धन्य–वचन: भाग 7 धन्य हैं वे जिनके मन के शुद्ध हैं

(English Version: “Blessed Are The Pure In Heart”)
यह धन्य–वचन लेख–श्रृंखला के अंतर्गत सातवाँ लेख है | धन्य–वचन खण्ड मत्ती 5:3-12 तक विस्तारित है | यहाँ प्रभु यीशु ऐसे 8 मनोभावों के बारे में बताते हैं, जो उस प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए जो उसका अनुयायी होने का दावा करता है | इस लेख में, हम छठवे मनोभाव को देखेंगे–मन के शुद्ध रहने का मनोभाव, जैसा कि मत्ती 5:8 में वर्णन किया गया है “धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे |”
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यदि आप बिलकुल ही साधारण तौर पर गैर–मसीहियों के विचार को जानने का प्रयास करें और उनसे पूछें कि वह कौन सी एक चीज है, जिसे वे देखना चाहेंगे–मेरा मतलब है, जिसे देखने के लिए वे तरसते हैं, तो मैं नहीं सोचता कि अधिकांश लोग कहेंगे, “मैं परमेश्वर को देखना चाहता हूँ |” संसार को परमेश्वर और उसकी उपस्थिति से कुछ भी लेना–देना नहीं है | वहीँ दूसरी तरफ़, जब सच्चे मसीहियों से यह प्रश्न पूछा जायेगा, तो वे कहेंगे, “मैं मसीह के रूप में परमेश्वर को देखना चाहता हूँ | मैं उसकी उपस्थिति को अनुभव करना चाहता हूँ |” संसार की अभिलाषा से ठीक विपरीत अभिलाषा!
परन्तु, परमेश्वर को देखने और उसके साथ रहने की अभिलाषा करना एक बात है और इस बात के लिए आश्वस्त होना कि ऐसा ही होगा, बिल्कुल अलग बात है | फिर, हम कैसे आश्वस्त हो सकतें हैं कि हम स्वर्ग जायेंगे और परमेश्वर को देखेंगे? प्रभु यीशु मसीह मत्ती 5:8 में इसका उत्तर देते हैं, वे कहते हैं, “धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे |” इस पद को ऐसा भी लिखा जा सकता है: जिनके मन शुद्ध हैं केवल वे ही लोग धन्य या परमेश्वर द्वारा अनुमोदित हैं और उन्हें अंततः उसे स्वर्ग में देखने का आनंद मिलेगा |
परमेश्वर को देखना |
परमेश्वर आत्मा है | अतः वह अदृश्य है | हम केवल उसकी महिमा को देख सकते हैं | तथापि, बाईबल बताती है कि यीशु, “उसकी [परमेश्वर की] महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है” [इब्रा 1:3] | 1 यूहन्ना 3:2 कहता है कि जब भविष्य में यीशु मसीह वापस आयेंगे तो, “हम उस को [यीशु को] वैसा ही देखेंगे जैसा वह है |” अतः, परमेश्वर को देखना, पुनरुत्थित मसीह को सम्पूर्ण महिमा में देखने की ओर संकेत करता है | यीशु मसीह ने स्वयं कहा है, “जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को देखा है ” [यूहन्ना 14:9]|
शुद्ध मन |
“जिनके मन शुद्ध है”, वाक्यांश को समझना आवश्यक है | “शुद्ध” शब्द के लिए जिस यूनानी शब्द का प्रयोग हुआ है, उसी यूनानी शब्द से हमें इंग्लिश भाषा का शब्द, “Catharsis” मिलता है, जिसका अर्थ है गंदगी हटाना या साफ़ करना | यह उस चीज को हटा देने के बारे में बताता है, जो अच्छा नहीं है |
