अँधेरे स्थानों को तीव्र रोशनी चाहिए

(English version: Dark Places Need Bright Lights)
एक बार एक जवान लड़की ने अपने पासबान से कहा, “अब मुझसे नहीं हो पायेगा | जहाँ मैं काम करती हूँ, वहाँ मैं अकेली मसीही लड़की हूँ | तानों और तिरस्कार के अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं मिलता | यह सब मेरे बर्दाश्त से बाहर है | मैं इस्तीफा देने वाली हूँ |” तब पासबान ने उससे पूछा, “क्या तुम मुझे बताओगी, दीपक कहाँ रखा जाता है ?” उस जवान मसीही लड़की ने बड़ी रुखाई से पूछा, “इस प्रश्न का मेरी परिस्थिति से क्या लेना – देना?” पासबान ने कहा, “कोई बात नहीं, बस इतना बताओ, ‘दीपक कहाँ रखा जाता है?’” उसने उत्तर दिया, “अँधेरे स्थान में |” तब पासबान ने कहा, “बिल्कुल ठीक! परमेश्वर ने तुम्हें ऐसे स्थान में रखा है जहाँ अत्याधिक आत्मिक अंधेरा है और उसके लिए रोशनी देने के लिए कोई मसीही नहीं है |”
पहली बार, उस जवान मसीही लड़की ने उस अवसर को समझा जो उसे मिला था और उसने यह भी समझ लिया कि अपनी रोशनी को उस स्थान से दूर करके वह परमेश्वर को असफल नहीं कर सकती थी | वह नवीकृत संकल्प के साथ अपने काम में वापस गई, अपनी रोशनी को उस अँधेरे कोने में चमकाने के लिए | अंततः, वह नौ अन्य लड़कियों को यीशु मसीह की रोशनी में लाने का माध्यम बनी | यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उसने इस बात को समझा कि उसे उस अँधेरे स्थान में तीव्रता से रोशनी देने के लिए रखा गया था |
उस लड़की के ही समान, हम सब को यह समझना चाहिए कि हमें अपने चारों ओर के अँधेरे संसार में तीव्र रोशनी बनने के लिए बुलाया गया है | फिलिप्पियों 2:14 – 16 मसीहियों को जलता हुआ दीपक बताती है | जिस प्रकार सूर्य, चाँद और तारे इस अँधेरे विश्व को रोशन करते हैं, उसी प्रकार विश्वासियों को अपने चारों ओर रहने वाले लोगों के अंधकारमय ह्रदय में रोशनी लाना चाहिए |
जब प्रभु यीशु ने अपने चेलों को इस जगत की ज्योति कहा [मत्ती 5:14], तो उनका तात्पर्य था कि हम प्रकाश – परावर्तक हैं, न कि प्रकाश – उत्पादक | यीशु मसीह स्रोत – रूप हैं जहाँ से हमें प्रकाश मिलता है | यीशु मसीह ने स्वयं कहा, “जगत की ज्योति मैं हूँ ; जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पायेगा” [यूहन्ना 8:12] | यीशु मसीह के अनुयायी होने के नाते हमें उसके प्रकाश को इस अँधेरे संसार में परावर्तित करना है | हमें अँधेरे में चमकने वाले चन्द्रमा के समान हैं | यद्यपि चन्द्रमा प्रकाश देता है, तौभी यह उसका स्वयं का प्रकाश नहीं है – यह तो मात्र सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करता है | हम भी ऐसे ही हैं – प्रकाश परावर्तक |
परन्तु, हम अक्सर इन बुनियादी सच्चाईयों को स्मरण रखना भूल जाते हैं | हम यह समझना भूल जाते हैं कि सर्वाधिकारी परमेश्वर हमें एक नियत स्थान पर, एक समय – विशेष में उसके लिए रोशनी देने के प्राथमिक उद्देश्य के लिए रखता है | हमें विश्वासयोग्यता के साथ परमेश्वर प्रदत्त अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए और हमें उसे निराश नहीं करना चाहिए | फिलिप्पियों 2: 14 – 16 हमें उस महिमित उद्देश्य को पूरा करने में सहायता प्रदान करता है |
1. आज्ञा [पद 14].
“सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो |” जिस प्रकार से खिड़की स्वयं से होकर सूर्य के प्रकाश को होकर जाने देता है ताकि घर में रोशनी हो, उसी प्रकार हमें भी मसीह के प्रकाश को स्वयं से होकर जाने देना है | परन्तु जब कोई खिड़की धूल के कारण धुंधली हो जाती है तो यह प्रकाश को भली – भाँति चमकने से रोकती है | इसी प्रकार, मसीही भी अपने जीवन में पाप को राज्य करने की अनुमति देने के द्वारा मसीह के प्रकाश को स्वयं से होकर तीव्रता से चमकने से रोकते हैं | और एक विशेष पाप है जो एक विश्वासी को मसीह के लिए तीव्रता से चमकने से रोकती है – कुड़कुड़ाने और विवाद करने का पाप | इसीलिए आज्ञा दी गयी है कि, “सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो |” मूल भाषा में “सब काम” सबसे पहले लिखा है और “करो” शब्द वर्तमान काल में है | शाब्दिक अर्थ में लें तो यह कुछ इस प्रकार का अर्थ देगा: “सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के करते रहो|”
“कुड़कुड़ाना” शब्द शिकायत करना, बड़बड़ाना या गुप्त अप्रसन्नता के मनोभाव को दर्शाता है | परमेश्वर को अपमानित करने वाली किसी परिस्थिति के ऊपर अप्रसन्नता दिखाना कुड़कुड़ाना नहीं है | बल्कि, कुड़कुड़ाहट तो परिस्थितियों, लोगों और अंततः परमेश्वर के विरुद्ध रोष [नाराज़गी] का एक भाव है | और “विवाद” शब्द के मूल में एक यूनानी शब्द है, यह वही शब्द है, जिससे हमें इंग्लिश भाषा का “dialogue” शब्द मिलता है | यह हमारी परिस्थतियों के ऊपर चल रहे अंदरूनी तर्कों की ओर संकेत करता है | परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध निरंतर कुड़कुड़ाना, न केवल हमें परमेश्वर की इच्छा का पालन एक आज्ञाकारी ह्रदय के साथ करने से रोकता है [फिलिप्पियों 2: 12 – 13] बल्कि साथ ही साथ यह हमें अंततः स्वयं परमेश्वर के साथ विवाद करने और उसके विरुद्ध बलवा करने के लिए प्रेरित करेगा!
जब पौलुस कहता है, “मत कुड़कुड़ाओ” तो संभवतः जंगल की यात्रा में इस्राएलियों द्वारा आदतन कुड़कुड़ाने का मनोभाव उसके दिमाग में था [निर्गमन 14:10 – 12; 15:23 – 24; 16:2 – 3 ; गिनती 14:2] | मूसा ने उन्हें बताया कि अंतिम रूप से देखें तो उनका कुड़कुड़ाना उसके या अन्य अगुवों के विरुद्ध नहीं था, परन्तु प्रत्यक्षतः स्वयं परमेश्वर के विरुद्ध था, “तुम्हारा बुड़बुड़ाना हम पर नहीं यहोवा ही पर होता है” [निर्गमन 16:8] | उनके कुड़कुड़ाने के मनोभाव के प्रति परमेश्वर की प्रतिक्रिया क्या थी? क्रोध और न्याय! गिनती 11:1 में लिखा है, “यहोवा ने सुना, और उसका कोप भड़क उठा, और यहोवा की आग उनके मध्य जल उठी, और छावनी के एक किनारे से भस्म करने लगी|”
अतः, कुड़कुड़ाना परमेश्वर के नज़र में मात्र एक साधारण बात नहीं है | यह परमेश्वर को क्रोध दिलाता है और उसके न्याय का कारण बनता है | इसीलिए पौलुस मसीहियों को कुड़कुड़ाहट की प्रवृत्ति रखने के विरुद्ध चेतावनी देता है | वह कहता है, “और न तुम कुड़कुड़ाओ, जिस रीति से उन में से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करने वाले के द्वारा नाश किए गए” [1 कुरिन्थियों 10:10] |
कुड़कुड़ाना एक पाप है क्योंकि यह सीधे – सीधे परमेश्वर के सर्वाधिकार पर प्रहार करती है | स्वयं प्रभु यीशु ने एक दृष्टांत के द्वारा दर्शाया [मत्ती 20:1 – 16] कि कुड़कुड़ाना एक भले और अनुग्रहकारी परमेश्वर के विरुद्ध एक पाप है | कुड़कुड़ाहट कहता है कि जिस परिस्थिति से होकर मैं वर्तमान में गुजर रहा हूँ, परमेश्वर को मुझे उसमें से होकर नहीं गुजरने देना चाहिए था | इसीलिए हमें एक विनीत मन विकसित करने की आवश्यकता है – एक ऐसा मन जो समझे कि परमेश्वर ही पूर्ण नियंत्रण रखता है और वह सब कार्य अपनी इच्छा से करता है, और हमें उसका प्रतिरोध नहीं करना चाहिए |
2. आज्ञा का कारण [पद 15 – 16].
