एक भक्त पिता का चित्र – भाग 1

(English version: Portrait Of A Godly Father – Part 1 – What Not To Do!)
एक अफ्रीकी कहावत है, “किसी राष्ट्र का विनाश उस राष्ट्र के लोगों के घरों में आरम्भ होता है |” दुर्भाग्यवश, हम इस कहावत की सच्चाई को ठीक अपनी आँखों के सामने फलीभूत होते हुए देखते हैं, हम देख रहे हैं कि कैसे पूरे संसार में परिवार टूटकर बिखर रहे हैं | और इस बिखराव के एक कारण हैं पिता जिन्हें “कर्तव्य-विमुख पिता” के तौर पर दर्शाया जा सकता है |
क़ानून की नजर में एक कर्तव्य-विमुख पिता वह है जो अपने कर्तव्य–पालन में चूक जाता है जैसे कि हो सकता है कि वह बच्चों के भरण–पोषण के लिए धन देता हो परन्तु वह शेष समस्त जिम्मेदारियों को माता पर डाल देता है | इसीलिए अदालतें ऐसे कर्तव्य–विमुख पिताओं के पीछे कठोरता से पड़े रहते हुए लगातार इस मुद्दे पर बातें करती रहती हैं |
परन्तु मैं जिस प्रकार के “कर्तव्य-विमुख” पिताओं की बात कर रहा हूँ वे परमेश्वर की नज़रों में “आत्मिक रूप से कर्तव्य–विमुख” पिता हैं | ये ऐसे पिता हैं जो अपनी आत्मिक जिम्मेदारियों को निभाने में असफल हो गए हैं | इस प्रकार के पिता वे लोग हैं जो सोचते हैं कि यदि उन्होंने शारीरिक, सामग्री–संबंधी, और शैक्षणिक आवश्यकताओं को पूरा कर दिया है तो उन्होंने अपना “कर्तव्य” निभा दिया है | इसके परिणामस्वरूप–“आत्मिक अनाथों” की एक पीढ़ी तैयार हो जाती है | और इसीलिए भक्त पिताओं के लिए दोहाई दी जाती है, ऐसे पिता जो ऐसे कार्य करें जो परमेश्वर की दृष्टि में सही हों |
जो इस प्रकार के पिता बनाने की अभिलाषा रखते हैं, उनकी सहायता करने के लिए प्रेरित पौलुस इफिसियों 6:4 में आगे आता है, “और हे बच्चे वालों अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चेतावनी देते हुए, उन का पालन–पोषण करो |” यहाँ पिताओं के लिए दो आज्ञाएँ दी गयी हैं; क्या नहीं करना है (नकारात्मक) और क्या करना है (सकारात्मक) |
हम पहली आज्ञा को इस लेख में देखेंगे और दूसरी आज्ञा को अगले लेख में |
(टिप्पणी: हालांकि ये निर्देश पिताओं को दिए गए हैं, परन्तु इनमें से अधिकाँश बातें माताओं के लिए भी लागू होती हैं!)
पिताओं–क्या नहीं करना है [नकारात्मक]
“हे बच्चे वालों अपने बच्चों को रिस न दिलाओ |” इस आयत में जिस शब्द का अनुवाद “बच्चे वालों” के रूप में किया गया है वह प्राथमिक रूप से पिता की ओर संकेत करता है | तथापि, यह कई अवसरों पर माता और पिता दोनों को दर्शाती हैं, जैसे कि इब्रानियों 11:23 में, जहाँ इस शब्द का अनुवाद “माता–पिता” के रूप में किया गया है | हालांकि यहाँ इफिसियों 6:4 में, मैं अवश्य सोचता हूँ कि प्राथमिक रूप से पिताओं की बात की जा रही है | परन्तु, ये सच्चाईयाँ माताओं के लिए भी समान रूप से लागू होती हैं!
