एक भक्त पिता का चित्र – भाग 2

Posted byHindi Editor September 12, 2023 Comments:0

(English version: Portrait Of A Godly Father – Part 2 – What To Do!)

पिछले लेख में हमने देखा था कि इफिसियों 6:4, हे बच्चे वालों अपने बच्चों को रिस न दिलाओ”, में पौलुस के द्वारा दी गई आज्ञानुसार पिताओं को क्या नहीं करना चाहिए | इस लेख में आईए इसी आयत के दूसरे भाग को देखें, जहाँ लिखा है, “परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चेतावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो”|

पिताओं–क्या करना चाहिए [सकारात्मक] 

बच्चों को कड़वाहट से भरे हुए बना देने, क्रोधी और हताश कर देने के स्थान पर पौलुस पिताओं को कुछ सकारात्मक करने के लिए कहता है: “परन्तु…उन का पालन-पोषण करो |” यह वाक्यांश उस शब्द से बना हुआ जिसमें बच्चों को परिपक्वता तक लाने के लिए उन्हें भोजन कराने या उनका लालन–पालन करने का विचार निहित है | यह पिता की जिम्मेदारी है |

रोचक बात है कि इसी शब्द का प्रयोग इफिसियों 5:29 में भी हुआ है | जिस प्रकार मसीह कलीसिया को भोजन देता है, उसकी देखभाल करता है और उसका लालन–पालन करता है, उसी प्रकार का व्यवहार पतियों को भी अपनी पत्नियों के प्रति दिखाना है | दूसरे शब्दों में कहें तो जिस प्रकार से पिता के रूप में उन्हें अपने बच्चों को परिपक्वता तक लाना है, ठीक वैसे ही पति के रूप में उन्हें अपनी पत्नियों के लिए शिक्षक, प्रशिक्षक और लालन – पालन करने वाले बनना है और अपनी पत्नियों को परिपक्वता तक लाना है | 

दुःख की बात है कि कई पुरुष पति के रूप में अपनी भूमिका में बुरी तरह असफल रहते हुए, अपने बच्चों के लिए “नंबर 1 पिता” बनना चाहते हैं | वे अपनी पत्नियों के प्रति कड़वाहट से भरे रहते हैं, उन्हें यौनसुख देने वाली, खाना बनाने वाली, धन कमाने वाली मशीन और उनके खानदान को आगे बढ़ाने वाली पात्र के रूप में ही देखते हैं | और फिर वे महान पिता बनने की अभिलाषा रखते हैं | यदि एक व्यक्ति पति के रूप में असफल होता है तो भयानक संभावना यह है कि वह एक पिता के रूप में भी असफल होगा | 

अतः, पौलुस पिताओं को आज्ञा देता है कि वे अपने बच्चों का पालन–पोषण करके उन्हें परिपक्व बनायें | कैसे? दो तरह से: “प्रभु की शिक्षा” और “चेतावनी” |

“चेतावनी” शब्द से तात्पर्य है ऐसा सुनियोजित प्रशिक्षण जिसमें अनुशासन सम्मिलित है | इस शब्द का प्रयोग इब्रानियों 12:5-11 में कई बार हुआ है, जहाँ परमेश्वर द्वारा हमें प्रशिक्षित और अनुशासित करने की पृष्ठभूमि है | “शिक्षा” शब्द में चेतावनी देने और सावधान करने का विचार निहित है–दिमाग में इस बात की समझ को डालना कि खतरे से दूर रहो | इस शब्द का प्रयोग 1 कुरिन्थियों 10:11 और तीतुस 3:10 में हुआ है जहाँ यह चेतावनी देने के संदर्भ में प्रयोग किया गया है | और “प्रभु की” वाक्यांश में यह विचार निहित है कि पिता, प्रभु के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं, अपने बच्चों को शिक्षित और प्रशिक्षित करते हुए ताकि उनके द्वारा परमेश्वर को महिमा मिले | 

