पापमय क्रोध और इसका कहर भाग 4: पापमय क्रोध के पात्र कौन हैं?

Posted byHindi Editor February 25, 2025 Comments:0

(English version: “Sinful Anger – The Havoc It Creates (Part 4)”)

यह लेख क्रोध के विषय या ठीक—ठीक कहें तो पापमय क्रोध के विषय को संबोधित करने वाली लेख—श्रृंखला के अंतर्गत भाग 4 है | भाग 1, पापमय क्रोध के बारे में एक सामान्य परिचय था | भाग 2 में इस प्रश्न पर विचार किया गया कि, “पापमय क्रोध क्या है?” भाग 3  में इस विषय पर चर्चा की गई कि, “पापमय क्रोध का स्रोत क्या है?” और इस लेख में हम इस विषय से संबंधित प्रश्न # 3 को देखेंगे: “पापमय क्रोध के पात्र कौन हैं [किनके ऊपर यह क्रोध किया जाता है]?”

III. पापमय क्रोध के पात्र कौन हैं [किनके ऊपर यह क्रोध किया जाता है]? 

क्रोध किया जा सकता है, परमेश्वर, स्वयं एवं दूसरों के विरुद्ध |

A) परमेश्वर के विरुद्ध |

हम परमेश्वर से क्रोधित होते हैं क्योंकि हम समझते हैं कि परमेश्वर ने हमें इन 1 या 2 तरीकों से नीचा दिखाया है: (1) परमेशर ने वह नहीं किया जो हम चाहते थे कि वह करे [उदाहरण के लिए, हमें सुखद वैवाहिक जीवन देना, एक अच्छी नौकरी, किसी विशेष बीमारी से चंगाई, दीर्घकालीन अभिलाषा को पूरा करना इत्यादि] | कहीं न कहीं हमें लगता है कि हमारे साथ धोखा हुआ है और परिणामस्वरूप हम परमेश्वर से क्रोधित हो जाते हैं | (2) परमेश्वर ने ऐसा कुछ कर दिया जैसा करने की अपेक्षा हमें उससे नहीं थी | उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर हमसे हमारे किसी प्रियजन को छीन ले या हमारे जीवन के सबसे बड़े सपने को कुचल दे, तब हमें लगता है कि उसे हमारे साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था | कहीं न कहीं हमें लगता है कि परमेश्वर हमारे प्रति निर्दयी रहा और हम उससे क्रोधित हो जाते हैं | 

परमेश्वर के प्रति ऐसे क्रोध के परिणामस्वरूप हम कुछ समय तक कलीसिया जाने, बाईबल पढ़ने और प्रार्थना में परमेश्वर के साथ समय बिताने के कार्य से दूर रहने का प्रयास करते हैं, यह तब तक चलता रहता है जब तक कि हमारा क्रोध “ठंडा” नहीं हो जाता | कभी—कभी ऐसा भी होता है कि हम कलीसिया आना, बाईबल पढ़ना और प्रार्थना करना, इत्यादि कार्य जारी रखते हैं   परन्तु हमारा ह्रदय परमेश्वर के प्रति ठंडा और उदासीन हो जाता है | ये सब कार्य परमेश्वर और उसके बताये मार्गों के प्रति एक आतंरिक ह्रदयस्पर्शी प्रेम के साथ किए जाने वाले कार्य के स्थान पर एक भावहीन और यांत्रिक बाह्य कार्य बनकर रह जाते हैं | कई अतिरेक घटनाओं में यह क्रोध परमेश्वर को सम्पूर्ण रूप से त्याग देने की ओर भी ले जाता है!

