आतंकवादी एक मिशनरी बन जाता है

Posted byHindi Editor August 22, 2023 Comments:0

(English version: Terrorist Becomes A Missionary)

“अमेजिंग ग्रेस” गीत के रचयिता गीतकार जॉन न्यूटन कम उम्र से ही अपना जीवन समुद्र में बिताने लगे थे | एक नाविक के रूप में उसने अपना जीवन विद्रोह और दुष्टता में बिताया | गुलामों के व्यापार में इस्तेमाल होने वाले जहाज में काम करते हुए वह नई दुनिया के निर्माण कार्य के लिए गुलामों को बंदी बनाया करता था | बाद में वह उस जहाज का कप्तान बन गया | कई घटनाओं की एक श्रृंखला के पश्चात जिसमें उसका पानी में डूबकर मौत के समीप पहुँच जाने वाला अनुभव भी सम्मिलित था, उसने अपना जीवन मसीह को दे दिया | वह आगे चलकर अपने समय की कलीसिया का एक महान प्रचारक और अगुवा बना | इतिहास न्यूटन जैसे लोगों की कहानियों से अटा पड़ा है जिन्होंने पापमय जीवन जीया तौभी मसीह के द्वारा परिवर्तित किए गए | 

तौभी, एक उदाहरण शेष समस्त उदाहरणों से अलग ही दिखाई पड़ता है | इस व्यक्ति ने अपने आप को “सबसे बड़ा” पापी बताया [1 तीमुथियुस 1:15] | उसने कई मसीहियों को सताया और यहाँ तक कि उन्हें मृत्युदंड देने के पक्ष में अपना समर्थन दिया | यह कहना सुरक्षित होगा कि वह अपने समय का सर्वाधिक भयावह धार्मिक आतंकवादी था | तौभी परमेश्वर की करुणा ने उसे उसी विश्वास के प्रचार के लिए एक मिशनरी बना दिया जिसे वह नाश करना चाहता था! नया नियम के आधे से भी अधिक पत्रियाँ उसके उत्कृष्ट कलम से लिखे गए हैं | सुसमाचार विस्तार में उसकी भूमिका के प्रभाव की बात करें तो आज तक कोई वहाँ तक नहीं पहुँच पाया है | यह कहना सुरक्षित होगा कि मसीहियत में प्रभु यीशु मसीह के बाद वह सर्वाधिक प्रसिद्ध व्यक्ति है |

मुझे अनुमति दें कि मैं इस आतंकवादी का परिचय आपसे कराऊँ जो एक मिशनरी बन गया–तरसुस निवासी शाऊल जिसे प्रेरित पौलुस के नाम से भी जाना जाता है | उसके जीवन का सर्वेक्षण करते हुए हम कुछ प्रायोगिक सच्चाईयों को सीख सकते हैं जो हमारे अपने जीवन को प्रभावित करेंगे | परन्तु पहले हम प्रेरितों के काम 22:3–11 में पाए जाने वाले उसी के शब्दों में उसके मसीह में आने से पहले के उसके जीवन को समझ लें |

I. आरंभिक जीवन और शिक्षा [प्रेरितों के काम 22:3 – 4] 

पौलुस का जन्म तरसुस शहर में हुआ था, यह आधुनिक समय के तुर्की देश में स्थित था | पौलुस के समय में तरसुस एक प्रतिष्ठित बंदरगाह शहर था [प्रेरितों के काम 21:39], यह अपने विश्वविद्यालय और राजनैतिक ओहदे के लिए प्रसिद्ध था | तरसुस में विभिन्न संस्कृति वाले लगभग 5 लाख लोग रहते थे | ऐसी परिस्थितियों में रहते हुए पौलुस ने इब्रानी भाषा के साथ ही साथ यूनानी भाषा भी सीखी | यह आरंभिक प्रशिक्षण उसे आगे चलकर गैर–यहूदियों के मध्य सुसमाचार के प्रभावकारी प्रचार के लिए काबिल बनायेगा | 