यह प्रशिक्षण या चेतावनी और प्रभु की शिक्षा 4 तरीकों से दी जाती है:  1. शिक्षा देना 2. अनुशासित करना 3. प्रेम करना 4. एक अच्छा उदाहरण बनना | आईए, इन सब तरीकों को हम संक्षेप में देखें |

1. शिक्षा देना 

इस संसार के लोग भी इस बात से सहमत हैं कि पिताओं को शिक्षक के रूप कार्य करना चाहिए | चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने कहा है, “जो पिता अपने पुत्र को उसके कर्तव्य–पालन की शिक्षा नहीं देता है वह उन कर्तव्यों की अवहेलना करने वाले अपने पुत्र के साथ समान रूप से दोषी ठहरता है |” परन्तु, मसीही पिताओं को क्या शिक्षा देनी चाहिए? सर्वप्रथम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण है बाईबल की सच्चाईयों की शिक्षा देना

2 तीमुथियुस 3:16-17 “16 हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है | 17 ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए |” 

समस्त शिक्षाओं के आधार के रूप में बाईबल की सच्चाईयों को सिखाने की इस अवधारणा की जड़ व्यवस्थाविवरण 6:6-7 में दिखाई पड़ती है, “6 और ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; 7 और तू इन्हें अपने बाल-बच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना |” 

पिता [और मातायें] अपने बच्चों के प्राथमिक शिक्षक हैं–कलीसिया नहीं, पाठशालायें नहीं, दादा-दादी नहीं, नाना–नानी नहीं, बल्कि माता–पिता! आज्ञा तो स्पष्ट है | परन्तु ध्यान दीजिए कि मूसा आयत 6 में माता–पिता को क्या कहता है: “ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें |” जो आपके पास नहीं है, वह आप दूसरों को नहीं दे सकते! इसलिए पालकों को सबसे पहले पवित्रशास्त्र के अपने अध्ययन में गंभीर होना चाहिए | 

पालकों, क्या हम पवित्रशास्त्र अध्ययन में समय व्यतीत कर रहे हैं? मैं आशा करता हूँ कि इसका जवाब ‘हाँ’ है | केवल तभी हम अपने बच्चों को बाईबल की सच्चाईयों को दे सकते हैं | आयत 7 में “समझाकर सिखाना [इंग्लिश में impress]”, शब्द के पीछे ‘छेनी [टाँकी]’ से पत्थर पर खोदकर अक्षर लिखे जाने का विचार निहित है | इसमें कठोर परिश्रम लगता है | परन्तु यही करने की बुलाहट है | जैसा कि वचन में संकेत मिलता है, हमें बाईबल की सच्चाईयों को हमारे बच्चों के ह्रदय में बसाने के लिए हर समय परिश्रम करते रहना है (“घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते”), ताकि वे सच्चाईयाँ उनके ह्रदय में स्थाई रूप से बस जाये | इसका अर्थ यह नहीं है कि हम हमेशा बाईबल का उद्धरण देते रहें | इसका अर्थ है कि हम अपने बच्चों की सहायता करें ताकि वे देख पायें कि बाईबल की सच्चाईयाँ जीवन के समस्त क्षेत्रों में निर्णय लेने के कार्य को किस प्रकार से प्रभावित करती हैं |

सुस्पष्ट बाईबल आधारित शिक्षा देने के लिए प्रत्येक दिन तयशुदा समय होना चाहिए–पारिवारिक बाईबल पठन और प्रार्थना के लिए एक नियमित और सुव्यवस्थित समय | उन समयों के अतिरिक्त जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में परिस्थिति की माँग के अनुसार बाईबल की उचित शिक्षा दी जानी चाहिए | यहाँ पर यही विचार है | हमें उन्हें परमेश्वर का भय मानना, उसकी आज्ञाओं का पालन करना सिखाना चाहिए, हमें उन्हें पाप करने के खतरे के विरुद्ध चेतावनी देना चाहिए, पाप के ऊपर परमेश्वर के न्याय के बारे में, क्रूस के बारे में, पश्चाताप, क्षमा और दूसरी शिक्षाओं के बारे में सिखाना चाहिए | दूसरे शब्दों में कहें तो मुख्य उद्देश्य है, उनका उद्धार | 