इससे पहले कि हम सोचें कि, “परमेश्वर के सम्मुख अपनी भावनाओं को ईमानदारी से रखना सही बात है—आखिरकार, वह मेरा पिता है,” हमें इस चेतावनी की आवश्यकता है कि परमेश्वर न केवल हमारा पिता है, बल्कि वह परमेश्वर है—पवित्र परमेश्वर—भययोग्य और आदरयोग्य | सभोपदेशक 5:1-2 हमारे लिए एक चेतावनी के रूप में कार्य करना चाहिए, 1 जब तू परमेश्वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना; सुनने के लिये समीप जाना मूर्खों के बलिदान चढ़ाने से अच्छा है; क्योंकि वे नहीं जानते कि बुरा करते हैं | 2 बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के साम्हने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं और तू पृथ्वी पर है; इसलिये तेरे वचन थोड़े ही हों |”

हालांकि इस भाग में सन्निकट पृष्ठभूमि क्रोध के बारे में बात नहीं करती है, तौभी व्यापक सिद्धांत यह है कि बेहतर यही है कि हम अपनी चौकसी करें ताकि हम ऐसा कुछ भी कहने न पायें जो एक महान और सामर्थी परमेश्वर के लिए उचित और उपयुक्त न हो |

परमेश्वर से क्रोधित होने का एक प्रमुख कारण यह है कि हम अक्सर यह स्मरण रखना भूल जाते हैं कि परमेश्वर ने एक आराम और सुख भरे जीवन की प्रतिज्ञा नहीं की है | मुद्दा कभी भी यह नहीं था और नहीं है कि हम जो चाहते हैं वह हमें मिले | इसके विपरीत, प्रभु हमें अपने आप का इनकार करने की बुलाहट देते हैं [लूका 9:23] | यदि हम इस सच्चाई को समझ जायें तो हम जान पायेंगे कि हमारी इच्छाओं के अनुसार योजनाओं के कार्यान्वित न होने की अपेक्षा की जानी चाहिए, और इस प्रकार हम परमेश्वर से क्रोधित नहीं होंगे | हम इस बात को समझेंगे कि वह हमारे जीवन के समस्त क्षेत्रों में सर्वाधिकारी है और हमें उसके सम्मुख सम्पूर्ण समर्पण में झुकने के लिए बुलाहट मिली है |

B) स्वयं के विरुद्ध |

क्रोध के विषय में चर्चा करते समय, हम अक्सर स्वयं के प्रति निर्देशित क्रोध के बारे में चर्चा नहीं करते है | परन्तु, कई घटनाओं में ऐसा ही होता है | ऐसा कैसे? कितनी ही बार हम या वे लोग जिन्हें हम जानते हैं, यह कहते हैं:

  • मुझे यकीन नहीं होता कि मैंने यह किया है | 
  • यह सब मेरी गलती है जो हम इस मुसीबत में हैं | 
  • मैं क्या सोच रहा था?
  • मैं खुद से ही नजरें नहीं मिला पा रहा हूँ | 
  • मैं यकीन नहीं कर पा रहा हूँ कि मैंने उस परीक्षा, उस संगीत समारोह, उस महत्वपूर्ण मैच, उस अति महत्वपूर्ण प्रेजेंटेशन को बर्बाद कर दिया, इत्यादि | 

पुनः, इस बात को स्मरण रखें कि क्रोध उस कार्य के प्रति एक सक्रिय प्रतिक्रिया है जिसे हम नैतिक रूप से गलत समझते हैं | अतः, जब हम कुछ सही करने में असफल रहते हैं या जब हम वह कर बैठते हैं जिसे हम नैतिक रूप से गलत समझते हैं, तो हम खुद पर आगबबूला हो जाते हैं—एक प्रकार का आत्म-दंड | दूसरे शब्दों में कहें तो हम अपनी असफलताओं के लिए स्वयं को दण्डित करते हैं | 

हालाँकि विवेक, परमेश्वर-प्रदत्त साधन है, जो हमारे गलत होने पर हम पर आरोप लगाता है [रोमियों 14:22-23; 1 कुरिन्थियों 2:2-4; 1 यूहन्ना 3:19-21], तौभी हमें यह सावधानी अवश्य बरतनी चाहिए कि हम विवेक को यह अनुमति न दें कि वह हमें उस हद तक नियंत्रित करे कि हम क्रोध को स्वयं के अन्दर निर्देशित करने के पाप को करें | 

स्वयं के विरुद्ध क्रोध के कई कारण हो सकते हैं:

