एक भक्त कलीसिया के 12 संकल्प: भाग 1

(English version: “12 Commitments of a Godly Church – Part 1”)
एक भक्त कलीसिया कैसी दिखती है? इसके संकल्पों में क्या विशेषतायें होनी चाहिए? इन महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्रेरितों के काम का शीघ्रता से सर्वेक्षण करने के लिए समय देना लाभकारी होगा | जैसा कि प्रेरितों के काम में वर्णन किया गया है, आरंभिक कलीसिया किसी भी तरह से एक सिद्ध कलीसिया नहीं थी और इसे हमारे लिए एक ऐसे आदर्श के रूप में नहीं दिया गया है जिसका हमें अनुकरण करना है, परन्तु मैं सोचता हूँ कि सामान्य रूप से हम इस बात पर सहमत होंगे कि आरंभिक कलीसिया एक भक्त कलीसिया थी और उनके कार्यों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं |
3 लेखों की श्रृंखला के द्वारा जिसमें यह पहला लेख है, हम उन 12 संकल्पों को देखेंगे जो आरंभिक कलीसिया की पहचान थी | मैं विश्वास करता हूँ कि इन 12 संकल्पों का अनुकरण करना वर्तमान समय की ऐसी किसी भी कलीसिया के लिए लाभकारी सिद्ध होगा जो भक्त कलीसिया बनने के लिए प्रयासरत है |
संकल्प # 1. उद्धार पाए हुए लोगों की सदस्यता
हालाँकि कलीसिया में सभी का स्वागत था लेकिन सदस्यता केवल उन्हें प्रदान की गई थी जिन्होंने यीशु मसीह के सुसमाचार को स्वीकार किया था | यह प्रेरितों के काम 2:41 से स्पष्ट हो जाता है | उससे पहले के आयत हमें बताते हैं कि पतरस सुसमाचार का प्रचार करता है और उनसे विनती करता है कि वे यीशु मसीह की ओर फिरें | और फिर हम पद 41 में पढ़ते हैं, “सो जिन्हों ने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए |” इस बात पर ध्यान दीजिए कि कलीसिया में मिल जाने से पहले उनका उद्धार हुआ | उन सब लोगों पर पवित्र आत्मा उतरा था | उन सब लोगों में पवित्र आत्मा का वास था, जो कि तभी होता है जब एक व्यक्ति यीशु मसीह को उद्धारकर्ता और प्रभु के रूप में ग्रहण करता है |
कोई कलीसिया सदस्यता देने के लिए चाहे कोई भी विधि क्यों न अपनाये, किसी व्यक्ति को सदस्य के रूप में स्वीकार किए जाने से पहले कलीसिया को यह अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि वह व्यक्ति उद्धार पाया हुआ हो |
संकल्प # 2. बाईबल–ज्ञान में बढ़ना
उद्धार पाए हुए लोगों में परमेश्वर के वचन के प्रति एक गंभीर प्रेम होगा | और यही बात हम आरंभिक कलीसिया में देखते हैं | प्रेरितों के काम 2:42 में लिखा है, “और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने…में लौलीन रहे |” “लौलीन रहे,” शब्द में किसी कार्य के प्रति एक सतत संकल्प का विचार निहित है—और इस मामले में इसका अर्थ है प्रेरितों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा को सीखने का कार्य | प्रेरितों 2:46 में लिखा है, “और वे प्रति दिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे |” आप आश्वस्त हो सकते हैं कि जब वे मिलते थे तो शिक्षा भी पाते थे | वे भूखे लोग थे—परमेश्वर के वचन के प्रति भूखे |
और प्रेरित लोग भी उन्हें खरी शिक्षा देने के लिए संकल्पित थे | उन्हें अपने झुण्ड का मनोरंजन करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी परन्तु उन्हें इस बात में रूचि थी कि परमेश्वर के वचन के निर्मल दूध को देते हुए वे उनका पालन—पोषण करें | ये सब प्रेरित, यूहन्ना 17:17 में यीशु मसीह द्वारा की गई प्रार्थना से भी परिचित थे, “सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है |” वे इस बात को जानते थे कि प्रारंभिक रूप से उद्धार के समय में पवित्र आत्मा किसी व्यक्ति को शुद्ध करने के लिए पवित्र वचन का प्रयोग करता है, परन्तु यह भी परमेश्वर का वचन ही है जो उस व्यक्ति को सतत रूप से शुद्ध बनाये रखता है |