2 तीमुथियुस 3:15 “15 और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है |” 

तीमुथियुस को छोटी उम्र से ही उसकी माता यूनीके और नानी लोईस के द्वारा पवित्रशास्त्र सिखाया गया था जो अंततः उसके उद्धार का कारण बना | शिक्षा के साधन के रूप में पवित्रशास्त्र के उन वचनों का इस्तेमाल किया गया जो उसे यीशु मसीह की ओर संकेत करते हैं  | इस विषय पर श्रीमान जॉन पाईपर द्वारा कहे गये शब्दों को उद्धृत करना लाभकारी होगा:

“पालकों, बच्चों को आज्ञाकारी बना देना ही सफल पालन–पोषण नहीं है, यह उससे कहीं बढ़कर है | यह तो जीवन जीने और शिक्षा देने की ऐसी शैली है जो सुसमाचार से परिपूर्ण हो | अपने बच्चों को दिखाओ कि कैसे मसीह हमारे पापों के लिए क्रूस पर चढ़ा, हमारे उद्धार के लिए ज़ी उठा, और कैसे मसीह पिता का प्रेम दिखाता है, इस बात को आश्वस्त करता है कि हमें पवित्र आत्मा की दैनिक सहायता मिले–उन्हें दिखाओ कि कैसे यह सुसमाचार केवल वह नहीं है जो मसीही जीएवन को आरम्भ करता है परन्तु यह तो इसे सामर्थ प्रदान करता है और आकार देता है और संभालता है | प्रार्थना करो और अपने बच्चों को प्रेम करते रहो और सिखाते रहो जब तक कि मसीह उनके दिलों में प्रवेश न कर ले और वे उसे अपना खजाना न मान लें |” [‘कोई तेरी जवानी को तुच्छ न जाने’ विषय पर दिए गए सन्देश से उद्धृत] |

अतः आवश्यकता है कि हम उन्हें बाईबल की सच्चाईयों को सिखायें | आवश्यकता है कि हम उन्हें एक ऐसा बाईबल दें जो उस समय के लिए उपयुक्त अनुवाद रखता हो ताकि वे बाईबल को सही रीति से समझ सकें | उन्हें ऐसा कुछ देने का कोई अर्थ नहीं जो वो न समझ सकें!

आवश्यक है कि हम उनके साथ पढ़ें, उनको पढ़कर सुनायें और उन्हें स्वयं पढ़ने में सहायता करें |

आवश्यकता है कि हम उन्हें बाईबल आयतों को मुखाग्र करना और उन पर मनन करना सिखायेंप्रति सप्ताह 1 आयत के साथ आरम्भ करना भी एक अच्छी शुरुआत हो सकती है | उन्हें किसी आयत को समझाने के लिए कहना भी एक तरीका है जिससे हम बाईबल का अध्ययन करने में उनकी अप्रत्यक्ष रूप से सहायता कर सकते हैं | आवश्यक है कि उनके द्वारा अपने दैनिक जीवन में बाईबल के सिद्धांतों को लागू करने में हम उनकी सहायता करें | 

