कार्यस्थल में मसीही की भूमिका

(English Version: The Christian’s Role In The Workplace)
अमेरिका के एक प्रसिद्ध रेस्टोरेंट ( भोजनालय ) का नाम है, “TGIF”, जिसका पूर्ण रूप है, “Thank God It’s Friday” | यह नाम अच्छे से दिखाता है कि एक आम आदमी कार्य के प्रति क्या दृष्टिकोण रखता है – मैं खुश हूँ कि कार्य – सप्ताह (कार्य करने के दिन ) समाप्त हुए ! परन्तु क्या एक मसीही को कार्य को इस तरह से देखना चाहिए ? क्या मसीहियों को कार्य को एक आवश्यक बुरी बात के रूप में देखनी चाहिए, या फिर हमें कार्य को परमेश्वर के रूप में दिए गये दान के रूप में देखना चाहिए और इस प्रकार उसकी महिमा हमारे कार्यस्थल में भी करना चाहिए ? यह संक्षिप्त लेख कार्य के बारे में बाईबल में बताये गए 5 सत्यों को बताकर पाठकों को परमेश्वर की महिमा करने वाले दृष्टिकोण को अपनाने में सहायता करने के लक्ष्य के साथ लिखा गया है |
सत्य # 1. इस संसार में पाप के प्रवेश से पहले ही कार्य अस्तित्व में था |
कई लोग यह सोचने की गलती करते हैं कि कार्य इस संसार में पाप का एक परिणाम है | इस संसार में पाप के प्रवेश करने से पूर्व ही परमेश्वर ने आदम को अदन की वाटिका में रख दिया था ताकि “ वह उसमें काम करे और उसकी रक्षा करे” (उत्पत्ति 2:15) | हालांकि, पाप के कारण कार्य अधिक कठिन बना दिया गया, “भूमि तेरे कारण शापित है, तू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेगा” (उत्पत्ति 3:17) |
चूँकि, एक सिद्ध संसार ( अर्थात्, मनुष्य के पतन से पहले ) में कार्य, मनुष्य के जीवन का हिस्सा था और कार्य, उस आनेवाले नए संसार में बना रहेगा, इसीलिए कार्य को एक आशीष के रूप में देखा जाना चाहिए, एक शाप के रूप में नहीं !
सत्य # 2 . कार्य, परमेश्वर की ओर से एक आज्ञा है |
हमें 1 थिस्सलुनीकियों 4:11 में “अपने अपने हाथों से कमाने” की आज्ञा दी गई है | उस समय की यूनानी सभ्यता शारीरिक श्रम को तुच्छ नजर से देखती थी | परन्तु, बाईबल समस्त प्रकार के कार्यों को गरिमामय रूप में देखती है, यदि वे बाईबल सिद्धांतों के आधार पर किये जाते हों | एक क्षण के लिए सोचिए | यदि कार्य एक शाप है, तो फिर परमेश्वर क्यों अपने संतानों को कार्य करने की आज्ञा देगा और वह भी उनके अपने हाथों से ? नहीं, ऐसा कोई भी कार्य जिसका बुराई से अगर दूर का भी रिश्ता है, तो परमेश्वर हमें उस कार्य को करने की आज्ञा नहीं देगा | परमेश्वर के संतान होने के नाते हमें परमेश्वर के प्रत्येक आज्ञा को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है – उन आज्ञाओं को भी जो हमारी स्वाभाविक इच्छाओं के विपरीत प्रतीत होती हैं |
सत्य # 3. कार्य सबकी भलाई के लिए है |
व्यक्तिगत और पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ ही, कार्य दूसरी आज्ञा, “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख” को पूरा करने का तरीका है (मत्ती 22:39) | बाईबल की कई आज्ञाएँ आवश्यकता में पड़े लोगों की सहायता करने के महत्व पर जोर देती हैं |प्रेरितों के काम 20:35 में लिखा है कि “ परिश्रम करते हुए निर्बलों को संभालना ” है | इफिसियों 4:28 में हमें आज्ञा दी गयी ई कि हम, “ भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करें, इसलिए कि जिसे प्रयोजन हो उसे देने को ” हमारे पास हो | नीतिवचन 14:31 में हमें कहा गया है, “जो दरिद्र पर अनुग्रह करता, वह परमेश्वर की महिमा करता है” | यहाँ तक कि धनवानों को भी परमेश्वर यह आज्ञा देता है, “वे भलाई करें,और भले कामों में धनी बनें, और उदार और सहायता देने में तत्पर हों” (1तीमुथियुस 6:18) |