पौलुस पिताओं को एक स्पष्ट आज्ञा देता है: “अपने बच्चों को रिस न दिलाओ |” “रिस दिलाना” शब्द का अर्थ है, “उन्हें क्रोध दिलाना, भड़काना, उत्तेजित करना और क्षुब्ध करना |” इस भाग के समानांतर भाग कुलुस्सियों 3:21 में पौलुस ने पिताओं को ये बातें लिखीं हैं, “हे बच्चे वालों, अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाये|” दूसरे शब्दों में कहें तो, पौलुस पिताओं को आज्ञा देता है कि वे उस ढंग से कार्य न करें जिससे बच्चे क्रोधी, कड़वाहट से भरे हुए और हताश हो जायें |
अतः, अब तार्किक प्रश्न यह है: पिता कैसे बच्चों को रिस दिला सकते हैं, क्षुब्ध कर सकते हैं, क्रोध दिला सकते हैं और यहाँ तक कि हताश कर सकते हैं? कम से कम 7 बातें नीचे सूचीबद्ध की गयी हैं |
1. अतिसुरक्षा
कई लोग इस बात से अत्यंत भयभीत रहते हैं कि कहीं उनके बच्चों को कुछ हो न जाए और इसीलिए वे हमेशा उनके पीछे लगे रहते हैं | वे अपने बह्चों को लगातार कहते रहते हैं, “ऐसा मत करो, वैसा मत करो |” यहाँ तक कि वे अपने बच्चों को दूसरे बच्चों के संपर्क से भी बचाकर रखते हैं |
आप सोच रहे होंगे, “एक मिनट रुकिए, जब सब तरफ नकारात्मक बातें हैं, तो क्या मुझे अपने बच्चों की रक्षा नहीं करनी चाहिए?” यह सच है कि बच्चों को चेतावनी दी जानी चाहिए और उन पर नजर रखनी चाहिए | परन्तु इसकी एक सीमा है | यदि बच्चे को अति–सुरक्षा में रखा जायेगा, तो इससे बच्चा परेशान ही होगा | परिणामस्वरूप वे चिड़चिड़े हो सकते हैं |
2. पक्षपात
पक्षपात का अर्थ है दूसरे बच्चों को किनारे रखकर किसी विशेष बच्चे पर कृपा करना | उदाहरण के लिए, इसहाक याकूब से बढ़कर एसाव से प्रीति रखता था [उत्पत्ति 25:28]; रिबका एसाव से अधिक याकूब को पसंद करती थी [उत्पत्ति 25:28], और याकूब ने अपने अन्य बेटों की तुलना में युसुफ को प्राथमिकता दी [उत्पत्ति 37:3]| दुर्भाग्यवश इन सभी कार्यों का अंत त्रासदीपूर्ण रहा |
पक्षपात करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं | संभवतः कोई विशेष बच्चा दूसरे बच्चों की तुलना में आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरता है और इस प्रकार वह आपका प्रिय बन जाता है | हो सकता है कि उस बच्चे की अभिरुचियाँ [मनपसंद कार्य] आपकी अभिरुचियों के ही समान हों | संभवतः वह बच्चा दूसरों से चतुर हो | और इसीलिए आप अपना अधिक प्यार उस पर उण्डेलते हैं |
इसका नतीजा यह होता है कि कुछ भी करने पर भी वह प्रिय बच्चा बच निकलता है जबकि दूसरे बच्चे छोटी–छोटी बातों पर भी दण्ड पाते हैं | परन्तु यह पक्षपात आगे चलकर उस उपेक्षित बच्चे को या बच्चों को कड़वाहट से भरे हुए, क्रोधी और हताश बना देते हैं |
3. अनुचित माँग
कई माता–पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे उन कार्यों में सफलता पायें जो वे उनसे करवाना चाहते हैं या फिर ऐसे कार्यों में जिनमें वे स्वयं असफल रह गए थे | अलग ढंग से कहें तो वे अपने बच्चों के माध्यम से अपनी जिन्दगी जीना चाहते हैं | “डॉक्टर बनो, इंजीनियर बनो, खेल में नाम कमाओ इत्यादि |” सब कुछ जीत लेने के लिए उन्हें मजबूर करते हैं | और इस प्रकार का व्यवहार बच्चों को क्रोधित कर सकता है |