1. परमेश्वर की क्षमा को समझ पाने की असफलता | इस वर्ग के लोग मुआवजा के रूप में स्वयं को चोट पहुँचाने वाले दंड का इस्तेमाल करते हैं [पार्थिव यातना के समान] | वे परमेश्वर के अनुग्रह की गहराई को समझ नहीं पाते हैं—एक ऐसे अनुग्रह की गहराई को जो हमारे समस्त पापों से बढ़कर है | वे भूल जाते हैं कि जहाँ पाप बहुत होता है वहाँ अनुग्रह उससे भी अधिक होता है [रोमियों 5:20-21] |

2. अहंकार | मैं दूसरों के सामने लज्जित हो जाता हूँ क्योंकि मैंने गड़बड़ कर दी थी | अब वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? दूसरों की दृष्टि में अच्छा बने रहने और हमारे प्रति उनकी सोच को हमेशा ही अच्छा बनाए रखने के एक निरंतर संघर्ष में हम लगे रहते हैं | और जब हम उनके सम्मुख अच्छा बने रहने में असफल हो जाते हैं तो हम अपने क्रोध को अपने अन्दर की ओर निर्देशित करते हुए अपने आप को दंड देते रहते हैं | 

3. मनुष्य की भ्रष्टता को समझने की असफलता | सामान्यतः पूरा ध्यान इसी बात पर रहता है, “मुझसे—मेरे जैसे एक अच्छे और नीतिवान व्यक्ति से यह कैसे हो गया?” यह इस बात को समझने में असफलता के कारण है कि न केवल मैं इस बुरे कार्य को कर सकता हूँ, बल्कि मैं तो इससे भी कहीं अधिक बुरे कार्य करने में सक्षम हूँ! 

4. जिसकी अभिलाषा रही उस विशेष इच्छा को न पा सकने की हताशा | मैं किसी चीज को पाना ही चाहता था परन्तु उसे पा न सका क्योंकि “मैंने गड़बड़ कर दी |” इसलिए, मैं खुद पर गुस्सा हूँ | दूसरे शब्दों में कहें तो हो सकता है कि किसी चीज और उसके साथ मिलने वाले सुख को पाने का हममें जुनून सवार था [उदाहरण के लिए, किसी कंपनी में कोई विशेष नौकरी, कोई पदोन्नति, किसी टीम का निर्माण, व्यवसाय में उठाये गए जोखिम में सफलता पाना, इत्यादि] | अब जब मैं चूक गया, तो मैं इस बात को स्वीकार नहीं करता हूँ कि वह अभिभूत कर देने वाली अभिलाषा [चाहे वह कुछ भी क्यों न हो], जिसके लिए मैं तड़प रहा था एक गलत अभिलाषा थी बल्कि इसके स्थान पर मैं इस असफलता से व्यवहार करने के लिए क्रोध का इस्तेमाल करता हूँ | 

5. स्वयं के द्वारा निर्मित मापदंड वाले धार्मिकता के अनुसार जीने का प्रयास करना |  मैं स्वयं द्वारा ठहराए गए कुछ विशेष नियमों के अनुसार नहीं जी पाया | मेरा घर वैसा साफ़-सुथरा नहीं है जैसा मैं चाहता था; मेरा कार्य उस प्रकार से नहीं हुआ जैसी अपेक्षा मुझे थी, इत्यादि | सामान्यत; हम ऐसे लोगों को पूर्णतावादी [परफेक्शनिस्ट] कहते हैं | वे स्वयं पर अत्याधिक दर्द लाते हैं और इस दर्द को दूसरों को देते हैं | जब वे असफल हो जाते हैं तो वे अपने क्रोध को अन्दर की ओर निर्देशित करते हैं | यह तो एक अवास्तविक अपेक्षाओं को रखने का मामला है |

6. परमेश्वर ने मेरे लिए जो सर्वोत्तम रखा था उसे पाने में असफलता | परमेश्वर के पास मेरे लिए प्लान A था, जो मेरे लिए सर्वोत्तम होता | परन्तु अब मेरे पास प्लान B ही है जो कि प्लान A से कमतर है—और ऐसा मेरी असफलता के कारण हुआ | यहाँ, मैं सावधानीपूर्वक यह बात कहना चाहता हूँ कि हालाँकि परमेश्वर की इच्छानुसार चुनाव करने की जिम्मेदारी हमारी है तौभी इस निष्कर्ष पर पहुँचने के द्वारा कि किसी प्रकार से अपने कार्यों के कारण हमारे पास अब प्लान B ही रह गया है, क्या हम यह कहने का प्रयास नहीं कर रहे हैं कि हमने किसी न किसी रीति से हमारे जीवन के लिए परमेश्वर की योजनाओं और उद्देश्यों को चौपट कर दिया है? 