हमें उन्हें प्रार्थना के बारे में सिखाने की आवश्यकता है | पिताओं को बच्चों के साथ प्रार्थना करना चाहिए, बच्चों के लिए प्रार्थना करना चाहिए और सहायता करनी चाहिए कि बच्चे स्वयं से प्रार्थना कर सकें | उन्हें बच्चों को सिखाना चाहिए कि वे बिना किसी बाहरी सहायता के स्वयं परमेश्वर से बात कैसे कर सकते हैं | बच्चों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे प्रत्येक बात के लिए प्रार्थना करें और उन्हें यह भी बताया जाना चाहिए कि बिना प्रार्थना किये कोई भी कार्य नहीं करना है | उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि वे परमेश्वर को उसकी समस्त आशीषों के लिए धन्यवाद दें, छोटी–छोटी आशीषों के लिए भी! उन्हें अपने कमरे में जाकर अकेले में परमेश्वर से बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए | जब वे बहुत छोटे हों तो 5 अकेले कमरे में की गई 5 मिनट की प्रार्थना भी अच्छे आदतों को विकसित करने में सहायक सिद्ध होती है | और उन्हें यह सिखाने का सर्वोत्तम तरीका यह है कि उनके सामने इस कार्य में आदर्श बना जाये | पिताओं यदि वे हमें अक्सर अपने घुटनों में होकर प्रभु को पुकारते हुए देखेंगे तो वे भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित होंगे | 

हमें उन्हें बदला नहीं लेने के बारे में सिखाने की आवश्यकता है |  यह देखना दुखद है कि बच्चे जब शिकायत करते हैं कि किसी बच्चे ने उन्हें मारा है तो कई पिता उनसे कहते हैं कि अगले दिन उसको पीटकर आना | जिस बच्चे ने मारपीट की है उसके लिए प्रार्थना करने या आवश्यक हो तो शिक्षक को बताने की सलाह देने के स्थान पर वे सिखाते हैं कि बदला कैसे लेना है | मसीही सिद्धांतों के कितनी विपरीत शिक्षा | आशा करें, कि वे हमें उन लोगों से बदला लेते हुए कभी न देखें जिन्होंने हमें चोट पहुँचाई है–अन्यथा बदला न लेने की हमारी शिक्षा व्यर्थ ठहरेगी | 

हमें उन्हें कार्य करने के महत्व के बारे में सिखाने की जरूरत है | हमें यह समझाने की आवश्यकता है कि कार्य करना क्यों अच्छा है और बाईबल कैसे भला कार्य करने और ईमानदारी से परिश्रम करने की आज्ञा देता है |

आवश्यकता है कि हम उन्हें यह सिखायें कि वे अपने धन को कैसे संभालें | हमें उन्हें चीजों के महत्व को सिखाने की जरूरत है–केवल उनकी कीमतों को नहीं | हमें यह निश्चित करने की आवश्यकता है कि हमारे बच्चों का पालन–पोषण ऐसे माहौल में न हो जहाँ उन्हें वे सब चीजें मिल जाती हों जो वे चाहते हैं–कम से कम उन्हें वे चीजें तब नहीं मिलनी चाहिए जब वे जिद करते हैं | 

हमें उन्हें अपनी वस्तुओं को जरूरतमंद लोगों के साथ बाँटना सिखाने की आवश्यकता है | हमें उन्हें छोटी उम्र से ही यह सिखाने की जरूरत है कि वे अत्यंत उदार बनें | पिताओं, आईए शिक्षा देने की इस भूमिका को अत्यंत गंभीरता से लें | गुजरे जमाने के एक विश्वासी जॉर्ज हर्बट ने कहा, “एक पिता, किसी पाठशाला के सौ शिक्षकों से भी बढ़कर है |” सच्ची बात! 