जरूरतमंद लोगों की सूची में परिवार के सदस्य, मित्रगण, और यहाँ तक कि अपरिचित लोग भी सम्मिलित हैं | हालाँकि हमें बुद्धिमान भंडारीपन दीखान है, तभी हमें यह बात भी अवश्य ही स्मरण रखना है कि परमेश्वर हमें दूसरों के लिए आशीष बनने के लिए आशीषित करता है | सबकी भलाई के लिए कार्य करने से संबंधित इस सत्य को डी. एल. मूडी इस सुन्दर तरीके से बताते हैं :
जितना भला तुम कर सकते हो, करो; जितने माध्यम से कर सकते हो, करो; जितने तरीके से कर सकते हो, करो; जितने स्थानों में कर सकते हो, करो; जितने समयों में ( बार ) कर सकते हो, करो; जितने लोगों का कर सकते हो, करो; जब तक तुम कर सकते हो, करो |
साथ ही साथ, “अपने पड़ोसी से प्रेम रखो” सिखाने वाली आज्ञा हमें स्मरण दिलाती है कि हम इस बात में सावधान रहें कि हम कहाँ कार्य करते हैं | ऐसे स्थान जो ऐसे सामानों या सेवाओं को देते हैं जिससे कई लोगों और परिवारों का नाश हो, तो वे स्थान सही रूप से ऐसे स्थान नहीं कहे जा सकते जहां अपने पड़ोसी से प्रेम रखने वाले सिद्धांत को बढ़ावा मिले | एक विश्वासी के कार्य करने के लिए वह ऐसे स्थान, उपयुक्त नहीं हैं |
अभागीदारीता का यह सिद्धांत ऐसे स्थानों में भी लागू किया जा सकता है, जहां खुल्लम- खुल्ला पाप होता है ( उदाहरण के लिए, ग्राहकों से झूठ बोलना ) | यदि आर्थिक लाभ बहुत अधिक भी हो तब भी विश्वासियों को ऐसे स्थान में कार्य नहीं करना चाहिए जहाँ परमेश्वर की आज्ञा न मानने की परीक्षा में वे पड़ सकते हैं |
सत्य # 4. कार्य को इस बात को स्मरण रखते हुए किया जाना चाहिए कि प्रभु ही वास्तविक स्वामी है |
आप कहते हैं , “अरे–नहीं ” ! परमेश्वर का वचन कहता है, “अरे–हाँ” ! इफिसियों 6:5–8 इस सत्य को स्पष्ट करता है (कुलुस्सियों 3:22–25 भी देखिए) | इफिसियों 6:25 में हमें इस प्रकार आज्ञा दी गई है, “हे दासो, जो लोग शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, अपने मन की सीधाई से डरते, और कांपते हुए, जैसे मसीह की, वैसे ही उन की भी आज्ञा मानो” | ध्यान दीजिए कि हमें अपने स्वामियों के प्रति उसी तरह से समर्पित रहना है, जैसे हम “मसीह की आज्ञा मानते” | एक मसीही की कार्य – नीति स्वामी के देखते समय ही उसे प्रसन्न करने पर आधारित कभी नहीं होनी चाहिए, “मनुष्यों को प्रसन्न करने वालों की नाईं दिखाने के लिये सेवा न करो” | इसके स्थान पर, मसीहियों को यह स्मरण रखना चाहिए कि प्रभु हमेशा देख रहे हैं और अंततः उसे ही उनकी सेवा अर्पित है | यह “परमेश्वर की इच्छा” ( इफिसियों 6:6 ब ) है कि मसीही सदैव अपने स्वामियों के प्रति समर्पित रहें और अच्छे से कार्य करें |
पौलुस आगे कहता है, “7 और उस सेवा को मनुष्यों की नहीं, परन्तु प्रभु की जानकर सुइच्छा से करो। 8 क्योंकि तुम जानते हो, कि जो कोई जैसा अच्छा काम करेगा, चाहे दास हो, चाहे स्वतंत्र; प्रभु से वैसा ही पाएगा।” (इफिसियों 6:7 –8) | यही कारण है कि विश्वासियों को कभी भी अपनी कार्य – नीति इस बात पर नहीं आधारित रखनी चाहिए कि स्वामी उनके कार्यों की प्रशंसा करेंगे कि नहीं |
कई लोग, जब उनके कार्य पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तो क्रोधित हो जाते हैं और अच्छे से कार्य नहीं करते | “कोई बधाई नहीं, कोई बोनस नहीं, कोई शाबासी नहीं, फिर मैं क्यों परवाह करूँ ?”, वाला विचार कईयों के मध्य प्रचलित है | यदि परमेश्वर वास्तविक स्वामी है (जो कि वह है), तो परमेश्वर एक दिन विश्ववासियों को प्रतिफल देगा ! यह उसकी प्रतिज्ञा है, और यह सेवा के लिए एक प्रोत्साहन का कारण होना चाहिए–केवल मनुष्य की प्रशंसा नहीं | हम अपने स्वामियों या किसी और को अपने व्यवहार को प्रभावित नहीं करने देंगे !
