घमण्ड [करने] के खतरे

(English version: “Dangers of Pride”)
सन् 1715 में फ्राँस के राजा लुईस चौदहवें की मृत्यु हुई | इस राजा ने स्वयं को ‘महान [द ग्रेट]’ की उपाधि दी थी | वह गर्व से कहता था, “मैं ही ‘देश’ हूँ|” उसके समय में उसका दरबार सम्पूर्ण यूरोप में सर्वाधिक भव्य दरबार था | उसके अंतिम संस्कार समारोह की रूपरेखा भी उसकी महानता को दर्शाने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनाई गई थी और उसका अंतिम संस्कार समारोह अत्यन्त दर्शनीय था | उसकी देह एक सुनहरे ताबूत में रखी गई थी | और वहाँ उपस्थित समस्त लोगों के ध्यान को केवल राजा की ओर खींचने के द्वारा दिवंगत राजा की महिमा को और बढ़ाने के लिए गिरजाघर में रोशनी को अत्याधिक धीमा कर दिया गया था और उसके ताबूत के ऊपर एक विशेष मोमबत्ती लगाई गई थी | अंतिम संस्कार समारोह के लिए इकट्ठी हुई विशाल भीड़ शान्ति से प्रतीक्षारत थी | फिर श्रीमान मैस्सीलोन, जो बाद में क्लेरमोंट के बिशप बने, धीरे से नीचे उतरे और फिर मोमबत्ती को उसने फूँक दिया और कहा, “केवल परमेश्वर ही महान है!”
हम सबको इस सरल सत्य को लगातार स्मरण रखने की नितांत आवश्यकता है: केवल परमेश्वर ही महान है | महिमा केवल उसे ही दी जानी चाहिए और केवल उसी को ऊँचा उठाया जाना चाहिए | वह सृष्टिकर्ता है | हम उसकी रचना हैं, उसकी आराधना करने के लिए बुलाये गये लोग ! परन्तु, सच्चे परमेश्वर की आराधना करने के स्थान पर हम पाप के शिकार बनकर, विशेष रूप से घमण्ड के पाप का शिकार बनकर स्वयं की आराधना करने लगे | यदि कोई पाप ऐसा है जिसने मनुष्य की आत्मा को किसी भी अन्य पाप से अधिक क्षति पहुँचाई है तो वह है, घमण्ड का पाप | हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि घमण्ड एक सार्वभौमिक समस्या है | और वास्तविकता यह है कि घमण्ड कोई नई चीज नहीं है | यह अदन की वाटिका के समय से है |
इस लेख में, आईए हम 5 सरल प्रश्नों को पूछते और उनका उत्तर देते हुए घमण्ड [करने] के खतरों और इसके इलाज को देखें |
1. घमण्ड क्या है?
सरल शब्दों में कहें तो स्वयं की ही आराधना करना घमण्ड है! यह स्वयं के द्वारा स्वयं को सिंहासन पर बैठाने का कार्य है–उस सिंहासन पर जिस पर उचित रूप से केवल परमेश्वर ही का अधिकार है! इस बात पर ध्यान दीजिए कि बहुत पहले परमेश्वर ने घमण्डी बाबुल को जिसने स्वयं को सिंहासन पर बिठा लिया था कैसे इन संयत कर देने वाले शब्दों से डाँटा था: “तेरी बुद्धि और ज्ञान ने तुझे बहकाया और तू ने अपने मन में कहा, मैं ही हूँ और मेरे सिवाय कोई दूसरा नहीं ” [यशायाह 47:10ब] |
2. घमण्ड का स्रोत क्या है?
क्या परिवेश इसका स्रोत है? क्या यह कष्टमय बचपन के कारण है? नहीं! यीशु मरकुस 7:21-23 में स्पष्ट उत्तर देते हैं: “21 क्योंकि भीतर से अर्थात मनुष्य के मन से, बुरी बुरी चिन्ता, व्यभिचार | 22 चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं | 23 ये सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं |” घमण्ड का स्रोत स्वयं का ही ह्रदय है | यह कोई बाहरी स्रोत नहीं है, परन्तु आतंरिक है–कुछ ऐसा जो हमेशा हमारा एक अंग है–हमारा ह्रदय!
3. घमण्ड के प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण क्या है?
घमण्ड कोई खूबी नहीं है जैसा कि कई लोग मानते हैं | यह कोई कमजोरी नहीं है, जैसा कि कुछ अन्य लोग सोचते हैं | बल्कि, यह तो पाप है–क्योंकि परमेश्वर इसे यही नाम देता है! नीतिवचन 21:4 बताता है, “चढ़ी आंखें, घमण्डी मन, और दुष्टों की खेती, तीनों पापमय हैं |” तो हमें जो समझने की आवश्यकता है, वह यह है: घमण्ड एक पाप है | और क्योंकि यह पाप है–एक पवित्र परमेश्वर को स्वभावतः प्रत्येक उस बात से अवश्य ही घृणा करनी चाहिए जो पाप है और वह ऐसा करता है |
नीतिवचन 16:5अ कहता है, “सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है” | ‘घृणा’ शब्द में घिनौना होने, घृणित होने और भयानक होने का विचार निहित है–खराब हो चुके भोजन के समान घिनौना, घृणित और भयानक | वास्तव में, पवित्रशास्त्र संकेत देती है कि परमेश्वर जिन समस्त पापों से घृणा करता है, यह पाप उस सूची में सबसे ऊपर प्रतीत होता है | घमण्ड उन पापों की सूची में जिन्हें अक्सर सात प्राणघातक पाप कहा जाता है, सबसे ऊपर आता है | नीतिवचन 6: 16-19, “16 छ: वस्तुओं से यहोवा बैर रखता है, वरन सात हैं जिन से उस को घृणा है | 17 अर्थात घमण्ड से चढ़ी हुई आंखें, झूठ बोलने वाली जीभ, और निर्दोष का लोहू बहाने वाले हाथ, 18 अनर्थ कल्पना गढ़ने वाला मन, बुराई करने को वेग दौड़ने वाले पांव, 19 झूठ बोलने वाला साक्षी और भाइयों के बीच में झगड़ा उत्पन्न करने वाला मनुष्य |” इस सूची में भी घमण्ड को दूसरे स्थान पर रहना बर्दाश्त नहीं है | कोई आश्चर्य की बात नहीं कि परमेश्वर घमण्ड से घृणा करता है!
