पापमय क्रोध और इसका कहर भाग 6: पापमय क्रोध के विनाशकारी दुष्परिणाम क्या – क्या हैं ?

(English version: “Sinful Anger – The Havoc It Creates (Part 6)”)
यह लेख, क्रोध के विषय या ठीक–ठीक कहें तो पापमय क्रोध के विषय को संबोधित करने वाली लेख–श्रृंखला के अंतर्गत भाग 6 है | भाग 1, पापमय क्रोध के बारे में एक सामान्य परिचय था | भाग 2 में प्रश्न #1 पर विचार किया गया: “पापमय क्रोध क्या है?” भाग 3 में प्रश्न #2 पर चर्चा की गई: “पापमय क्रोध का स्रोत क्या है?” भाग 4 में प्रश्न #3 को देखा गया: “पापमय क्रोध के पात्र कौन हैं [किनके ऊपर यह क्रोध किया जाता है]? ” भाग 5 में प्रश्न #4 पर चर्चा की गई: “ऐसी कौन–कौन सी सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं जिनसे पापमय क्रोध का प्रदर्शन किया जाता है?”
अब इस लेख में, हम प्रश्न #5 को देखेंगे:
5. पापमय क्रोध के विनाशकारी दुष्परिणाम क्या–क्या हैं?
सर्वप्रथम हमें यह समझना ही होगा कि हमें हमारे क्रोध की कीमत चुकानी पड़ती है | बाईबल इस सच्चाई को बड़ी स्पष्टता से सिखाती है | अय्यूब 5:2अ बताता है, “रोष [पापमय क्रोध को दर्शाने का एक भिन्न तरीका] मूर्ख को मार डालता है” [NIV अनुवाद] | एक और अनुवाद में इस भाव को और अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है, “मूर्ख का क्रोध अंततः मूर्ख को मार डालता है |” सर्वाधिक बुद्धिमान व्यक्ति [प्रभु यीशु मसीह के बाद] सुलैमान, इससे अधिक स्पष्टता से इसका वर्णन नहीं कर सकता था: “एक अति क्रोधित व्यक्ति को दंड उठाना ही पड़ेगा” [नीतिवचन 19:19 NIV अनुवाद] |
यहाँ बात एकदम स्पष्ट है: पापमय क्रोध में पड़ने के विनाशकारी दुष्परिणाम होते हैं | इनमें से 7 दुष्परिणाम नीचे दिए गये हैं:
विनाशकारी दुष्परिणाम # 1. पापमय क्रोध लोगों को हमसे दूर कर सकता है |
क्रोधी लोगों से घनिष्ठता का वर्णन एक लेखक कुछ इस प्रकार करता है, “एक टाईम–बम से लिपटना–एक ऐसे टाईम–बम से जिसके बारे में आपको नहीं मालूम कि वह कब फट जाएगा और आपके टुकड़े–टुकड़े कर देगा |” एकदम छोटी सी बात भी एक क्रोधी व्यक्ति को भड़का सकती है | क्रोधी लोग समझाने वाले की नहीं सुनते | वे चीखने–चिल्लाने में इतने व्यस्त रहते हैं कि वे यह नहीं सुन सकते कि दूसरा व्यक्ति क्या कहने का प्रयास कर रहा है | क्रोधी लोगों के आसपास रहना मानो अण्डों के छिलकों पर चलने के समान है | यही कारण है कि लोग आम तौर पर किसी क्रोधी व्यक्ति के अधिक समीप नहीं जाते हैं | वे उनसे दूरी बनाए रखना चाहते हैं क्योंकि वे चोट खाना नहीं चाहते!
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि सुलैमान ने नीतिवचन 22:24 में यह चेतावनी दी है: “क्रोधी मनुष्य का मित्र न होना, और झट क्रोध करने वाले के संग न चलना |” सुलैमान से सदियों पूर्व रहने वाले पितृ पुरुष याकूब ने भी अपनी मृत्यु से पूर्व इसी प्रकार की बात कही | उत्पत्ति 34 में वर्णन है कि शकेम नगर के शासक का पुत्र शकेम, याकूब की बेटी दीना का बलात्कार करता है | परिणामस्वरूप, शिमौन और लेवी नामक दीना के दो भाईयों ने उस नगर के समस्त पुरुषों को मार डाला | अनियंत्रित और अन्यायपूर्ण क्रोध का नतीजा!