आम तौर पर, “शुद्ध मन”, वाक्यांश से तात्पर्य है, एक ऐसा हृदय जो गलत प्रकार की यौन अभिलाषाओं से मुक्त हो– वासना से मुक्त | यह सच है कि हृदय को वासनामय विचारों से मुक्त होना चाहिए | इसी अध्याय में, आगे यीशु यौन सम्बन्धी बुरी लालसा रखने के खतरे के बारे में बताते हैं [मत्ती 5:27-30]| परन्तु , “शुद्ध मन” का कहीं अधिक व्यापक अर्थ है, यह केवल यौन शुद्धता तक सीमित नहीं है | यह दर्शाता है, एक ऐसे हृदय को जो समस्त प्रकार की अशुद्धताओं से मुक्त हो और परमेश्वर के प्रति गंभीरता से समर्पित हो–खण्डित स्वामिभक्ति और मिश्रित उद्देश्यों से रहित हृदय |
‘शुद्ध मन’ का यह अर्थ आगे मत्ती 6:24 में स्वयं यीशु मसीह के शब्दों में प्रगट रूप से सामने आता है, “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर ओर दूसरे से प्रेम रखेगा, वा एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा | तुम परमेश्वर और धन दोनो की सेवा नहीं कर सकते” | इस पद में यीशु मसीह यह कहना चाहते हैं: हृदय को जो कि सारी बातों का केंद्र है, अवश्य ही सब प्रकार की अशुद्धताओं से मुक्त होना चाहिए | कोई खण्डित स्वामिभक्ति नहीं | कोई अन्य निष्ठा नहीं | परमेश्वर के प्रति सम्पूर्ण भक्ति | परमेश्वर और उसकी महिमा के लिए स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर देने की एकमेव अभिलाषा | यीशु मसीह कहते हैं कि इसी प्रकार के हृदय को परमेश्वर शुद्ध मानते हैं |
यीशु मसीह के समय के लोग [विशेषतः अगुवे] जो करने के प्रयास में रहते थे, उससे ठीक विपरीत कार्य था आंतरिक शुद्धता के लिए प्रयास करना | उन्हें आंतरिक शुद्धता की चिंता नहीं थी | उन्हें केवल बाहरी शुद्धता और मानव परम्पराओं के पालन की चिंता थी, उन परम्पराओं की चिंता जो तथाकथित रूप से एक व्यक्ति को शुद्ध करते थे |
वहीँ दूसरी तरफ , यीशु मसीह एक आंतरिक शुद्धता के लिए बुला रहे थे–हृदय की शुद्धता क्योंकि यह हृदय ही है, जो बुराई का स्रोत है | मत्ती 15:19-20 में उनके स्वयं के शब्दों पर ध्यान दीजिये, “क्योंकि कुचिन्ता, हत्या, पर स्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलतीं है | यही हैं जो मनुष्य को अशुद्ध करती हैं, परन्तु हाथ बिना धोए भोजन करना मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता |”
एक भक्त यहूदी अगुवा की कहानी सुनाई जाती है, जिसे गिरफ्तार किया गया और बंदीगृह में डाल दिया गया | बंदीगृह में उसे रोटी का एक टुकड़ा और एक कप पानी दिया जाता था | उस पानी को पीने के स्थान पर वह यहूदी भक्त यहूदी परम्परा के अनुसार उस पानी से अपने हाथ धोता था और फिर रोटी को हाथ लगाता था | यह चित्र दर्शाता है कि यीशु मसीह के समय में धार्मिक लोग बाहरी परम्पराओं पर कितने गंभीर थे |
