धन्य–वचन: भाग 4 धन्य हैं वे, जो नम्र हैं

Posted byHindi Editor January 9, 2024 Comments:0

(English Version: “The Beatitudes – Blessed Are The Meek”)

यह लेख, धन्य–वचन श्रृंखला के अंतर्गत चौथा लेख है | धन्य–वचन खण्ड, मत्ती 5:3-12 तक विस्तारित है | इस खण्ड में यीशु मसीह 8 ऐसे मनोभावों के बारे में बताते हैं, जो उस प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होना चाहिए, जो उसका अनुयायी होने का दावा करता है | इस लेख में हम तीसरे मनोभाव को देखेंगे: नम्रता का मनोभाव; संभवतः भिन्न अनुवादों में इसे कहीं कोमलता और कहीं दीनता लिखा गया हो | इसका विवरण हमें मत्ती 5:5 में मिलता है, “ धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे |” यह भजनसंहिता 37:11 से लिया गया है |

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यदि यह संसार किसी गुण को बहुमूल्य मानता है, तो वह गुण है: सामर्थ | यह संसार कहता है: अपना अधिकार जताओ | परन्तु, यीशु मसीह इससे ठीक विपरीत शिक्षा देते हैं | 

1. नम्र बनो |

2. अपना अधिकार मत जताओ |

3. महिमा पाने की होड़ में मत रहो |

4. अपनी पहचान बनाने के लिए परिश्रम मत करो |

उनका कहना है कि इस प्रकार की जीवनशैली ही परमेश्वर की आशीष, अनुमोदन और कृपा को प्राप्त करती है | और यही वह जीवनशैली है, जिसे अंत में सब कुछ मिलेगा–प्रभु का कहना है कि केवल वे और वे ही सम्पूर्ण पृथ्वी के सच्चे उत्तराधिकारी होंगे |

इस प्रकार, दो विरोधाभाषी दृष्टिकोण देखने को मिलता है: संसार कहता है, “जो ताकतवर हैं, वे पराक्रमी  हैं |” वहीं दूसरी और यीशु मसीह का कहना है, “जो नम्र हैं वे पराक्रमी हैं |” पूर्णतः संस्कृति–विपरीत शिक्षा | हमारी स्वाभाविक देह जो चाहती है, उससे पूर्णतः विपरीत! तौभी, पवित्र आत्मा के सामर्थ के द्वारा हमें नम्र मनोभाव प्रदर्शित करने के लिए बुलाया गया है | आईए हम देखें कि हम ऐसा कैसे कर सकते हैं और इसके लिए सबसे पहले हम “नम्र” शब्द को ध्यान से देखेंगे | इसका क्या अर्थ है? हम इसे किस तरह से परिभाषित कर सकते हैं? 

नम्रता क्या है ?

सबसे पहले तो यह समझ लें कि नम्रता या कोमलता का अर्थ कमजोरी नहीं है | मूसा को अत्याधिक नम्र व्यक्ति बताया गया है, पृथ्वी पर रहने वाले सब लोगों से अधिक  नम्र [गिनती 12:3] | यीशु मसीह ने अपना परिचय कुछ इस तरह से दिया, “मैं नम्र [ठीक इसी शब्द का अनुवाद मत्ती 5:5 में ‘नम्र’ किया गया है] और मन में दीन हूँ ” [मत्ती 11:29] | क्या कोई भी व्यक्ति अपने सही होशो–हवास में मूसा या यीशु मसीह को कमजोर या रीढ़विहीन व्यक्ति कहने का साहस कर सकता है? 

तौभी, प्रश्न तो अभी भी यथावत बना हुआ है: नम्र शब्द का क्या अर्थ है? जिस भजनसंहिता 37 से यीशु मसीह ने इस शब्द को लिया है, उस भजनसंहिता की पृष्ठभूमि की थोड़ी जानकारी, इस प्रश्न का उत्तर देने में हमारी सहायता करेगी | दाऊद ने भजनसंहिता 37 को, अपने शत्रुओं के हाथों सताये जा रहे प्रभु के लोगों के प्रोत्साहन के लिए लिखा [भजनसंहिता 37:1] | वह उन्हें कहता है कि परमेश्वर पर पूर्णतः आश्रित  रहते हुए कि वह सही समय पर न्याय करेगा, तुम पलटा लेने से दूर रहो और भलाई करने में लगे रहो [भजनसंहिता 37:27] |