अपनी मृत्यु–शैय्या से याकूब ने इन शब्दों के साथ उन पर न्याय की घोषणा की: “5 शिमोन और लेवी तो भाई भाई हैं, उनकी तलवारें उपद्रव के हथियार हैं | 6 हे मेरे जीव, उनके मर्म में न पड़, हे मेरी महिमा, उनकी सभा में मत मिल; क्योंकि उन्होंने कोप से मनुष्यों को घात किया, और अपनी ही इच्छा पर चलकर बैलों की पूंछें काटी हैं | 7 धिक्कार उनके कोप को, जो प्रचण्ड था; और उनके रोष को, जो निर्दय था; मैं उन्हें याकूब में अलग अलग और इस्राएल में तित्तर बित्तर कर दूँगा” [उत्पत्ति 49:5-7] | इस बात पर ध्यान दीजिए कि उसने पद 6 के प्रथम भाग में क्या कहा: हे मेरे जीव, उनके मर्म में न पड़! क्यों? उनके पापमय क्रोध के कारण !
पापमय क्रोध के कारण कितने ही वैवाहिक संबंध बर्बाद हो गए हैं, यहाँ तक कि यह कभी–कभी एक व्यक्ति को बाध्य करता है कि वह अपने जीवनसाथी को छोड़ दे? एक बार फिर, सुलैमान के शब्द हमें इस सच्चाई का स्मरण दिलाते हैं, “लम्बे–चौड़े घर में झगड़ालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है” [नीतिवचन 21:9] | यही सच्चाई नीतिवचन 25:24 में भी दोहराई गयी है | चाहे पत्नी झगड़ालू हो या पति, इस नीतिवचन की सच्चाई कई लोगों की शादी–शुदा ज़िन्दगी की हकीकत है!
पापमय क्रोध का एक दुष्परिणाम यह है: क्रोधी व्यक्ति एकाकीपन में जीता है | विश्वासियों को एकाकीपन में जीने के लिए नहीं बुलाया गया है | हमें दूसरों के लिए एक आशीष बनना है | परन्तु, अब कल्पना करें कि हम पापमय क्रोध के द्वारा नियंत्रित हैं | ऐसे में तो एकाकीपन के परिणामस्वरूप हम न केवल कष्टों का अनुभव करेंगे वरन साथ ही साथ अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करने की परमेश्वर–प्रदत्त जिम्मेदारी को पूरा करने में भी हम असफल हो जायेंगे |
कई बार, लोग अपने क्रोध का इस्तेमाल दूसरे लोगों को स्वयं से दूर रखने के लिए करते हैं | इस तरह से, वे दूसरे लोगों को नियंत्रित करते हैं या अपने ढंग से चलाते हैं | ऐसा कैसे? लोगों को दूर रखने का लाभ यह है कि उन्हें दूसरे लोगों के साथ अपने मुद्दों को सुलझाने की आवश्यकता नहीं पड़ती–विशेष रूप से उनके साथ जिन्हें उन्होंने चोट पहुँचाया है! इस तरह से, वे हर प्रकार के विरोध, आरोप इत्यादि से बच सकते हैं | और चूँकि वे जानते हैं कि लोग आमतौर पर उनसे दूर रहते हैं जो किसी भी क्षण फट सकते हैं, इसीलिए वे अपने क्रोध का इस्तेमाल लोगों को दूर रखने के लिए करते हैं |
यदि आप जीवन में अकेले हैं तो स्वयं से इन दो प्रश्नों को पूछना अच्छा होगा:
क) क्या यह मेरा क्रोध है जो लोगों को मुझसे दूर रख रहा है?
ख) क्या मैं लोगों को मुझसे दूर रखने के लिए मेरे क्रोध का इस्तेमाल कर रहा हूँ?
