प्रभु आपको याद करता है – तब भी जब आप उसके द्वारा परित्यक्त महसूस करते हैं

(English Version: The Lord Remembers You – Even When You Feel Abandoned By Him!)
क्या दीर्घकालीन कठिन परिस्थितियों के कारण आपने कभी प्रभु के द्वारा त्यागा हुआ सा महसूस किया है ? संभवतः आर्थिक परेशानियों , स्वास्थ्य समस्या, या पारिवारिक कठिनाईयों के कारण ऐसा हुआ हो ? क्लेश की प्रकृति चाहे जो कुछ भी रही हो, क्या आपकी प्रतिक्रिया निम्न में से एक है?:
(1) परमेश्वर से निराश
(2) उसके प्रति क्रोध
(3) हतोत्साहित और उदास
(4) उस पर धीरज के साथ भरोसा रखा कि वह अपने समय में उद्धार करेगा |
इस लेख के जरिये मैं, हम सबको प्रोत्साहित करना चाहता हूँ कि जब हम किसी दीर्घकालीन प्रकार की परीक्षाओं में पड़ें तो # 4 वाली प्रतिक्रिया दिखायें – परमेश्वर पर धीरज के साथ भरोसा रखें ताकि वह अपने समय में उद्धार करे | परन्तु ऐसा करने की तुलना में, ऐसा कहना अधिक आसान बात है | ऐसे भक्तिपूर्ण प्रतिक्रिया को हम स्वयं में कैसे लायें – विशेष रूप से तब, जब परीक्षाओं से छुटकारे की कोई आशा दिखाई नहीं देती हो ? मैं विश्वास करता हूँ कि इस प्रश्न का उत्तर इस बाईबल आधारित सच्चाई का आलिंगन करने में है:
परमेश्वर अपने बच्चों को कभी नहीं भूलता है | वह उनकी सुधि लेता है, फिर चाहे उन्हें यह क्यों न लगता हो कि वे उसके द्वारा परित्यक्त हैं |
परमेश्वर द्वारा अपने लोगों की सुधि लेने के उदाहरण:
नूह : परमेश्वर द्वारा अपने लोगों की सुधि लेने के बारे में हम सबसे उत्पत्ति 8:1 में पढ़ते हैं, “परन्तु परमेश्वर ने नूह … की सुधि ली |” “परन्तु परमेश्वर” वाक्याँश एक अत्यंत अन्धकारमय पृष्ठभूमि में प्रकाशमान ज्योति के समान दिखाई पड़ती है | पिछली आयत हमें बताती है, “जल पृथ्वी पर एक सौ पचास दिन तक प्रबल रहा” (उतपत्ति 7:24) | पूरी दुनिया जलप्रलय द्वारा नष्ट कर दी गई | नूह और उसके साथ जहाज में जितने थे, वे सब अब भी अन्दर बंद थे और बाहर निकलने में असमर्थ थे |
कोई बस कल्पना ही कर सकता है कि जहाज में बंद होने के कारण उनके दिमाग में क्या चल रहा होगा – विशेष रूप से जब इस बात को ध्यान में रखते हैं कि वे कितने समय से जहाज में थे | उत्पत्ति 7:6,11 बताता है कि जब नूह 600 वर्ष का था तब जलप्रलय पृथ्वी पर आया ( जहाज में प्रवेश करने के एक सप्ताह पश्चात ), और उत्पत्ति 8:13–15 हमें बताता है कि जब वह 601 वर्ष से थोड़ा अधिक उम्र का था, तब वह जहाज से बाहर आया | इस तरह से, उन्होंने कुल मिलाकर एक वर्ष से थोड़ा अधिक समय अन्दर में गुजारा ! जब चारों ओर सब कुछ ख़त्म हो रहा था तब शरणार्थी के रूप में रहने के लिए यह एक लम्बा समय था !