क्या बच्चों से श्रेष्ठ बनने की अपेक्षा करना गलत है? बिल्कुल नहीं, यदि परमेश्वर की महिमा हमारा उद्देश्य हो और यदि उनके जीवन से प्रभु वही चाहते हों तो | तथापि, अनुचित माँगे बच्चों को केवल हताशा और द्वेष की ओर बढ़ाती हैं | बच्चों में यह भावना आ सकती है कि वे कभी असफल नहीं हो सकते हैं [नहीं तो कुछ बुरा होगा] और वे सोच सकते हैं कि उनके माता–पिता उन्हें तभी प्यार करेंगे जब वे उनके अपेक्षाओं के अनुरूप प्रदर्शन करेंगे |
4. प्रेम की कमी
कुछ पिता बच्चों को अपने जीवन में एक बाधा की तरह देखते हैं | कुछ इस प्रकार की भावनायें रहती हैं, “मुझे आजादी पसंद है | परन्तु बच्चों के कारण मेरी आजादी ख़त्म हो गयी है | मैं अपने समय के साथ जो करना चाहता हूँ वो नहीं कर पाता हूँ |” इन भावनाओं के कारण बच्चे प्रेम से वंचित रह जाते हैं | इसके अतिरिक्त, यदि बच्चे माँ को कार्य करने और अपना कैरियर बनाने से रोकें तो बच्चों को आर्थिक सफलता और स्थिरता के राह में बाधा के रूप में देखा जाता है |
एक और प्रकार से कई पिता अपने बच्चों को प्रेम करने में असफल रहते हैं, और वह है उनके साथ समय बिताने में असफल रहना | ऐसा क्यों? क्योंकि वे भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति या अन्य सुखाविलासों की प्राप्ति के प्रयास में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास अपने बच्चों के साथ गुजारने के लिए कोई समय नहीं है |
समय गुजरेगा और बच्चे समझेंगे कि उनके पिता को उनकी कभी फ़िक्र ही नहीं थी, उनके लिए तो बस उनके कामकाज ही अधिक महत्वपूर्ण थे | और इससे उनमें कड़वाहट और क्रोध उत्पन्न होगा |
5. निष्ठुर दण्ड
जहाँ एक ओर कुछ पिता अपने बच्चों को कभी दण्ड नहीं देते हैं वहीं कुछ हैं जो बिल्कुल विपरीत धारा के होते हैं और अपने बच्चों को निष्ठुरता से दण्ड देते हैं | वे दर्द नहीं, घाव देते हैं | अपने क्रोध और कुण्ठा में कई बार कई पिता अपने बच्चों को बुरी तरह से पीटते हैं | इस बात पर विचार ही नहीं किया जाता कि दण्ड देने का उद्देश्य क्या है [क्यों दण्ड दिया जा रहा है] |
बच्चा सोचने लगता है, “कई बार तो मुझे पता ही नहीं चलता है कि पिताजी मुझे क्यों दण्ड देते हैं | संभवतः वे गुस्से में हैं | मैं चुप रहूँगा |” कई बार वे जाकर माँ से शिकायत करते हैं | बेचारी माँ, वह क्या कह सकती है?
समय गुजरने के साथ पिता के निष्ठुर दण्ड के कारण बच्चे में पिता के प्रति अत्याधिक रोष उत्पन्न हो सकता है | मुझे अपनी पढ़ी हुई बात याद आती है, अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू. बुश [पुत्र] ने एक बार कहा, “मेरे पालन–पोषण के समय में मुझे असफल होने की आजादी दी गयी थी |” बच्चों को महसूस होना चाहिए कि उन्हें असफल होने की आजादी है, निष्ठुर दण्ड से भयभीत होने की उन्हें आवश्यकता नहीं है!