यहाँ विषय कलीसिया जाने और कुछ मसीही गतिविधि करने के बारे में नहीं है | मत्ती 6:33 में यीशु मसीह ने कहा, “पहले तुम परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करो |” “पहले” शब्द में परमेश्वर और उसके धार्मिक मापदण्डों को पूर्ण प्राथमिकता देने का विचार सम्मिलित है | यीशु मसीह ने पहाड़ी उपदेश में उनमें से कुछ मापदण्डों का वर्णन किया है|
उदाहरण के लिए, जिनके मन शुद्ध हैं, वे चाहेंगे:
क्रोध को दूर करना और उसके स्थान पर मेलमिलाप का प्रयास करना [मत्ती 5:21-26]
वासना को दूर करना और विवाह की वाचा का आदर करना आरम्भ करना [मत्ती 5:27-32]
धोखा देने वाले शब्दों को दूर करना और सदैव सत्य बोलने का प्रयास करना [मत्ती 5: 33-37]
“आँख के बदले आँख” वाली, पलटा लेने वाली मानसिकता को दूर करना, परन्तु प्रेम करते हुए, प्रार्थना करते हुए और शत्रुओं के साथ भी भलाई करते हुए एक अतिरिक्त मील जाने का प्रयास करना [मत्ती 5:38-48]
दान देना,प्रार्थना करना और उपवास करना–बाहरी प्रशंसा के लिए नहीं, परन्तु केवल परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए [मत्ती 6:1-18]
अपने धन का इस्तेमाल परमेश्वर के लिए करना और धरती पर धन इकट्ठा न करना [मत्ती 6:19-34]
दूसरों का न्याय कठोरता से नहीं परन्तु तरस भाव के साथ करना [मत्ती 7:1-12]
चौड़े रास्ते पर मिलने वाले सुखविलासों का आनन्द उठाने के स्थान पर संकरे मार्ग पर चलना [मत्ती 7:13-27]
दूसरे शब्दों में कहें तो, यह सचमुच में एक ऐसा जीवन है जो अंदर से परमेश्वर के मापदण्डों के अनुरूप होने का प्रयास करता है | ऐसे लोग धर्म के बाहरी प्रदर्शन पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं | वे सचमुच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं और एक शुद्ध हृदय से उसे प्रसन्न करने के लिए सचमुच में तड़पते हैं |
मन को शुद्ध बनाये रखना |
हम ऐसा कैसे करते हैं? हम अपना हृदय कैसे शुद्ध रख सकते हैं? 4 सिद्धांतो पर विचार करिए |
सिद्धांत #1: उद्धार पाईये |
मन की शुद्धता के इस प्रयास का आरंभिक बिंदु यह है कि हम उध्दार पाकर अपने हृदय पाप से शुद्ध कर लें | इसे दूसरे शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि हमें अपने पापों के प्रदूषण से क्षमा का अनुभव प्राप्त कर लेना चाहिए | प्रेरितों के काम 15:19 यीशु मसीह में “विश्वास के द्वारा”, मन की शुद्धता की बुलाहट देता है |
परन्तु, इस पहाड़ी उपदेश में चूँकि यीशु मसीह प्राथमिक रूप से विश्वासियों से बात कर रहे हैं अर्थात ऐसे लोगों से जिन्होंने मसीह पर विशवास किया है, इसलिए मन की शुद्धता से यहाँ तात्पर्य स्थैतिक शुद्धता के अर्थ से कहीं बढ़कर है| यहाँ अवश्य ही इसका अर्थ मसीही के जीवन में जीवन पर्यंत जारी रहने वाली मन की शुद्धता से है–सब प्रकार के प्रदूषण से मुक्त हृदय!
