रूपांतरित जीवन भाग 4—निष्कपट [सच्चा] प्रेम के 3 गुण

Posted byHindi Editor May 14, 2024 Comments:0

(English version: “The Transformed Life–3 Characteristics of Sincere Love”)

उबुन्तु [Ubuntu] नामक एक open source लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम है | Open source का अर्थ है कि यह अपने यूज़र्स को इस साफ़्टवेयर का प्रयोग करने और उसमें आवश्यक परिवर्तन और सुधार करने के लिए Source Code को उपलब्ध कराता है | उबुन्तु [Ubuntu] नाम का अर्थ अत्याधिक रोमांचक है |

एक मानवशास्त्री [anthropologist], कुछ अफ्रीकी आदिवासी बच्चों को एक खेल सिखाना चाहता था | उसने एक पेड़ के पास मिठाई और चॉकलेट से भरी एक टोकरी रखी | फिर उसने उन्हें उस टोकरी से 100 मीटर दूर खड़ा कर दिया | उसके बाद उसने घोषणा किया कि जो भी बच्चा सबसे पहले टोकरी तक पहुँचेगा, सारी मिठाईयाँ और चॉकलेट उसकी हो जायेंगी |

जब उसने कहा, “रेडी, स्टेडी एंड गो”,तो क्या आप जानते हैं, उन छोटे बच्चों ने क्या किया? उन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और उस पेड़ की तरफ़ एक साथ दौड़ पड़े, उन्होंने मिठाईयाँ आपस में बाँट ली, सबने मिठाईयाँ खाईं और आनंद किया | जब उस मानवशास्त्री [anthropologist] ने पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो उन्होंने कहा, “उबुन्तु [Ubuntu]”, जिसका अर्थ है, “जब बाकी सभी लोग दुखी हों, तो कोई खुश कैसे रह सकता है?” उनकी भाषा में “उबुन्तु [Ubuntu]”, का अर्थ है, “मैं हूँ, क्योंकि हम हैं!”

यह है, प्रेम! अपने लिए नहीं, परन्तु दूसरों के लिए | बाईबल लगातार इस प्रकार के प्रेम के लिए जोर देती है | प्रेम का यह विषय इतना महत्वपूर्ण है कि अपनी मृत्यु से पूर्व यूहन्ना 13:34-35 में ऊपरी कोठरी में दिए गए अपने सन्देश में, प्रभु यीशु ने एक दूसरे से प्रेम करने के ऊपर जोर दिया, 34 मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो | 35 यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो |” हमारे प्रति यीशु मसीह का प्रेम सच्चा प्रेम था | यह मुखौटा—रहित प्रेम था! और हमें दूसरे विश्वासियों से इसी प्रकार से ही प्रेम करना चाहिए! साथ ही, दूसरों से प्रेम करना, इस बात का प्रमाण है कि हम सचमुच में यीशु मसीह के चेले हैं! 

यीशु मसीह इस बात को भली—भाँती सिखाना चाहते थे कि हमारा जीवन एक दूसरे के प्रति प्रेम से नियंत्रित हो—विशेष रूप से संगी विश्वासियों के प्रति प्रेम से नियंत्रित [यूहन्ना 15:12, 17] | परमेश्वर की दया से उद्धार पाने के परिणामस्वरूप रूपांतरित जीवन जीने [रोमियों 12:1-2] के विषय पर अपनी चर्चा को जारी रखते हुए प्रेरित पौलुस रोमियों 12:9-10 में इसी विषय पर [प्रेम] बात करता है |  

पद 3-8 में आत्मिक वरदानों के बारे में चर्चा करने के तुरंत पश्चात, पौलुस प्रेम के विषय की ओर जाता है | मैं समझता हूँ कि यह वास्तव में एक सही कदम है | पवित्र आत्मा आत्मिक वरदान इसलिए देता है ताकि हम प्रेम के भाव में होकर दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए कार्य करें | एक अन्य स्थान पर पौलुस लिखता है कि यदि प्रेम नहीं है, तो फिर परमेश्वर की दृष्टि में सर्वोत्तम आत्मिक वरदानों का भी कोई मूल्य नहीं है [1 कुरिन्थियों 13:1-3] | 

इस बात पर ध्यान दीजिए कि पौलुस पद 9 को किस प्रकार से आरम्भ करता है | वह कहता है, “प्रेम निष्कपट [sincere] हो |” “निष्कपट [sincere]”, शब्द की उत्पति जिस मूल शब्द से हुई है, उसका अर्थ है, “कोई मुखौटा नहीं [No Mask]” | इस शब्द का इस्तेमाल लोगों के भिन्न—भिन्न अभिव्यक्तियों को प्रगट करने के लिए भिन्न—भिन्न मुखौटों को पहनने वाले रंगमंच के कलाकारों के लिए किया जाता था | अपनी भूमिका के अनुसार, कलाकार को आनंद की भावना को अभिव्यक्त करने के लिए, मुस्कराहट वाला मुखौटा पहनना पड़ता था; और दुःख की भावना, दुःख वाले मुखौटे की माँग करता था | कलाकार उस भावना को महसूस नहीं करता था, जिस भावना का प्रदर्शन वह मुखौटा करता था | वह तो मात्र बाह्य रूप में ही एक भूमिका का निर्वाह करता था |

