निराशा को पराजित करना

Posted byHindi Editor July 4, 2023 Comments:0

(English version: Defeating Discouragement)

“अनंतता”, नामक पुस्तक में, पुस्तक के लेखक जो स्टॉवेल एक सच्ची कहानी का जिक्र करते हैं | डूएन स्कॉट और जैनेट विल्लीस के नौ बच्चे थे | डूएन एक शाला में अध्यापक था और वह  अपने अतिरिक्त समय में शिकागो के दक्षिण की ओर स्थित माऊँट ग्रीनवुड इलाके में सेवा करता था | वे लोग बहुत भक्त थे, अपने प्रभु और परिवार के प्रति समर्पित | अपने आसपास के उथले संसार के लोभ से अप्रदूषित, वे अपने आपको कुछ ऐसी बातों के लिए आनन्दपूर्वक और संतोषपूर्वक दे देते थे, जिन्हें लोग कदाचित ही महत्व देते हैं – जैसे कि परिवार का पालन – पोषण और कलीसिया के झुण्ड की देखभाल |

एक दिन, अपने एक बड़े बच्चे से मिलने उत्तरी प्रांत के मिलवाउकी नामक स्थान में जाने के लिए स्कॉट, जैनेट और उनके छः बच्चे अपनी नई गाडी में सवार हुए | वे जब अपनी यात्रा में बढे जा रहे थे, तभी उनके सामने जा रहे एक ट्रक से धातु का एक बड़ा टुकड़ा गिरा, उस टुकड़े ने उनके फ्यूल टैंक ( गैस टंकी ) को किनारे से काट दिया जिसके परिणामस्वरूप फ्यूल टैंक में आग लग गई | जल्द ही आग की लपटों ने पूरी गाड़ी को घेर लिया | केवल स्कॉट और जैनेट ही बच पाए; भयानक आग ने छः बच्चों को भस्म कर दिया |

इस प्रकार की घटनाएँ हमारे मन में कुछ प्रश्नों को जन्म देती हैं, जैसे कि : उनके साथ ही क्यों ? उस समय क्यों ? परमेश्वर ने उन्हें बच्चे क्यों दिए और फिर उन्हें उनसे अचानक ऐसे कैसे छीन लिया ? इस संसार में जब लापरवाह और अत्याचारी माता-पिता भरे पड़े हैं तो फिर परमेश्वर ने भक्त माता – पिता वाले इस परिवार में ही ऐसा क्यों होने दिया ? और, अक्सर हम इस बात पर आश्चर्यचकित होते हैं कि परमेश्वर अपने लोगों के साथ ऐसा क्यों होने देता है ? इस प्रकार की घटनाएँ परमेश्वर पर हमारा विश्वास कम होने का खतरा पैदा होता है | यह हमारे विश्वास की नींव को हिला देता है | 

तौभी, इस संसार की लीक से हटकर, कई ऐसे मसीही हैं जो उस प्रभु परमेश्वर के संभालक उपस्थिति और सामर्थ पर अडिग भरोसा दिखाते हैं, जिसने उनसे इस संसार के परे एक बेहतर और अधिक आशीषित संसार की प्रतिज्ञा की है | स्कॉट और जैनेट का दृष्टिकोण भी यही था | जब जैनेट विल्लीस ने जलती हुई गाड़ी की ओर देखते हुए चिल्लाया, “नहीं ! नहीं !”, तो उसे उसके पति की ओर से सांत्वना के रूप में थपकियों से बढ़कर और कुछ न मिला | उस क्षण से परे देखने की क्षमता ( नजर ) थी उसमें – वास्तव में, इस संसार से परे | स्कॉट ने उसके कंधे को स्पर्श किया और उसके कानों में फुसफुसाकर कहा, “जैनेट, हम इसी समय के लिए तैया किए गए थे | जैनेट, यह सब तेजी से हुआ, और अब वे प्रभु के साथ हैं |”