परन्तु हम पढ़ते हैं कि परमेश्वर ने नूह की सुधि ली | “सुधि ली”, शब्द का अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर नूह को भूल गया था, मानो उसके याददाश्त से बात उतर गई हो | इससे, “दया से भरकर , विनती सुनते हुए, रक्षा करते हुए, छुड़ाते हुए सुधि लेने” का संकेत मिलता है | और यहाँ के सन्दर्भ में, इससे तात्पर्य है, जलप्रलय से नूह को बचाने के लिए की गई अपनी प्रतिज्ञा के प्रति परमेश्वर का विश्वासयोग्य रहना (उत्पत्ति 6:17–18); और अब परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञा को कार्यरूप में बदल रहा था |
इब्राहीम: “और ऐसा हुआ, कि जब परमेश्वर ने उस तराई के नगरों को, जिन में लूत रहता था, उलट पुलट कर नाश किया, तब उसने इब्राहीम को याद करके लूत को उस घटना से बचा लिया” (उत्पत्ति 19:29) | परमेश्वर ने अपनी दया में होकर इब्राहीम द्वारा अपने भतीजे लूत के लिए की गई बिनती को सुना (उत्पत्ति 18:16–33) और उसे दोनों नगरों ( सदोम और अमोरा ) को नाश करते समय बचा लिया |
मिस्र में इस्राएली: निर्गमन की पुस्तक में हम पढ़ते हैं कि मिस्र में जब परमेश्वर के लोग गुलाम के रूप में क्लेश में जी रहे थे, तो “इस्राएली कठिन सेवा के कारण लम्बी लम्बी सांस ले कर आहें भरने लगे, और पुकार उठे, और उनकी दोहाई जो कठिन सेवा के कारण हुई वह परमेश्वर तक पहुंची | और परमेश्वर ने उनका कराहना सुनकर अपनी वाचा को, जो उसने इब्राहीम, और इसहाक, और याकूब के साथ बान्धी थी, स्मरण किया | और परमेश्वर ने इस्राएलियों पर दृष्टि करके उन पर चित्त लगाया” (निर्गमन 2:23–25) | और परमेश्वर ने अपनी दया में होकर, मूसा को खड़ा किया, जो अंततः उन्हें मिस्र से निकालेगा |
हन्ना: 1 शमूएल 1:11 में हन्ना नामक एक भक्त परन्तु निः संतान महिला को “सर्वशक्तिमान परमेश्वर” से प्रार्थना करते हुए देखते हैं ताकि वह उसके “दुःख” पर “दृष्टि” करे और उसकी “सुधि” लेकर “उसे एक पुत्र दे” | फिर उसी अध्याय में हम आगे पढ़ते हैं कि, “परमेश्वर ने उसकी सुधि ली” (1 शमूएल 1:19) और उसे गर्भवती होने और “एक पुत्र को उत्पन्न” करने के योग्य बनाया और उसने अपने पुत्र का नाम यह कहकर शमूएल रखा कि “मैंने यहोवा (परमेश्वर) से माँगकर इसे पाया है” (1 शमूएल 1:20) |
भजनसंहिता: भजनसंहिता में इस बात का बार – बार उल्लेख है कि जब परमेश्वर के लोग हताशा में थे तो परमेश्वर ने कैसे उनकी सुधि ली और उन्हें छुड़ाया या फिर कुछ घटनाओं में उनके पापों के लिए उन्हें दण्ड देते समय कैसे उनकी सुधि लेकर उन पर तरस खाया |
भजनसंहिता 98:3 “उसने इस्राएल के घराने पर की अपनी करुणा और सच्चाई की सुधि ली |”
भजनसंहिता 105:42 “क्योंकि उसने अपने पवित्र वचन और अपने दास इब्राहीम को स्मरण किया |”
भजनसंहिता 106:45 “और उनके हित अपनी वाचा को स्मरण करके अपनी अपार करूणा के अनुसार तरस खाया |”
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि लोगों ने अक्सर परमेश्वर की स्तुति की – इस एक उदाहरण के समान : “उसने हमारी दुर्दशा में हमारी सुधि ली, उसकी करूणा सदा की है” (भजनसंहिता 136:23) |