अगले दो आयतों में पौलुस विश्वासियों को कारण बताता है कि क्यों उन्हें हर काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के करना चाहिए, “15ताकि तुम निर्दोष और भोले होकर टेढ़े और हठीले लोगों के बीच परमेश्वर के निष्कलंक सन्तान बने रहो, [जिन के बीच में तुम जीवन का वचन लिए हुए जगत में जलते दीपकों की नाईं दिखाई देते हो] |” जब मसीही सब कामों को बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के करते हैं तो वे परमेश्वर के संतान के रूप में अपने अच्छे चरित्र को सिद्ध करते हैं – टेढ़े और हठीले लोगों के बीच चमकते हुए |
परमेश्वर ने अपने लोगों के लिए एक आदर्श स्थिति ठहराया है कि उनके चरित्र और चालचलन में बाह्य रूप में कुछ भी नकारात्मक न हो [“निर्दोष”] और आतंरिक रूप में भी कुछ नकारात्मक न हो [“शुद्ध”] | उनके जीवन में कोई भी गुप्त कार्यक्रम, गुप्त उद्देश्य एवं बोलना कुछ परन्तु उसका अर्थ कुछ और रखना, इत्यादि जैसी बातें नहीं होनी चाहिए | उनका जीवन बिल्कुल ही साफ़ – सुथरा जीवन होना चाहिए जो उनके चारों ओर के अविश्वासी संसार को मसीह की ओर खींचे | एक विश्वासी को परमेश्वर की ज्योति को स्वयं में और स्वयं के द्वारा चमकने की अनुमति देकर परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए और ऐसा वे करते हैं जब वे परमेश्वर के वचन को पकडे रहते हैं और उसे दूसरों को भी देते हैं!
समापन विचार.
विश्वासी होने के नाते हम हमारे चारों ओर के खोए हुए संसार को हियाव के साथ कह सकते हैं, “यीशु सभी समस्याओं का उत्तर है | वह मेरे साथ हर समय रहता है |” हम यह भी कह सकते हैं, “बाईबल का परमेश्वर, यहोवा – यिरे है अर्थात् ऐसा परमेश्वर जो सब उपाय करता है |” परन्तु यदि हम इन सच्चाईयों पर सही में पूरे मन से विश्वास करते हैं तो फिर हम निरंतर कुड़कुड़ाते क्यों रहते हैं, “मैं इस स्थिति में क्यों हूँ ? मैं इस स्थान में क्यों हूँ ? मैं इस नौकरी में क्यों हूँ? मैं धनवान क्यों नहीं बन रहा हूँ ? मैं इस परिवार में क्यों हूँ? मैं अभी तक अविवाहित क्यों हूँ ? मैं शादीशुदा क्यों हूँ ? मैं इस कलीसिया में क्यों हूँ? क्यों? क्यों? क्यों?”
ऐसा लगता है कि हमने संसार की विचारधारा का आलिंगन कर लिया है और शिकायत करने की आदत को अपने जीवन जीने के “सामान्य” तरीके के एक भाग के रूप में “अपना” लिया है | एक सांसारिक व्यक्ति कहता है, “मुझे अपनी भड़ास निकालने की आवश्यकता है | यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा, तो फट जाऊँगा |” परन्तु हम मसीही अपनी शिकायत को “मसीही रंग” देने का प्रयास करते हैं और कहते हैं, “चूंकि परमेश्वर मेरा पिता है, इसलिए मैं जो चाहता हूँ कह सकता हूँ | मैं अपनी बातों को खुलकर रख सकता हूँ |” यदि हमारी सोच ऐसी है, तो फिर हमें वापस जाना चाहिए और गिनती 11:1 तथा 1 कुरिन्थियों 10:10 को पुनः पढ़ना चाहिए!
हो सकता है कुछ लोग प्रगट रूप से शिकायत न करें क्योंकि ऐसा करना “मसीही” नहीं लगता है; परन्तु वे अन्दर से अपने जीवन की परिस्थितियों के प्रति रोष दिखाते रहते हैं | यह समान रूप से ही बुरी बात है – क्योंकि, परमेश्वर के लिए केवल वे बातें ही मायने नहीं रखती हैं जो हम कहते हैं परन्तु वे बातें भी मायने रखती हैं, जो हम सोचते हैं!