शिकागो ट्रिब्यून पत्रिका ने अपने मुख-पृष्ठ में इस खबर को प्रकाशित किया, “बुधवार को मिलवाउकी अस्पताल में एक समाचार कॉन्फ्रेन्स को संबोधित करने के लिए शांति से बढ़ते हुए, झुलसे, घायल और शारीरिक दर्द में पड़े हुए पति–पत्नी ने असाधारण अनुग्रह और साहस का परिचय दिया, उन्होंने निवेदन किया था कि उन्हें बताने दिया जाए कि कैसे उनके अशंकनीय विश्वास ने उनके नौ में से छः बच्चे के मौत के दौरान उन्हें संभाला |” उस समाचार कॉन्फ्रेन्स में, स्कॉट ने कहा, “मैं जानता हूँ कि परमेश्वर के पास उद्देश्य और कारण हैं … परमेश्वर ने हमारे और हमारे परिवार के प्रति अपना प्रेम दिखाया है | हमारे मन ऐसा कोई प्रश्न नहीं उठ रहा है कि परमेश्वर भला है कि नहीं , हम सब बातों में उसकी स्तुति करते हैं |” स्पष्ट है कि स्कॉट इस वर्तमान सार के परे किसी और वस्तु (व्यक्ति) के संपर्क में था|

जब हम रोमियों 8:18 को पढ़ते हैं तो पाते हैं कि प्रेरित पौलुस हमारी सहायता करना चाहता है ताकि हम कुछ इसी प्रकार के दृष्टिकोण को उत्पन्न कर सकें, मैं समझता हूं, कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होने वाली है, कुछ भी नहीं हैं |  यहाँ, “समझता हूँ”, शब्द का अर्थ है, “बहीखाता में लिख लेना” या “किसी चीज का हिसाब कर लेना” |  दु:ख और क्लेश” से तात्पर्य उन आतंरिक और बाह्य तकलीफों से है, जिनसे होकर, मसीह के लिए जीने के परिणामस्वरूप एक व्यक्ति गुजरता है | दूसरे शब्दों में कहें तो पौलुस ने “भली–भाँति सोचा” और इस निष्कर्ष पर पहुँचा :

भविष्य में प्राप्त होने वाली महिमा की निश्चयता हमें वर्तमान निराशाओं से स्वतंत्र करती है |

पौलुस दुख और क्लेश के लिए कोई अपरिचित व्यक्ति नहीं था | उसने ऐसे भयानक दुःख और क्लेश सहे जिनका सामना एक औसत मसीही कभी नहीं करेगा | यहाँ उसी के शब्दों में दी गई  एक छोटी सूची है :  

“बार बार कैद होने में ; कोड़े खाने में ; बार बार मृत्यु के जोखिमों में | 24 पांच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए | 25 तीन बार मैं ने बेंतें खाई; एक बार पत्थरवाह किया गया; तीन बार जहाज जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात दिन मैं ने समुद्र में काटा | 26 मैं बार बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जाति वालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों में के जाखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जाखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में; 27 परिश्रम और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख-पियास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में | 28 और और बातों को छोड़कर जिन का वर्णन मैं नहीं करता सब कलीसियाओं की चिन्ता प्रति दिन मुझे दबाती है | 29 किस की निर्बलता से मैं निर्बल नहीं होता ? किस के ठोकर खाने से मेरा जी नहीं दुखता?” (२ कुरिन्थियों 11:23–29) | 

क्या ही भयानक सूची है ! तौभी, वह कभी नहीं कुड़कुड़ाया और न ही उसने कभी कोई शिकायत की | इसलिए, अगली बार जब हम सोचें कि एक मसीही का जीवन परीक्षाओं से मुक्त जीवन होना चाहिए तो बस पौलुस के दुःख और क्लेश की सूची एवं उसकी प्रतिक्रिया को स्मरण करें |

आपको अय्यूब याद है ? स्वयं परमेश्वर ने अय्यूब को निर्दोष और खरा घोषित किया जो परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था (अय्यूब 1:1) | तौभी वह अवर्णनीय क्लेशों से होकर गुजरा | पौलुस के समान ही, उसने भी अपना विश्वास कभी नहीं खोया और न ही अपने क्लेशों के लिए उसने परमेश्वर की निंदा की – शैतान ने कहा था कि वह निंदा करेगा (अय्यूब 1:11) |