4. जो लोग मन के घमण्डी हैं परमेश्वर उन लोगों के प्रति क्या प्रतिक्रिया दिखाता है?
चूँकि यह एक पाप है और परमेश्वर की दृष्टि में यह अत्यंत ही घृणित है, इसलिए परमेश्वर उन लोगों के विरोध में खड़ा हो जाता है जो घमण्डी हैं | यह कहने के पश्चात कि सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है नीतिवचन 16:5 इस कथन के साथ समाप्त होता है, “मैं दृढ़ता से कहता हूँ, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे |” याकूब 4:6अ में लिखा है, “परमेश्वर अभिमानियों का विरोध करता है |” और इसका अर्थ यह है कि जितने लोगों के मन में घमण्ड है उन सबको वह नीचे ला देगा | अहंकारी राष्ट्र एदोम को कहे गये अपने वचन में परमेश्वर ने यह कहा: “3 हे पहाड़ों की दरारों में बसनेवाले, हे ऊँचे स्थान में रहनेवाले, तेरे अभिमान ने तुझे धोखा दिया है; तू मन में कहता है, “ कौन मुझे भूमि पर उतार देगा?” 4 परन्तु चाहे तू उकाब के समान ऊँचा उड़ता हो, वरन् तारागण के बीच अपना घोंसला बनाए हो, तौभी मैं तुझे वहाँ से नीचे गिराऊँगा, यहोवा की यही वाणी है” [ओबद्याह 1:3-4] | और ठीक यही काम परमेश्वर उनके साथ करता है जो मन के घमण्डी हैं | वह उन्हें नीचे लाता है | और यह दर्दनाक पतन होता है!
5. घमण्ड का क्या इलाज है?
घमण्ड का एक ही इलाज है | और यह एक सरल इलाज है–परमेश्वर प्रदत्त एक इलाज: दीनता! परमेश्वर यशायाह 66:2ब में इन बातों को कहता है, “मैं उसी की ओर दृष्टि करूंगा जो दीन और खेदित मन का हो, और मेरा वचन सुनकर थरथराता हो |” एक सच्चा दीन व्यक्ति जीवन की समस्त परिस्थितियों में परमेश्वर के वचन के सम्मुख समर्पित रहता है–चाहे फिर उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े ! और ऐसा व्यक्ति परमेश्वर की कृपा का पात्र बनता है | परमेश्वर की यही प्रतिज्ञा है!
मसीही लेखक और वक्ता श्रीमान एस. डी. गॉडॉन ने कहा:
“प्रत्येक मनुष्य के जीवन में एक सिंहासन होता है | और जब मनुष्य का ‘मैं’ सिहासन पर होता है तब मसीह क्रूस पर होता है | परन्तु जब मसीह सिंहासन पर होता है, तब ‘मैं’ क्रूस पर होता है |” आपके जीवन में सिहासन पर क्या विराजमान है–आप स्वयं? आपका परिवार? आपका ओहदा [पद]? आपका घर? आपकी संपत्ति? आपके नैन–नक्श? आपकी प्रतिभा? आप किस बात के लिए जी रहे हैं? यदि आप अपने सर्वोच्च लक्ष्य को पा लें, तो उसकी कीमत क्या होगी? वह परमेश्वर की महिमा का कारण होगा या आपकी महिमा का? परमेश्वर के अलावा किसी और वस्तु या किसी और व्यक्ति को सिंहासन पर विराजमान करने के लिए हम सबको परमेश्वर से क्षमा माँगने की आवश्यकता है | आवश्यक है कि हम उससे सचमुच में प्रार्थना करें कि वह हमें पश्चाताप करने और उसे प्रभु के रूप में पुनः सिंहासन पर विराजमान करने की शक्ति दे |
परमेश्वर के पास एक ऊँचा घर है और एक निचला घर; एक स्वर्गीय घर और एक पार्थिव घर जैसा कि यशायाह 57:15 में बताया गया है: “क्योंकि जो महान और उत्तम और सदैव स्थिर रहता, और जिसका नाम पवित्र है, वह यों कहता है, मैं ऊंचे पर और पवित्र स्थान में निवास करता हूं, और उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र हैं, कि, नम्र लोगों के हृदय और खेदित लोगों के मन को हषिर्त करूं |” अपने घमण्ड से पश्चाताप करने और दीनता का अनुसरण करने के लिए हम सचमुच में पवित्र आत्मा की सहायता माँगने वाले बने | ऐसा करने से हम आश्वस्त हो सकते हैं कि प्रभु हमारे हृदय में अपना पार्थिव घर बनायेगा!