सिद्धांत #2: परमेश्वर से निरंतर प्रार्थना करें कि वह हमें एक शुद्ध मन दे |
अपने दम पर मन को शुद्ध बनाये रखना असंभव है | यदि हम स्वयं पर निर्भर रहें, तो हम बस अपने हृदय को लगातार प्रदूषित करने वाले बनेंगे | इसीलिए दाऊद ने जैसे भजनसंहिता 51:10 में परमेश्वर को लगातार पुकारा, वैसे ही हमें भी लगातार पुकारना हैं, “हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्न कर |” यह एक शुद्ध मन पाने के लिए की गई प्रार्थना थी, सब प्रकार के प्रदूषण से मुक्त एक हृदय पाने की प्रार्थना | एक ऐसा हृदय जो परमेश्वर को केन्द्र में रखता है और समस्त प्रतिद्वंदी ताकतों को निर्दयतापूर्वक हटा देता है | पवित्र आत्मा के द्वारा, केवल परमेश्वर ही हमारे हृदय में इस कार्य को कर सकता है | इसीलिए हमें उससे प्रार्थना करते रहना है |
यहाँ विचार करने के लिए एक प्रश्न है, हमने अंतिम बार परमेश्वर से कब प्रार्थना किया था कि वह हमें एक शुद्ध मन दे? हम कई बातों के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं | परन्तु मन की शुद्धता के लिए निवेदन हमारे हृदय की निरंतर प्रार्थना नहीं होती है | आखिर क्यों? हमारा हृदय मसीह के प्रति हमारी स्वामिभक्ति और संसार के प्रति प्रेम के मध्य बँटा हुआ है | हमारा हृदय प्रदूषित है और परिणामस्वरुप हमारे प्रयोजन भी प्रदूषित हैं!
मनोरंजन से तरबतर संस्कृति में रहने के कारण हम उन बातों के प्रति सुन्न हो चुके हैं जो मायने रखते हैं | हमारा मनोरंजन का चुनाव, जिस जगह हम जाना चाहते हैं, जो चीज़े हम खरीदना चाहते हैं और जो कैरियर हम बनाना चाहते हैं, ये सब हमारे हृदय की अवस्था को प्रगट करते हैं |
किसी बाईबिल आध्यात्मज्ञानी ने कुछ प्रश्न पूछे हैं और मैं सोचता हूं कि हमारे आत्मा को परखने के इस कार्य के लिए ये प्रश्न सटीक हैं |
जब आपको कोई नहीं देखता है और आप खाली बैठे रहते हैं, तो आप क्या सोचते हैं?
आप प्रपंचो और गंदे चुटकुलों [चाहे वे कितने भी मजेदार क्यों न हों] का कितना प्रतिशोध करते हैं?
आप किस बार पर लगातार ध्यान देते हैं?
आप सबसे बढ़कर क्या चाहते हैं? आप किस वस्तु या किस व्यक्ति से सबसे अधिक प्रेम करते हैं?
आपकी बातें और आपके कार्य किस हद तक आपके मन के विचार के सटीक प्रतिबिम्ब हैं?
आपकी बातें और आपके विचार किस हद तक आपके मन के विचार को छिपाने का कार्य करते हैं?
जब हम लगातार प्रश्न पूछते हैं, तो इस प्रकार के प्रश्न प्रगट करते हैं कि हमारा हृदय शुद्ध है कि प्रदूषित | और यदि हम ईमानदारी से उत्तर दें, तो हमें अधिकाँश समय वह नहीं मिलेगा जो हम चाहते हैं | और यह वास्तविकता हमें यह स्वीकार करने को बाध्य करेगी कि परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन जीने के लिए हमारे पास आत्मिक संसाधनों की कितनी कमी है | यह हमें यह देखने के लिए सहायता करेगा कि हम आत्मिक रूप से कितने कंगाल हैं [मत्ती 5:3] | और इस बात की स्वीकारोक्ति हमें पाप अंगीकार में होकर परमेश्वर की ओर ले जाएगी , इस बात पर विश्वास करते हुए कि “यीशु का लहू…हमें सब पापों से शुद्ध करता है ” [1 यूहन्ना 1:7] |
सिद्धांत # 3: परमेश्वर के वचन का अध्ययन परिश्रमपूर्वक करें |