तो, कौन लोग नम्र हैं? वे ऐसे लोग हैं जो सताये जाने पर सम्पूर्ण रूप से परमेश्वर पर आश्रित रहते हैं | वे पलटा नहीं लेते या प्रतिशोध को अपने स्वयं के हाथों में नहीं लेते हैं | बल्कि, वे भलाई करने में लगे रहते हैं–उनकी भलाई करने में भी जो उन्हें चोट पहुँचाते हैं!

नम्र लोग पराक्रमी लोग हैं | वे अपने पराक्रम को अपने वश में रखते हैं | ऐसा नहीं है कि नम्र व्यक्ति कभी क्रोधित नहीं होते हैं | वे बिल्कुल होते हैं | परन्तु केवल सही कारणों से | जब परमेश्वर की महिमा पर बन आती है या दूसरों के साथ जब अन्याय होता है, तब वे लोग क्रोधित होते हैं–तब नहीं जब उनका व्यक्तिगत अपमान होता है | नम्र आत्मा वाले लोग दूसरे लोगों की भावनाओं और आवश्यकताओं की चिन्ता करते हैं–अपने शत्रुओं की भावनाओं और आवश्यकताओं की भी! वे सदैव अपनी स्वयं की आवश्यकताओं से अधिक दूसरों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने के लिए प्रयास करते हैं | वे पलटा नहीं लेते, परन्तु भलाई करने में लगे रहते हैं क्योंकि वे परमेश्वर पर आश्रित रहते हैं कि वह सही समय पर न्याय चुकायेगा | 

“नम्रता की परिभाषा” अर्थात यीशु मसीह ने इसी प्रकार का जीवन व्यतीत किया, और हमें भी ऐसे ही जीना है! और नम्र मनोभाव को दर्शाने के कारण जिस प्रकार यीशु मसीह राजा के रूप में आने वाले राज्य के उत्तराधिकारी बनेंगे; उसी प्रकार से हमें भी आश्वासन मिलता है कि यदि हम नम्रता का जीवन जीयेंगे, तो उस मीरास में भागीदार बनेंगे | 

एक नम्र जीवनशैली के लिए प्रतिफल |

मत्ती 5:5 में यीशु मसीह जिस पद को उद्धृत करते हैं, वह पुराना नियम पर आधारित है, विशेष रूप से भजनसंहिता 37:11 का पहला भाग, परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे” | यीशु मसीह बताते हैं कि उसके अनुयायी भविष्य में जब वह वापस आयेगा तो एक नम्र मनोभाव के साथ जीवन बिताने के कारण न केवल पलस्तीन देश के अधिकारी होंगे बल्कि वे पूरी पृथ्वी के अधिकारी होंगे | तो यह है एक नम्र जीवनशैली का प्रतिफल! 

नम्रता के लिए बाईबल की बुलाहट |

न केवल इस धन्य–वचन में परन्तु साथ ही कई अन्य बाईबल स्थल में भी बाईबल जोर देती है कि विश्वासियों को नम्रता को एक जीवनशैली के रूप में अपनाना चाहिए–विशेष रूप से एक दूसरे के साथ हमारे संबंध में | हमें कुलुस्सियों 3:12 में “…दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण” करने के लिए कहा गया है | इफिसियों 4:2 में हमें “सारी दीनता और नम्रता सहित”  रहने की आज्ञा दी गई है | यहाँ तक कि ऐसी विश्वासी पत्नियों को जिनके पति विश्वासी नहीं हैं, यह आज्ञा दी गई है कि वे “ नम्रता और मन की दीनता की अविनाशी सजावट से सुसज्ज़ित रहे, क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में इसका मूल्य बड़ा है ” [1 पतरस 3:4] |

और उसी अध्याय में आगे चलकर पतरस पलटा न लेने के व्यवहार को समस्त विश्वासियों के लिए एक अनिवार्यता के रूप में बताता है | 1 पतरस 3:9 में लिखा है, “बुराई के बदले बुराई मत करो; और न गाली के बदले गाली दो; पर इस के विपरीत आशीष ही दो: क्योंकि तुम आशीष के वारिस होने के लिये बुलाए गए हो |” पलटा मत लो–जैसे को तैसा नहीं–परन्तु जो लोग तुम्हारे साथ कठोरता से व्यवहार करते हैं, उनके साथ दया और भलाई का व्यवहार करो | और आश्वासन यह है कि ऐसे लोग अंत में परमेश्वर की आशीष का आनन्द उठाएंगे!

