रूपांतरित जीवन भाग 10—पहुनाई करें

(English version: “The Transformed Life – Pursue Hospitality”)
रोमियों 12:13 का द्वितीय भाग हमें “पहुनाई करने में लगे रहने” की आज्ञा देता है | मूल यूनानी भाषा में “पहुनाई” के लिए जिस शब्द का इस्तेमाल हुआ है, वह दो शब्दों से मिलकर बना है, पहले शब्द का अर्थ है, “प्रेम” और दूसरे शब्द का अर्थ है, “अपरिचित व्यक्ति या विदेशी |” एक साथ मिलाकर देखें तो इसका अर्थ होगा, “अपरिचित व्यक्तियों के प्रति प्रेम दिखाना |” “लगे रहो” शब्द का बेहतर अनुवाद होगा, “उत्सुकता से पीछा करना |” जब हम इन दोनों शब्दों को मिला देते हैं, तो हमें अपरिचित व्यक्तियों के प्रति उत्सुकता के साथ प्रेम दिखाने का विचार प्राप्त होता है—एक ऐसा प्रेम जो अक्सर उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने और उनको सुरक्षा देने हेतु अपने घर के दरवाजों को उनके लिए खोलने के द्वारा दिखाया जाता है | पौलुस के अनुसार, यही उस मसीही की जीवनशैली होनी चाहिए, जिसे पवित्र आत्मा द्वारा, रूपांतरित किया जा रहा है, ताकि वह और अधिक मसीह के समान बनता जाये |
पवित्रशास्त्र में हमें पहुनाई करने के कई उदाहरण मिल जायेंगे | मनुष्य रूप में आये हुए स्वर्गदूतों को इब्राहीम ने अपने तम्बू में आमंत्रित किया और उन्हें भोजन कराया [उत्पत्ति 18:1-8] | लूत ने भी यही किया [उत्पत्ति 19:1-11] | अपनी खराई के संबंध में तर्क देते समय अय्यूब ने अपने मित्रों से ये शब्द कहे, “परदेशी को सड़क पर टिकना न पड़ता था; मैं बटोही के लिये अपना द्वार खुला रखता था” [अय्यूब 31:32] |
आप देखेंगे कि पहुनाई करना एक ऐसी आज्ञा है जिसे परमेश्वर ने अपने लोगों को पुराने नियम में ही उस समय दे दिया था, जब वे लोग प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने की तैयारी कर रहे थे, “तुम भी परदेशियों से प्रेम भाव रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे” [व्यवस्थाविवरण 10:19] | ऐसा क्यों ? क्योंकि स्वयं परमेश्वर, “परदेशियों से ऐसा प्रेम करता है कि उन्हें भोजन और वस्त्र देता है” [व्यवस्थाविवरण 10:18] |
जब हम नया नियम में आते हैं, तो हम पाते हैं कि पहुनाई में लगे रहने की आज्ञा में कोई परिवर्तन नहीं आया है | हमें अपरिचित व्यक्तियों और विदेशियों के प्रति प्रेम दिखाना है और उनका देखभाल करना है | वास्तव में परमेश्वर इस गुण को इतनी गंभीरता से लेता है कि कलीसिया में पासबान या अगुवा बनने के लिए आवश्यक गुणों में से एक गुण “पहुनाई करना” है, “सो चाहिए, कि अध्यक्ष…पहुनाई करने वाला…हो।” [1 तीमुथियुस 3:2; तीतुस 1:8 भी देखें] | दूसरे शब्दों में कहें तो परमेश्वर चाहता है कि यह गुण सीधे उच्च पद से आरम्भ हो!