हमें सदैव ऐसे ही कार्य करना है मानो प्रभु ही हमारा वास्तविक स्वामी है | हमें अपने पृथ्वी पर के स्वामियों के प्रति वैसा ही समर्पण दिखाना है, जैसा हम अपने प्रभु के प्रति दिखायेंगे | यह बात दीनता के आत्मा के प्रदर्शन की माँग करता है | इसका अपवाद तब संभव है, जब हमारे स्वामी कुछ ऐसा करने को कहें जिससे पवित्र – शास्त्र का उल्लंघन हो, ऐसे समय में हमारे मानवीय स्वामियों की आज्ञा मानने की बाध्यता नहीं रह जाती है | ऐसे समय में, हमें परमेश्वर की आज्ञा ही है – “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है” (प्रेरितों के काम 5:29) |
हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि यदि हमारा स्वामी एक मसीही है तो 1 तीमुथियुस 6:2 का सिद्धांत लागू होता है, और जिन के स्वामी विश्वासी हैं, इन्हें वे भाई होने के कारण तुच्छ न जानें; वरन उन की और भी सेवा करें, क्योंकि इस से लाभ उठाने वाले विश्वासी और प्रेमी हैं: इन बातों का उपदेश किया कर और समझाता रह” |
अच्छे सेवक होने के साथ ही साथ मसीहियों को अच्छे स्वामी भी होना चाहिए | इफिसियों 6:9 कहता है, “और हे स्वामियों, तुम भी धमकियां छोड़कर उन के साथ वैसा ही व्यवहार करो, क्योंकि जानते हो, कि उन का और तुम्हारा दोनों का स्वामी स्वर्ग में है, और वह किसी का पक्ष नहीं करता”| जिस प्रकार से मसीही सेवक अपने स्वामियों की सेवा मसीह को सम्मान देने की रीति पर करते हैं, ठीक उसी प्रकार से मसीही स्वामियों को भी अपने सेवकों के साथ उसी तरह से व्यवहार करना है | उन्हें अपने सेवकों को धमकाना नहीं चाहिए और न ही उनका अनुचित लाभ उठाना चाहिए | उन्हें उनके साथ पक्षपात भी नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रभु पक्षपात नहीं करता है|
जब विश्वासी इस बात को समझा जाते हैं कि प्रभु ही वास्तविक स्वामी है और वे केवल तनख्वाह के लिए काम नहीं करते हैं, तब कार्य के प्रति सोच बदल जाती है | कार्य फिर बोझ नहीं बनता परन्तु उसे एक आशीष और परमेश्वर को महिमा पहुँचाने के एक उत्तम माध्यम के रूप में देखा जा सकता है |
सत्य # 5. कार्य – एक अंतिम लक्ष्य – परमेश्वर की महिमा – के लिए एक माध्यम है |
1 कुरिन्थियों 10:31 स्पष्ट रूप से बता है कि हमें सब कुछ “परमेश्वर की महिमा”, के लिए करना चाहिए | इस बात की समझ एक मसीही को सहायता पहुंचाती है कि वह कार्य को परमेश्वर को महिमा पहुँचाने वाले अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के एक माध्यम के रूप में देखे | जब यह सोच अनुपस्थित रहता है, तब कार्य अति शीघ्र ही स्वामी बन जाता है और कार्य करने वाले गुलाम बन जाते हैं | यह दूसरे प्रकार की समस्याओं को उत्पन्न करता है, जैसे कि धनी बनने की अभिलाषा, व्यवसाय जगत में सीढ़ी चढ़ने की चाह, संसार के द्वारा दिए जानेवाले प्रस्ताव के लिए हरसंभव प्रयास करना, इत्यादि |
यह एक व्यक्ति के व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन को भी नुकसान पहुंचा सकती है ( उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत आराधना के लिए कोई समय का न होना, परिवार के लिए समय का न होना, कलीसिया की सभाओं के लिए समय का न होना, समझौता करने की प्रवृत्ति, और यहाँ तक कि सफलता के लिए कोई लघु – मार्ग को अपनाना ) | यही कारण है कि नीतिवचन 23:4 यह चेतावनी देती है : “धनी होने के लिए परिश्रम न करना; अपनी समझ का भरोसा छोड़ना” |
सीधे – सीधे कहें तो, कार्य के नशे में डूबे नहीं रहना है ! मसीहियों की पहचान इस बात से नहीं है कि वे कितने सफल सेवक या स्वामी हैं | बजाय एक मसीही की पहचान इस बात से आती है कि वह मसीह में है–अनुग्रह के द्वारा उद्धारप्राप्त एक पापी | परमेश्वर उन्हें स्वीकार कर चूका है, और अंत में केवल यही बात मायने रखेगी !