6. दिल दुखाने वाली बातें
“तुम बिल्कुल मूर्ख हो | निकम्मे हो | किसी काम के नहीं हो |”, जैसी बातें बहुत चोट पहुँचा सकती हैं | इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपने बच्चों की गलती कभी नहीं सुधारते | इफिसियों 6:4 का दूसरा भाग वास्तव में हमें सिखाता है कि जब बच्चे गलत रास्ते पर जाएँ तो हमें उन्हें सुधारना है | परन्तु यहाँ दिल दुखाने वाली बाटन के ऊपर चर्चा हो रही है | जब एक पिता अपमानजनक टिप्पणी करता है तो बच्चे के अन्दर क्रोध और रोष पनपने लगता है और आज नहीं तो कल रिश्ते इतने बिगड़ जायेंगे कि सुधर नहीं पायेंगे |
इस व्यवहार से ठीक विपरीत दृष्टिकोण वाला व्यवहार भी अच्छा नहीं है | लगातार चिकनी चुपड़ी बातें बोलना बच्चों के अहंकार को बढ़ावा देने का एक हानिकारक तरीका है, मानो आपका बच्चा संसार का सर्वश्रेष्ठ बच्चा हो | जब वे कुछ अच्छा करते हैं तो बेशक हमें उनकी प्रशंसा करनी है और जब वे गलत करते हैं तो उन्हें सुधारना है | परन्तु ऐसा करते समय हमें अपने शब्दों के प्रति सावधान रहना चाहिए |
7. दूसरों के साथ तुलना
दूसरे बच्चों के साथ तुलना करना उन सर्वाधिक आम तरीकों में से एक तरीका है जिससे बच्चों को चोट पहुँचती है | “उस बच्चे को देखो | तुम उसके जैसे क्यों नहीं बनते?” कोई बच्चा कुछ करता है और हम उसी क्षण चाहने लगते हैं कि हमारे बच्चे भी वैसा ही करें–फिर चाहे परमेश्वर ने उन्हें ऐसा करने के लिए बुलाहट दी हो या न दी हो! दूसरों ने जो सफलता पाई है वैसी ही सफलता पाने के लिए लगातार प्रेरित करना |
एक पिता अपने बेटे से जो 20 वर्ष से अधिक का हो चुका था, कहता है, “ज़रा सोचो, जिस उम्र के तुम हो उस उम्र में कितने ही लोग बेहद सफल हो जाते हैं |” और फिर वह तुलना करते हुए कुछ प्रसिद्ध नामों को गिनाने लगा | तब बेटे ने, जो अपने पिता के इस लगातार तुलना करने के स्वभाव से ऊब चुका था, जवाब दिया, “अच्छी बात है, आप अभी 50 वर्ष पूरा कर चुके हैं, और आपकी उम्र में अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बन गए थे | आप क्यों नहीं बने?”
आपने समझा, यदि किसी के बच्चे गलत रास्ते पर बढ़े जा रहे हैं और वह व्यक्ति ठीक ढंग से जीवन बिताने वाले कुछ बच्चों का उदाहरण देकर अपने बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहता है, तो कुछ भी गलत नहीं है | परन्तु समस्या तो उस तुलना से है जो ईर्ष्या से प्रेरित होती है |
अक्सर, ऐसी तुलनाओं के पीछे मूल कारण यह होता है कि पालाकगण स्वयं ही अत्याधिक प्रतिस्पर्धी होते हैं | इसका नतीजा यह होता है कि वे अपने इस स्वभाव को अपने बच्चों पर भी थोप देते हैं! और इस प्रकार के कार्य आगे चलकर बच्चों को हताश कर देते हैं और यहाँ तक कि वे क्रोध करने लगते हैं और उन्हें लगता है, “मैं जैसा हूँ उसी रूप में मेरे माता–पिता मुझे प्यार क्यों नहीं कर सकते?”
तो, इस तरह से इन 7 तरीकों से पिता [और मातायें] अपने बच्चों को कड़वाहट से भरे हुए, क्रोधी और हताश बना सकते हैं: अति सुरक्षा, पक्षपात, अनुचित माँग, प्रेम की कमी, निष्ठुर दण्ड, दिल दुखानेवाली बातें और दूसरों के साथ तुलना |
मुझे निश्चय है कि कोई इसमें और भी बातें जोड़ सकता है | परन्तु जो प्रश्न हम माता–पिताओं को स्वयं से पूछना है, वह यह है: क्या हम इन पापों में से किसी या अधिकतर या सभी पापों को करने वाले तो नहीं हैं? यदि ऐसा है, तो हमें प्रभु के पास ईमानदारी से जाना चाहिए और उससे प्रार्थना करना चाहिए कि वह हमें हमारे पापों को दिखाए और फिर हम उन पापों से पश्चाताप करें, क्षमा मांगें और उन पापों पर जय पाने के लिए उसकी सहायता माँगें |
यह देखने के बाद कि ‘क्या नहीं करना चाहिए’, हम अगले लेख में देखेंगें कि पिताओं को ‘क्या करना चाहिए’ |