पापमय क्रोध और इसका कहर भाग 2: क्रोध क्या है?

(English version: Sinful Anger – The Havoc It Creates (Part 2))
यह लेख क्रोध के विषय या ठीक–ठीक कहें तो पापमय क्रोध के विषय को संबोधित करने वाली लेख–श्रृंखला के अंतर्गत भाग 2 है | भाग 1, पापमय क्रोध के बारे में एक सामान्य परिचय था | इस लेख में हम इस विषय से संबंधित प्रश्न # 1 को देखेंगे: पापमय क्रोध क्या है?
1. क्रोध क्या है?
पापमय क्रोध के विषय को देखने से पूर्व आईए हम सामान्य रूप से क्रोध की एक कार्यकारी परिभाषा को देख लें | एक सरल परिभाषा कुछ इस प्रकार है:
क्रोध उस कार्य के प्रति जिसे हम नैतिक रूप से गलत समझते हैं एक सक्रिय प्रतिक्रिया है |
हम सब एक मापदण्ड के साथ जीते हैं जिसके अनुसार कुछ बातें सही होती हैं और कुछ गलत | जब कुछ ऐसा होता है जो उस मापदण्ड के अनुसार गलत हो, तो हम दृढ़ता से अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं | अतः, अपने सर्वाधिक मौलिक अर्थ में क्रोध अपने आप में कोई पाप नहीं है | यह एक भावना है जिसे परमेश्वर ने सभी मनुष्यों में डाला है | परन्तु बाईबल, उस क्रोध जिसे धार्मिक क्रोध कहा जाता है और उस क्रोध जिसे हम पापमय क्रोध कहते हैं, के मध्य भिन्नता दर्शाती है |
धार्मिक क्रोध |
धार्मिक क्रोध वह भावना है जिसका प्रदर्शन तब होता है जब परमेश्वर की नैतिक व्यवस्था [अर्थात, परमेश्वर के अनुसार क्या सही है और क्या गलत बताने वाला मापदण्ड] जिसका वर्णन बाईबल में है, को तोड़ा जाता है | यह एक ऐसा क्रोध है जो तब उभर आता है, जब परमेश्वर को लज्जित किया जाता है | यह एक नियंत्रित क्रोध है.
पुराना नियम में भविष्यद्वक्ताओं ने और नया नियम में प्रेरितों ने कई अवसरों पर धार्मिक क्रोध का प्रदर्शन किया | स्वयं यीशु मसीह ने धार्मिक क्रोध का प्रदर्शन किया [उदाहरण के लिए दो बार मंदिर के शुद्धिकरण के अवसर पर–यूहन्ना 2:13-17; मत्ती 21:12-13] |
इसी प्रकार से हम भी धार्मिक क्रोध कर सकते हैं | यहाँ कुछ ऐसे उदाहरण दिए गए हैं जब हम धार्मिक क्रोध कर सकते हैं: जब खुल्लम–खुल्ला गलत शिक्षा या कमजोर शिक्षा के द्वारा परमेश्वर के वचन पर आक्रमण किया जाए, जब कोई बुरा कार्य किया जाये [जैसे कि गर्भपात, बलात्कार, हत्या इत्यादि] | परन्तु ऐसी परिस्थितियों में भी यह एक नियंत्रित भावना होती है जो उतावलेपन में कार्य नहीं करता है | सच्ची बात यह है कि हम कह सकते हैं कि परमेश्वर के लोगों को धार्मिक क्रोध का जितना प्रदर्शन करना चाहिए वे उतना प्रदर्शन नहीं करते हैं!
पापमय क्रोध |
पापमय क्रोध का परमेश्वर की नैतिक व्यवस्था टूटने से कोई लेना–देना नहीं है | यह एक ऐसा क्रोध है जो तब भड़कता है जब हमें लगता है कि:
हमारे मापदण्ड [या नियम–कानून] तोड़े गए हैं |
हमें लज्जित किया गया है |
हमारी इच्छानुसार कार्य नहीं हुआ |
हम जैसा चाहते थे वैसा नहीं हुआ |
यह एक ऐसी झुंझलाहट है जो तब दिखाई पड़ती है जब हमें लगता है कि हमारी आवश्यकतायें या अभिलाषायें पूरी नहीं हुई | तौभी, हमारे पापमय क्रोध को धार्मिक क्रोध के रूप में दिखाने की एक प्रवृत्ति हममें होती है | स्वयं बाईबल में ऐसे उदाहरण हैं, जिनमें से दो उदाहरण नीचे दिए गए हैं:
प्रथम उदाहरण शिमौन और लेवी नामक याकूब के दो पुत्रों के बारे में है | कनान लौटने पर याकूब और उसका परिवार शकेम के निकट बस गए [उत्पत्ति 33:18-19] | दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ कि जब याकूब की बेटी दीना नगर में बाहर निकली तो उस नगर के शासक के पुत्र ने उससे बलात्कार किया [उत्पत्ति 34: 1-2] | सचमुच में एक दुखद घटना!