इस प्रकार, कार्य के संबंध में 5 आधारभूत सत्य हमारे सम्मुख हैं | जब कार्य करने की बात आती है तो इन सत्यों के अलावा, तीन अन्य सामान्य सिद्धांत हैं जिन पर ध्यान देना है |
एक कठिन माहौल में कार्य करना | यदि हमें तनावपूर्ण माहौल में कार्य करना पड़े तो हमें हतोत्साहित नहीं होना चाहिए | जीवन के सारे मामलों में परमेश्वर सर्वाधिकारी है | 1 पतरस 2:18–21 हमें स्मरण दिलाता है कि ऐसे समय भी होंगे जब हमें कुटिल स्वामियों के आधीन रहना होगा | परमेश्वर ने हमें ऐसे स्थानों में किसी कारण से रखा होगा – हो सकता है कि हमारे चारों ओर के लोगों को बदलने के लिए या फिर ऐसी कठिन परिस्थितियों के द्वारा हमको बदलने के लिए क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में हम उसकी सामर्थ पर अधिक भरोसा रखने के लिए बाध्य हो जाते हैं |
नौकरियों का बदलना | दूसरी नौकरी ढूँढने में कोई पाप नहीं है (1 कुरिन्थियों 7:21) | तौभी यह अच्छा होगा कि जब नौकरी बदलने की बात आये तो प्रार्थनापूर्वक और विचारपूर्वक ही आगे बढ़ा जाये | हमें स्वयं से कुछ कठिन प्रश्न पूछने से बिल्कुल भी हिचकना नहीं चाहिए :
- मैं क्यों यह नौकरी छोड़ना चाहता हूँ ?
- क्या मेरा अभिमान मुझे अपने स्वामी के अधीन नहीं रहने दे रहा है और इसी कारण से मैं यह नौकरी छोड़ना चाहता हूँ ?
- क्या यह केवल अधिक पैसे और अधिक आराम के लिए है ?
- क्या यह केवल व्यक्तिगत कैरियर को संवारने के लिए है ?
- क्या ऐसा करने से मेरे व्यक्तिगत और पारिवारिक आत्मिक जीवन के लिए कोई खतरा है ?
- क्या ऐसा करने से प्रभु के प्रति मेरी सेवा, स्थानीय कलीसिया में मेरी भागीदारी प्रभावित होती है ?
- इससे परिवार के साथ के मेरे समय पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
हमारी मंशाओं से संबंधित ऐसे गंभीर प्रश्नों के साथ जब हमारी प्रार्थना मिल जाती है हमें नौकरी बदलने के संबंध में सही चुनाव करने में सहायता मिलती है | हमेशा बड़े चित्र को दिमाग में रखना अच्छा रहता है – नौकरी छोड़ने या उसमें बने रहने के मेरे निर्णय से प्रभु को किस प्रकार महिमा मिलेगी ? जब हम परमेश्वर को प्रथम स्थान पर रखते हैं और प्रश्नों को पूछते हैं तो उत्तर शीघ्रता से प्राप्त होते हैं | हमें कभी नहीं भूलना चाहिए : संसार में सबकुछ पा लेने की दौड़ किसी बड़े आत्मिक आपदा की ओर ले जा सकती है |
इसके अलावा, यह स्मरण रखना भी अच्छा होगा कि अपने स्वामियों की निरंतर बुराई करना और नौकरी के संबंध में कुड़कुड़ाते रहना एवं शिकायत करते रहना, मसीह – समान व्यवहार नहीं है और न ही यह परमेश्वर को महिमा देने वाला कार्य है | हमें यह सोचते हुए एक धन्यवादित ह्रदय का निर्माण करना होगा कि हमारे पास कम से कम एक नौकरी तो है ! हम ये न भूलें – कई लोग बेरोज़गार हैं ! और यदि हम कोई नौकरी किसी दूसरी नौकरी के लिए छोड़ते हैं, तो यह भी ध्यान रखें कि पुरानी नौकरी के बारे में लगातार नकारात्मक बातें करना भी गलत बात है | पुरानी बातों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना अच्छी बात है |