पौलुस और अय्यूब द्वारा परीक्षाओं के प्रति इतना सकारात्मक नजरिया रखने के पीछे का रहस्य क्या था ? उनके पास एक ऐसा दृष्टिकोण था जो इस वर्तमान संसार के परे देखता था | अपने क्लेशों के भयानक क्षणों में भी अय्यूब ने विश्वास से भरकर कहा, 25 मुझे तो निश्चय है, कि मेरा छुड़ाने वाला जीवित है, और वह अन्त में पृथ्वी पर खड़ा होगा |  26 और अपनी खाल के इस प्रकार नाश हो जाने के बाद भी, मैं शरीर में हो कर ईश्वर का दर्शन पाऊंगा | 27 उसका दर्शन मैं आप अपनी आंखों से अपने लिये करूंगा, और न कोई दूसरा | यद्यपि मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर चूर चूर भी हो जाए, तौभी मुझ में तो धर्म का मूल पाया जाता है !” (अय्यूब 19:25-27) | 

यदि हम पूछें, “श्रीमान पौलुस, आपने क्यों इतने क्लेश सहे ? क्या इन सबका वास्तव में कोई लाभ है ?” तो उसका जवाब कुछ इस प्रकार का होता, “मैंने अपनी आँखें उस महिमा पर लगा राखी हैं जो हमारे लिए प्रगट होने वाली हैं | इसीलिए मैं बिना निराश हुए वर्तमान दुःखों और क्लेशों को सहता हूँ |” जिस भविष्य में प्राप्त होने वाली महिमा के बारे में पौलुस बात कर रहा है, वह महिमा क्या है ? इस आगामी महिमा के अंग के रूप में बाईबल दो आगामी निश्चयता को बताती है |

1. हम यीशु के जैसे बनाए जायेंगे |

दूसरे शब्दों में कहें तो, हम ऐसे नए महिमित देह को पायेंगे जो कि मसीह की महिमित देह के समान होगी | पौलुस ने फिलिप्पियों 3:20–21 में स्वयं लिखा है, “20 पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम एक उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहां से आने ही बाट जोह रहे हैं | 21 वह अपनी शक्ति के उस प्रभाव के अनुसार जिस के द्वारा वह सब वस्तुओं को अपने वश में कर सकता है, हमारी दीन-हीन देह का रूप बदलकर, अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा |” 

एक दिन, हमारा यह नाशमान, पाप–ग्रसित और रोगजन्य देह एक नई देह से बदल जायेगी-एक सिद्ध और पापरहित देह से जो कि नाश नहीं होगी | यह तब होगा, जब मसीह अपने लोगों को लेने के लिए आयेगा | उस समय, हम पाप करने योग्य नहीं रहेंगे और न ही किसी बीमारी का अनुभव करेंगे | बाईबल इस घटना को अंतिम छुटकारा ( उद्धार ) कटी है और इसी घटना के लिए मसीही आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं ! इसी कारण से विश्वासियों को अस्थाई पार्थिव क्लेशों के कारण निराशा में डूबने की आवश्यकता नहीं है |

2. सम्पूर्ण संसार बदल जाएगा |

न केवल मसीही लोग बदल जायेंगे, परन्तु साथ ही साथ भविष्य में सम्पूर्ण संसार ही बदल जायेगा | प्रकाशितवाक्य 21:1 दिखाता है कि भविष्य में, “नया आकाश और नई पृथ्वी आ जायेंगे क्योंकि पुराना आकाश और पुरानी पृथ्वी जाती रहेंगी |” उस समय कोई दुःख और क्लेश नहीं होंगे | कुछ ही आयतों के पश्चात लिखे गए सांत्वना के शब्दों पर ध्यान दीजिये, जहां हमें बताया गया है कि परमेश्वर “उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा ; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी ; पहिली बातें जाती रहीं |” (प्रकाशितवाक्य 21:4) |