प्रतिक्रिया में याकूब के पुत्रों ने शकेम नगर के लोगों से छल किया और उनके सामने शर्त रखी कि यदि शकेम को दीना से विवाह करना है तो शकेम नगर के लोगों को खतना कराना होगा [उत्पत्ति 34: 13-24] | परन्तु, तीन दिन पश्चात शिमौन और लेवी नगर में घुसे और उन्होंने शकेम और उसके पिता समेत नगर के सभी पुरुषों को घात किया | साथ ही उन्होंने सम्पूर्ण नगर को लूटा और वहाँ के सभी पशुओं और सामग्रियों पर कब्ज़ा कर लिया [उत्पत्ति 34:25-29] | बाद में हम पढ़ते हैं कि “उन्होंने अपनी ही इच्छा पर चलकर बैलों की पूछें काटीं” [उत्पत्ति 49:6]! इन दो क्रोधित पुरुषों ने उन लोगों को और पशुओं को भी चोट पहुँचाया जिनका उस अपराध से कोई संबंध नहीं था और जो निर्दोष थे |
जब याकूब ने उनके कार्यों के लिए उन्हें डाँटा तब उनके द्वारा दिखाई गई प्रतिक्रिया पर ध्यान दीजिए, “क्या वह हमारी बहिन के साथ वेश्या की नाईं बर्ताव करे?” उन्होंने एक मनुष्य के पाप के कारण उस सम्पूर्ण नगर के पुरुषों के घात किए जाने के कार्य को न्यायोचित ठहराया! उनका क्रोध पापमय क्रोध का एक प्रदर्शन था क्योंकि याकूब ने इन शब्दों के साथ उनके कार्यों की कठोर शब्दों में निंदा करते हुए अपनी बातों को समाप्त किया, “धिक्कार उनके कोप को, जो प्रचण्ड था; और उनके रोष को, जो निर्दय था; मैं उन्हें याकूब में अलग अलग और इस्राएल में तित्तर बित्तर कर दूँगा” [उत्पत्ति 49:7]!
दूसरा उदाहरण योना की उस प्रतिक्रिया में दिखाई पड़ती है जब परमेश्वर ने अपनी बुराई से मन फिराने वाले नीनवे नगर को नाश करने के स्थान पर उस पर दया दिखाई [योना 3:10] | योना की प्रतिक्रिया क्या थी? “यह बात योना को बहुत ही बुरी लगी, और उसका क्रोध भड़का |” वह इतना क्रोधित था कि उसने परमेश्वर से यह कहा, “सो अब हे यहोवा, मेरा प्राण ले ले; क्योंकि मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही भला है” [योना 4:3] |
परमेश्वर ने बड़े धीरज से योना से एक नहीं वरन दो बार यह प्रश्न पूछा, “यहोवा ने कहा, तेरा जो क्रोध भड़का है, क्या वह उचित है ?”, तब भी उसकी हठी प्रतिक्रिया एक बार फिर कुछ इस प्रकार की थी, “उसने कहा, हाँ, मेरा जो क्रोध भड़का है वह अच्छा ही है, वरन क्रोध के मारे मरना भी अच्छा होता” [योना 4:9] | उसने जीवन के स्थान पर मौत चाहा क्योंकि परमेश्वर ने सही या गलत के संबंध में योना के मापदण्ड के अनुसार कार्य नहीं किया | स्पष्ट है कि यह धार्मिक क्रोध का मामला नहीं था, यह तो पापमय क्रोध था जिसे धार्मिक क्रोध के रूप में ठहराया जा रहा था!
शिमौन, लेवी और योना के ही समान हमारा ह्रदय भी हमें आसानी से धोखा दे सकता है कि हम हमारे क्रोध को एक धार्मिक क्रोध के रूप में उचित ठहरायें, जबकि सच्ची बात यह हो कि वह क्रोध हमारे अहंकार और स्वयं पर केन्द्रित रहने के हमारे गुण का एक प्रदर्शन मात्र हो | जब तक हम आपा खोने की अपनी आदत को “सही” मानते रहेंगे तब तक हम अपने उस क्रोध को जो स्वभावतः अत्यंत विनाशकारी है, पाप के रूप में नहीं देख पायेंगे |
यह सच है कि स्वयं यीशु मसीह ने धार्मिक क्रोध का प्रदर्शन किया | परन्तु उसकी पहचान कभी भी एक ऐसे व्यक्ति के रूप में नहीं रही जो पापमय क्रोध के द्वारा नियंत्रित हो | इस बारे में किसी लेखक की कुछ बातें लाभकारी हैं :
“जितने बार यीशु मसीह क्रोधित हुए, उनमें से किसी भी घटना में यीशु मसीह का व्यक्तिगत अहंकार सम्मिलित नहीं था | आगे और कहें तो, जब उन्हें अन्यायपूर्ण रीति से गिरफ्तार किया गया, गलत ढंग से उन पर मुकदमा चला, अवैध रूप से उनको पीटा गया, घृणा करते हुए उन पर थूका गया, उन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया, उन्हें ठट्ठों में उड़ाया गया, जब वास्तव में उनके पास समस्त कारण थे कि वे अपने सम्मान [अहंकार] के बारे में सोचते, तब भी जैसा कि पतरस कहता है, ‘वह गाली सुन कर गाली नहीं देता था, और दुख उठा कर किसी को भी धमकी नहीं देता था’ [1 पतरस 2:23] | प्यास के मारे सूख चुके उनके शुष्क होठों से ये अनुग्रहित वचन निकले, ‘हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं’ [लूका 23:34] | आईए इस बात को स्वीकार करें कि जब हमारा अपमान होता है और जब हमारे विरुद्ध कुछ काम होता है तो मोटा–मोटा बात करें तो हम शीघ्रता से क्रोधित हो जाते हैं, और जब हम दूसरे क्षेत्रों में पाप और अन्याय को बढ़ते हुए देखते हैं तो क्रोधित होने में हम धीमापन दिखाते हैं |”
आईए जब हम पापमय क्रोध का प्रदर्शन करें और धार्मिक क्रोध के प्रदर्शन से चूकें तो पश्चाताप करने में शीघ्रता करें | अपने अगले लेख में हम दूसरे प्रश्न को देखेंगे, “पापमय क्रोध का स्रोत क्या है?”