यहाँ तक कि विधवाओं का नाम भी सहायता सूची में तभी जोड़ा जाना था यदि उन्होंने अन्य गुणों के साथ पहुनाई करने के गुण को भी दर्शाया हो, “पाहुनों की सेवा की हो, पवित्र लोगों के पाँव धोए हों, दुखियों की सहायता की हो, और हर एक भले काम में मन लगाया हो” [1 तीमुथियुस 5:10] | इब्रानियों का लेखक सभी विश्वासियों को इन शब्दों के साथ पहुनाई करने की आज्ञा देता है, यहाँ तक कि अपरिचित व्यक्तियों की पहुनाई करने की भी, “पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनों ने अनजाने में स्वर्गदूतों की पहुनाई की है” [इब्रानियों 13:2] |
1 पतरस 4:9 में पहुनाई करने की यह आज्ञा अपरिचित व्यक्तियों के दायरे से निकलकर विस्तारित होते हुए, परिचित विश्वासियों को भी सम्मिलित कर लेती है, “बिना कुड़कुड़ाए, एक दूसरे की पहुनाई करो” | विशेष रूप से, पतरस के समय में तो यह एक जोखिम से भरा कार्य था | सताव बढ़ रहा था, और ऐसे समय में दूसरे विश्वासियों के लिए अपना घर खोलने वाले लोग, अपने आप को जोखिम में डाल रहे थे | तौभी, पहुनाई करने की आज्ञा दी गई है और वह भी “बिना कुड़कुड़ाए” | जब बात पहुनाई करने की आये तो कोई शिकायत या कुड़कुड़ाहट नहीं होनी चाहिए |
एक स्त्री के घर में कुछ मेहमान आये और भोजन से पहले प्रार्थना के समय उसने अपनी बेटी को प्रार्थना करने के लिए कहा | अपनी बेटी को हिचकिचाते हुए देखकर उसने कहा, “शर्माओ मत, मैंने दोपहर के भोजन के दौरान जैसे प्रार्थना किया था, वैसा ही करो |” लड़की ने तुरंत प्रार्थना करना आरम्भ किया, “हे प्रभु, इन लोगों को आज आने की क्या आवश्यकता थी?”
बच्चे, हमारी बातों को बहुत जल्दी ही पकड़ लेते हैं, सही है कि नहीं ? परमेश्वर हमसे चाहता है कि हम आनंददाई मन के साथ पहुनाई करें!
सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है: पहुनाई करना, ऐसा कोई वरदान नहीं है, जो कुछ मसीहियों को ही प्राप्त है | यह आज्ञा सभी मसीहियों को दी गई है कि वे सक्रियता से इसका पालन करें और अपने जीवन भर इसे अभ्यास में लाते रहें | नया नियम इस बात को अत्याधिक स्पष्ट कर देता है कि जितने लोग मसीह के अनुयायी होने का दावा करते हैं उन्हें निरंतर पहुनाई करना ही होगा | आरंभिक कलीसिया ने इस आज्ञा को गंभीरता से लिया था | प्रथम शताब्दी के अंतिम वर्षों में, भ्रमणकारी मिशनरियों [सेवकों] के लिए अपने घरों को खोलना और उनकी सेवा के लिए सहायता देना, विश्वासियों के लिए आम बात बन चुकी थी | प्रेरित यूहन्ना ने जिस विश्वासी को पत्र लिखा, उस विश्वासी की प्रशंसा उसने इन शब्दों के साथ की, “5 हे प्रिय, जो कुछ तू उन भाइयों के साथ करता है, जो परदेशी भी हैं, उसे विश्वासी की नाईं करता है | 6 उन्होंने मण्डली के साम्हने तेरे प्रेम की गवाही दी थी: यदि तू उन्हें उस प्रकार विदा करेगा जिस प्रकार परमेश्वर के लोगों के लिये उचित है तो अच्छा करेगा | 7 क्योंकि वे उस नाम के लिये निकले हैं, और अन्यजातियों से कुछ नहीं लेते | 8 इसलिए ऐसों का स्वागत करना चाहिए, जिस से हम भी सत्य के पक्ष में उन के सहकर्मी हों |” [3 यूहन्ना 1:5-8] |
अब जब बात पहुनाई करने की आती है, तो इसमें एक खतरा है | हम इतने भी भावुक न हो जायें कि हम अपने घर को संगति के लिए लगभग सभी के लिए खोल दें | जब कुछ ख़ास लोगों की बात आती है, तो बाईबल पहुनाई करने पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाती है | मैं दो प्रकार के लोगों के बारे में सोच सकता हूँ | पहले प्रकार के लोग हैं, झूठे शिक्षक [2 यूहन्ना 1:7-11; तीतुस 3:10-11; 2 तीमुथियुस 3:5] और दूसरा प्रकार है, विश्वासी होने का दावा करने वाले ऐसे लोग जो ढिठाई के साथ पश्चाताप—रहित जीवन बिताते हैं [1 कुरिन्थियों 5:11] | अतः, याद रखें कि हमें पहुनाई करने की इस आज्ञा को तो अभ्यास में लाना है, परन्तु यह भी आवश्यक है कि हम प्रतिबंध संबंधी इन आज्ञाओं को ध्यान में रखते हुए अपने विवेक का भी इस्तेमाल करें |
संक्षेप में यह देखने के पश्चात कि पहुनाई के विषय पर बाईबल क्या कहती है, आईए अब देखें कि हम इस आज्ञा को प्रायोगिक रूप से कैसे लागू कर सकते हैं और ऐसा करने के लिए हम दो पहलूओं को देखेंगे:
क ) क्यों कई मसीही उतने पहुनाई करने वाले नहीं है?