तो, देखा आपने, जो लोग मसीही होने का दावा करते हैं, नम्रता उन लोगों के लिए एक विकल्प नहीं है [अर्थात यह अनिवार्यता है] | यीशु मसीह इसे अत्यंत स्पष्ट कर देते हैं: जिस राज्य की स्थापना वे करेंगे, उसके अधिकारी केवल नम्र लोग ही होंगे | वे और केवल वे ही पृथ्वी के अधिकारी होंगे |

फिर, हम इस नम्रता के मनोभाव को कैसे विकसित करें ? 

हम नम्रता में कैसे बढ़ सकते हैं? केवल एक तरीका है: हममें इस गुण को उत्पन्न करने के लिए पवित्र आत्मा पर निर्भर रहने के द्वारा | हमें गलातियों 5:22-23 में बताया गया है,22 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, 23 और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं | इस बात पर ध्यान दीजिए कि नम्रता एक ऐसा गुण है जो हममें केवल पवित्र आत्मा ही उत्पन्न कर सकता है [“ आत्मा का फल ” या आत्मा के द्वारा पैदा किया जाने वाला फल] | हम इस धन्य–वचन का प्रदर्शन और न ही किसी भी धन्य–वचन का प्रदर्शन अपने दम पर कर पायेंगे | नम्रता में बढ़ने के लिए हमें पवित्र आत्मा पर निर्भर होना होगा और उसके प्रति हमें समर्पित होना होगा | 

अब हमें यह बात भी स्मरण में रखना चाहिए कि इस प्रकार के जीवनशैली को उत्पन्न करने के लिए पवित्र आत्मा कुछ साधनों का प्रयोग करता है | और विशेष रूप से हमें नम्रता में बढ़ने में सहायता पहुंचाने के लिए वह दो साधनों का इस्तेमाल करता है |

हममें नम्रता उत्पन्न करने के लिए, पवित्र आत्मा जिस पहले साधन का इस्तेमाल करता है, वह है, परमेश्वर का वचन | जिस तलवार का पवित्रात्मा प्रयोग करता है, वह है, वचन की तलवार [इफिसियों 6:17] | विश्वासियों को लिखते हुए, याकूब कहता है, इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है” [याकूब 1:21] | दूसरे शब्दों में कहें तो हमें न केवल उद्धार के समय परमेश्वर के वचन के सम्मुख नम्रता से समर्पण करना चाहिए, बल्कि परमेश्वर के वचन के प्रति वैसा ही दृष्टिकोण हमें अपने सम्पूर्ण मसीही जीवन के दौरान भी रखना चाहिए | वास्तविक परिवर्तन तब आता है, जब हम परमेश्वर के वचन को सुनते हैं और फिर एक कदम आगे बढ़कर उसे व्यवहारिक प्रयोग में लाते हैं [लूका 11:28]!

यदि हमें नम्रता में बढ़ना है, तो आवश्यक है कि हम स्वयं में परिवर्तन लाने के लिए परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल करने की अनुमति पवित्र आत्मा को दें | इसीलिए आवश्यक है कि हम परमेश्वर के वचन को प्रतिदिन पढ़ें, खरे [सही] प्रचार को सुनें, और पढ़े तथा सुने गए वचन को तत्काल अभ्यास में लागू करें | किसी व्यक्ति के द्वारा पवित्र आत्मा के सामर्थ के नियंत्रण में रहने के प्रयास का यही प्रमाण है! ऐसे व्यक्ति के जीवन में पवित्र आत्मा नम्रता या कोमलता के मधुर गुण को उत्पन्न करेगा |