अतः, अपने बच्चों के भक्तिमय पालन–पोषण करने के अपने प्रयास में जिन साधनों का इस्तेमाल पिताओं को करना चाहिए, उनमें सबसे पहला साधन है, ‘शिक्षा देना’ |

2. अनुशासित करना 

जब ऊपर बताई गई शिक्षाओं का पालन बच्चे नहीं करते हैं तो शिक्षा में सुधारने वाला प्रशिक्षण सम्मिलित रहता है | मैं जानता हूँ कि हमारे समय और पीढ़ी में अनुशासित करना [गलती सुधारने के लिए दण्ड देना] एक संवेदनशील मुद्दा है | कुछ लोग इस कार्य के लिए असहमत भी हो सकते हैं | तौभी, विश्वासी होने के नाते हमें यह पूछने की आवश्यकता है, “अनुशासन के इस विषय पर बाईबल क्या कहती है?” इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि हमें कैसे लगता है परन्तु फर्क इससे पड़ता है कि परमेश्वर का वचन क्या कहता है! सारी बातों का आधार तो वही [परमेश्वर का वचन] है | 

सर्वप्रथम बात तो यह है कि, परमेश्वर जो एक सिद्ध पिता है वह अपने बच्चों को अनुशासित करता है | इब्रानियों 12:5-11 में वर्णन है कि परमेश्वर पिता “हमारे भले के लिए” हम बच्चों को अनुशासित करता है [हमारी ताड़ना करता है] [पद 10-11] | और यह भाग इस बात को मानकर चलता है कि मानवीय पिता अपने बच्चों को उनकी भलाई के लिए अनुशासित करेंगे [12:9]! इस प्रकार, इस कार्य में परमेश्वर पिता हमारा आदर्श है!

बुद्धि की बातों से भरी हुई नीतिवचन की पुस्तक में पालकों के लिए कई आज्ञायें हैं जहाँ उन्हें आवश्यकता पड़ने पर अपने बच्चों को अनुशासित करने के लिए कहा गया है | यहाँ कुछ आज्ञायें दी गई हैं |

नीतिवचन 13:24 “जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम रखता, वह यत्न से उस को शिक्षा देता है |” 

नीतिवचन 19:18 “जब तक आशा है तो अपने पुत्र की ताड़ना कर, जान बूझ कर उसको मार न डाल |”

नीतिवचन 23:13-14 “13 लड़के की ताड़ना न छोड़ना; क्योंकि यदि तू उसको छड़ी से मारे, तो वह न मरेगा | 14 तू उसको छड़ी से मार कर उसका प्राण अधोलोक से बचाएगा |”

इस प्रकार से यह स्पष्ट है कि परमेश्वर पालकों को अपने बच्चों को अनुशासित करने की आज्ञा देता है | निसंदेह, किसी भी पालक को कुंठा में होकर कोई अनुचित व्यवहार या ताड़ना महीन करनी चाहिए | उन्हें यह कार्य उचित रूप से करनी चाहिए | और जब बाईबल “छड़ी” शब्द का प्रयोग करती है तो हम इसे कोई पुराना जंग लगा हुआ धातु का पाईप न समझें! लकड़ी का एक प्रकार का चपटा डंडा कहीं अधिक समीप का विचार होगा, जिसे उचित रूप से उपयोग करके अनुशासित करने [ताड़ना देने] के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था | 

पुनः, आज्ञा यह नहीं है कि अनुचित व्यवहार किया जाए, परन्तु थोड़ा सा दर्द दिया जाना ही उद्देश्य होता है | इस प्रकार से बच्चा सीखेगा कि अनाज्ञाकारिता के दुष्परिणाम होते हैं | अपने बच्चों की ताड़ना करने के द्वारा हम उन्हें कहीं अधिक बड़े सिद्धांत को सिखाते हैं: पाप के दुष्परिणाम होते हैं–कई बार दीर्घकालीन दुष्परिणाम | और इससे बचने का एकमात्र तरीका है क्षमा के लिए मसीह की ओर दौड़ना | 