अतः, आईए इस चेतावनी को ध्यान में रखें: पापमय क्रोध लोगों को हमसे दूर रख सकता है |
विनाशकारी दुष्परिणाम # 2. पापमय क्रोध दूसरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है |
आईए पुनः एक बार, नीतिवचन 22 को देखें | परन्तु इस बार आईए, आयत 24 और 25 को देखें |
“24 क्रोधी मनुष्य का मित्र न होना, और झट क्रोध करने वाले के संग न चलना, 25 कहीं ऐसा न हो कि तू उसकी चाल सीखे, और तेरा प्राण फन्दे में फंस जाए |” पद 25 पर ध्यान दें, जहाँ लिखा है, “कहीं ऐसा न हो कि तू उसकी चाल सीखे, और तेरा प्राण फन्दे में फंस जाए |” दूसरे शब्दों में कहें तो, सुलैमान हमें बताता है कि पापमय क्रोध में दूसरों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की सामर्थ है–यह बात बच्चों के पालन–पोषण करने के कार्य में भी लागू होता है |
कल्पना करें कि आप एक ऐसे पालक हैं जो क्रोध से भरे रहते हैं और आपके बच्चे आपको दिन–रात गुस्सा करते हुए ही देखते हैं | इसका क्या ही नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा? हमें दूसरों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए कहा गया है–विशेष रूप से अपने बच्चों को! परन्तु ध्यान दीजिए कि पापमय क्रोध कैसे इससे ठीक विपरीत कार्य कर सकता है!
अतः, आईए इस चेतावनी को ध्यान में रखें: पापमय क्रोध दूसरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है |
विनाशकारी दुष्परिणाम # 3. पापमय क्रोध दूसरे बड़े पापों की ओर ले जा सकता है, हत्या के पाप की ओर भी!
नीतिवचन 29:22 कहता है, “क्रोध करने वाला मनुष्य झगड़ा मचाता है और अत्यन्त क्रोध करने वाला अपराधी होता है |” कैन को याद करें और याद करें कि हाबिल के प्रति उसका क्रोध कैसे उसे अंततः हाबिल की हत्या करने की ओर ले गया [उत्पत्ति 4:6-8] | बाईबल में वर्णित सबसे पहली हत्या ही एक ऐसी हत्या है जिसमें एक अनियंत्रित क्रोध के परिणामस्वरूप एक भाई दूसरे भाई को मार डालता है ! और ऐसा परमेश्वर द्वारा यह चेतावनी देने के बावजूद हुआ कि उसे क्रोध का पाप नियंत्रित कर रहा था और आवश्यक था कि वह उस क्रोध का तगड़ा प्रतिरोध करे, परमेश्वर ने इन शब्दों के साथ उसे चेतावनी दी थी, “पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी और होगी, और तू उस पर प्रभुता करेगा” [उत्पत्ति 4:7]!
हो सकता है कि हम हत्या न करें, परन्तु हमारा पापमय क्रोध कुछ अधिक ही नुकसान करवा सकता है–हम वास्तव में जितना सोचे थे, उससे कहीं अधिक | अनियंत्रित क्रोध के कारण पापमय बातें बोलने का क्षेत्र एक अच्छा उदाहरण है | नीतिवचन 12:18 कहता है, “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच विचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं |” इस बात पर ध्यान दीजिए कि क्रोधी व्यक्ति अपनी बातों के कहे जाने के काफी देर बात भी उन बातों से दूसरों पर प्रहार करता रहता है और उन्हें चोट पहुँचाते रहता है | हम किसी की सही में हत्या नहीं कर सकते हैं इसीलिए हम अपने शब्दों के द्वारा लगातार उनकी हत्या करते हैं और ऐसा इसलिए क्योंकि हम अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं |
पुलिस की भाषा में, किसी हिंसक क्रिया को कभी–कभी “आवेश में किया गया अपराध” कहते हैं, जिसका अर्थ है कि उस अपराध को करने से पूर्व वैसा करने के लिए सोचा नहीं गया था | सामान्यतः, जब आकस्मिक क्रोध किसी व्यक्ति को नियंत्रित कर लेता है, तब ऐसे अपराध होते हैं | अक्सर एक छोटी सी बहस कई अन्य पापों की ले जाती है–जिसमें शारीरिक हिंसा की घटनायें भी सम्मिलित हैं–यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि इसमे हत्या का पाप भी सम्मिलित है! ये सब इसलिए क्योंकि हम अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं! क्रोधी लोगों में उतावली से भरे कार्य करने की क्षमता होती है | इसीलिए हमें क्रोध के इस पाप को आरंभिक चरण में ही काट देना चाहिए और इसके बड़े होने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए!