क्रूस पर मनफिराने वाला डाकू: संभवतः बाईबल में परमेश्वर द्वारा दया में होकर लोगों की सुधि लेने के समस्त उदाहरणों में से सर्वाधिक हृदयस्पर्शी चित्र क्रूस पर उस मनफिराने वाले डाकू को यीशु मसीह द्वारा दी गई प्रतिक्रिया में देखने को मिलता है | वहाँ यीशु मसीह हमारे पापों को लिए हुए और बड़ी वेदना में क्लेश को सहते हुए क्रूस पर लटके हुए हैं और उस परिस्थिति में, उसके साथ क्रूस पर चढ़ाये गये दो डाकुओं में से एक ने पुकारा, “तब उस ने कहा; हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना” (लूका 23:42) | क्या आपने यीशु की अद्भुत प्रतिक्रिया पर ध्यान दिया ? “मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा” (लूका 23:43) | कल नहीं, अगले महीने नहीं, अभी से कुछ वर्षों के बाद नहीं, परन्तु यीशु ने उस मनफिराने वाले डाकू से प्रतिज्ञा किया कि वह “आज ही” उसके साथ “स्वर्गलोक में” होगा |
कल्पना करें कि उन वचनों को सुनकर वह मनफिराने वाला डाकू कितना आनंदित हुआ होगा ! और साथ ही उस अवर्णनीय आनंद की भी कल्पना करें जिसका अनुभव उसे कुछ घंटों के पश्चात हुआ होगा जब वह मर गया और स्वर्ग गया, जहां यीशु पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहा था ! भाईयों और बहनों, तो इस ढंग से परमेश्वर उन लोगों की सुधि लेता है जो छुटकारे के लिए उसकी ओर ताकते हैं !
परमेश्वर क्या स्मरण नहीं करता है?
यदि परमेश्वर द्वारा अपने लोगों को स्मरण करने वाले उपरोक्त उदाहरण पर्याप्त नहीं हैं तो यहाँ कुछ और ऐसी बातें हैं जो व्याकुल मनों को अविश्वसनीय शान्ति दे सकती हैं | यही परमेश्वर जो अपने लोगों की सुधि लेता है (उन्हें स्मरण करता है), यह प्रतिज्ञा भी करता है कि वह उन लोगों के पापों को कभी स्मरण नहीं करेगा जो उसके पुत्र यीशु मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं |
इब्रानियों 10:17 में यह प्रतिज्ञा लिखी गई है, “मैं उन के पापों को, और उन के अधर्म के कामों को फिर कभी स्मरण न करूंगा |” और परमेश्वर हमारे पापों को कभी स्मरण नहीं करने की प्रतिज्ञा जिस आधार पर देता है, वह यह है : यीशु मसीह “पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ा कर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा” (इब्रानियों 10:12) |
हमारे समस्त पाप, यीशु मसीह के लहू के नीचे दफ़न हैं | न्याय का कोई डर नहीं क्योंकि कोई दाम (जुर्माना) चुकाने की आवश्यकता नहीं, जैसे कि इब्रानियों 10:18 में बड़ी स्पष्टता से लिखा है, “और जब इन की क्षमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा |”
यह हम सब लोगों के लिए प्रोत्साहन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत है – विशेष रूप से उन अवसरों पर जब हम परमेश्वर द्वारा परित्यक्त महूसस करते हैं ! परमेश्वर हमारे पापों को उस तरह से कभी “स्मरण” न करने की प्रतिज्ञा करते हैं जिस तरह से स्मरण करने पर हम उसकी उपस्थिति से निकाल दिए जायें | क्या ही आनंद की बात ! क्या ही शान्ति की बात |
परमेश्वर क्या स्मरण रखता है?