परन्तु, दूसरों के प्रति हमारे प्रेम के संबंध में बात करते हुए पौलुस कहता है कि ऐसा नहीं हो सकता है कि प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए हम बस प्रेम का मुखौटा लगा लें | हमें सच्चे मन से प्रेम करना चाहिए! आपने देखा, प्रेम और ढोंग साथ—साथ नहीं चल सकते हैं | ये दोनों विपरीत बातें हैं | जिस तरह यहूदा ने यीशु मसीह को झूठे प्रेम का चुम्बन दिया, उसी तरह का व्यवहार ढोंगी मसीही अक्सर दिखाते हैं | एक लेखक ने इन चुभते शब्दों को लिखा है: 

“इस बात को बताना कठिन है कि लगभग सभी मनुष्य, उस प्रेम का ढोंग करने में कितने प्रवीण हैं, जो उनमें है ही नहीं | जब वे अपने आपको समझाते हैं कि उनमें उन लोगों के लिए एक सच्चा प्रेम है, जिनकी न केवल वे अनदेखी करते हैं बल्कि सच कहें तो जिनका वे तिरस्कार करते हैं, तो वे न केवल दूसरों को धोखा देते हैं, वरन साथ ही साथ स्वयं को भी धोखा देते हैं |”

फरीसी मुखौटा पहनने में पारंगत थे और ऐसा करके वे दुनिया को यह दिखाते थे कि वे कितने धर्मनिष्ठ थे | परन्तु, वास्तविकता में, वे अन्दर से दुष्ट थे | इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यीशु मसीह ने उन्हें कपटी कहा और उनके धर्म का उसने तिरस्कार किया | यीशु मसीह हृदय से प्रेम या फिर उस प्रेम की माँग करते हैं, जिस प्रकार के प्रेम के बारे में पौलुस ने कहा, “बिना मुखौटा लगाए हुए प्रेम करो!”

पौलुस फिर बताता है कि इस निष्कपट प्रेम में तीन गुण होने चाहिए |

गुण # 1. निष्कपट प्रेम में अवश्य ही होना चाहिए: पवित्रता 

भलाई से प्रेम करने की आज्ञा देने के पश्चात पौलुस रोमियों 12:9 के दूसरे भाग में “बुराई से घृणा” करने की बात कहता है | यह थोड़ा कठिन जान पड़ता है कि हमें एक ही साथ प्रेम करने और घृणा करने के लिए कहा गया है | परन्तु, प्रेम के संबंध में बाईबल की ठीक यही शिक्षा है | हमें प्रेम करने में विवेकपूर्ण रहना है—इससे इस बात का पता चलता है कि प्रेम, मन की भावुक भावनायें मात्र नहीं है | इसे विवेक के साथ अभ्यास में लाना है | वही परमेश्वर जो प्रेम है, बुराई से घृणा भी करता है | और हमें उसी पथ पर चलना है | 

प्राचीन मेथोडिस्ट पासबानों की पहचान ऐसे लोगों के रूप में थी जो किसी और बात से नहीं परन्तु केवल पाप से घृणा करते थे | वे भजनकार की सलाह को गंभीरता से लेते थे, “हे यहोवा के प्रेमियों, बुराई से घृणा करो” [भजनसंहिता 97:10] और भविष्यद्वक्ता आमोस की सलाह को भी, जिसने अपने श्रोताओं से निवेदन किया था, “बुराई से बैर और भलाई से प्रीति रखो” [आमोस 5:15] |

पौलुस ने जिस “घृणा” शब्द का इस्तेमाल किया है, वह शब्द अत्याधिक सामर्थी शब्द है | यह मूल यूनानी नया नियम में केवल एक बार ही आता है और एक यूनानी शब्दकोश [Greek Lexicon] के अनुसार, इसमें यह विचार सम्मिलित है, “घृणा की भावना के साथ पीछे हटना, अत्याधिक घृणा करना |” इसमें घोर नापसंदगी का विचार सम्मिलित है | बाईबल जिसे बुराई कहती है, हमें उससे घृणा करनी है | हमें न केवल बुराई से बचने के लिए कहा गया है, बल्कि बुराई से घृणा करने, घिन खाने और बुराई को तुच्छ जानने के लिए कहा गया है! यदि हम बुराई से घृणा नहीं कर सकते, तो फिर हम भलाई से प्रेम नहीं कर सकते |   