पौलुस का पिता एक धार्मिक व्यक्ति था—एक फरीसी [प्रेरितों के काम 23:6] | हमें उसकी माता के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है, परन्तु हमें बताया गया है कि उसकी एक बहन थी [प्रेरितों के काम 23:16] | पवित्रशास्त्र स्पष्ट रूप से नहीं बताता है कि कि पौलुस ने विवाह किया था कि नहीं | कुछ लोग कहते हैं कि आराधनालय में पौलुस की भूमिका को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उसने विवाह किया होगा और उसके मसीही बनने के समय उसकी पत्नी  की मृत्यु हो चुकी थी | 1 कुरिन्थियों 7:8 की भाषा-शैली संभवतः संकेत देती है कि पौलुस एक विधुर था | तथापि, इस दृष्टिकोण के प्रति हम आश्वस्त नहीं हो सकते हैं |   

पेशे से पौलुस एक तम्बू बनाने वाला था [अर्थात, पशुओं की खाल से तम्बू बनाने का काम करने वाला]—संभवतः यह उसने अपने पिता से सीखा था | चूंकि पौलुस एक यहूदी होने के साथ ही साथ एक रोमी नागरिक भी था [प्रेरितों के काम 22:27–28], इसलिए उसके सम्पूर्ण नाम में अवश्य ही तीन नाम सम्मिलित रहे होंगे, क्योंकि सभी रोमियों के सम्पूर्ण नाम में तीन नाम थे [उदाहरण के लिए, गयुस जूलियस सीज़र] | पहले दो नाम परिवार के सभी लोगों के लिए एक समान हुआ करता था और तीसरा नाम उस व्यक्ति का व्यक्तिगत नाम होता था | पौलुस की बात करें तो हमें उसके पहले दो नाम ज्ञात नहीं है | उसका नाम मूल रूप से लेटिन भाषा  [रोमियों की भाषा] में Paullus था; जिसे यूनानी भाषा में Paulos [Παλος], इंग्लिश भाषा में Paul और हिन्दी भाषा में पौलुस के रूप में लिप्यंतरित [transliterate] किया गया | पौलुस का यहूदी नाम शाऊल था, संभवतः यह नाम इस्राएल देश के प्रथम राजा शाऊल के नाम के आधार पर रखा गया था, जो पौलुस के समान ही बिन्यामीन के गोत्र का था [रोमियों 11:1] | 

पौलुस ने यहूदी धर्म की दृढ़ शिक्षा पाई थी, पहले अपने घर में और तत्पश्चात यरूशलेम में महान यहूदी शिक्षक गमलीएल के चरणों में | उसने स्वयं बताया कि, और अपने बहुत से जाति वालों से जो मेरी अवस्था के थे यहूदी मत में बढ़ता जाता था और अपने बापदादों के व्यवहारों में बहुत ही उत्तेजित था” [गलातियों 1:14] | पौलुस के लिए उसका धर्म शेष समस्त बातों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था | 

II. कलीसिया का सताव [प्रेरितों के काम 22:4–5अ]  

गमलीएल के साथ उसके आरंभिक वर्षों के पश्चात, पौलुस के बारे में अधिक जानकारी हमारे पास नहीं है | अगली बार जब हम उसे देखते हैं तो वह कलीसिया को सतानेवाले के रूप में दिखाई पड़ता है | वह मसीह के गवाह के रूप में शहीद होने वाले प्रथम मसीही शहीद स्तिफनुस की हत्या के समय उपस्थित था [प्रेरितों के काम 7:54–8:3] | उसने न केवल उन लोगों के कोट पकड़ रखे थे जो स्तिफनुस पर पथराव कर रहे थे, बल्कि उसने “उनके द्वारा उसे मारने की स्वीकृति भी दी” [प्रेरितों के काम  8:1] | पौलुस स्तिफनुस के हत्या के समय मासूम मूकदर्शक नहीं था–वह उस हत्या में एक अभिन्न भागीदार था | पौलुस के लिए तो यह समस्त मसीहियों को मिटा देने के उसके लक्ष्य का एक आरम्भ मात्र था | 

यहाँ से पौलुस एक ही उद्देश्य के साथ आगे बढ़ा : “कलीसिया का नाश कर दो” [प्रेरितों के काम 8:3] | “नाश करना”, शब्द का प्रयोग किसी दाख की बारी को उजाड़ते हुए जंगली सुअर या किसी प्राणी को फाड़ते हुए वनपशु को दर्शाने के लिए किया जाता था | पौलुस उसी उग्रता में मसीहियों पर आक्रमण कर रहा था जिस उग्रता के साथ कोई वनपशु अपने शिकार पर आक्रमण करता है | उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वे पुरुष थे कि स्त्री [प्रेरितों के काम 8:3]—उसके सताव में सबने बराबरी से तकलीफ़ झेली |