तौभी, इस आनन्द और शान्ति का अनुभव उन लोगों को नहीं मिलेगा जो यीशु मसीह का तिरस्कार करते हैं | चूँकि वे अपने पापों की क्षमा पाये बिना ही मृत्यु को प्राप्त हुए, इसीलिए उन्हें भविष्य में परमेश्वर के न्याय का सामना करना पड़ेगा | उस समय उन्हें आग की झील (नर्क के लिए एक दूसरा नाम ) में अनन्त दण्ड देने के आधार के रूप में परमेश्वर उनके समस्त पापों का स्मरण करेगा और उन पापों को सामने लायेगा | प्रकाशितवाक्य 20:11–15 में विस्तृत विवरण दिया गया है |
11 फिर मैं ने एक बड़ा श्वेत सिंहासन और उसको, जो उस पर बैठा हुआ है, देखा; उसके सामने से पृथ्वी और आकाश भाग गए, और उनके लिये जगह न मिली | 12 फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के सामने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गईं; और फिर एक और पुस्तक खोली गई, अर्थात् जीवन की पुस्तक; और जैसा उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, वैसे ही उनके कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया | 13 समुद्र ने उन मरे हुओं को जो उसमें थे दे दिया, और मृत्यु और अधोलोक ने उन मरे हुओं को जो उनमें थे दे दिया; और उन में से हर एक के कामों के अनुसार उनका न्याय किया गया | 14 मृत्यु और अधोलोक आग की झील में डाले गए। यह आग की झील दूसरी मृत्यु है; 15 और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाला गया |
आयत 13 के अंत में लिखा हुआ कथन, “उन में से हर एक के कामों के अनुसार उनका न्याय किया गया”, हमें एक महत्वपूर्ण सच्चाई सिखाता है | यदि कोई व्यक्ति पापक्षमा पाए बिना मर जाए तो उसके द्वारा आज किये गए पाप को भुलाया न जायेगा परन्तु उन्हें भविष्य में दण्ड के आधार के लिए सामने लाया जायेगा |
इसका अर्थ है कि प्रत्येक पापमय विचार, शब्द, और कार्य सामने लाये जायेंगे | इसमें पूरे जीवनकाल में किसी कार्य को 100% सही न कर पाने की असफलता भी सम्मिलित है ! ये तो अनगिनत पाप हैं जिनको न्याय के दिन एक व्यक्ति को स्वयं सहना होगा ! मुद्दे की बात यह है कोई भी व्यक्ति अपने पापों के लिए पूरा दाम स्वयं नहीं चुका सकता क्योंकि कोई भी व्यक्ति सिद्ध नहीं है | इसीलिए जितने लोग यीशु मसीह का तिरस्कार करेंगे वे सब अनन्त काल के लिए आग की झील में अपना दाम चुकाते (जुर्माना) रहेंगे |
तो, विकल्प एकदम स्पष्ट है |
विश्वास और पश्चाताप में होकर, एक व्यक्ति अपने जीवित रहते समय ही उद्धारकर्ता यीशु के पास जा सकता है और उसके पापों का पूरा दाम चुकाया जायेगा, और इस तरह से वह सुनिश्चित करता है कि यीशु उसके पापों को भविष्य में स्मरण न करे | और इस तरह से वह इस बात के लिए भी आश्वस्त होगा कि वह अपना अनन्तकाल यीशु के साथ स्वर्ग में गुजारे |
या फिर, एक व्यक्ति अभी यीशु का इंकार कर सकता है और अपने सारे पापों को आगे ले सकता है और आगामी न्याय के दिन न्यायाधीश यीशु का सामना कर सकता है | उस दिन यीशु मसीह हर पाप का स्मरण करेगा और उसे आग की झील में जिसे नर्क के नाम से भी जाना जाता है डाल देगा | और वहाँ उसे पता चलेगा कि सम्पूर्ण अनन्तकाल के लिए परमेश्वर द्वारा त्यागे जाने का सही अर्थ क्या होता है |
आपका चुनाव क्या होगा – यीशु द्वारा आपके उद्धारकर्ता के रूप में आपको दया में होकर स्मरण करना या आपके न्यायाधीश के रूप में यीशु द्वारा आपके पापों का स्मरण किया जाना |