परमेश्वर के साथ रिश्ता कैसे ठीक करें

Posted byHindi Editor April 3, 2023 Comments:0

मान लीजिए आप 75 वर्ष के हैं और आपका वयस्क जीवन 15 वर्ष की आयु में आरम्भ हुआ, तो आप एक वयस्क के रूप में 60 वर्ष जी चुके हैं | अब कल्पना कीजिए कि इन 60 वर्षों में आपने प्रतिदिन 1 पाप किया; इस प्रकार आपके द्वारा किए गये पापों की कुल संख्या लगभग 21,900 होगी | यदि प्रतिदिन 5 पाप हों, तो कुल संख्या 1,09,500 होगी | यदि 10 पाप प्रतिदिन हों तो 2,19,000 की चकरा देने वाली कुलसंख्या प्राप्त होगी !

बाईबल के अनुसार एक दुष्ट विचार भी पाप है ( मत्ती 5:28 ) | केवल गलत कार्यों को करना ही पाप नहीं है ( 1 यूहन्ना 3:4 ) | बल्कि साथ ही साथ हर समय सही कार्यों को करने में असफल रहना भी पाप है ( याकूब 4:17 ) | साथ ही जो कुछ बिना विश्वास के है वह भी पाप है ( रोमियों 14:23 ) | इस ज्ञान के प्रकाश में हम आश्वस्त हो सकते हैं कि किसी भी मनुष्य के द्वारा प्रतिदिन किए जाने वाले पापों की कुल संख्या 10 से कई गुना अधिक होगी ! यहाँ तक कि यदि आप आज के दिन से एक पापरहित जीवन जीना आरम्भ कर दें ( जो कि असंभव है ) तब भी आपको उन सारे पापों का लेखा देना होगा जो आप कर चुके हैं | फिर, आप परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को ठीक कैसे कर सकते हैं ? केवल नीचे वर्णित सच्चाईयों को समझने और उनके सम्मुख समर्पण होने के द्वारा ही यह हो सकता है

एक पवित्र परमेश्वर ने हमें उसका आदर करने और उसकी आराधना करने के लिए बनाया |1 परन्तु हमने इस पवित्र परमेश्वर की सेवा करने के स्थान पर उसके विरुद्ध पाप करने का चुनाव किया |2 हमारे द्वारा किए गए बुरे कार्य मात्र ही पाप नहीं है, बल्कि इसमें वे अच्छे कार्य भी सम्मिलित हैं जिन्हें करने से हम चूक गये |3 और पाप की मजदूरी उस नर्क में मिलने वाली मृत्यु है |4

हमारे द्वारा किए गए पापों को भले कार्यों की अनगिनत संख्या भी मिटा नहीं सकती है |5 इसीलिए परमेश्वर ने अपने प्रेम में होकर हमारे प्रतिस्थापन्न के रूप में अपने पुत्र प्रभु यीशु मसीह को इस धरती पर भेजा |6 उसने हमारे बदले एक सिद्ध जीवन व्यतीत किया  और हमारे द्वारा किए गये पापों के लिए वह हमारे स्थान पर क्रूस पर मरा, और परमेश्वर ने उसे तीसरे दिन यह दिखाने के लिए मरे हुओं में से जीवित किया कि उसने हमारे पापों के लिए उसके सिद्ध बलिदान को स्वीकार किया |7 और हमारे पापमय मार्गों से मन फिराने और पापों की क्षमा के लिए केवल यीशु मसीह पर भरोसा रखने के द्वारा ही हमारा रिश्ता परमेश्वर के साथ सही किया जा सकता है |8

इस प्रकार, हम एक नया जीवन का अनुभव करते हैं जिसकी प्रकृति आत्मिक है और हम परमेश्वर की एक संतान बन जाते हैं |9 यदि आपने ऐसा कभी नहीं किया है, तो क्या आप परमेश्वर को अपने हृदय से पुकारेंगे कि वह आपके पापों से मन फिराने और अपने जीवन को विश्वास के द्वारा यीशु को समर्पण करने के लिए आपकी सहायता करने के द्वारा आज आपका उद्धार करे ?10

पवित्र शास्त्र सन्दर्भ : 1 प्रकाशितवाक्य 4:11 2 रोमियों 3:23 3  1 यूहन्ना 3:4; याकूब 4:17 4  रोमियों 6:23 5  इफिसियों 2:8-9 6  रोमियों 5:8 7  1 पतरस 3:18 8  प्रेरितों के काम 3:19; 16:31 9  यूहन्ना 3:3 10  रोमियों 10:13; मरकुस 1:15  |

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