पालकों को बच्चों की ताड़ना करने के पश्चात बच्चों की अनाज्ञाकारिता के लिए बच्चों के साथ मिलकर परमेश्वर से क्षमा के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, और बच्चों को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे अनाज्ञाकारिता के लिए क्षमा हेतु परमेश्वर से प्रार्थना करें | प्रोत्साहन का यह कार्य छोटी उम्र में ही कुछ इस प्रकार के वाक्यांशों को सिखाने के द्वारा किया जा सकता है, “प्रभु यीशु मुझे क्षमा करें” | जब वे थोड़े बड़े होते हैं तो उन्हें क्षमा हेतु प्रार्थना करने के लिए कुछ और शब्दों को सिखाया जाना चाहिए! यदि वे सब कुछ नहीं समझते हैं तो चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है | हम उनमें छोटी उम्र में ही पापों की क्षमा के लिए प्रभु के पास जाने की एक अच्छी आदत पैदा कर रहे हैं |

तो देखा आपने, ताड़ना केवल इसलिए नहीं की जाती है कि बच्चे पालकों के प्रति आज्ञाकारी बनें | बल्कि, ज्यादा आवश्यक बात यह है कि जब वे बड़े हों तो अपने उद्धार के लिए मसीह की ओर दौड़ें; सब प्रकार की ताड़ना के पीछे यही आशा होनी चाहिए | यह बच्चे की भलाई के लिए है | पालकों में विश्वास के द्वारा अवश्य ही यह निश्चय होना चाहिए | ऐसे विद्रोही बच्चे तैयार करना कोई अच्छी बात नहीं है जिन्हें नियंत्रित करने के लिए पालक लगातार पीछे भागते रहें | इसीलिए अनुशासिट करने का कार्य छोटी उम्र में ही आरम्भ किया जाना चाहिए | पवित्रशास्त्र में आज्ञा है: “बच्चों अपने माता–पिता के आज्ञाकारी बनो” [इफिसियों 6:1]–यह नहीं कि, “पालकों अपने बच्चों के आज्ञाकारी बनो!” 

फिर यह बात भी है कि अनुशासित करने की आज्ञा माता–पिता दोनों को दी गयी है–केवल पिता को नहीं! माता या पिता दोनों में से किसी के द्वारा भी इस कार्य में असफल होना पाप है, और परिणाम यह होगा कि अपने पाप करने वाले बच्चे को अनुशासित करने में असफल रहने का पाप करने वाले पिता [या माता]  को परमेश्वर अनुशासित करेंगे! 

यह भी है कि आवश्यक नहीं है कि हर प्रकार के अनुशासन में शारीरिक दण्ड ही दिया जाए, छोटी उम्र में भी यह हमेशा आवश्यक नहीं है | कई बार दण्डस्वरूप कुछ मनभावनी वस्तुओं [या अवसरों] को उनसे दूर रखा जा सकता है | जहाँ बात करने और दण्ड देने के हल्के तरीकों से काम न चले वहाँ पालक शारीरिक दण्ड दे सकते हैं | हाँ, एक समय आयेगा जब हम उन्हें शारीरिक दण्ड नहीं दे सकेंगे, और तब केवल बात करके ही समझाना संभव होगा | परन्तु एक ऐसा समय भी है जब शारीरिक दण्ड उन्हें विकास करने में सहायता पहुंचायेगी | 

इसलिए, शिक्षा देने के साथ ही जहाँ आवश्यक हो हमें उन्हें अनुशासित करने की भी आवश्यकता है |  और यह वह दूसरा कार्य है जिसे पिताओं को करना चाहिए |

3. प्रेम करना 

पिताओं, अपने बच्चों से प्रेम करो–सब बच्चों से समान रूप से! उन्हें अपने जीवन में एक दखल के रूप में न देखें | उनके साथ समय गुजारने के द्वारा अपना प्रेम प्रगट करें | प्रेम भरी बातें करें | जब वे किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं तो वहाँ रहने का जितना हो सके उतना  अधिक प्रयास करिये | मैं जानता हूँ कि आप हर कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हो सकते | परन्तु जितना ज्यादा हो सके उतना अपनी उपस्थिति के द्वारा अपने प्रेम को प्रगट करिये | उनसे बात करते समय, अपने फोन या टी. वी. को देखने में उलझे हुए न रहें | उनकी आँखों में देखें और बात करें | उनकी बात ध्यान से सुनने वाले बनकर अपने प्रेम को प्रगट कीजिए | अक्सर बच्चे उपहारों से अधिक अपने माता–पिता की संगति की लालसा करते हैं |