और
ख ) मसीही लोग, और अधिक पहुनाई करने वाले कैसे बन सकते हैं?
क ) क्यों कई मसीही उतने पहुनाई करने वाले नहीं है?
यहाँ पाँच कारण दिए गये हैं:
1. विभाजित परिवार | ऐसी परिस्थिति में, आप घर के बाहर जो कुछ कर सकते हैं, वो सब करिए | परमेश्वर से पूछिए कि आवश्यकता में पड़े लोगों को घर लाये बिना ही आप उनके लिए कैसे आशीष का कारण बन सकते हैं | कॉफ़ी शॉप जैसे जगहों में उनसे मिलिए और उनसे जानने का प्रयास करिए कि आप किस प्रकार उनकी सेवा कर सकते हैं | यदि उनसे मिलना संभव है तो उनसे मिलिए और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करिए |
2. भय | कई लोगों का स्वभाव ही ऐसा होता है कि वे दूसरों को अपने घर बुलाने से डरते हैं | या तो उनमें सही में ही भय होता है या फिर ऐसा उनके शर्मीले स्वभाव के कारण भी हो सकता है | वे स्वभाव से अंतर्मुखी होते हैं | यदि आप ऐसे व्यक्ति हैं तो इन बातों के ऊपर जय पाने में परमेश्वर से सहायता माँगें | एक बार जब आप लोगों से घुलने मिलने लग जायेंगे और उन्हें अपने दिल की बात आपके सम्मुख खुलकर रखने देंगे, और आप उन्हें मसीह के प्रेम को दिखायेंगे, तो आपके लिए यह एक अद्भुत अनुभव होगा |
3. अहंकार | कुछ लोग इस बात पर कुछ अधिक ही ध्यान केन्द्रित रहते हैं कि उनका घर कैसा दिखता है और उनके घर को देखने के बाद मेहमान उनके बारे में क्या धारणा बनायेंगे और इस सोच के कारण वे यदा—कदा ही अपने घर मेहमानों को आमंत्रित करते हैं | घर का आकार कोई समस्या नहीं है, हालाँकि अक्सर इसी बात को बहाने के रूप में रखा जाता है | इसके तह में छिपा असली कारण तो अहंकार है | इस बात पर कुछ अधिक अधिक ही ध्यान दिया जाता है कि, मेरे घर के आकार या इसके दिखने के आधार पर “मेरे बारे में क्या राय बनाई जायेगी” | असली बात तो यही है |
पहुनाई करना और मनोरंजन करना, दोनों ही भिन्न बातें हैं | अहंकार, मनोरंजन करना चाहता है, दीनता पहुनाई करने वाला बनना चाहता है | कैरन मेन्स ने अपनी पुस्तक Open Heart, Open Home [ओपन हार्ट, ओपन होम] में “पहुनाई” और “मनोरंजन” के मध्य निम्नलिखित भिन्नताओं का वर्णन किया है [Elgin, III. : Cook, 1976]:
मनोरंजन कहता है, “मैं तुम्हें अपने घर, मेरे द्वारा की गई सुन्दर सजावट, और मेरे द्वारा बनाए गये भोजन से प्रभावित करना चाहता हूँ |” वहीं, सेवा करने का प्रयास करने वाली पहुनाई कहती है, “यह घर मेरे स्वामी द्वारा दिया गया उपहार है | मैं इसे उसी तरह से इस्तेमाल करता हूँ, जैसा वह चाहता है |” पहुनाई सेवा का उद्देश्य रखती है |