इस प्रकार, हममें नम्रता उत्पन्न करने के लिए, पवित्र आत्मा जिस पहले साधन का इस्तेमाल करता है, वह है, परमेश्वर का वचन |

हममें नम्रता उत्पन्न करने के लिए, पवित्र आत्मा जिस दूसरे साधन का इस्तेमाल करता है, वह है, परीक्षा | रोचक बात है कि मत्ती 5:5 में “नम्र” शब्द के लिए यूनानी भाषा के जिस शब्द का प्रयोग हुआ है, उस शब्द का प्रयोग, यीशु मसीह के समय में, जंगली और शक्तिशाली घोड़ों को किसी दर्दभरे तरीके का प्रयोग करते हुए वश में लाने के कार्य को बताने के लिए किया जाता था; वश में लाने का यह कार्य इसलिए किया जाता था ताकि घोड़ा, घुड़सवार के सम्पूर्ण नियंत्रण में आ जाये |  जो जानवर वश में लाये जाने की इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा कर लेता था उसे, “नम्र” कहा जाता था | 

पवित्र आत्मा हमारे साथ ठीक यही कार्य करता है | वह हमारी इच्छाशक्ति के ऊपर हमारी निर्भरता को तोड़ने के लिए परीक्षाओं का इस्तेमाल करता है और इस तरह से हमें परमेश्वर पर निर्भर रहने और चीजों को अपने हाथ में न लेने के लिए बाध्य करता है | और इस प्रक्रिया के माध्यम से पवित्र आत्मा हममें इस गुण को [जिसे नम्रता कहते हैं] और अधिक उत्पन्न करना आरम्भ करता है | इसीलिए हमें परीक्षाओं से घृणा नहीं करनी चाहिए बल्कि उन्हें ऐसे माध्यमों के रूप में देखना चाहिए जिसके द्वारा पवित्र आत्मा हमें और अधिक कोमल [नम्र] बनाता है |

जो लोग परीक्षाओं से होकर गुजर चुके हैं, वे सामान्यतः दूसरों के प्रति अधिक धीरजवंत होते हैं, दर्द से होकर गुजरने वाले लोगों के दर्द के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील | साथ ही वे दूसरों की भलाई करने के सक्रिय प्रयास के लिए आतुर रहते हैं | वे अपने हित की तलाश में नहीं रहते हैं, परन्तु वे सदैव अपने हित से बढ़कर, दूसरों के हित को प्राथमिकता देने का प्रयास करते हैं [फिलिप्पियों 2:4] |

यहाँ तक कि, नम्र लोग अपनी सफ़ाई देने की भी परवाह नहीं करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वे कुछ भी पाने के योग्य नहीं हैं | उनके विरुद्ध कुछ किए जाने पर वे क्रोधित नहीं होते हैं | चूँकि वे पहले से ही नीचे झुके होते हैं, इसलिए वे गिरने से नहीं डरते! उनकी विनम्र आत्मा उन्हें दूसरों से प्रतिशोध लेने से रोकती है | इसके स्थान पर वे दूसरों के लिए आशीष का कारण बनने के प्रयास में रहते हैं | और ऐसी आत्मा का निर्माण तो परीक्षाओं के द्वारा तोड़े जाने के परिणामस्वरूप ही होता है | और यह समझदारी की बात है | 

इस प्रकार, परमेश्वर का वचन और परीक्षा–वे दो साधन हैं, जिनका इस्तेमाल पवित्र आत्मा हमें नम्रता में बढ़ाने के लिए करता है |

पलटा लेने की आत्मा को छोड़ने और नम्रता का पीछा करने के लिए प्रोत्साहन|

आप देखेंगे कि पलटा लेने से हमारे मन को कभी शान्ति नहीं मिलती है | जो हम पाना चाहते हैं, वो पाने के लिए किसी को चोट पहुँचाने से हम कभी भी मसीह के समान नहीं दिखेंगे | पलटा लेने की आत्मा ने, कितने ही घर और कितने ही रिश्ते बर्बाद किए हैं | पलटा लेने की आत्मा घरवालों और बाहरवालों के साथ हमारे रिश्तों को बड़ा नुकसान पहुँचाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं करती है | यह पवित्र आत्मा को शोकित करती है और अंततः मसीह के नाम पर लज्जा लाती है |