बाईबल—ज्ञान में बढ़ना किसी भी भक्त कलीसिया का एक महत्वपूर्ण संकल्प होना चाहिए | विश्वासियों को न केवल तब उपस्थित रहने के लिए संकल्प लेना चाहिए जब मंच से वचन का प्रचार किया जाता है बल्कि उन्हें अन्य मार्गों से भी वचन सीखने के लिए संकल्पित रहना चाहिए, जैसे कि बाईबल अध्ययन समूह और भक्त शिक्षकों के उपदेशों को सुनने के द्वारा | और जो योग्यता प्राप्त शिक्षक हैं उन्हें भी लोगों को शिक्षा देने के लिए वचन में परिश्रम करना चाहिए |
संकल्प # 3. रीति–विधियों का पालन करना
कलीसिया दो रीति—विधियों का पालन करती है जिसे परमेश्वर ने निर्धारित किया है | एक है बपतिस्मा और दूसरा है प्रभु—भोज जिसे स्मरण भोज या रोटी तोड़ना भी कहा जाता है |
रीति–विधि # 1: बपतिस्मा
यीशु मसीह ने महान आज्ञा देते समय कलीसिया को जाने और सुसमाचार प्रचार करने और फिर उनके विश्वास करने पर उनको बपतिस्मा देने और फिर उन्हें सब बातें सिखाने के द्वारा चेले बनाने की आज्ञा दी [मत्ती 28:18-20] | उस आज्ञा के प्रति आज्ञाकारिता दिखाते हुए पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन न केवल सुसमाचार का प्रचार किया बल्कि सुनने वालों से आग्रह किया कि वे अपने पापों से वास्तविक मनफिराव के पश्चात बपतिस्मा लें, “मन फिराओ और बपतिस्मा लो” [प्रेरितों के काम 2:38] | और प्रेरितों का काम 2:41 बताता है कि इस आज्ञा के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हुए, “जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया |”
सपष्ट है कि इन लोगों ने यीशु मसीह को पहले अपने हृदय में ग्रहण किया और फिर तुरंत ही जल के बपतिस्मे द्वारा अपने विश्वास को सार्वजनिक रूप से प्रगट किया | दूसरे शब्दों में कहें तो बाईबल केवल विश्वासियों के बपतिस्मे के बारे में ही जानती है अर्थात ऐसा बपतिस्मा जो सुसमाचार सुनने और उसके प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाने के पश्चात लिया जाता है |
एक भक्त कलीसिया को चाहिए कि जो लोग अपने पापों से मन फिरा चुके हैं और यीशु मसीह में अपने विश्वास को रख चुके हैं उन लोगों को वह प्रोत्साहित करे कि वे यीशु के पीछे चलने के अपने संकल्प को अधिक विलंब किए बिना जल के बपतिस्मे द्वारा सार्वजनिक रूप से प्रगट करें | सच्चा विश्वास सदैव यीशु मसीह के द्वारा दी गई आज्ञा के प्रति आज्ञाकारिता उत्पन्न करता है—जिसमें से पहली आज्ञा है, बपतिस्मा लेना | किसी को भी आज्ञाकारिता के इस कार्य को पूरा करने में विलंब नहीं करना चाहिए |
रीति–विधि # 2: प्रभु–भोज
जिस रात यीशु मसीह पकड़वाया गया, उस रात यीशु मसीह ने कलीसिया को पालन करने के लिए एक अन्य रीति—विधि भी दिया | जहाँ एक ओर बपतिस्मा एक ऐसी रीति—विधि है जिसका पालन विश्वासी को केवल एक बार ही करना है वहीं दूसरी ओर प्रभु भोज अवश्य ही एक निरंतर अभ्यास का विषय होना चाहिए, जिसके द्वारा कलीसिया यीशु मसीह की मृत्यु, पुनरुत्थान और दुबारा आगमन के साथ ही साथ एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम और संकल्प को भी स्मरण करती है | लूका हमें प्रेरितों के काम 2:42 में बताता है कि कलीसिया “रोटी तोड़ने में…लौलीन” रही | “रोटी तोड़ना” भोजन करने के कार्य की ओर संकेत करता है | और सामान्यतः प्रभु भोज भी भोजन के समय ही रखा जाता था – सर्वाधिक संभावना है कि भोजन के अंतिम चरण में |