केवल भविष्य में ही एक विश्वासी, बीमारी, क्लेश, दुःख और मृत्यु से पूर्णतः मुक्त हो पायेगा | यह उसी नए संसार में होगा जहां कुछ भी अन्याय नहीं होगा क्योंकि यह एक ऐसा स्थान होगा, “जहां धार्मिकता वास करती है ” (2 पतरस 3:13) | यह वर्तमान संसार, अस्थाई है और एक दिन जब परमेश्वर इसे नाश करेगा तब यह आग से भस्म हो जाएगा और इसके स्थान पर एक नया संसार आयेगा (2 पतरस 3:7,10) |

इस प्रकार भविष्य में प्राप्त होने वाली महिमा में मसीह के समान बन जाना और एक ऐसे संसार में जहां फिर कोई पाप, क्लेश और दुःख नहीं होंगे उसके साथ संगति रखते हुए और आराधना करते हुए रहना सम्मिलित है | वहाँ केवल अनन्त आनंद होगा !

समापन विचार: 

अपनी मृत्यु से ठीक पहले, प्रसिद्ध नास्तिकवादी ज़ीन – पॉल सार्ट्रे ने घोषणा किया कि उसने बड़ी मजबूती से हताशा की भावना का विरोध किया अपने आप से कहा, “मैं जानता हूँ कि मैं आशा में होकर मरूँगा |” फिर प्रगाढ़ दुःख से उसने कहा, “परन्तु आशा को एक बुनियाद चाहिए |”

इसके विपरीत, मसीही आशा का एक ठोस–चट्टानी बुनियाद है–परमेश्वर का विश्वसनीय वचन | मसीही आशा, “मैं आशा करता हूँ कि मैं लॉटरी जीतूंगा” प्रकार की आशा नहीं है | यह, “मैं पक्का जानता हूँ’’, प्रकार की आशा है | यह “हो सकता है” प्रकार का नहीं, परन्तु “होगा” प्रकार की आशा है |

यह उस प्रकार की आशा है, जैसा पौलुस रखता था, अय्यूब रखता था एवं स्कॉट और जैनेट रखते थे | इसी प्रकार की आशा मुझमें और आपमें होनी चाहिए | परमेश्वर प्रतिज्ञा करता है कि हम मसीह के समान बनाए जायेंगे और वह एक नया संसार बनायेगा | और जब हम इन सच्चाईयों पर निरंतर ध्यान लगाते हैं, तो हमारी आशा बलवंत होती है (रोमियों 15:4), और इस प्रकार से हम भी इस वर्तमान संसार के निराशाओं पर सफलतापूर्वक जय पा सकते है | 

परन्तु, यदि कोई “मसीही” होने का दिखावा करे  या मसीही विश्वास का तिरस्कार करे, तो फिर उसका भविष्य भयानक है | जहाँ एक ओर परमेश्वर के सच्चे संतानों के लिए महिमा प्रतीक्षारत है, वहीं दूसरी ओर अनन्त क्लेश उनकी प्रतीक्षा में है जो परमेश्वर के संतान नहीं हैं, जिन्हें अनाज्ञाकारिता के संतान के नाम से भी जाना जाता है (इफिसियों 5:6) | वे परमेश्वर के उग्र, अंतिम और अनन्त न्याय का सामना नर्क की आग में करने के लिए जिलाए जायेंगे ( प्रकाशितवाक्य 20:11 – 15 ) | यही कारण है कि ऐसे व्यक्ति को अभी अपने पापों से मन फिराने और मसीह की ओर भागने की आवश्यकता है | तभी और केवल तभी भविष्य के लिए निश्चित और उज्ज्वल आशा होगी, एक ऐसी आशा जो एक व्यक्ति को वर्तमान क्लेशों का उचित रूप से सामना करने योग्य बनाता है |

जब क्लेश – मुक्त जीवन एक असंभावना है, तो मसीही होने का दावा करने वाले हम लोगों को इस संसार में क्लेश – मुक्त जीवन जीने की लालसा क्यों रखनी चाहिए ? क्यों ऐसी झूठी शिक्षाओं के शिकार बनें, जो स्वास्थ्य, धन, और संपन्नता को प्रत्येक मसीही के अधिकार के रूप में बढ़ावा देती है ? क्या ऐसी झूठी शिक्षायें पवित्रशास्त्र की स्पष्ट शिक्षाओं के विरोध में नहीं हैं ?