इन सबमें सबसे खतरनाक बात यह थी कि पौलुस यह सब परमेश्वर के नाम में कर रहा था | पौलुस और कुछ नहीं बल्कि एक धार्मिक आतंकवादी था! अपने द्वारा कलीसिया को सताए जाने का वर्णन स्वयं पौलुस ने ही एक से अधिक अवसर पर किया |  प्रेरितों के काम 26:10-11 में, हम उसके शब्दों को पढ़ते हैं, “10…बहुत से पवित्र लोगों को बन्दीगृह में डाला, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उन के विरोध में अपनी सम्मति देता था | 11 और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता था, यहां तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया, कि बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था |” धरती पर से मसीहियत को मिटा देना ही पौलुस का जूनून था | यरूशलेम और आसपास के शहरों ने उसके सतावों का सामना किया | अब दूरस्थ शहरों में सफाई करने की आवश्यकता थी |

III. दमिश्क के मार्ग पर [प्रेरितों के काम 22:5–11]

यहूदी अगुवों से मसीहियों को बंदी बनाकर ले आने संबंधी अधिकार–पत्र पाकर पौलुस दमिश्क की ओर बढ़ चला [प्रेरितों के काम 22:5ब] | दमिश्क, सीरिया प्रांत में यरूशलेम से 140 मील की दूरी पर स्थित था | उन दिनों में इस यात्रा के लिए लगभग सात दिन लगते थे और सामान्यतः लोग तपती धूप से बचने के लिए सुबह या शाम के ठण्डे समय में यात्रा करते थे | यह बात कि पौलुस दोपहर के समय मार्ग पर था [प्रेरितों के काम 22:6] इस बात को दिखाती है कि वह दमिश्क पहुँचने के लिए उतावला था | 

जब वह दोपहर के समय दमिश्क के निकट पहुँच रहा था, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग एक बड़ी ज्योति आकाश से उसके चारों ओर चमकी | और वह भूमि पर गिर पड़ा: और उसने यह शब्द सुना, ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है ? उसने उत्तर दिया, ‘ हे प्रभु, तू कौन है ?और उसे जवाब मिला,मैं यीशु नासरी हूँ, जिसे तू सताता है |’” [प्रेरितों के काम 22:6–8] | 

उस झटके की कल्पना करें—भूमि पर गिरा हुआ पौलुस और स्वयं प्रभु यीशु मसीह उसके सम्मुख! स्तिफनुस और अन्य मसीहियों ने एक सुर में यीशु के बारे में जो कुछ भी कहा था, वह सब सत्य था! वह परमेश्वर के विरोध में कार्य कर रहा था ! पौलुस के साथियों ने रोशनी तो देखी पर मसीह की आवाज को वे समझ नहीं पाए [प्रेरितों के काम 22:9] | भूमि पर गिरा हुआ पौलुस, मसीह में नई सृष्टि बना दिया गया | उद्धार से पहले दीनता आती है ! और छुटकारा प्राप्त आत्मा से पहली पुकार निकली, “हे प्रभु मैं क्या करूँ ?” [प्रेरितों के काम 22:10अ] | पौलुस के जीवन के ऊपर प्रभु यीशु मसीह का प्रभुत्व कभी भी पौलुस के लिए एक विवाद का विषय नहीं रहा | यह एक परम सत्य था ! आखिरकर, कोई व्यक्ति यीशु मसीह के प्रभुत्व के प्रति समर्पण किये बगैर मसीही कैसे बन सकता है ? [मरकुस 8:34–38; रोमियों 10:9] |

और प्रभु यीशु ने उसके प्रश्न का क्या जवाब दिया?  दमिश्क को जा, जहाँ आगे की बातें तुझे बताई जायेंगी [प्रेरितों के काम 22:10ब] | तेज प्रकाश के कारण अंधा हो जाने की वजह से उसे उसके साथी दमिश्क में ले गये [प्रेरितों के काम 22:11] | पौलुस ने अपने शिकार का पीछा करने वाले सिंह के समान दमिश्क जाने की योजना बनाई थी | परन्तु वास्तविकता में उसे एक नम्र भेड़ के समान दमिश्क में ले जाया गया! वह अंधा हो चुका था परन्तु सच्ची बात तो यह थी कि अब जाकर वह देखने लगा था | उसकी आत्मिक आँखें अंततः खुल गयी थीं! यदि पौलुस का जन्म जॉन न्यूटन के बाद हुआ होता तो वह अमेजिंग ग्रेस गीत के इन उत्तेजक शब्दों को गाता, “एक समय मैं खोया हुआ था, परन्तु अब मुझे ढूंढ लिया गया है, मैं अंधा था, परन्तु अब मैं देखता हूँ!” 