कृप्या ध्यान दीजिए : कार्यस्थल पर होने वाली किसी कठिन परिस्थिति को बताना और दूसरों को उस विषय के लिए प्रार्थना करने के लिए कहना, पाप नहीं है और न ही किसी वास्तविक अत्याचार के बारे में बात करना, पाप है | परन्तु, यदि हम उन लोगों के प्रति कड़वाहट रखने लगें जो हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, तो यह पाप है | कार्यस्थल के बारे में लगातार नकारात्मक सोचते रहना ऐसे पापमय मनोभावों की ओर ले जाती हैं | इसीलिए, हमें सावधान रहना चाहिए |
कार्यस्थल पर सुसमाचार प्रचार : हालांकि बाईबल आपको उन सब तक सुसमाचार पहुँचाने की आज्ञा देती है जो मसीह के साथ उद्धार – संबंध में नहीं जुड़े हैं और इसमें आपके कार्यस्थल पर कार्य करने वाले लोग भी सम्मिलित हैं, तौभी ऐसा करते समय बुद्धिमत्ता दिखाना आवश्यक है | एक मसीही को कार्य करने की तनख्वाह मिलती है और उसे यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि सुसमाचार प्रचार से कार्य में कोई बाधा न पहुँचे | दूसरे शब्दों में कहें तो, यदि कार्य – अवधि में सुसमाचार प्रचार करने से हम नौकरी के प्रति हमारे कर्तव्यों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, तो हमें कार्य – अवधि में सुसमाचार प्रचार से बचना होगा | उस ढंग से प्रचार करने से प्रभु यीशु को महिमा नहीं मिलती है | बल्कि इसके स्थान पर, यह मसीही विश्वास के बारे में एक हानिकारक गवाही को उत्पन्न करती है | सुसमाचार प्रचार के लिए संभावित समय के रूप में भोजन – अवकाश या कार्य समाप्ति के बाद के समय पर विचार किया जा सकता है | यह ध्यान रखना भी अच्छा होगा कि शुभसंदेश के प्रचार के साथ ही साथ एक अच्छा कर्मचारी या स्वामी बनना भी मसीह का प्रचार करने का एक सामर्थी तरीका है |
अंतिम विचार :
हम इस बात को कभी न भूलें : सबसे महत्वपूर्ण कार्य, वह कार्य था जो प्रभु यीशु मसीह ने किया, जब उसने एक सिद्ध जीवन जिया और हमारे पापों के लिए, हमारे स्थान पर मरने के लिए क्रूस पर चढ़ गया | “पूरा हुआ” करके जब उसने जय–हुंकार किया ( यूहन्ना 19:30), तो यह प्रगट हुआ कि हमारे पापों के लिए उसके द्वारा चुकाया गया दाम पर्याप्त था – पुनरुत्थान, उसके कार्य के प्रति परमेश्वर का, “ आमीन ” था | इसलिए हम उसमें विश्राम पा सकते हैं और उसकी आज्ञा का पालन करने के लिए उसकी आत्मा से सामर्थ पा सकते हैं और इसमें कार्य के संबंध में दिए गये बाईबल सिद्धांतों के अनुसार जीना भी सम्मिलित है |
परमेश्वर, संसार के अन्य क्षेत्रों में भी महिमा पाता है | हमें इस गलत निष्कर्ष पर नहीं पहुँचना चाहिए कि परमेश्वर तभी महिमा पाता है जब कोई किसी “ कलीसिया” की सेवकाई में एक पूर्णकालिक सेवक के रूप में कार्य करता है | परमेश्वर का वचन हमें स्मरण दिलाता है कि प्रत्येक मसीही पूर्णकालिक सेवा में है – यदि वे उस क्षेत्र में परमेश्वर की महिमा करते हैं, जहाँ कार्य करने के लिए वे बुलाये गये हैं | चाहे हम सांसारिक कार्यस्थल में हों; चाहे घर पर हों, घर की देखभाल करते हुए और बच्चों को परमेश्वर के योग्य बनाने के लिए उनका पालन–पोषण करते हुए; चाहे कलीसिया में सेवा करते हों – परमेश्वर के वचन के प्रति विश्वासयोग्यता ही मुख्य बात है | जब हम एक ऐसे दृष्टिकोण को अपनाते हैं तो TGIF कहने के स्थान पर हम आनंदपूर्वक कह पायेंगे, TGIM – Thank God it’s Monday!