परन्तु, परमेश्वर पर इस बात के लिए आश्रित रहने से कि वह अपने समय में न्याय चुकाएगा और उसी समय दूसरों की भलाई करने के प्रयास में लगे रहने से परमेश्वर को बड़ी महिमा मिलती है और हमें भी आशीष प्राप्त होती है | ऐसे लोगों से और केवल ऐसे ही लोगों से यीशु मसीह प्रतिज्ञा करते हैं, “तुम आने वाले राज्य के अधिकारी बनोगे |”  

वर्तमान समय में भी, नम्र लोगों को परमेश्वर का मार्गदर्शन मिलता है | भजनसंहिता 25:9 में लिखा है, वह नम्र लोगों को न्याय की शिक्षा देगा, हां वह नम्र लोगों को अपना मार्ग दिखलाएगा |  क्या आप अपने जीवन में परमेश्वर की इच्छा जानना चाहते हैं? नम्र बनिए | अपने घमण्ड का त्याग करिए | परमेश्वर के मार्ग पर आईए | वह सही निर्णय लेने में आपकी सहायता करेगा! 

हमारे अन्दर की एक नम्र और पलटा न लेने वाली आत्मा को अधिकाई से देखने की आवश्यकता संसार को है | और जब वे उसे देखेंगे तो वे यीशु मसीह को देख पायेंगे | यीशु मसीह ही वह व्यक्ति है जिसे देखने की आवश्यकता संसार को है! हम तो उसके राजदूत मात्र हैं जो विश्वासयोग्यता के साथ उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए बुलाये गए हैं | हम एक क्रोधित और चोट पहुँचाने वाली आत्मा का प्रदर्शन करके किसी को भी, कभी नहीं जीत सकते हैं–फिर चाहे वे हमारे घरवाले हों या बाहर वाले | परन्तु एक नम्र आत्मा में कठोर मनों को भी बदलने की बड़ी शक्ति होती है!

अपने जीवन को परखें | क्या आप एक नम्र व्यक्ति हैं? जब कोई आपका अपमान करता है तो आप कैसे प्रतिक्रिया करते हैं? जब आपके अनुसार कोई कार्य नहीं होता है तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है–यहाँ तक कि बहुत छोटी बातों में भी? क्या आप एक ऐसे घमण्डी व्यक्ति हैं जो हमेशा अपने अनुसार ही सारी बातों को होते हुए देखना चाहते हैं? यदि यही आपकी जीवनशैली है, तो फिर आपको यह सोचने की आवश्यकता है कि क्या आप सही में परमेश्वर के राज्य के वारिस हैं–फिर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने मुँह से क्या अंगीकार करते हैं | स्मरण रखिए कि सम्पूर्ण पहाड़ी उपदेश एक दर्पण है जिसे दिखाकर यीशु मसीह सहायता करते हैं ताकि एक व्यक्ति अपने आप को जाँच सके कि वह वास्तव में उसका अनुयायी है कि नहीं | पश्चाताप करने की समय सीमा कभी समाप्त नहीं होती है | 

यदि आपने अब तक परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह का आलिंगन करने के द्वारा, परमेश्वर के सम्मुख अपना समर्पण नहीं किया है, तो मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि इस कार्य को आज ही कर लें | अपने पापों को मान लें | परमेश्वर के सिद्ध मापदण्ड को पूरा कर पाने में अपनी सम्पूर्ण अयोग्यता को मान लीजिए | अपने पापों के कारण रोईए और मसीह के पास आईए जो उन सब पापों के लिए मारा गया जो आपने अब तक किए हैं और जो आप आगे करेंगे! उसके क्षमा प्रस्ताव को स्वीकार करिए और उसे अपने जीवन को समर्पित कर दीजिए | तब आप न केवल परमेश्वर के परिवार में सम्मिलित हो जायेंगे बल्कि साथ ही साथ पवित्र आत्मा के द्वारा  सामर्थ पाकर नम्रता के इस मनोभाव का पीछा करने के भी योग्य बन जायेंगे | सच मे धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे और केवल वे ही पृथ्वी के अधिकारी होंगे!  

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