अतः, आईए इस चेतावनी को ध्यान में रखें: पापमय क्रोध दूसरे बड़े पापों की ओर ले जा सकता है, हत्या के पाप की ओर भी!
विनाशकारी दुष्परिणाम # 4. पापमय क्रोध हमें मासूम लोगों को भी चोट पहुँचाने की ओर ले जा सकता है |
कई बार, हमारा अनियंत्रित क्रोध, हम माता–पिताओं को हमारे छोटे बच्चों को चोट पहुँचाने की ओर भी ले जा सकता है–कभी शाब्दिक चोट और कभी शारीरिक | यहाँ एक छोटी और दर्दनाक कहानी दी गई है जो इस सत्य को प्रगट करती है:
एक बार एक आदमी अपनी नई कार को पॉलिश कर रहा था और उसी समय उसके 4 वर्षीय पुत्र ने एक पत्थर उठाया और गाड़ी पर उसने कुछ लकीरें खींच दीं | अपने क्रोध में उस व्यक्ति ने अपने पुत्र का हाथ पकड़ा और उसके हाथ में उसने कई बार मारा, उसे इस बात का अहसास ही नहीं था कि वह उसे लोहे के पाने से मार रहा था |
अस्पताल ले जाने पर पता चला कि कई सारे फ्रैक्चर होने के कारण उस बच्चे की सारी उँगलियाँ खराब हो गई थीं | बच्चे ने दर्दभरी आँखों से अपने पिता को देखते हुए पूछा, “डैड, मेरी उँगलियाँ कब वापस आयेंगी?” उस व्यक्ति को बड़ा झटका लगा और वह निशब्द हो गया |
वह कार के पास वापस गया और उसने बहुत बार अपनी लातों से कार को ठोकर मारी | वह वहीं नहीं रुका | अपने करतूत के कारण टूटा हुआ, वह उस कार के सामने बैठ गया और तब जो लकीरें उसके पुत्र ने खींची थीं, उन लकीरों को उसने देखा, वहाँ लिखा था, “LOVE YOU DAD.”
अगले दिन उस व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली!
कृपया इस कहानी से इस गलत निष्कर्ष को न निकालें कि हमें कभी भी अपने बच्चों को अनुशासनात्मक दण्ड नहीं देना है–यदि आप माता–पिता के रूप में उचित अनुशासनात्मक दण्ड देने का अभ्यास नहीं करते हैं [जहाँ आवश्यक हो], तो बाईबल इसे एक पाप बताती है | परन्तु, यदि अनुशासन की यह कार्यवाही अनियंत्रित क्रोध का परिणाम है तो फिर यह एक पाप है –और यह कहानी ऐसे ही क्रोध का एक उदाहरण है | बाईबल अपने अधिकारों के गलत इस्तेमाल के लिए कभी लाईसेंस नहीं देती है!
यहाँ विचार यह है कि पापमय क्रोध किसी व्यक्ति को मासूम लोगों को भी चोट पहुँचाने की ओर ले जा सकता है | उदाहरण के लिए, मान लीजिए हम किसी व्यक्ति के ऊपर गुस्सा हैं और कोई अन्य व्यक्ति आकर उस व्यक्ति के बारे में कुछ अच्छी बातें बोलता है और फिर हम गुस्सा हो जाते हैं | हम उस व्यक्ति के विरुद्ध हो जाते हैं जो उन अच्छी बातों को बोल रहा था क्योंकि हमें लगता है कि वह हमारा पक्ष नहीं ले रहा है! दूसरे शब्दों में कहें तो हमारा क्रोध अन्य लोगों पर [जो हमारे मित्र भी हो सकते हैं] केवल इसलिए भड़क उठता है क्योंकि हमें लगता है कि वे हमारे “धार्मिक क्रोध” का समर्थन नहीं कर रहे हैं !