एक छोटे लड़के को उसके पिता ने बार – बार बैठने के लिए कहा | अंततः, पिता ने कहा कि यदि वह उनका कहना नहीं मानेगा तो उसे शारीरक दण्ड मिलेगा | लड़का बैठ गया | परन्तु उसने कहा, “मैं बाह्य रूप में ही बैठा हुआ हूँ , अन्दर से तो मैं खड़ा हुआ ही हूँ |”
जब परमेश्वर की इच्छा के प्रति समर्पणता की बात आये तो हमें इस छोटे लड़के के समान नहीं होना चाहिए | हमारे दैनिक जीवन के प्रत्येक चरण में परमेश्वर की इच्छा के प्रति हमारी आज्ञाकारिता स्वैच्छिक और पूरे मन से होनी चाहिए | ऐसी आज्ञाकारिता तो केवल ऐसे ह्रदय से निकल सकती है जो उसके प्रति सम्पूर्णतः समर्पित है |
विश्वासियों को यह बात भी अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि जब हम शिकायत करते हैं, तो हममें और उन अविश्वासियों में क्या भिन्नता रह जाती है, जिनमें कुड़कुड़ाने वाली आत्मा है? यदि हम लगातार कुड़कुड़ाते रहेंगे तो फिर चमकेंगे कैसे? स्मरण रखें, कुड़कुड़ाना और चमकना एक साथ नहीं हो सकता! यदि चमकना आरम्भ होना है तो कुड़कुड़ाना समाप्त होना चाहिए | ऐसा नहीं हो सकता कि कोई व्यक्ति कुड़कुड़ाते रहे और उसी समय मसीह को महिमान्वित करे और दूसरे लोगों को उसकी ओर आकर्षित करे |
इसलिए, आईए एक ऐसे ह्रदय को विकसित करना सीखें जो इस आज्ञा के प्रति आज्ञाकारिता दिखाए: “हर बात में धन्यवाद करो ; क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है” [1 थिस्सलुनीकियों 5:18] | जब हम फिलिप्पियों 2:14 [“सब काम बिना कुड़कुड़ाए और बिना विवाद के किया करो” ] और 1 थिस्सलुनीकियों 5:18 को मिला देते हैं, तो हम देखते हैं कि परमेश्वर अपने संतानों से चाहता है कि वे यह दृष्टिकोण रखें: किसी भी परिस्थिति में, शिकायत मत करो, परन्तु कृतज्ञ [धन्यवादित] बनो!
संभवतः, हमारा प्रकाश इसलिए तीव्रता से नहीं चमक रहा क्योंकि हमारे जीवन में शिकायत करने की आदत है | आप किसी ऐसे लाईट – हॉऊस की कल्पना नहीं कर सकते हैं जो किसी एकांत किनारे में अकेला खडा कर दिए जाने के कारण शिकायत करे | यदि वह बोल पाता, तो वह अपने आपको सांत्वना देता और कहता, “मैं यहाँ प्रकाश देने के लिए हूँ ताकि अन्धकार, तूफ़ान और आंधियों से जूझते जहाज सुरक्षित बंदरगाह तक पहुँच सकें |” इसी प्रकार, मुझे और आपको हमारे जीवन की परिस्थितियों के बारे में विवाद या शिकायत नहीं करनी चाहिए, परन्तु उसकी संतान होने के नाते हमें हर समय उसकी इच्छा के प्रति सहर्ष समर्पित होना चाहिए | हमें सुसमाचारीय प्रकाश बनने के लिए बुलाया गया है ताकि क्लेश में पड़ी आत्मायें प्रभु यीशु के द्वारा शांति और विश्राम पा सकें | उसने हम पर जो भरोसा दिखाया है हम उस भरोसे को न तोड़ें | आप और मैं ज्योति हैं – छोटे या बड़े | हममें से कुछ माचिस के समान हैं और दूसरे लोग मशाल के समान | परन्तु, इस बात को स्मरण रखें कि माचिस मशाल को जलाती है | संभव है कि हम सब मशाल न हों परन्तु हम सब निश्चित रूप से माचिस तो हैं | हमारा परमेश्वर अपने सबसे कमजोर संतान से भी अपनी इच्छा पूरी करवाने के कार्य में लगा हुआ है |
