पापमय क्रोध और इसका कहर भाग 5: ऐसी कौन—कौन सी सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं जिनसे पापमय क्रोध का प्रदर्शन किया जाता है ?

Posted byHindi Editor March 25, 2025 Comments:0

(English version: “Sinful Anger – The Havoc It Creates (Part 5)”)

यह लेख क्रोध के विषय या ठीक—ठीक कहें तो पापमय क्रोध के विषय को संबोधित करने वाली लेख—श्रृंखला के अंतर्गत भाग 5 है | भाग 1, पापमय क्रोध के बारे में एक सामान्य परिचय था | भाग 2 में प्रश्न #1 पर विचार किया गया: “पापमय क्रोध क्या है?” भाग 3 में प्रश्न #2 पर चर्चा की गई: “पापमय क्रोध का स्रोत क्या है?” भाग 4 में प्रश्न #3 को देखा गया: “पापमय क्रोध के पात्र कौन हैं [किनके ऊपर यह क्रोध किया जाता है]?”

अब इस लेख में हम प्रश्न #4 को देखेंगे: ऐसी कौन—कौन सी सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं जिनसे पापमय क्रोध का प्रदर्शन किया जाता है? परन्तु, चौथे प्रश्न में आगे बढ़ने से पहले प्रथम 3 प्रश्नों की समीक्षा करना अच्छा होगा | 

भाग 2 में प्रश्न #1 पर विचार किया गया: “पापमय क्रोध क्या है?” और फिर इस सरल परिभाषा के साथ उस प्रश्न का उत्तर दिया गया: क्रोध उस कार्य के प्रति जिसे हम नैतिक रूप से गलत समझते हैं एक सक्रिय प्रतिक्रिया है | अतः, अपने सर्वाधिक मौलिक अर्थ में क्रोध अपने आप में कोई पाप नहीं है | यह एक भावना है जिसे परमेश्वर ने सभी मनुष्यों में डाला है | परन्तु बाईबल, धार्मिक क्रोध और पापमय क्रोध के मध्य भिन्नता दर्शाती है |

धार्मिक क्रोध वह भावना है जिसका प्रदर्शन तब होता है जब परमेश्वर की नैतिक व्यवस्था [अर्थात, परमेश्वर के अनुसार क्या सही है और क्या गलत, बताने वाला मापदण्ड] जिसका वर्णन बाईबल में है, को तोड़ा जाता है | यह एक ऐसा क्रोध है जो तब उभर आता है, जब परमेश्वर को लज्जित किया जाता है | यह एक नियंत्रित क्रोध है | वहीं दूसरी ओर, पापमय क्रोध का परमेश्वर की नैतिक व्यवस्था टूटने से कोई लेना—देना नहीं है | यह एक ऐसा क्रोध है जो तब भड़कता है जब हमें लगता है कि: हमारे मापदण्ड [या नियम–कानून ] तोड़े गए हैं; हमें लज्जित किया गया है; हमारी इच्छानुसार कार्य नहीं हुआ; हम जैसा चाहते थे वैसा नहीं हुआ | जब हमें लगता है कि हमारी आवश्यकतायें या अभिलाषायें पूरी नहीं हुई तो हम झुंझला उठते हैं |

भाग 3 में प्रश्न #2 पर चर्चा की गई: “पापमय क्रोध का स्रोत क्या है?” हमने देखा कि क्रोध स्वयं में मूल कारण नहीं है–बल्कि यह तो एक लक्षण है–एक पापमय ह्रदय की समस्या! यीशु मसीह ने स्वयं कहा, 21 क्योंकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्ता, व्यभिचार | 22 चोरी, हत्या, पर स्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं | 23 ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं [मरकुस 7:21-23] |

पापमय क्रोध सहित समस्त बुरे कार्यों का स्रोत ह्रदय ही है | बाईबल के अनुसार, ह्रदय हमारा वह भाग है जिसमें हमारे विचार, भावनायें और इच्छाशक्ति सम्मिलित हैं | जब ह्रदय गलत अभिलाषाओं से भर जाता है और जब वे अभिलाषायें पूरी नहीं होती हैं, तो पापमय क्रोध जन्म लेता है! 

भाग 4 में हमने प्रश्न # 3 को देखा: “पापमय क्रोध के पात्र कौन हैं [किनके ऊपर यह क्रोध किया जाता है]?” और हमने यह कहते हुए इसका उत्तर दिया कि सामान्यतः क्रोध परमेश्वर, स्वयं एवं दूसरों के विरुद्ध अभिव्यक्त होता है | 

परमेश्वर के विरुद्ध क्रोध यह महसूस करने पर उत्पन्न होता है कि उस कार्य को नहीं करने के द्वारा जो हम चाहते थे कि वह हमारे लिए करे या फिर  कुछ ऐसा कार्य करने के द्वारा जैसा करने की अपेक्षा हमें उससे नहीं थी, परमेश्वर ने हमें नीचा दिखाया है | स्वयं के प्रति क्रोध उस आत्म—प्रताड़ित दण्ड का एक रूप है जिसे हम अपनी असफलताओं के कारण स्वयं को देते हैं | दूसरे शब्दों में कहें तो हम अपनी असफलताओं के लिए स्वयं को दण्डित करते हैं | सबसे अंत में आता है, दूसरों के विरुद्ध क्रोध; यह सर्वाधिक प्रचलित क्रोध है जो तब भड़कता है जब हम महसूस करते हैं कि लोगों ने कुछ ऐसा किया है जिसे हम नैतिक रूप से गलत समझते हैं या फिर वे ऐसा कुछ करने में असफल हो गये जो हम चाहते थे कि उन्हें करना चाहिए था | 

