैसे आनंदित हो सकता हूँ?” मूडी चर्च के पासबान, श्रीमान अर्विन लट्ज़र ने इन शब्दों के साथ इस भावना को खूबसूरती से बयाँ किया है, “हमेशा ऐसा लगता है कि परमेश्वर अपने आशीषमय हाथ को गलत अगुवे पर रख रहा है!”
यह सूची तो ख़त्म होने वाली नहीं | तो आपने देख लिया, ईर्ष्या ही सच्ची समस्या है | यह वास्तव में आनंद की हत्या कर देता है | हो सकता है कि कोई व्यक्ति बाहर से मुस्कुराते हुए यह दिखाए कि वह दूसरों के साथ आनंद कर रहा है, परन्तु उसके अन्दर ईर्ष्या की भावना हो | और ऐसा नजरिया हमें दूसरों के साथ सच्चे मन से आनंद करने से रोकेगा | परन्तु, आज नहीं तो कल, ईर्ष्या की वे भावनायें कार्यरूप में बाहर आ जायेंगे | हमें ऐसे लोगों से प्रेम करना मुश्किल और बहुत ही मुश्किल लगने लगेगा, जिनके बारे में हमें लगे कि उनके पास वो चीजें हैं जो हमारे पास नहीं हैं | और इससे उनके प्रति हमारे मन में रोष उत्पन्न होगा—यहाँ तक कि हम उन पर आक्रमण करना चाहेंगे—शब्दों से चोट पहुँचाकर या शारीरिक चोट पहुँचाकर !
बाईबल ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है | दाऊद की सफलताओं में आनंदित होने में असफल रहने पर शाऊल ने उसकी निंदा की और अंततः उसने उसे मार डालने का प्रयास किया | जब भीड़ यीशु मसीह के पीछे चलने लगी तो फरीसी आनंदित नहीं हो सके, उन्होंने उसकी निंदा की और अंततः उसे मार डाला | इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि नीतिवचन 27:4 कहता है, “क्रोध तो क्रूर, और प्रकोप धारा के समान होता है, परन्तु जब कोई जल उठता है, तब कौन ठहर सकता है?” यहाँ का मुख्य विचार यह है कि कोई व्यक्ति किसी क्रोधित व्यक्ति का सामना तो कर सकता है परन्तु एक ईर्ष्यालु व्यक्ति का सामना नहीं किया जा सकता है!
दो दुकानदार, कट्टर दुश्मन थे | उनके दुकान एक दूसरे के दुकान के ठीक सामने थे, और वे पूरा दिन एक दूसरे की दुकानदारी पर नज़र रखे रहते थे | जब किसी के पास कोई ग्राहक आता, तो वह दूसरे को देखकर विजयी मुद्रा में मुस्कुराता था!
एक रात को ऐसा हुआ कि उनमें से एक दुकानदार के स्वप्न में एक स्वर्गदूत आया और उसने कहा, “तू जो माँगेगा मैं दूँगा, परन्तु जो कुछ तुझे मिलेगा, तेरे प्रतिद्वंदी को उससे दोगुना मिलेगा | यदि तुम धनी होना चाहते हो तो तुम धनी हो जाओगे, परन्तु वह तुमसे दोगुना धनी होगा | क्या तुम एक स्वस्थ और दीर्घायु जीवन पाना चाहते हो? ऐसा हो जाएगा, परन्तु उसका जीवन तुमसे लम्बा और सेहतमंद होगा | तुम क्या वरदान माँगना चाहते हो?”
उस व्यक्ति ने अपनी भौंहे सिकौड़ी, कुछ क्षण सोचा और फिर कहा, “मैं यह वरदान चाहता हूँ: मेरी एक आँख खराब करके मुझे काना बना दें!”