ऐसी सोच के साथ क्या हम अंततः यह कहने का प्रयास नहीं कर रहे हैं कि हमारे जीवन के समस्त क्षेत्रों पर हमारा सर्वाधिकार है? क्या यह सोचना गलत नहीं है कि साधारण मनुष्य सर्वसत्ताक [सर्वाधिकारी] परमेश्वर के कार्यों को गड़बड़ कर सकता है? क्या हमारी असफलताओं का पूर्वज्ञान परमेश्वर को नहीं था? 

तौभी, परमेश्वर उन असफलताओं के द्वारा ही अपने उद्देश्यों को पूरा करता है | हालाँकि युसूफ के भाई अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार थे तौभी उन्होंने परमेश्वर की योजनाओं को चौपट नहीं कर दिया | सच कहें तो, परमेश्वर ने अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए उनकी बुराई का उपयोग किया | “यद्यपि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिस से वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगों के प्राण बचे हैं” [उत्पत्ति 50:20] |  ईश्वरीय सर्वाधिकार और मानवीय जिम्मेदारी के बीच का यह तनाव हमें इस निष्कर्ष पर न पहुँचाये कि किसी तरह से हमारी असफलताओं के कारण हमारे पास अब प्लान B ही रह गया है | 

परन्तु यह भी याद रखें कि यह हमारे लापरवाह व्यवहार के लिए कोई बहाना नहीं है | पर अब भी, समस्त क्षेत्रों में परमेश्वर के सर्वाधिकार के बारे में यह त्रुटिपूर्ण सोच उस अस्वस्थ क्रोध को पैदा करती है जो अन्दर की ओर निर्देशित होता है | जो लोग इस प्रकार के सोच के शिकार होते हैं वो लगातार यही सोचते रहते हैं, “यदि मैंने  ऐसा किया होता या वैसा नहीं किया होता” और फिर वे एक पराजित जीवन जीते हैं | इस आत्म-निर्देशित क्रोध का समाधान “स्वयं को क्षमा” करने में नहीं है क्योंकि हमारी कीमत इतनी अधिक है कि यीशु मसीह हमारे लिए मरा | वास्तविक समाधान यह है कि हम इस बात को स्वीकार करें कि, हालाँकि हममें पापमय प्रवृत्तियाँ हैं तौभी हमारा परमेश्वर अनुग्रहकारी है और हमें मसीह के माध्यम से दिए जाने वाले क्षमा का आलिंगन करना है और इस प्रकार से स्वयं को इस अंदरूनी क्रोध की समस्या से मुक्त करना है |   

C) दूसरों के विरुद्ध |

हमारा अधिकाँश क्रोध इस क्षेत्र के अंतर्गत रहता है | हम दूसरों पर इसलिए क्रोधित होते हैं क्योंकि उन्होंने हमारे विरुद्ध कुछ कार्य किया या फिर इसलिए क्योंकि उन्हें हमारे लिए कुछ करना था और उन्होंने नहीं किया | यहाँ तक कि, कभी-कभी लोग अपने क्रोध का इस्तेमाल दूसरों के विरुद्ध एक उपकरण [हथियार]  के तौर पर भी करते हैं | यहाँ कुछ तरीके बताये गए हैं: 

1. दूसरों को नियंत्रित करने के लिए | हम जानते हैं कि हम जो चाहते हैं उसे पाने के लिए हम अपने क्रोध का इस्तेमाल कर सकते हैं और इसीलिए हम दूसरों को अपनी इच्छानुसार चलाने के लिए इसका इस्तेमाल एक उपकरण [हथियार] के तौर पर करते हैं | हम, लोगों को अपनी आधीनता में लाने के लिए दबाव बनाते हैं क्योंकि हमें लगता है कि वे हमारे क्रोध से डरेंगे | इस सिद्धांत के अनुपम उदाहरण कई घरों में देखने को मिल जायेंगे | पत्नी अपने पति के गुस्से से डरती है, पति अपनी पत्नी के गुस्से से भयभीत रहता है और इस तरह से जो व्यक्ति हमेशा क्रोधित रहता है उसकी बातें मानी जाती हैं | यह और कुछ नहीं है बल्कि जो हम चाहते हैं वो करवाने के लिए दूसरों के ऊपर गुंडागर्दी करना ही है | 