यीशु मसीह यूहन्ना 15:3 में कहते हैं, “जो वचन मैंने तुम से कहे हैं, उनके कारण तुम शुद्ध हो” | यह परमेश्वर का वचन ही है, जो हमारे उद्धार के समय आरंभिक शुद्धता को लाता है | परन्तु साथ ही साथ यही परमेश्वर का वचन सतत [निरंतर] शुद्धता को भी लाता है | इसी सुसमाचार पुस्तक में दो अध्याय पश्चात यीशु मसीह ने यह प्रार्थना की, “सत्य से उन्हें पवित्र कर, तेरा वचन सत्य है” [यूहन्ना 17:17] | “पवित्र”, शब्द का अर्थ है, पाप से दूर होकर परमेश्वर के लिए अलग ठहराया जाना, पाप से पवित्रता और शुद्धता की ओर |
अतः, जब तक हम परमेश्वर के वचन में समय बिताने के लिए इच्छुक न हो जायें और पवित्र आत्मा को वचन का इस्तेमाल करते हुए हमारे हृदय को शुद्ध करने की अनुमति न दें , तब तक हृदय शुद्ध नहीं हो सकता |
सिद्धांत #4: इस बात की निगरानी करें कि हमारी आँखे क्या देखती हैं, हमारे पाँव कहाँ जाते हैं, और हम किसकी संगति में रहते हैं |
भजनसंहिता 101:3-4 में दाऊद कहता है, “मैं किसी ओछे काम पर चित्त न लगाऊंगा | मैं कुमार्ग पर चलने वालों के काम से घिन रखता हूँ; ऐसे काम में मैं न लगूंगा | टेढ़ा स्वभाव मुझ से दूर रहेगा; मैं बुराई को जानूंगा भी नहीं” | अवश्य है कि इसी प्रकार की प्रतिबद्धता उस व्यक्ति का भी संकल्प होना चाहिए, जो शुद्ध मन चाहता है |
हम अपनी आँखों या कानों के द्वारा अपने आपको, उन बातों के लिए जो हृदय को अशुद्ध करती हैं, जितना अधिक उपलब्ध करायेंगे, हृदय को शुद्ध बनाये रखना उतना ही अधिक कठिन होगा | हमारा ह्रदय कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे जब चाहें चालू या बंद कर लें | आँख और कान , हृदय की ओर जाने वाले मार्ग हैं | हम जो देखते हैं, सुनते हैं और जिस संगति में हम रहते हैं, वे सब हमारे हृदय को बिलकुल प्रभावित करते हैं | 1 कुरुन्थियों 15:33 में पौलुस स्पष्टता से कहता है कि हमें “बहकावे” में नहीं आना है, “क्योंकि बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है” | जो भी बात हमारे हृदय को अशुद्ध करती है, उन्हें काट फेंकने के लिए हमें निर्दयी होने की आवश्यकता है |
तो, यह है हमारा निष्कर्ष | शुद्ध मन पाने के हमारे प्रयास में विचार करने के लिए 4 सिद्धांत |
उद्धार पाये | यह आरंभिक बिंदु है |
परमेश्वर से निरंतर प्रार्थना करें कि वह हमें एक शुद्ध मन दे |
परमेश्वर के वचन का अध्ययन परिश्रमपूर्वक करें |
इस बात की निगरानी करें कि हमारी आँखे क्या देखती हैं, हमारे पाँव कहाँ जाते हैं, और हम किसकी संगति में रहते हैं |
मन की शुद्धता कोई वैकल्पिक चुनाव नहीं है | यीशु मसीह स्पष्ट हैं | केवल वे लोग जिनके मन शुद्ध हैं, परमेश्वर को देखेंगे [इब्रानियों 12:14] | केवल पवित्र बोली ही हमको स्वर्ग नहीं ले जायेगी | बोली को शुद्ध जीवन के द्वारा संबल मिलना चाहिए–और शुद्ध जीवन एक शुद्ध मन से बनता है |
2 कुरिन्थियों 7:1, हमें बुलाता है कि “हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें” | आंतरिक शुद्धता [आत्मा की शुद्धता], बाहरी शुद्धता [शारीरिक शुद्धता] का कारण बनता है | परमेश्वर हमारी सहायता करे कि हम जीवन भर इस प्रकार की शुद्धता का पीछा कर सकें|
सचमुच में धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं , क्योंकि वे और केवल वे ही परमेश्वर को देखेंगे |