ईर्ष्या इतनी ताकतवर है! उसके सम्मुख कौन ठहर सकता है? ठीक युसुफ के समान, जो अपने भाईयों के ईर्ष्या के सम्मुख नहीं ठहर सका, और जिन्होंने अंततः उसे बेच दिया [उत्पति 37:12-36]|
हमें यह समझने की भी आवश्यकता है कि ईर्ष्या इतना सामर्थशाली पाप है और इसमें इतनी सामर्थ है कि यह लोगों को चोट पहुँचाने की सीमा को पार करके परमेश्वर को चोट पहुँचाने लगती है | ऐसा कैसे? जब ईर्ष्या को नियंत्रित नहीं किया जाता है तो आज नहीं तो कल, हममें परमेश्वर के प्रति रोष उत्पन्न होने लगता है क्योंकि हमें लगता है कि वह दूसरों को तो आशीष दे रहा है परन्तु हमें नहीं! हम तुरंत सोचने लग सकते हैं, “हे परमेश्वर मैं अत्यंत विश्वासयोग्य बना रहा और मैंने बहुत लंबा इंतज़ार किया | तौभी तू मुझे भूल गया | आप ने यह सही नहीं किया |” उड़ाऊ पुत्र वाले दृष्टांत के बड़े भाई को स्मरण करिए [लूका 15:29-30] | हो सकता है कि हम इसे बोलकर व्यक्त न करें तौभी हम किसी प्रकार से ऐसा सोच सकते हैं कि परमेश्वर का तरीका सही नहीं है | और इस प्रकार की मानसिकता परमेश्वर को शोकित करती है!
अतः, बाईबल जिस प्रकार से आनंद करने को कहती है, यदि हम उसी प्रकार से आनंद करना चाहते हैं तो हमें ईर्ष्या के पाप से निपटना ही होगा, जो हमें दूसरों के आनंद में आनंदित होने से रोकती है | हम ऐसा कैसे करते हैं ? मैं सुझाव देना चाहता हूँ कि 2 बातों को निरंतर स्मरण में रखें |
1. स्मरण रखें कि परमेश्वर सर्वाधिकारी है |
परमेश्वर की सर्वाधिकारिता का अर्थ है कि परमेश्वर जो कुछ करता है, वह अपनी इच्छा और प्रसन्नता के अनुसार और अपने स्वभाव में बंधकर करता है | एक व्यक्ति के लिए उसकी जो योजना है, ठीक वही योजना वह दूसरे व्यक्ति के लिए नहीं बनाता है | यदि वह किसी को कोई ख़ास आशीष देता है और हमें नहीं देता है, तो संभवतः हमें उस ख़ास आशीष के स्थान पर स्वयं परमेश्वर में संतुष्ट रहने के लिए ध्यान केन्द्रित करने से सहायता मिलेगी | हमें इस बात को स्मरण रखने की आवश्यकता है कि वह सृष्टिकर्ता है, और हम उसकी रचना मात्र हैं! घड़ा कुम्हार से नहीं पूछ सकता है कि उसने उसे वैसा क्यों बनाया है!