फिलादिल्फिया में रहने वाली एक प्रसिद्ध मसीही उद्योगपति की पत्नी को लगता था कि उसका पति अपनी छः वर्षीय बेटी को पर्याप्त समय नहीं दे रहा था | तब उस उद्योगपति ने सब भरपाई एक बार में ही कर देने की ठानी|

उसने अपने शानदार कार के ड्राईवर को अपनी बेटी के स्कूल चलने के लिए कहा, स्कूल पहुँचकर ड्राईवर ने बेटी को स्कूल से लिया और उसके पिता के पास पिछली सीट पर बैठा दिया | वे न्यूयार्क शहर की ओर निकल पड़े, जहाँ उसने एक आलीशान फ्रेंच रेस्टोरेंट में रात्रि–भोज और एक बड़े थिएटर में शो देखने की टिकट की व्यवस्था कर रखी थी | 

एक थकान भरे संध्या के पश्चात वे घर की ओर वापस चल पड़े | सुबह उस छोटी लड़की की माँ बड़ी बेसब्री से जानना चाहती थी कि उसने अपनी शाम कैसे गुजारी | “तुम्हें कैसे लगा?” 

छोटी लड़की ने कुछ देर सोचा | “मुझे लगता है कि ठीक ही था, परन्तु मैं उस आलीशान रेस्टोरेंट के स्थान पर मैकडोनाल्ड में खाना पसंद करती | और थिएटर का शो तो मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आया | परन्तु सबसे अच्छा मुझे तब लगा जब हम अपनी बहुत बड़ी कार में घर वापस आ रहे थे और मैंने अपना सिर पापा के गोद में रखा और फिर वहीं सो गई |”   

प्रेम के साधारण कार्यों को कभी कम न आँकियें | कोई भी अपनी अनुपस्थिति के द्वारा अपने बच्चों का पालन–पोषण नहीं कर सकता और अपना प्रेम प्रगट नहीं कर सकता |

इस प्रकार शिक्षा देने, अनुशासित करने के साथ ही हमें उन्हें प्रेम करने की आवश्यकता है | और यह वह तीसरा कार्य है जिसे पिताओं को करना चाहिए |

4. एक अच्छा आदर्श बनना 

 शिक्षा देना महत्वपूर्ण है | परन्तु हमारे द्वारा दी गई शिक्षा को जीना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है | परमेश्वर के वचन की सच्चाई एक कील के सामान है | और हमारा जीवन उस साधन का उदाहरण है जो उस कील को अन्दर ठोकता है | 

यदि हम अपने बच्चों को नियमित बाईबल पढ़ने और प्रार्थना करने के लिए बोलें और हम स्वयं न पढ़ें तो हमारी शिक्षा कितनी प्रभावकारी होगी? यदि हम उन्हें सत्य बोलने के महत्व को बतायें और झूठ बोलने पर उन्हें दण्डित करें और फिर वे हमें छोटी–छोटी बातों में भी झूठ बोलते हुए देखें, तो फिर यह किस प्रकार का उदाहरण होगा? या फिर यदि हमारे बच्चे हमें लगातार पैसों और भौतिक वस्तुओं के बारे में बातें करते हुए ही देखें तो हम उनसे क्या सीखने की अपेक्षा रखते हैं? परन्तु यदि हमारे बच्चे हमें प्रत्येक बातों में परमेश्वर पर भरोसा रखते हुए, पवित्रशास्त्र का अध्ययन करते हुए, प्रार्थना करते हुए, दीनता का जीवन जीते हुए, हमारी बोलचाल में हमें सच्चे और अनुग्रहकारी रहते हुए, परमेश्वर के राज्य के विस्तार के प्रयास में लगे हुए, क्षमाशीलता का प्रदर्शन करते हुए देखें, तो यह क्या ही अद्भुत उदाहरण होगा? 