मनोरंजन लोगों से अधिक प्राथमिकता वस्तुओं को देती है | “जब मेरा घर पूरी तरह से तैयार हो जाएगा, मेरे बैठक कक्ष की सजावट पूरी हो जायेगी, मेरे घर की साफ—सफाई पूरी हो जायेगी—तब मैं लोगों को आमंत्रित करना आरम्भ करूँगा |” पहुनाई लोगों को प्रथम स्थान देती है | “फर्नीचर्स नहीं है – हम ज़मीन पर बैठकर खा लेंगे |” “घर सजाने का काम तो कभी ख़त्म ही नहीं होगा—आप तो बस आ जाईए |” “घर तो अस्त—व्यस्त है—पर आप तो हमारे दोस्त हैं—हमारे साथ घर चलिए |”
मनोरंजन बड़ी चतुराई से कहती है, “यह घर मेरा है, मेरे व्यक्तित्व की एक अभिव्यक्ति | इसे देखो, इससे खुश हो जाओ, और इसकी प्रशंसा करो |” पहुनाई कहती है, “जो मेरा है, वो आपका है |”
4. पक्षपात | मैं केवल, अपने समान लोगों को ही बुलाऊँगा | यह एक और सामान्य कारण है | इस विचार के गहराई में एक जातिवादी मानसिकता छिपी बैठी है | बाईबल इसकी निंदा करती है | व्यवस्थाविवरण 10:18-20 पढ़ें | परमेश्वर का भय हमें विदेशियों [अनजान लोगों] से प्रेम करने और उनका स्वागत करने के लिए प्रेरित करनी चाहिए | परमेश्वर जातिवादी मानसिकता से घृणा करता है और हमें भी ऐसी सोच में पड़ने से बचने के लिए युद्ध करना है | हमें तो प्रेम करना है, प्रार्थना करना है, और भलाई करना है, यहाँ तक कि अपने शत्रुओं के साथ भी हमारा यही व्यवहार रहना है!
5. आलस्य | आलस्य, सबसे अंतिम कारण है परन्तु किसी भी तरह से सबसे छोटा कारण नहीं | पहुनाई करने के कारण जो कार्य हमें करने होंगे, हमें वो कार्य बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं | मैं अपनी नौकरी में अति व्यस्त रहता हूँ | मैं मेरे लिए एक ऐसा समय चाहता हूँ, जब कोई मुझे परेशान न करे और मैं थोड़ा आराम कर सकूँ | अगले सप्ताह देखते हैं, या फिर अगले महीने; और फिर समय यूँ ही निकलता जाता है | मूल बात यह है कि हम केवल अपने और अपनी सुविधा के बारे में सोचते हैं | हम असुविधाजनक स्थिति में पड़ना नहीं चाहते | यह सोच तो मसीह की सोच के समान नहीं है | जब हम निराश हैं, तब भी हम यह स्मरण करना भूल जाते हैं कि जब हम दूसरों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से, उनके साथ समय गुजारते हैं, तो परमेश्वर हमारे लिए बड़ा प्रोत्साहन लेकर आता है |
मैं जानता हूँ कि और भी कई कारण जोड़े जा सकते हैं | परन्तु ये कुछ ऐसे कारण हैं जो अधिकांशतः कई विश्वासियों को पहुनाई करने की आज्ञा को नियमित रूप से अभ्यास में लाने से रोकती हैं | आईए अब, समाधान को देखें | हम, और अधिक पहुनाई करने वाले कैसे बन सकते हैं?
ख ) मसीही लोग, और अधिक पहुनाई करने वाले कैसे बन सकते हैं?