अतः, आईए इस चेतावनी को ध्यान में रखें: पापमय क्रोध हमें मासूम लोगों को भी चोट पहुँचाने की ओर ले जा सकता है |
विनाशकारी दुष्परिणाम # 5. पापमय क्रोध परमेश्वर के न्याय को ला सकता है |
पापमय क्रोध का यह एक और भयानक दुष्परिणाम है–और ये बताया है प्रभु यीशु मसीह ने अपने ही होठों से, और हम इसे पाते हैं उस भाग में जिसे अक्सर पहाड़ी उपदेश के नाम से जाना जाता है |
मत्ती 5:21-22, “21 तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि हत्या न करना, और जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा | 22 परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा: और जो कोई अपने भाई को निकम्मा कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे “अरे मूर्ख” वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा |”
क्रोध पापमय बोलचाल की ओर ले जाता है जैसा कि “निकम्मा” शब्द से पता चलता है, जो कि घृणा को दर्शाने वाली एक शब्दावली है | और ऐसे कार्य अंततः परमेश्वर की ओर से दण्ड पाने की ओर ले जाते हैं जैसा कि पद 21 और 22 में दोहराए गये वाक्याँश, “वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा” और पद 22 के वाक्याँश, “वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा” से पता चलता है! हालांकि जो सचमुच में परमेश्वर की संतान हैं वे कभी भी नरक की आग का सामना नहीं करेंगे, तौभी यदि परमेश्वर के संतान क्रोध की जीवनशैली का प्रदर्शन करें तो परमेश्वर उन्हें कठोरता से दण्डित करेगा | और पापमय क्रोध जिन लोगों की पहचान बन चुकी है उन लोगों को अपने आप को यह देखने के लिए जाँचना चाहिए कि क्या वे सचमुच में परमेश्वर के संतान हैं और ऐसा इसलिए क्योंकि वे पाप के गुलाम के रूप में जीवन बिताना जारी रखे हुए हैं–रोमियों 6:17 में सिखाई गई शिक्षा से ठीक विपरीत!
क्रोधी लोग परमेश्वर के न्याय से नहीं बच सकते | क्यों? क्योंकि एक क्रोधी आत्मा, एक अभिमानी और विद्रोही आत्मा है | परमेश्वर एक अभिमानी और विद्रोही आत्मा को कैसे सही ठहरा सकता है? परमेश्वर केवल उन्हीं लोगों से प्रसन्न होता है जिनके मन दीन हैं [याकूब 4:6] |
परमेश्वर द्वारा क्रोधी व्यक्तियों से प्रसन्न नहीं होने का एक और कारण यह है कि वे परमेश्वर की महिमा का हनन करते हैं | एक क्रोधी व्यक्ति अंतिम न्यायी के रूप में स्वयं को रखते हुए परमेश्वर के स्थान को ले लेता है | शिमौन और लेवी ने जब शकेमवासियों पर आक्रमण किया तब उन्होंने ठीक यही कार्य किया [उत्पत्ति 34:24-29] | हालाँकि यह सही है कि परमेश्वर ने इस्राएलियों को आज्ञा दी थी कि प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने पर वे वहाँ के नगरों को उजाड़ डालें तौभी वह कार्य उन्हें केवल परमेश्वर के निर्देशानुसार करना था | दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक पवित्र युद्ध था जहाँ परमेश्वर ने उन लोगों से अपना पलटा [प्रतिशोध] लेने के लिए जिन्होंने उसके विरुद्ध भयानक पाप किये थे इस्राएलियों का साधन के रूप में इस्तेमाल किया |
यह उस कार्य से भिन्न है जहाँ लोग किसी गलत बात को सही करने के लिए अपनी इच्छा से कार्य करते हैं | उस अर्थ में वे लोग उस कार्य को अपने हाथ में ले लेते हैं जिस पर परमेश्वर का ही अधिकार है – सीधे कहें तो, पापमय कार्यों का पलटा लेने का कार्य | रोमियों 12:19 स्पष्टता से कहता है, “हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूँगा |” हम परमेश्वर की महिमा का हनन करके आशीषित होने की अपेक्षा नहीं कर सकते !