पौलुस का मन-परिवर्तन, हमारे अनुप्रयोग के लिए तीन सच्चाईयों को प्रगट करता है |

1. कोई भी व्यक्ति इतना बुरा नहीं होता है कि उसका उद्धार न किया जा सके 

1 तीमुथियुस 1:15–16 में पौलुस कहता है कि हालांकि वह “सबसे बड़ा” पापी था तौभी उस पर “दया” हुई ताकि यीशु मसीह उनके लिए उदाहरण के रूप में अपनी अपरिमित धीरज दिखाए जो लोग उस पर विश्वास करेंगे और अनन्त जीवन पायेंगे” | वह एक ऐसा मनुष्य था जिसने मसीह और उसके अनुयायियों के विरुद्ध अत्याधिक सक्रियता से कार्य किया था और तब भी उस पर दया हुई | 

क्या आप सोचते हैं कि आप इतने बुरे हैं कि आपका उद्धार नहीं हो सकता? स्मरण रखें, कोई भी पापी या पाप इतना बुरा नहीं है कि यीशु का लहू उसे क्षमा न कर सके! सच्चे पश्चाताप और विश्वास में होकर यीशु को पुकारें–वह आपको बचाएगा ! यीशु मसीह ने स्वयं यह प्रतिज्ञा की है: “जो कोई मेरे पास आएगा, उसे मैं कभी न निकालूंगा”  [यूहन्ना 6:37] |

और यदि आपने यह दया प्राप्त की है, तो विश्वास के साथ सुसमाचार का प्रचार करें—मसीह सब प्रकार के पापियों का उद्धार करता है | संभवतः, आपको लगता है कि आपका कोई करीबी सुसमाचार के प्रति प्रतिक्रिया नहीं दिखाता है—बारम्बार सुनाये जाने के बाद भी | प्रिय मित्र: हिम्मत नहीं हारना | उनके उद्धार के लिए प्रार्थना करते रहें | 

पत्थरवाह किए जाते समय भी स्तिफनुस ने हिम्मत नहीं हारी | आरंभिक कलीसियाई अगुवा ऑगस्टीन ने कहा कि कलीसिया स्तिफनुस का अत्याधिक ऋणी है क्योंकि यह संभवतः उसकी प्रार्थना थी जिसके परिणामस्वरूप पौलुस का उद्धार हुआ | बहुत वर्षों पूर्व जार्ज मूलर नामक परमेश्वर के एक महान जन थे, उन्होंने 50 वर्षों से भी अधिक समय तक अपने तीन मित्रों के लिए प्रार्थना किया | उनमें से दो जार्ज मूलर की मृत्यु से ठीक पहले मसीह में आ गए, और तीसरा उसकी मृत्यु के एक वर्ष पश्चात मसीह में आया | बाईबल के परमेश्वर पर, जिसमें लोगों के उद्धार करने की सामर्थ है, भरोसा रखना कभी न छोड़ना–सचमुच में, “परमेश्वर के लिए सब कुछ संभव है” [मत्ती 19:26] |  

2. भले कार्य और बाहरी नैतिकता किसी का उद्धार नहीं कर सकती है 

एक धार्मिक यहूदी होने के नाते पौलुस को दृढ़ निश्चय था कि उसके धार्मिक कार्य और बाह्य नैतिकता उतने पर्याप्त थे कि उसके लिए परमेश्वर की स्वीकार्यता को अर्जित कर सकें | परन्तु जब वह अपने आपे में आया तो वह समझ पाया कि सिद्ध धार्मिकता के परमेश्वर के मापदण्ड को मानवीय प्रयासों से पूरा नहीं किया जा सकता-क्योंकि इस पवित्र और सिद्ध परमेश्वर के विरुद्ध सबने पाप किया है [फिलिप्पियों 3:3–9] |  