हमें स्मरण दिलाया गया है कि, जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे (2 तीमुथियुस 3:12) | जो लोग उसके नाम के कारण अपमान, तिरस्कार और अन्य प्रकार के क्लेश को सहते हैं, उन्हें प्रभु यीशु “धन्य” कहते हैं (मत्ती 5:10–12) | यदि पौलुस, अय्यूब और इब्रानियों 11:35 ब – 39 में सूचीबद्ध ऐसे अज्ञात मसीही जिनकी उनके विश्वास के लिए प्रशंसा की गयी है, ऐसे क्लेशों से होकर गुजरे, तो हम क्यों सोचने लगते हैं कि हम क्लेश की वास्तविकता के लिए किसी प्रकार से अपवाद बन जायेंगे | क्या हम महज़ स्वयं को धोखा दे रहे हैं ?

मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि हमें परीक्षा आने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए | परन्तु हमें सच्चाई के साथ इस बात का आलिंगन करने की आवश्यकता कि हम चूंकि कष्टों से भरे संसार में रहते हैं इसलिए दुःख और क्लेश अनिवार्य हैं (अय्यूब 5:7; यूहन्ना 16:33) | परमेश्वर अपने संतानों से जो प्रतिज्ञा करता है वह यह है कि उसकी उपस्थिति उनके साथ बनी रहेगी (इब्रानियों 13:5–6) | आईए, अब से इन सच्चाईयों को स्मरण रखने का संकल्प लें :

दुःख और क्लेश अनिवार्य हैं और हमारे लिए भविष्य में प्रतीक्षारत अविश्वसनीय एवं अनुग्रहकारी आशीषों के बदले में छोटा सा दाम है | तुलनात्मक दृष्टि से बात करें तो यदि भविष्य की महिमा समुद्र के समान है तो हमारा वर्तमान दुःख और क्लेश एक बूँद के समान | आईए इन सच्चाईयों का आलिंगन करें और आनंदपूर्वक आगे बढ़ते जायें ! यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो फिर हताशा, दुःख और यहाँ तक कि परमेश्वर के प्रति, दूसरे लोगों के प्रति और कुल मिलाकर जिन्दगी के प्रति कड़वाहट से भर जायेंगे |

आज भी कई मसीही क्यों इतना सकारात्मक प्रभाव डालते हैं ? क्योंकि उनके लिए, स्वर्ग वास्तविक है और मसीहियों को भविष्य में प्राप्त होने वाली महिमा भी वास्तविक है | यही बात है जो उन्हें संसार की वस्तुओं के द्वारा फुसलाये जाने से रोकती है | यही वह दृष्टिकोण था जिसने स्कॉट विल्लीस को यह घोषणा करने के लिए उभारा, “जैनेट और मुझे यह बात समझनी पडी कि हम जिन्दगी का कोई छोटा दर्शन नहीं कर रहे हैं | हम दूर तक देख रहे हैं और इस में अनन्त जीवन सम्मिलित है |” दूसरे शब्दों में कहें तो, उनहोंने अस्थाई चीजों को अनंतता के चश्मे से देखा, इसीलिए वे हताशा के द्वारा नहीं कुचले गए |

इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि ट्रिब्यून समाचार के संपादकीय में इन शब्दों के साथ समाप्त किया गया है :

पिछले सप्ताह, जिस प्रकार के नुकसान को स्कॉट और जैनेट ने सहा था, उसके प्रति मात्र दो ही प्रकार की प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं; भयंकर हताशा या अशंकनीय विश्वास | विल्लीस ( स्कॉट और जैनेट विल्लीस ) के लिए हताशा कभी भी एक विकल्प नहीं था | 

क्या यही हमारा भी दृष्टिकोण नहीं होना चाहिए ?

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