अटलांटिक महासागर में यात्रा कर रहे एक यात्री के बारे में एक कहानी है | यह यात्री समुद्री तूफान के दौरान अपने बिस्तर पर मरणासन्न अवस्था में बीमार पड़ा हुआ था – समुद्री यात्रा के कारण बीमार | बाहर से किसी की आवाज सुनाई दी, “बचाओ” | परेशानी की बात यह थी कि जहाज में सवार लोग इस मनुष्य को नहीं देख पा रहे थे | संकट में पड़े उस व्यक्ति की सहायता कर पाने में अक्षम इस बीमार व्यक्ति ने प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, उस दीन जन की सहायता कर | मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता |” फिर उसने सोचा कि वह कम से कम जहाज की खिड़की के बगल में अपनी लालटेन रख सकता है , वह बिल्कुल भी आश्वस्त नहीं था कि उसके इस कार्य से कोई फर्क पड़ेगा कि नहीं |
उस डूबते हुए मनुष्य को बचा लिया गया | अगले दिन जब उस मनुष्य ने लोगों को अपना अनुभव बताया, तो उसने कहा, “मैं अँधेरे में डूबे जा रहा था और तभी किसी ने खिड़की के पास रोशनी की | रोशनी मेरे हाथ पर पड़ी, और लाईफबोट में सवार एक नाविक ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अन्दर खींच लिया |”
प्रिय मसीही साथियों, थोड़ा भी बहुत होता है, यदि परमेश्वर साथ है | हमारे पास जो थोड़ी सी सामर्थ है, उस पूरी सामर्थ में होकर काम न करने के लिए कमजोरी कोई बहाना नहीं है | कोई नहीं जानता कि परमेश्वर हमारा इस्तेमाल किस प्रकार से करेगा? यदि हम चमकने के लिए इच्छुक हैं तो वह पाप के खतरों से बचने में लोगों की सहायता करने में हमारा इस्तेमाल करेगा | यह सच है कि इस अँधेरे संसार में मसीह के लिए चमकाना हमेशा आसान नहीं होता है; तौभी, परमेश्वर ने सर्वोत्तम संभावित समाचार को इस सम्पूर्ण संसार में हमको सौंपा है – ऐसा समाचार जिसकी प्रत्येक मनुष्य को नितांत आवश्यकता है: प्रभु यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा पापों की क्षमा के बारे में बताने वाला सुसमाचार!
यीशु के लिए चमकने का क्या ही सौभाग्य! उसके लिए इस्तेमाल होने का क्या ही आनंद! तौभी स्मरण रखें, चमकने के लिए जलना पड़ता है | मोमबत्ती जब रोशनी देती है तो उसका मोम पिघल जाता है | जब एक बल्ब लगातार रोशनी देता है तो बल्ब की जिन्दगी कम हो जाती है | दूसरे शब्दों में कहें तो, मसीही जीवन का एक बलिदानिक पहलू है | यदि हम चाहते हैं कि परमेश्वर के द्वारा हमारा इस्तेमाल हो, तो हमें हमारे पापों, व्यक्तिगत उद्देश्यों, धन, समय इत्यादि को त्यागने के लिए इच्छुक रहना होगा | कई मसीही नहीं चमक रहे हैं क्योंकि उन्होंने मसीही जीवन के बारे में इस बुनियादी और अनिवार्य सिद्धांत को नहीं समझा – जलोगे नहीं, तो चमकोगे नहीं!
विश्वासी होने के नाते क्या हमें आवश्यकता पड़ने पर यीशु के लिए अपने प्राण देने से हिचकिचाना चाहिए, उस यीशु के लिए जो हमारे पापों के बदले क्रूस पर अपना प्राण देने से नहीं हिचका? नहीं, ऐसे विचार के बारे में तो विचार भी नहीं किया जाना चाहिए! हमें हमेशा कहना चाहिए, “हे प्रभु, आप इस योग्य हैं कि आपको सर्वस्व समर्पित किया जाए | क्या इस समय मैं जहाँ हूँ, वहाँ आप मुझे स्वीकार करेंगे और मेरा इस्तेमाल करेंगे? कृपया, प्रत्येक कदम पर मेरी अगुवाई और मेरा मार्गदर्शन करें | मैं आपके लिए जीने चाहता हूँ और चाहता हूँ कि आपका प्रकाश मुझसे होकर चमके – यहीं और अभी |”