यहाँ, पाँच सुझाव दिए गये हैं:
1. इसे सरल रखें | जब बात पहुनाई करने की आती है तो अक्सर हम कुछ ज्यादा करने की गलती कर बैठते हैं | मेरे कहने का अर्थ यह है कि जब हम किसी को घर बुलाते हैं तो बहुत अधिक समय और बहुत अधिक मेहनत लगती है | और यह किसी को भी आसानी से थका सकता है | इसका परिणाम यह होता है कि अक्सर हम लोगों को बुलाने से कतराने लगते हैं | मेरा सुझाव: इसे सरल रखिए | वैसा करने से, लोगों को आमंत्रित करने के अधिक अवसर बनेंगे और आप वास्तव में लोगों के साथ समय गुजार सकेंगे और उनके दुखों को बाँट सकेंगे |
आप ऐसी सोच के शिकार मत बनिए, “हमारे घर में पर्याप्त जगह नहीं है | मुझे उतना अच्छा खाना बनाना नहीं आता | मैं लोगों से घुलने—मिलाने में बहुत कमजोर हूँ | इत्यादि!” आपके पास जो कुछ है, आप उसी से सर्वोत्तम करने का प्रयास करिए | आपको जो दिया गया है, आप उसमें विश्वासयोग्य बनिए! कई बार, आप बस चाय और नाश्ते के लिए बुला सकते हैं | कोई तामझाम करने की आवश्यकता नहीं है | मुख्य बात यह है कि आप दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके साथ हैं | इसे सरल रखें!
2. इसे नियमित रखें | अक्सर इस आज्ञा को नियमित रूप से अभ्यास में लाना एक चुनौती बन जाती है | एक युक्ति—संगत [उचित] लक्ष्य रखें | दो सप्ताह में कम से कम एक परिवार को आमंत्रित करें, ताकि उन्हें आप प्रोत्साहित कर सकें | आप उन्हीं लोगों को बार—बार मत बुलायें | ऐसा करने से, दूसरों को बुलाने के लिए आपके पास समय नहीं रहेगा | एक संतुलन बनायें | निश्चित करिए कि लूका 14:13-14 में यीशु मसीह के द्वारा कही गई बातों का अनुसरण करते हुए, आप ऐसे लोगों को आमंत्रित करने की आदत बनाते हैं, जो अकेले हैं और जो सामाजिक रूप से आपसे निचले पायदान में हैं, “13 परन्तु जब तू भोज करे, तो कंगालों, टुण्डों, लंगड़ों और अन्धों को बुला | 14 तब तू धन्य होगा, क्योंकि उन के पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, परन्तु तुझे धमिर्यों के जी उठने पर इस का प्रतिफल मिलेगा |”
3. इसे मसीह-केन्द्रित रखें | यदि आपके मेहमान, विश्वासी हैं, तो आप उनके आत्मिक जीवन को प्रोत्साहित करने का प्रयास करें | कुछ समय, साथ में प्रार्थना करने के लिए भी रखें | अक्सर, अन्य विषयों पर बात करने में सारा समय निकल जाता है और प्रार्थना करने के लिए जो समय हम गुजारते हैं, वह एकमात्र समय होता है, भोजन के लिए प्रार्थना करने का समय | प्रार्थना के लिए कुछ मिनट निर्धारित करने का प्रयास करिए | यह बहुत प्रोत्साहन देने वाली बात होगी | यदि आपके मेहमान, अविश्वासी हैं, तो परमेश्वर आपको जैसा अवसर देते हैं, उसके अनुसार, मसीह के बारे में बात करने का प्रयास करिए | प्रार्थना करिए और परमेश्वर से कहिए कि वह आपके लिए कोई द्वार खोल दे |
4. प्रार्थना करते रहें कि आपको पहुनाई के अवसर मिल सकें | आरंभिक कलीसिया के समय के विपरीत आज सार्वजनिक स्थानों में [सराय, होटल इत्यादि में] ठहरना कहीं अधिक सुरक्षित है [यदि सभी स्थानों में नहीं तो कम से कम अधिकाँश स्थानों में] | इसलिए कई बार पहुनाई के लिए लोगों का मिलना मुश्किल हो जाता है, अजनबियों की तो बात ही छोड़ दीजिए | प्रार्थना करते रहें और अवसरों की तलाश में लगे रहें | सार्वजनिक स्थानों में मित्र बनायें, फिर चाहे यह आपके बच्चे जिस स्कूल में जाते हैं वहाँ की बात हो, या फिर आपका पड़ोस या कार्यस्थल | उन्हें अपने घर आमंत्रित करें | जब आप उनसे बात करेंगे तो आप पायेंगे कि लोग खुल रहे हैं और अपनी परेशानियों को आपको बता रहे हैं |