2. किसी अन्य गहरे घाव को छिपाने के लिए | संभवतः हम अपने पिछले कार्यों के कारण लज्जित महसूस करते हों परन्तु इसे दूसरों को बताना संभव न हो, तब हम इसे एक क्रोधी स्वभाव के द्वारा ढाँपने का प्रयास करते हैं जो कि दूसरों के विरुद्ध दिखाई पड़ता है |

3. स्वयं को अच्छा महसूस कराने के लिए :  हम, “मैं तुमसे अधिक नीतिवान हूँ ” वाले एक दृष्टिकोण का पोषण करते हैं | इस प्रकार से दूसरों के विरुद्ध क्रोध का इस्तेमाल हमारी स्व-धार्मिकता को प्रोत्साहन देने के लिए किया जाता है |

4. तनाव से मुक्ति पाने के लिए | अपनी सारी भड़ास निकालकर अब मैं अच्छा महसूस कर रहा हूँ; मैंने सारा रोष बाहर निकाल दिया | यहाँ मुद्दा स्व—केन्द्रित होने का है, हमको इस बात की चिंता नहीं है कि अपने गुस्से को बाहर निकालने की इस प्रक्रिया में हमारे क्रोध ने अन्य लोगों को कैसे चोट पहुँचाई | उदाहरण के लिए, चलिए मान लेते हैं कि हमारे पिता, माँ या जीवनसाथी ने हमारे साथ कुछ बुरा व्यवहार किया है और हम उनसे क्रोधित हैं | कुछ परामर्शदाता हमसे कहेंगे कि एक तकिया ले लेना और कल्पना करना कि वह तकिया तुम्हारा पिता, माँ या जीवनसाथी है और फिर वे हमसे कहेंगे कि उस तकिये को तब तक मारते रहो जब तक कि तुम्हें “शान्ति” न मिल जाए; क्योंकि ऐसे तकिये को मारते रहने से सारी भड़ास निकल जाती है और बहुत “अच्छा” महसूस होता है |

5. प्रतिशोध की भावना दिखाने के लिए | हमें लगता है कि किसी को ऐसे ही जाने देना मानो किसी दोषी को बिना सजा दिए छोड़ देने के समान है | हम इस बात को निश्चित करना चाहते हैं कि उन्हें वह मिले “जिसके वे हकदार हैं”—शिमौन और लेवी के समान, योना के समान! [इस श्रृंखला के भाग 3 को देखें] | यद्यपि हम परमेश्वर से विनती करते हैं कि वह हमारे पापों को भूल जाए और हमें दण्डित न करे, परन्तु यदि परमेश्वर दूसरे लोगों के पापों को—विशेष रूप से जिन लोगों ने हमें चोट पहुंचाया है उन लोगों के पापों को बिना दण्डित किए क्षमा करे और भूल जाये तो हम उससे नाराज हो जाते हैं!

इस प्रकार हम एक ऐसा दृष्टिकोण बना लेते हैं, जो कहता है, “संभवतः परमेश्वर तुम्हें क्षमा कर दे | परन्तु मुझसे तुम इतनी आसानी से नहीं बचोगे—मैं तुमसे हर्जाना भरवाकर रहूँगा |”

इस प्रकार हम देखते हैं कि कैसे पापमय क्रोध परमेश्वर, स्वयं और दूसरों के विरुद्ध अभिव्यक्त हो सकता है | और यह क्रोध भिन्न—भिन्न रीति से अभिव्यक्त होता है, और इसे हम अगले लेख में यह प्रश्न पूछते हुए और उसका उत्तर देते हुए ढूँढेंगे, “वे सामान्य तरीके क्या हैं जिनसे पापमय क्रोध अभिव्यक्त होता है ?”

Category