इस त्वरित समीक्षा के पश्चात, आईए अब हम पापमय क्रोध के बारे में चौथे प्रश्न को देखें |

IV. ऐसी कौन–कौन सी सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं जिनसे पापमय क्रोध का प्रदर्शन किया जाता है?

पापमय क्रोध को लोग भिन्न—भिन्न तरीके से प्रदर्शित करते हैं | हम इसकी तुलना प्रेशर कुकर के कार्य करने के तीन चरणों से कर सकते हैं |

क) शांत अभिव्यक्ति 

प्रेशर कुकर के प्रथम चरण में अन्दर में ऊष्मा शान्ति के साथ बढ़ती जाती है | उसी प्रकार से कुछ लोग बाहर से अत्यंत शांत लगते हैं परन्तु अन्दर में अपने क्रोध को एकत्रित करते रहते हैं | वे अन्दर में क्रोध से उबलते रहते हैं—परन्तु बाहर से मुस्कराता हुआ चेहरा बनाये रखते हैं—कभी—कभी कई वर्षों तक ! 

उनको देखने वाले लोग अक्सर धोखे में रहते हुए यह सोचते रहते हैं कि वे अत्यंत आत्म—नियंत्रित हैं | आम तौर पर बात करें तो जो लोग पापमय क्रोध को अभिव्यक्त करने की इस श्रेणी में आते हैं वे स्वभावतः कुछ अधिक ही अंतर्मुखी और शर्मीले होते हैं—ये बाह्य रूप से अपनी बातों को खुलकर कहने वाले नहीं होते हैं | परन्तु, यह जरूरी नहीं है कि बाहर से स्थिर और शांत रहने का अर्थ यह है कि अन्दर में क्रोध की अनुपस्थिति है | अन्दर का ह्रदय क्रोध के स्थिर व्यवहार के कारण धीरे—धीरे करके कठोर हो जाता है | और समय गुजरने पर, यह क्रोध शब्दों और कार्यों के द्वारा बाह्य रूप से अभिव्यक्त होता है | 

ख) संतुलित निकास  

प्रेशर कुकर के द्वितीय चरण में तापमान बढ़ने पर ढक्कन से धीरे से और संतुलित रूप से भाप की थोड़ी मात्रा निकलती है | जो लोग पापमय क्रोध को अभिव्यक्त करने की इस श्रेणी में आते हैं, वे अपने क्रोध को व्यंग्यपूर्ण बातों एवं चोट पहुँचाने वाले कार्यों के माध्यम से लगातार और संतुलित रूप से अभिव्यक्त करते रहते हैं | कई बार, वे दूसरे लोगों को इस तरह से चोट पहुँचाते हैं कि साधारण रूप से देखने पर उनका यह कार्य स्पष्ट रूप से नजर भी नहीं आता है | परन्तु क्रोध तो मौजूद रहता है और संतुलित रूप से अभिव्यक्त भी होता रहता है |

ग) आकस्मिक विस्फोट 

प्रेशर कुकर के तृतीय चरण में हम देखते हैं कि भाप पूरी ताकत से एक बड़े शोर के साथ निकलता है | जो लोग पापमय क्रोध को अभिव्यक्त करने की इस श्रेणी में आते हैं वे विस्फोटक प्रकार के होते हैं | आमतौर पर क्रोध में उनकी आवाज तेज हो जाती है, वे चीखते—चिल्लाते हैं, गुस्से में गलत निर्णय लेते हैं और मारपीट भी करते हैं | दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि अक्सर मासूम बच्चे अपने क्रोधित माता—पिता के हाथों ऐसे क्रोध का शिकार बनते हैं और उनके साथ मारपीट भी हो जाती है | 

जो लोग इस तरह से अपने क्रोध को अभिव्यक्त करते हैं वे ऐसा भी कहते हैं, “मैं अपने गुस्से को नहीं छिपाता | मैं पारदर्शी हूँ | जब मैं गुस्से से पागल हो जाता हूँ, तो मैं अपना पूरा गुस्सा बाहर निकाल देता हूँ  | मैं सबको यह जता देता हूँ कि मैं क्या सोचता हूँ |” ऐसी बातें कहकर उनका भ्रमित मन इस अपेक्षा में भी रहता है कि जो पारदर्शिता उन्होंने दिखाई है, उसके कारण उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए !

कुल मिलाकर इस लेख का मुख्य विचार यह है: क्रोध की समस्त अभिव्यक्तियाँ एक ही रीति से प्रदर्शित नहीं होती हैं | यह अपनी शैली बदलता है तौभी इसकी अभिव्यक्ति तो होती ही है |  एक ही व्यक्ति अपने रोष को कभी बहुत समय बाद बिल्कुल शांत रीति से, या हर समय संतुलित रूप से और यहाँ तक कि समय—समय पर एक विस्फोटक रूप में भी अभिव्यक्त कर सकता है | चाहे क्रोध किसी भी रीति से अभिव्यक्त किया जाए, उस क्रोध के दुष्परिणाम होते हैं; कभी—कभी तो अत्याधिक विनाशकारी दुष्परिणाम—जैसा कि हम अगले लेख में देखेंगे |    

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