यही नहीं बल्कि, वह घृणा हमें बुराई से भागने के लिए प्रेरित करनी चाहिए और साथ ही साथ यह हमें प्रेरित करनी चाहिए कि यदि हम अपने संगी विश्वासियों को बुराई करते हुए देखें तो प्रेम में होकर उनसे निवेदन करें कि वे बुराई से दूर हो जायें | किसी संगी मसीही को जो बात चोट पहुँचायेगी, उस बात से घृणा किए बगैर हम नहीं कह सकते कि हम सच में उस संगी मसीही से प्रेम करते हैं | सच्चा प्रेम उनकी रक्षा का प्रयास करेगा | हम प्रेम में होकर उन्हें पाप के खतरों के प्रति चेतावनी देंगे और उनसे आग्रह करेंगे कि वे उस पाप [उन पापों] को छोड़ दें—फिर चाहे चेतावनी देने की हमें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े! 

पौलुस हमें केवल यह कहकर रुक नहीं जाता है कि बुराई से घृणा करो बल्कि वह हमें कुछ सकारात्मक बात का पीछा करने के लिए भी कहता है, “भलाई करने में लगे रहो |” “लगे रहो”, शब्द में, गोंद से चिपकाए जाने या वेल्डिंग किए जाने का विचार निहित है | हमें भलाई से उसी तरह से चिपके रहना है, जैसा कि बाईबल में बताया गया है [फिलिप्पियों 4:8], न कि अपनी परिभाषा अनुसार | प्रायोगिक रूप से बात करें तो, सच्चा [निष्कपट] प्रेम हमें हमारे जीवन में भलाई करने में लगे रहने के लिए प्रेरित करेगा और यह हमें दूसरे विश्वासियों को भी प्रोत्साहित करने के लिए प्रेरित करेगा कि वे भलाई करने में लगे रहें | वही परमेश्वर जो धार्मिकता से प्रेम रखता है, बुराई से घृणा भी करता है | चूँकि हमें कहा गया है कि हम दूसरों के प्रति अपने प्रेम में परमेश्वर का अनुकरण करें, इसीलिए हमें भी उस बात से घृणा करनी है, जिससे परमेश्वर घृणा करता है; और उस बात से प्रेम करना है, जिससे परमेश्वर प्रेम करता है | अतः, हमें इसका अनुकरण हृदय में और अपने जीवन में करना चाहिए तथा दूसरे विश्वासियों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए | 

अतः, निष्कपट [सच्चा] प्रेम का प्रथम गुण यह है कि, यह एक पवित्र प्रेम है | फिर पौलुस निष्कपट [सच्चा] प्रेम के दूसरे गुण को बताता है |

गुण # 2. निष्कपट प्रेम में अवश्य ही होना चाहिए: पारिवारिक स्नेह 

रोमियों 12:10 में लिखा है, “भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे से स्नेह रखो |” “भाईचारा”, शब्द रिश्तेदारों के लिए प्रेम और मित्रों के मध्य प्रेम को दर्शाता है | एक दूसरे के मध्य मृदु पारिवारिक—स्नेह | कलीसिया एक परिवार है, और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हमें कलीसिया के प्रति उसी प्रेम का प्रदर्शन करने के लिए कहा गया है, जिस प्रेम से हम उन्हें प्रेम करते हैं जो हमारे माँस और लहू हैं | जब कोई अपने परिवार के सदस्यों की गलतियों की अनदेखी करता है, तो अक्सर कहा जाता है, “लहू, पानी से गाढ़ा होता है |”

ठीक इसी प्रकार से, हम सब अपने पृष्ठभूमि के परे मसीह के बहाये गये लहू के कारण परमेश्वर के परिवार में हैं | हम उसमें जोड़े गए हैं और अब परमेश्वर के परिवार के अंग हैं | हमें “परमेश्वर का घराना” कहा गया है [1 तीमुथियुस 3:15] | इसलिए, हमें अवश्य ही एक दूसरे के प्रति पारिवारिक स्नेह दिखाना चाहिए | यही है निष्कपट [सच्चा] प्रेम का द्वितीय गुण |  

अत: पारिवारिक स्नेह सच्चे प्रेम की दूसरी गुण है।

गुण # 3. निष्कपट प्रेम में अवश्य ही होना चाहिए: दीनता 

रोमियों 12:10 के अंतिम भाग में लिखा है, “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो” | जब हम एक दूसरे से भाईचारे का प्रेम रखेंगे, तो हम स्वाभाविक रूप से दूसरों को स्वयं से बढ़कर आदर देने का प्रयास करेंगे | स्वयं के लिए आदर चाहने के स्थान पर, हमें दूसरों को सम्मान देने के लिए कहा गया है | व्यक्तिगत सम्मान पाने के लिए कतार में खड़े न हों—बल्कि दूसरों के सम्मान को बढ़ावा देने के लिए कतार में खड़े हों | यही है हमारी बुलाहट—दीनता के मन में होकर प्रेम करना | 

बाईबल के एक अन्य स्थान में भी पौलुस इसी बात को कहता है: 3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो | 4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे” [फिलिप्पियों 2:3-4] | ऐसा क्यों करें? क्योंकि यह ठीक वही कार्य है, जो यीशु मसीह ने किया [फिलिप्पियों 2:5-8]! और हमें अपने दैनिक क्रियाकलापों में अपने प्रभु का अनुकरण करना है!