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला एक अच्छा उदाहरण है, जिसे तब ईर्ष्या नहीं हुई, जब लोग उसे छोड़ कर यीशु के पीछे जाने लगे, परन्तु उसने कहा, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए तब तक वह कुछ नहीं पा सकता” [यूहन्ना 3:27]! वह आनंदित हुआ क्योंकि उसने उस बात को परमेश्वर की योजना के रूप में स्वीकार किया |
इस प्रकार, जब हम स्मरण रखेंगे कि परमेश्वर सर्वाधिकारी है, तो दूसरों के आशीष पाने पर हमें ईर्ष्या नहीं होगी और हम सचमुच में उनके साथ आनंद कर पायेंगे |
2. स्मरण रखें कि हर समय धन्यवादित बने रहना है |
1 थिस्सलुनीकियों 5:18 हमें बताता है, “हर बात में धन्यवाद करो: क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है |” यदि हमारे पास जो कुछ है, उनके लिए हम सदैव आभार से भरे रहते हैं तो फिर हमारे पास जो नहीं है, उससे हमें कुछ अधिक फर्क नहीं पड़ता है | जब हमारे अन्दर ऐसी आत्मा रहेगी, तो हम तुलना करने के इस खेल को नहीं खेलेंगे, परन्तु तब हम दूसरों के आशीष पाने पर सचमुच में आनंदित हो पायेंगे—तब भी जब हमारी अभिलाषायें अपूर्ण रह जायें |
धन्यवाद देने की सामर्थ के बारे में लिखते हुए रॉबर्ट स्ट्रैंड नामक एक लेखक ने [एवरग्रीन प्रेस, 2001], यह लिखा:
“अफ्रीका में एक फल पाया जाता है जिसे “स्वाद-बेर” कहते हैं | इसका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह एक व्यक्ति के स्वाद—तंतु को इस रीति से परिवर्तित कर देता है कि इसे खाने के बाद खाई जाने वाली कोई भी वस्तु मीठी ही लगती है |
धन्यवाद देना, मसीहियत का “स्वाद-बेर” है | जब हमारा हृदय आभार से भरा हुआ होगा, तो हमारे रास्ते में आने वाली कोई भी बात हमें अरुचिकर नहीं लगेगी | जिनके जीवन में धन्यवाद देने का गुण होता है, वे जीवन की मधुरता का ऐसा आनंद उठाते हैं जैसा कोई अन्य व्यक्ति नहीं उठा सकता |”
धन्यवादित रहने से कुड़कुड़ाहट और असंतुष्टि का नाश होता है | यदि हम प्रतिदिन उन आशीषों को गिनते रहें और जिन आशीषों को पाने के हम हकदार नहीं हैं, उन आशीषों को पाने के कारण हम परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें, तो हमारा ध्यान उन वस्तुओं पर अधिक नहीं लगा रहेगा जो हमारे पास नहीं हैं | हम उन उन बातों के कारण आनंदित होंगे जो हमारे पास हैं | इस प्रकार का आनंदमय व्यवहार दूसरों के आशीष पाने के समय हमें ईर्ष्यालु बनने से रोकेगा और उनके साथ आनंद करने के लिए स्वतंत्र करेगा!
अतः, ईर्ष्या के लिए दो इलाज: इस बात को लगातार स्मरण रखना कि परमेश्वर सर्वाधिकारी है और स्मरण रखना कि हमें हर समय धन्यवादित बने रहना है |
एक चेतावनी |
अब मैं दूसरों के साथ आनंद करने वाली इस आज्ञा के साथ एक बात जोड़ना चाहता हूँ | यह विशेष रूप से विवेक के इस्तेमाल से संबंधित है, कब हमें आनंद करना है और कब नहीं—इसका अर्थ यह है कि हम आनंद करने वालों के साथ आँख बंद करके आनंद नहीं कर सकते हैं | हमें इस बात के लिए आश्वस्त होना होगा कि हम केवल उन्हीं बातों में आनंद कर रहे हैं, जिसकी अनुमति बाईबल देता है, उन बातों में नहीं जिसके लिए बाईबल में प्रतिबन्ध है |