यदि आप स्वर्ग जाने के लिए अपने भले कार्यों और बाह्य नैतिकता पर भरोसा रखते हैं तो यह समाचार आपके लिए है: परमेश्वर का मापदण्ड 100% सिद्धता की माँग करता है-इसका अर्थ है, एक भी पाप नहीं ! यह भी स्मरण रखें कि परमेश्वर की दृष्टि में केवल बुरे कार्य ही पाप नहीं है अपितु बुरे विचार भी | प्रभु यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा कि न केवल हत्या करना एक पाप है-परन्तु किसी से अपने मन में घृणा करना भी हत्या के ही समान है [मत्ती 5:21–22] | उन्होंने यह भी स्पष्टता से बताया कि न केवल व्यभिचार एक पाप है–परन्तु किसी के लिए मन में लालसा करना भी व्यभिचार के समान है [मत्ती 5:27–28] |

जब तक आप इन सच्चाईयों को स्पष्टता से न देख लें, तब तक आप अपने आपको एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखते रहेंगे जिससे घृणा नहीं किया जाना चाहिए बल्कि जिसकी उपासना की जानी चाहिए | प्रिय मित्र, भले कार्य कारण नहीं हैं, परमेश्वर के साथ अच्छे संबंध का | बल्कि, भले कार्य तो परिणाम हैं, यीशु के द्वारा परमेश्वर के साथ बने अच्छे संबंध के परिणाम |

3. आप परमेश्वर से लड़कर जीत नहीं सकते हैं 

एक और अवसर पर अपने मन परिवर्तन की कहानी बताते हुए पौलुस ने दमिश्क के मार्ग में अपने द्वारा सुने गए यीशु मसीह के कुछ अन्य बातों को भी बताया, “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है” [प्रेरितों के काम 26:14] | पैना एक प्रकार की नुकीली छड़ी होती थी जिससे बैल को चुभोकर कार्य करवाया जाता था | यदि बैल ने विरोध किया और वापस धक्का दिया तो पैने के नुकीले सिरे से बैल को चोट ही पहुँचेगी  | इस प्रकार, पैने पर लात मारना कहना एक प्रकार से यह कहना था कि कोई परमेश्वर के इच्छा के विरोध में लड़कर जीत नहीं सकता | परमेश्वर ने पौलुस को स्पष्ट रूप से और दृढ़ता से यह सच्चाई सिखा दी | 

इसी प्रकार से यदि आप परमेश्वर के विरुद्ध लड़ रहे हैं—तो आप अंततः हारेंगे | संभवतः आप अपने उद्धार के लिए केवल मसीह की ओर मुड़ने की आवश्यकता का प्रतिरोध कर रहे हैं | इस प्रक्रिया में आप केवल स्वयं को ही चोट पहुँचा रहे हैं | संभवतः आप एक मसीही हैं और जीवन के किसी क्षेत्र में आप परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पित होने के लिए अनिच्छुक हैं | हो सकता है कि आप किसी पाप को हठपूर्वक पकड़े हुए हों या किसी ऐसे अच्छे कार्य को करने के लिए अनिच्छुक हों जिसे वह आपसे करवाना चाहता है | बात चाहे जो भी हो, आप परमेश्वर से लड़कर नहीं जीत सकते | आप इस प्रक्रिया में स्वयं को और संभवतः दूसरों को भी चोट ही पहुँचा रहे हैं | लड़ना बंद करें और परमेश्वर के द्वारा दिए जाने वाले चुभन को सकारात्मक रूप से स्वीकार करके कार्य करने के लिए तैयार हो जायें |

समापन विचार 

आतंकवादी, एक मिशनरी बन गया | सतानेवाला व्यक्ति, प्रचारक बन गया! ऐसा होता है, परमेश्वर का कार्य! वह कठोर हृदयों को तोड़ देता है और उनके स्थान पर ऐसे कोमल और समर्पित हृदयों को देता है जो उसकी आज्ञा को मानते हैं | इसी पौलुस ने जो एक समय मसीहियों को मारता था बाद में कहा, “मेरे लिए जीवित रहना मसीह और मर जाना लाभ है” [फिलिप्पियों 1:21] | होने पाये कि यही दृष्टिकोण हमारा भी हो!    

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