इस प्रकार शिक्षा देने, अनुशासित करने, प्रेम करने  के साथ ही हमें उनके सम्मुख एक बाईबल आधारित आदर्श स्थापित करने की आवश्यकता है | और यह चौथा और अंतिम कार्य है जिसे पिताओं को करना चाहिए |

पिताओं, हमने देखा कि हमें क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए | आईए हम “कर्तव्य–विमुख पिता” की श्रेणी में आनेवाले पिता न बनें | आईए इन सच्चाईयों को हम अपने ह्रदय में रखें और जो आज्ञायें प्रभु हमें देता है उनका पालन करने में हमारी सहायता करने के लिए प्रभु पर भरोसा रखें | 

यदि आप एक अच्छे पिता हैं तो इस बात के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दें | सारी महिमा उसे ही दें और उस पर आश्रित रहना जारी रखें | यदि आप पिता के रूप में अपनी भूमिका में संघर्ष कर रहे हैं, तो उसे पुकारिए | वह आपकी असफलताओं और मनोव्यथा को जानता है | यदि आप बीते समय की असफलताओं के दुष्परिणाम को भी भुगत रहे हैं, तब भी परमेश्वर वहाँ से भलाई उत्पन्न कर सकता है | वह परिस्थितियों को बदलने वाला है | यदि आप उसे पुकारेंगे, तो वह आपको एक भक्त पिता बनने में सहायता करेंगे | यदि आप अकेली माता या अकेले पिता हैं जिनके पास अपने बच्चों को पालने के लिए एक आत्मिक साथी नहीं है, तब भी निराश न हों | अच्छी कुश्ती लड़ते रहें | परमेश्वर आपके दिल के दर्द को जानता है | उस पर भरोसा करते रहें | वह आपको सब संघर्षों से उबारकर ले जायेगा | 

पिताओं [और माताओं] मेरी हार्दिक विनती यह है: आईए, अपने घुटनों में होकर पालन–पोषण करना सीखें | हमें अपने परिवार के लिए लगातार प्रार्थना करते रहना चाहिए | यदि इस धरती पर जीवन बिताने वालों में से सबसे महान व्यक्ति ने , पापरहित परमेश्वर के पुत्र ने अपने आपको प्रार्थना में लगातार दिया तो क्या हम हमारी प्रार्थनाओं में लापरवाह होने का खतरा मोल ले सकते हैं? यदि हमारी बातों का हमारे बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ना है तो हमें अवश्य ही प्रतिदिन प्रभु के साथ, जो कि एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो उनके ह्रदय को बदल सकता है, बात करने में बहुत अधिक समय गुजारना चाहिए! हमारे प्रभु ने इसे स्पष्ट शब्दों में कहा, “मेरे बिना तुम कुछ नहीं कर सकते” [यूहन्ना 15:5]!  

अंत में, सबको, जिसमें वे सब भी सम्मिलित हैं जिनके अच्छे पिता नहीं हैं, मैं प्रोत्साहित करना चाहूँगा कि वे उस वास्तविक और सच्चे पिता अर्थात स्वयं परमेश्वर को देखें | इस महान पिता ने हमारे पापों का सिद्ध बलिदान बनने के लिए अपने पुत्र [मसीह] को भेजा ताकि जो मसीह के द्वारा उस पर विश्वास करें वे उसके परिवार में स्वीकार किये जायें और वे उसे अब्बा–पिता कहकर बुला सकें | क्या ही अद्भुत सौभाग्य! एक पिता में जो कुछ भी आवश्यक है, वो सब कुछ हम मसीह के द्वारा परमेश्वर पिता में पा सकते हैं | हम उस पर उसके संतान के रूप में निर्भर रह सकते हैं |   

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