1 कुरिन्थियों 13:6 में हम पढ़ते हैं, “प्रेम कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है |” दूसरे शब्दों में कहें तो दूसरों के प्रति हमारा प्रेम, हमें पवित्रशास्त्र की सच्चाईयों के प्रति अंधा नहीं बनाना चाहिए | इसका अर्थ है कि यदि कोई किसी बात को आशीष माने और उस के कारण आनंद करे परन्तु वह तथाकथित आशीष पवित्रशास्त्र के विरोध में हो, तो हम आनंद नहीं कर सकते | तो आपने देखा, हम जिस बात में आनंदित होते हैं उससे हमारे हृदय की सही अवस्था का भी पता चलता है | यदि हम प्रभु और उसके सत्य से प्रेम करते हैं तो हम ऐसी किसी भी बात पर आनंदित नहीं हो सकते और नहीं होंगे जिससे उसे शोक पहुँचता है | परन्तु, जब कोई बात पवित्रशास्त्र के अनुरूप हो तो आनंदित होने के पर्याप्त कारण होते हैं |
इससे पहले कि हम निष्कर्ष पर पहुँचें, मैं आपको आनंद करने वालों के साथ आनंद करने के लिए एक सर्वोत्तम प्रेरणा देना चाहता हूँ | यह ऐसा है: स्वयं परमेश्वर, एक ऐसा परमेश्वर है जो दूसरों के साथ आनंद करता है | और यह बात हमें आनंद करने वालों के साथ आनंद करने के लिए प्रेरित करनी चाहिए | यीशु मसीह के समान और अधिक बनने के लिए, हमें इस सत्य को स्मरण रखना चाहिए: हमारा परमेश्वर, एक ऐसा परमेश्वर है जो दूसरों के साथ आनंद करता है! परमेश्वर के बारे में विस्तृत वर्णन देने और उसे प्रगट करने के लिए आये हुए यीशु मसीह ने लूका 15 के तीन दृष्टान्तों के द्वारा हमें इस सत्य को बताया—खोई हुई भेड़ का दृष्टांत, खोए हुए सिक्के का दृष्टांत और खोए हुए पुत्र का दृष्टांत | लूका 15:10 कहता है, “मैं तुम से कहता हूँ; कि इसी रीति से एक मन फिराने वाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतों के साम्हने आनन्द होता है |” स्वर्गदूतों के साम्हने कौन है? परमेश्वर! वह स्वर्गदूतों और उद्धार पाने वाले पापी के साथ आनंद करता है | यह है परमेश्वर के दिल की बात—क्षमा के आनंद का अनुभव पाने वाले पापी के साथ आनंद करना!
परमेश्वर, योना के सोच के जैसे, प्रत्येक सोच को गलत ठहराता है, नीनवे के लोगों ने जब मन फिराया तो योना आनंदित नहीं हो पाया [योना 4:1], क्योंकि वह उनसे क्रोधित था! जो लोग आनंद कर रहे हैं, उनके साथ हमें बिना किसी ईर्ष्या या रोष की भावना के साथ आनंद करने की आज्ञा दी गई है | ऐसा करने में असफल रहना, एक पाप है! इसलिए आईए प्रभु से प्रार्थना करें कि जब हम मसीह के समान और अधिक हो जाने के लिए रूपांतरित हो रहे हैं, तो वह इस आज्ञा को अभ्यास में लाने में हमारी सहायता करे!
प्रिय पाठकों, यदि आपने अपने पापों की क्षमा पाने के आनंद का अब तक अनुभव नहीं किया है, तो आज अपने पापों से मन फिरायें | मसीह के पास आयें, जिसने क्रूस पर पापों की कीमत चुकाई और मरकर फिर जी उठा | वह अपने पास आने वाले सब लोगों को क्षमा करने में आनंदित होता है—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी स्थिति कितनी खराब है | यदि आप ऐसा करते हैं, तो न केवल आप आनंद का अनुभव करेंगे, बल्कि परमेश्वर और स्वर्ग की सेना आपके साथ आनंद मनायेगी! और आपको जानने वाले दूसरे मसीही भी आपके साथ आनंद करेंगे | इसलिए, यीशु के पास आईए! और यदि आपको किसी और क्षेत्र में भी उसकी आज्ञा का पालन करना है, जैसे कि बपतिस्मा के लिए, तो बिना विलंब किए उसकी आज्ञा का पालन करिए [भजनसंहिता 119:60] | ऐसा करने से आपका हृदय और परमेश्वर का हृदय प्रसन्न होगा | और दूसरे विश्वासी भी आपके साथ आनंद करेंगे!