छोटी सी छोटी बातों में भी हमें दूसरों की आवश्यकताओं को पहले रखने के लिए कहा गया है | हमें दूसरों को ऊँचा उठाने में प्रसन्न और स्वयं गुमनाम रह जाने में संतुष्ट रहना चाहिए | तो ऐसा दिखता है, एक दीन हृदय से निकला हुआ निष्कपट [सच्चा] प्रेम! पीछे की कतार में बैठने के लिए सदैव इच्छुक! कल्पना करें, क्या होगा यदि एक दीन हृदय से उमड़ने वाले प्रेम के कारण पति—पत्नी, पालकगण—बच्चे, और कलीसिया के सदस्य एक दूसरे को ऊँचा उठाने के लिए संघर्ष करें! और कल्पना करें, कि जब हमारे प्रेम में दीनता होगी तो मसीह कितना महिमा पायेगा! 

समापन विचार |

तो हमने देख लिया—निष्कपट [सच्चा] प्रेम में पवित्रता, पारिवारिक स्नेह और दीनता होनी चाहिए | ये मात्र सुझाव नहीं हैं | बल्कि, ये तो आज्ञायें हैं, जिन्हें गंभीरता से लेना है | प्रेम की कमी के गंभीर परिणाम होते हैं, जैसा कि यूहन्ना ने, जिसे बहुधा प्रेम का प्रेरित कहा जाता है, 1 यूहन्ना 2:9-11 में बताया है, 9 जो कोई यह कहता है, कि मैं ज्योति में हूँ, और अपने भाई से बैर रखता है, वह अब तक अन्धकार ही में है | 10 जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है, वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता | 11 पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अन्धकार में है, और अन्धकार में चलता है; और नहीं जानता, कि कहाँ जाता है, क्योंकि अन्धकार ने उस की आँखें अन्धी कर दी हैं | एक दूसरे के प्रति प्रेम की तुलना, यूहन्ना सच्चे उद्धार के प्रमाण के रूप में करता है | [1 यूहन्ना 3:10 और 1 यूहन्ना 3:16-18 भी देखिए] | 

फिर हम कैसे एक निष्कपट [सच्चा] प्रेम वाला जीवन जी सकते हैं? यहाँ 4 सुझाव दिए गए हैं |

1. विचार करना | हमें क्रूस पर और हमारे कई पापों के बावजूद हम पर जितनी दया हुई है, उन दयाओं पर, लगातार विचार करते रहना चाहिए [रोमियों 12:1] | 

2. निर्भरता | हमें पवित्र आत्मा पर निरंतर निर्भर रहना चाहिए, केवल पवित्र आत्मा ही हमें दूसरों से प्रेम करने के लिए रूपांतरित कर सकता है [रोमियों 12:2] |

3. ध्यान—मनन | हमें 1 कुरिन्थियों 13:4-7, जैसे बाईबल भागों पर लगातार ध्यान—मनन करना चाहिए, जो हमें बाईबल आधारित प्रेम के गुणों को स्मरण कराते हैं और स्मरण कराते हैं कि हम पवित्र आत्मा पर भरोसा रखें कि वह परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल करके हमें परिवर्तित करेगा |

4. कार्य | जब भी अवसर मिले हमें अपनी भावनाओं पर निर्भर न रहते हुए दूसरों के साथ भलाई करते रहना चाहिए  [लूका 6:27-31] | 

मैं समझता हूँ कि हम प्रेम करने के कारण मिलने वाले संभावित दर्द [दुःख] को देखते हुए, दूसरों से प्रेम करने से डरते हैं | हो सकता है कि, हमारे पुराने अनुभवों के कारण हमें डर लगता हो और इसलिए हम पीछे हट जाते हैं | परन्तु जो लोग परमेश्वर की दया से नया जन्म पाने के परिणामस्वरूप स्वर्ग के लिए नियुक्त हैं, वे लोग पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर, एक दूसरे को प्रेम करने के अभिलाषी रहेंगे | उनकी सोच भी उन अफ्रीकी बच्चों के समान होगी, जिन्होंने कहा, “उबुन्तु [Ubuntu]”—मैं हूँ, क्योंकि हम हैं!

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