हालाँकि नया नियम में यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है कि प्रभु—भोज कितने दिन के अंतराल में होना चाहिए, तौभी ऐसा कहना सुरक्षित होगा कि यह नियमित रूप से होना चाहिए | ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभ में यह प्रतिदिन हुआ करता था—पद 46—“और वे प्रति दिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, और घर घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे |” बाद में प्रेरितों के काम 20:7 को पढ़कर ऐसा लगता है कि वे प्रति सप्ताह प्रभु भोज लिया करते थे | [मैं इस बात को पसंद करूँगा कि कलीसिया को प्रति सप्ताह प्रभु—भोज रखना चाहिए क्योंकि यह गंभीर परन्तु आनंददायी कार्य हमारे लिए यीशु मसीह द्वारा किए गये महान बलिदान का हमें स्मरण कराता है | प्रत्येक प्रभु के दिन [रविवार] जब सम्पूर्ण कलीसिया एक देह के रूप में इकट्ठी होती है, तब प्रभु के महान बलिदान को स्मरण करने का यह कितना उत्कृष्ट तरीका है!]
संकल्प # 4. संगति
प्रेरितों का काम 2:42 कहता है, “…संगति रखने में…लौलीन रहे |” संगति शब्द में एक सहभागिता के जीवन का विचार निहित है, समान उद्देश्य वाला एक जीवन | और यह बात ठीक जान पड़ती है क्योंकि वे सब के सब प्रभु यीशु मसीह के साथ जोड़े गये थे और उसके साथ एक ही जीवन के भागीदार थे | इस संगति ने उन्हें एक साथ समय बिताने के लिए प्रेरित किया, और जैसा कि प्रेरितों के काम में बताया गया है, वे, “घर घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे |”
नया नियम एक—दूसरे से संबंधित कई आज्ञाओं के बारे में भी बात करता है जिनका अभ्यास विश्वासियों को करना चाहिए, और इन आज्ञाओं का पालन तभी हो सकता है जब लोग एक—दूसरे के साथ संगति में रहें | यदि हम एक—दूसरे के साथ समय नहीं गुजारते हैं, तो फिर हम एक—दूसरे से संबंधित आज्ञाओं को जीवन में लागू कैसे कर सकते हैं? यदि कोई व्यक्ति केवल इतना करता है कि वह रविवारीय आराधना सभा के लिए उपस्थित रहता है और फिर तुरंत गायब हो जाता है, तो वह यह नहीं कह सकता है कि वह उसी प्रकार की संगति रख रहा है जैसा कि बाईबल में बताया गया है! कलीसियाई नेतृत्व को ऐसी परिस्थितियों के निर्माण के लिए संघर्षरत रहना चाहिए जिससे विश्वासी वचन के अध्ययन के लिए, एक दूसरे को प्रोत्साहित करने के लिए और यहाँ तक कि एक साथ भोजन करने के लिए इकट्ठे हों | विश्वासियों को भी कलीसियाई नेतृत्व के साथ सहयोग करना चाहिए, न केवल अपनी उपस्थिति देकर बल्कि साथ ही साथ इन सभाओं के संचालन के लिए कुछ कार्यों की जिम्मेदारियों को अपने ऊपर लेकर |
अतः, इस पहले लेख में हमने 12 संकल्पों में से प्रथम 4 संकल्पों को देख लिया है, जो निम्नानुसार हैं:
( 1 ) उद्धार पाए हुए लोगों की सदस्यता
( 2 ) बाईबल–ज्ञान में बढ़ना
( 3 ) रीति–विधियों का पालन करना
( 4 ) संगति
इस 3 भाग के श्रृंखला के भाग 2 में हम अगले 4 संकल्पों को देखेंगे | तब तक क्यों न आप इस बात पर विचार करते रहें कि अपनी कलीसिया को एक भक्त कलीसिया बनने के लिए संघर्ष करने में आप कैसे सहायता कर सकते हैं?