5. इसे विश्वास से करते रहें | परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए अंततः विश्वास की आवश्यकता होती है | विश्वास करिए कि आपकी पहुनाई के परिणाम दूरगामी हैं, जिसे आप अभी नहीं देख पायेंगे, वे आपको बाद में ही दिखाई देंगे |
बाईबल कॉलेज में पढ़ने वाला एक विद्यार्थी रविवार की सुबह कलीसिया [चर्च] जाने के लिए तीस मील अपनी गाड़ी से जाता था और अक्सर वह सहायता माँगने वाले यात्रियों को लिफ्ट दे देता था | एक दिन उसने एक जवान को लिफ्ट दिया, और उस जवान ने ध्यान दिया कि यह छात्र कोट—सूट पहने हुए था और तब उसने पूछा कि क्या वह भी उसके साथ चर्च आ सकता था | छात्र ने उत्तर दिया, “बिल्कुल आ सकते हो |”
वह अपरिचित जवान चर्च आया | सभा के बाद उस चर्च के एक परिवार ने उसे भोजन और संगति के लिए आमंत्रित किया | वहाँ उसे नहाने के लिए गर्म पानी और कुछ साफ़—सुथरे कपड़े दिए गये और फिर उसने गर्मागर्म भोजन का आनंद लिया | बात करते हुए, मेजबान को पता चला कि वह जवान एक मसीही था, परन्तु वह कुछ समय से प्रभु की संगति से दूर था | उसका घर दूसरे प्रांत में था और वह बस अपने घर जाने के लिए ही निकला हुआ था | बाद में शाम को उन्होंने उसके लिए बस की एक टिकट खरीदी और उसे, उसके रास्ते विदा किया |
एक सप्ताह के पश्चात, उस छात्र को इस जवान का एक पत्र मिला | उस पत्र के साथ एक समाचार—पत्र की एक कतरन भी लगी हुई थी, जिसमें यह हेडलाइन थी, “हत्या के अपराध के लिए जवान ने किया आत्मसमर्पण |” इस जवान ने डकैती के प्रयास में एक किशोरवय लड़के की हत्या कर दी थी और कुछ समय से वह पुलिस से भाग रहा था | परन्तु मसीहियों की दया और पहुनाई ने उसे कायल कर दिया | वह परमेश्वर की संगति में रहना चाहता था, और उसे मालूम था कि उसे अपने अपराध के संबंध में सही कदम उठाना आवश्यक था |
वे मसीही कदाचित ही इस बात को जानते थे कि पहुनाई करने की अपनी विश्वासयोग्यता के द्वारा उन्होंने एक व्यक्ति पर ऐसा असर डाल दिया था कि उसने वह करने का निर्णय लिया जो परमेश्वर की दृष्टि में सही था और ऐसा करके उन्होंने उसकी सहायता की ताकि वह अपने प्रभु की संगति में वापस लौट सके | इसीलिए, हमें विश्वास में होकर, परमेश्वर की समस्त आज्ञाओं का पालन करते रहना चाहिए, जिसमें पहुनाई करने की आज्ञा भी सम्मिलित है |
कुल मिलाकर कहें तो, पहुनाई करना, एक महत्वपूर्ण आज्ञा है | एक ऐसी आज्ञा जो इतनी महत्वपूर्ण है कि स्वयं यीशु मसीह ने इसे सच्चे विश्वास के समकक्ष रखा [मत्ती 25:35-46] | और इस आज्ञा का पालन करने के लिए हमें सर्वोत्तम प्रेरणा कहाँ से मिलती है? यीशु मसीह ने क्रूस पर अपना लहू बहाया और इस प्रकार उसने हम जैसे पापियों के लिए स्वर्ग के अपने घर को खोला | क्या हम यीशु मसीह के नाम में अपने घरों को दूसरों के लिए नहीं खोल सकते हैं? आख़िरकर, मसीहियत को, “खुले हाथ, खुला हृदय और खुले द्वार वाला धर्म” कहा जाता है | इन सच्चाइयों को हमारे जीवन में स्पष्ट होने दें क्योंकि हम मसीह के समान बनने में परिवर्तित हो रहे हैं |