अतः, आईए इस चेतावनी को ध्यान में रखें: पापमय क्रोध, हम पर परमेश्वर के न्याय को ला सकता है |
विनाशकारी दुष्परिणाम # 6. पापमय क्रोध शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है |
नीतिवचन 14:29-30 कहता है, “29 जो विलम्ब से क्रोध करने वाला है वह बड़ा समझ वाला है, परन्तु जो अधीर है, वह मूढ़ता की बढ़ती करता है | 30 शान्त मन, तन का जीवन है, परन्तु मन के जलने से हड्डियां भी जल जाती हैं |” इन आयतों पर टिप्पणी करने वाले एक लेखक के अनुसार, “इब्रानी भाषा की काव्य–संरचना यह दर्शाती है कि” विलम्ब से क्रोध करने वाला व्यक्ति विरुद्ध अधीर [क्रोधी] व्यक्ति “के बीच की विलोम तुलना” तन का जीवन विरुद्ध हड्डियों के जलने के बीच की विलोम तुलना के अनुरूप है | दूसरे शब्दों में कहें तो क्रोध और जलन शारीरिक देह को नुकसान पहुँचाते हैं जबकि धीरज और शांति अच्छी सेहत का कारण बनते हैं |
ये बातें कितनी सटीक हैं, “क्रोध एक ऐसा एसिड है जो उस बर्तन की अपेक्षा जिसमें वह उँडेला जाता है, उस बर्तन को अधिक नुकसान पहुँचाता है जिसमें वह रखा गया है !” क्रोधी व्यक्ति अक्सर कई शारीरिक बीमारियों का अनुभव करते हैं [उदाहरण के लिए, उच्च रक्तचाप, पाचन समस्या इत्यादि] |
अतः, आईए इस चेतावनी को ध्यान में रखें: पापमय क्रोध हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है |
विनाशकारी दुष्परिणाम # 7. पापमय क्रोध प्रार्थना को प्रभावित कर सकता है |
प्रेरित पौलुस ने 1 तीमुथियुस 2:8 में ये बातें लिखीं हैं, “सो मैं चाहता हूँ, कि हर जगह पुरूष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र हाथों को उठा कर प्रार्थना किया करें |” यदि हम अपने ह्रदय में क्रोध को रखकर प्रार्थना करेंगे तो हम पाप करते हैं और फिर हमें भजनसंहिता 66:18 की वास्तविकता का अनुभव होगा, जहाँ लिखा है, “यदि मैं मन में अनर्थ बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता |” परमेश्वर ऐसे लोगों की प्रार्थना नहीं सुनेगा जो किसी पाप को छोड़ने से ढिठाई के साथ इनकार करते हैं, यह क्रोध का पाप भी हो सकता है ! हालाँकि 1 तीमुथियुस 2:8 प्राथमिक रूप से पुरुषों को संबोधित करता है तौभी ह्रदय में क्रोध होने का यह सिद्धांत एक व्यक्ति के प्रार्थना के उत्तर को अवश्य ही प्रभावित करता है-फिर प्रार्थना करने वाला व्यक्ति पुरुष हो या स्त्री!
पतरस ने भी पतियों को इन शब्दों के साथ चेतावनी दी, “वैसे ही हे पतियों, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जान कर उसका आदर करो, यह समझ कर कि हम दोनों जीवन के वरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनायें रुक न जायें” [1 पतरस 3:7] | अपनी पत्नी का ध्यान न रखने वाला होना-जिसमें एक क्रोधी मन रखने की बात भी सम्मिलित है-एक पति की प्रार्थना को उत्तर पाने से रोक देगी |
अतः, आईए इस चेतावनी को ध्यान में रखें: पापमय क्रोध हमारी प्रार्थना को प्रभावित कर सकता है |
कोई व्यक्ति इन 7 बातों की सूची में और भी कई बातें जोड़ सकता है | परन्तु जब हम देखते हैं कि पापमय क्रोध के सामर्थी नकारात्मक दुष्परिणाम कितने घातक हैं तो केवल ये 7 बातें ही हमें झकझोर कर रख देनी चाहिए |
अपने अगले लेख में हम छठवें और अंतिम प्रश्न को देखते हुए इस श्रृंखला को समाप्त करेंगे: हम पापमय क्रोध से कैसे छुड़ाये जा सकते हैं?